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कोश परम्परा में प्राय: यह देखा जाता है कि पुल्लिग शब्द लेने के बाद उसी का स्त्रीलिंग शब्द स्वतंत्ररूप में नहीं लिया जाता। किंतु हमने स्त्रीलिंग एवं पुल्लिग दोनों प्रकार के शब्दों को संगृहीत किया है । जैसेपिल्लक-पिल्लिका, सिंगक-सिंगिका, कब्बट्ठ-कब्बट्टी आदि आदि । इनको संगृहीत करने का एक विशेष उद्देश्य यह भी था कि कहीं-कहीं शब्द में लिंगपरिवर्तन के साथ अर्थ-परिवर्तन भी हो जाता है। जैसे—हालाहल - स्वामी । हालाहला--ब्राह्मणी (कीट-विशेष)।
ओवासण, उवासणा और उपासना--ये तीनों एकार्थक हैं । इनका अर्थ है --- क्षुरकर्म । उपासना टीकाकारों द्वारा प्रयुक्त संस्कृतनिष्ठ शब्द है, किन्तु संस्कृत से अर्थ भिन्न होने के कारण यह देशी है। ऐसे अनेक संस्कृत. निष्ठ देशी शब्द इस कोश में संग्रहीत हैं। जैसे --छेलापनक, परिपूणक आदि । कोश का बाह्य स्वरूप
प्रस्तुत ग्रन्थ के मूल भाग में लगभग दस हजार देशी शब्दों का संकलन है। प्रायः शब्दों के साथ संदर्भ-स्थल भी निर्दिष्ट हैं जिससे पाठक उस अर्थ को भली-भांति हृदयंगम कर सके । जैसे
१. अंतोवगडा नाम उवस्सयस्स अभंतरं अंगणं । २. एरंडइए साणे त्ति हडक्कायितः श्वा । ३. कुब्बति निम्नं क्षाममित्यर्थः । ४. रज्जं कागिणी भण्णति ।
जहां अर्थ की स्पष्टता के लिए संदर्भ-स्थल अपेक्षित या अत्यावश्यक नहीं समझे गये, वहां केवल शब्द का अर्थ और प्रमाण का उल्लेख मात्र किया गया है।
इस देशी शब्दकोश का उद्देश्य आगम एवं उसके व्याख्या-ग्रन्थों के देशी शब्दों को संकलित करना था किन्तु कुवलयमाला, पाइयलच्छीनाममाला, प्राकृत व्याकरण एवं सेतुबंध के देशी शब्द भी मूल भाग में संकलित हैं ।
प्रस्तुत कोश के साथ दो परिशिष्ट भी संलग्न हैं। प्रथम परिशिष्ट अवशिष्ट देशी शब्दों का है । इसमें आगमेतर प्राकृत तथा अपभ्रंश ग्रन्थों के ३३८१ देशी शब्दों का समावेश है । ग्रन्थ के मूलभाग में हमने मूल ग्रन्थों का दो या तीन बार पारायण किया तथा अर्थ-निर्धारण की दृष्टि से भी मूलग्रन्थों का अनेक बार अवलोकन किया। इस परिशिष्ट में हमने मूलग्रंथ को नहीं देखा, किन्तु उनके संपादकों ने जहां अन्त में देशी शब्दों की सूची दी है, अथवा शब्दसूची में जिन शब्दों को देशीचिह्न से चिह्नित किया है, उन शब्दों का इसमें संकलन कर दिया है। पाइअसहमहण्णवो के सैंकड़ों शब्द जो कोश के मूल भाग में नहीं आए उनको भी इसी के अन्तर्गत रखा है। त्रिविक्रम के प्राकृत
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