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* चौवीस तीर्थकर पुराण *
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प्रजाके ऐसे दीनता भरे बचन सुनकर नाभिराजने मधुर धचनोंसे सबको संतोष दिलाया और युगके परिवर्तनका हाल बताते हुए कहा कि भाइयो ? कल्पवृक्षोंके नष्ट हो जाने पर भी ये साधारण वृक्ष तुम्हारा वैसा ही उपकार करेंगे जैसा कि पहले कल्प वृक्ष करते थे। देखो, ये खेतोंमें अनेक तरहके अनाज पैदा हुए हैं इनके खानेसे आप लोंगोंकी भूग्व शान्त हो जावेगी और इन सुन्दर कुएं, बावड़ी, निझर आदिका पानी पीनेसे तुम्हारी प्यास मिट जावेगी इधर देखो, ये लम्बे लम्बे गन्नेके पेड़ दिख रहे हैं जो बहुत ही मीठे हैं, इन्हें दांतों अथवा यन्त्रसे पेलकर इनका रस पीना चाहिये। और इस ओर देखो, इन गाय भैंसोंके स्तनोंसे सफेद सफेद मीठा दूध भर रहा है इसे पीनेसे शरीर पुष्ट होता है और भूख मिट जाती है। इस तरह दयालु महाराज नाभिराजने उस दिन प्रजाको जीवित रहनेके सब उपाय बतलाये तथा हाथी गण्डस्थल पर थाली आदि कई तरहके मिट्टीके बर्तन बना कर दिये एवं आगे इसी तरहका बनानेका उपदेश दिया। नाभिराजके मुखसे यह सब सुनकर प्रजाजन बहुत ही प्रसन्न हुए और उनके द्वारा बतलाये हुए उपायोंको अमल में लाकर सुखसे रहने लगे।
पहले लोग बहुत ही परिणामी होते थे इसलिये उनसे किसी प्रकारका अपराध नहीं होता था। पर ज्यों ज्यों समय बीतता गया त्यों त्यों लोगोंके परिणाम कुटिल होते गये और वे अपराध करने लगे इसलिये नाभिराजने और उनके पहले कुलकरोंने अपराधी मनुष्योंको दण्ड देनेके लिये दण्ड-विधान भी चलाया था। सुनिये उनका दण्ड-विधान ! प्रारम्भके पांच कुलकरों ने अपराधी मनुष्यों को 'हा' इस तरह शोक प्रकट करने रूप दण्ड देना शुरू किया था। उनके बाद पांच कुलकरोंने 'हा' शोक प्रकट करना तथा 'मा' अब ऐसा नहीं करना ये दो दण्ड चलाये थे और उनसे पीछेके कुलकरोंने 'हा' 'मा' 'धिक ये तीन प्रकारके दण्ड चलाये थे।
न भिराजकी स्त्रीका नाम मरुदेवी था। मरुदेवीके उत्कर्षके विषयमें उसके नख-शिखका वर्णन न कर इतना हो कह देना पर्याप्त है कि उसके समान सुन्दरो और सदाचारिणो स्त्री पृथ्वी तल पर न हुई है, न है न होगी। राजा
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