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एस धम्मो सनंतनो
दिल मे - जीस्त से बोझिल रहे, आजुर्दा रहे इससे क्या फायदा रंगीन लबादों के तले
खूब रंगीन कपड़ों में हम अपने को छिपा लेते हैं। शायद दूसरों को धोखा भी हो जाता हो रंगीन लबादों के कारण, मखमली लिबास के कारण। इन रंग-बिरंगे इंद्रधनुषी वस्त्रों के कारण शायद दूसरों को धोखा भी हो जाता हो - लेकिन नहीं, दूसरों को भी न होता होगा। क्योंकि वे भी तो यही कर रहे हैं। उन्हें भी तो तुम्हारा गणित मालूम है। उनका भी तो यही गणित है।
इससे क्या फायदा रंगीन लबादों के तले
रूह जलती रहे...
किसे धोखा दे रहे हो? धन इकट्ठा होता जाता है, भीतर निर्धनता खलती है, सालती है। तुमने, अमीर आदमियों में थोड़ा झांककर देखा ? उनकी जलती रूह देखी? तुम वहां भीतर छिपे हुए भिखारी पाओगे । भिखारियों से भी बदतर भिखारी पाओगे। क्योंकि भिखारी की भिक्षा तो उसके पात्र के भर जाने से पूरी हो जाती है। फिर फिक्र छोड़ देता है। फिर रात पैर फैलाकर सो जाता है वृक्ष के तले । अमीर का भिखमंगापन रात भी जारी रहता है। उसके सपनों में भी छाया रहता है। उसके सपनों में भी वही धन की दौड़ जारी रहती है। भिक्षा पात्र हाथ में रहता है । भिखारी के भिक्षा पात्र की तो सीमा है । कल की तो चिंता नहीं । आज रोटी मिल गई, बहुत ! धनी के भिक्षा पात्र कभी नहीं भरते ।
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इससे क्या फायदा रंगीन लबादों के तले
रूह जलती रहे, घुलती रहे, पजमुर्दा रहे
मुर्झा आत्मा को लेकर अगर तुमने बहुत फूल भी अपने चारों तरफ सजा लिए और आत्मा मुर्झाती गई, इससे क्या फायदा !
ओंठ हंसते हों दिखावे के तबस्सुम के लिए
और सिर्फ इसलिए हंसते हों कि लोगों को तुम्हारी मुस्कुराहट का खयाल बना रहे और भीतर आंसू दबे हों - इससे क्या फायदा !
ओंठ हंसते हों दिखावे के तबस्सुम के लिए दिल मे - जीत से बोझिल रहे...
और जिंदगी और हृदय सिर्फ दुख में दबा रहे - आजुर्दा रहे, दुखी रहे । भीतर नर्क हो और बाहर तुमने झूठे किस्से और कहानियां अपने संबंध में फैला रखे हों । नहीं, इससे कुछ भी फायदा नहीं ।
'पुत्र मेरे हैं, धन मेरा है, इस प्रकार मूढ़ चिंतारत होता है । '
ऐसे वह लबादों के संबंध में ही सोचता रहता है। रूह जलती रहती है, आत्मा सड़ती रहती है। भीतर नासूर बनते जाते हैं। भीतर आंसू इकट्ठे होते जाते हैं । और ऊपर से वह झूठी मुस्कुराहटों का अभ्यास करता चला जाता है। किसे तुम धोखा
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