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प्रस्तुत कोश की विशेषता
एक ही अर्थ के वाचक भिन्न शब्दों के संदर्भ में अन्य कोशों की भांति 'देखो' का निर्देश न कर पाठक की सुविधा के लिए उस शब्द का अर्थ वहीं दे दिया गया है। कहीं-कहीं शब्द के अर्थ की विस्तृत जानकारी तथा तुलना की दृष्टि से दो-चार स्थानों पर 'देखो' का निर्देश भी किया है। जैसेआणंदवड-देखें वहूपोत्ति । उक्कोडभंग- देखें खोडभंग ।
___ कोशों में कहीं-कहीं एक शब्द का अर्थ देखने के लिए तीन-चार शब्द देखने पर भी अर्थ नहीं मिलता। पाइयसहमहण्णवो में अनेक स्थलों पर ऐसा हुआ है। जैसे - पज्जुसवणा देखो पज्जुसणा। पज्जुसणा देखो पज्जोसवणा। पलोहिय देखो पलोभिअ । पलोभिअ देखो पलोभविअ । रम्ह देखो रंफ । रंफ देखो रंप। अनेक स्थलों पर शब्दों के पास-पास आने से पुनरुक्ति दोष-सा प्रतीत हो सकता है किंतु सुविधा की दृष्टि से हमने सभी शब्दों का अर्थ प्राय: उनके सामने ही दे दिया है।
जहां दो समस्त शब्द एक अर्थ के वाचक हैं वहां देशी शब्द को अलग से प्रदर्शित करने के लिए . ' चिह्न लगा दिया है, जैसे-'कन्न'लइय', 'अट्टण' साला आदि ।
__इस कोश में अनेक ऐसे शब्द हैं जो अर्थ की दृष्टि से बहुत समृद्ध हैं। भिन्न-भिन्न प्रसंगों में उन शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ मिलते हैं। जैसे-अव्वो, कडिल्ल, भंड, वल्लर आदि ।
प्रस्तुत कोश में प्रयुक्त ग्रंथों में कुछ ग्रंथ देशी शब्दों की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। जैसे--- अंगविज्जा, भगवती, आवश्यकचूणि, कुवलयमाला, नंदीचूर्णि, निशीथभाष्य एवं चूणि, व्यवहार भाष्य, बृहत्कल्पभाष्य आदि-आदि। इनमें नवीन एवं अप्रचलित देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है। जैसे-अंबखुज्ज, अक्खु. इद्ध, चोप्प, चोरालि, तेह, वियडासय आदि ।
इस कोश में वनस्पति, जीवजंतु, आभूषण, खाद्यपदार्थ से संबंधित अनेक ऐसे शब्द हैं जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से संबंधित हैं। अनेक स्थलों पर स्वयं व्याख्याकार क्षेत्र-विशेष का उल्लेख भी करते हैं । जैसे
मूयग-मूयग त्ति मेदपाटप्रसिद्धस्तणविशेषः। विरालिया- गोल्लविसए वल्ली। धरच्छ-~-मगधकं धराक्षं च रूढिगम्यम् ।
देश विशेष में प्रचलित एवं व्यवहृत होने वाले शब्द देश्य की कोटि में आते हैं। क्योंकि इनका मूलरूप न संस्कृत में मिलता है और न प्राकृत में। हमने भी अनेक ऐसे शब्दों का समावेश इसमें किया है जो क्षेत्र-विशेष से संबंधित हैं । जैसे-नारिकेल, ताम्बूल, घोडग आदि । यद्यपि ये शब्द संस्कृत
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