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( ३५० भक्ति रस की महिमा (भजन नं.॥३॥) भजन से रख ध्यान प्राणी भजन से रख ध्यान 11 टेक ।।
भजन से पट खंड नव निधि होत भरत समान । तिरे भव सागर से भाई-पाप को अवसान ।। १ ।। नबल शकर सिंघ मरकट-कर भजन श्रद्धान । भये वषम सेन आदि जगत गरू पहुंच गये निर्वाण ।। २ ।। कहत नयनानंद जगमें-भजन समम निधान । भये अरहंत सिद्ध आचार्य-पहुंच गये निर्वाण ।। ३ ।।
मानवता का पथ प्रदर्शन (भजन नं. ॥४॥)
सब करनी दया बिन थोथीरे ।। टेक ।। चंद्र बिना जैसे रजनी निरफल । नीर बिना जैसे सरोवर निरफल । आत्र बिना जैसे मोतीरे ॥१॥ ज्ञान बिना जिया ज्योति रे ॥२॥
छाया हीन तरोपर की छवि नयाननंद नहीं होती रे ।। ३ ।।
कर्म सिद्धांत का प्रकाश (भजन नं. ॥५॥) सुख दुख दाता कोई नहीं जीव को पाप पुण्य निज कारण वीरा ॥ टेक ।। सीताजी को अन्गि कुंड में किया सुरोंने निरमलनीरा । जब हर लीनी थी रावण ने तब क्यों ना आये कोई सुरधीरा ॥१॥ बारीषेन पे खडग चलायो फूल माल कीनी सुरधीरा । तब क्यों ना आये तीन दिवस लग गिदडी भखें सुकु माल शरीरा ॥२॥ पांडव मुनि जारे दुश्मन ने पाप निकांक्षित फल गंभीरा । मानतुंग अडतालीस ता ले तोडके छेदी बंध जंजीरा ॥ ३ ॥ ऐसे ही सुख-दुख होत जीव को पाप पुण्य जब चलत समीरा। मंगल हर्ष विषादन करना घिर रखना चहिये निज हीयरा ॥४॥
ध्यानी का आत्म रस पान (भजन नं.॥६॥) देखो कैसे योगी ध्यान लगावे ध्यान लगावे आपेको पावे ॥ टेक ।। ज्ञान सुधा रस जल भरलावे चुल्हा शील बनावे । करम काट को नुग चुग बाले ध्यान अग्नि प्रजलावे ॥१॥ अनुभव भाजन निजगुण तंदुल-समता क्षीर मिलावे । सोहं मिष्ट निशांकित व्यंजन-समकित छोक लगावे ॥३॥ स्यादवाद सप्तमंग मसाले गिनती पारना पाये। निश्चय नय का चमचा फेरे घृत भावना भावे ॥३॥ आप ही पकावे आप ही खावे-खावत नाही अंघावे। तदपि मुक्ति पद पंकज सेवे नयनानंद सिरनावे ।।४।।