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गुण स्थान पर सम्यकत्य प्राप्ति गुण स्थान पर चढने और उतरने का क्रम गुण स्थान का मरकर कहां कहां जन्म ले सकता है ।
किन अवस्थाओं में मरण नही होता है नाम कर्म उदय के ५ नियत स्थान तथा स्वामीपना
समुद्घात केवली व्याख्या उद्वेलना प्रकृतियां १३ संयम विराना कितनी बार
तीर्थंकर आहारक सत्ता एक जीव के एक साथ नहीं
आयु बंध उदय सत्ता
आयु बंघ ८ अपकर्षण
आयु
कर्म भंग
७६६)
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७६७)
७६८ )
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७६९
७७०
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कर्में स्थिति रचना
७८५}
शब्द कोष (अकारादि रुप )
७८६)
श्रीयत पंडित ताराचंदजो शास्त्री न्यायतीर्थ तथा सिंगई मूलचन्दजी अध्यक्ष परवार मंदीर ट्रस्ट का नागपूर इस ग्रन्थ पर शुभ संदेश
७९४)
श्रीयुत सुरजमलजी प्रेम आगरा का
शुभ संदेश
७७४)
७७६)
मूल भाव ५ उत्तर भाव ५३ मूल भाव ५ उत्तर भाव ५३ नाम भाव भंग गुणस्थानों पर ५ मूलभाव गुन स्थानों पर ५३ भाव कोष्टक
३६३ प्रकार मिथ्या दृष्टियों के भंग
३ कर्म स्वरूप
आश्रव मूल वेद ४ गुणस्वाद पराभव गुणस्थानों पर ५७ आश्रव नाम ८ कर्मों पर आश्रव भावों की व्याख्या प्रकाशक को नम्र प्रार्थना- माननीय विद्वानों से विनय पूर्वक प्रार्थना करता हूं कि मैं इस ग्रन्थ का प्रकाशक ब्रह्मचारी उल्फतराय मंदज्ञानी हूं कर्म सिद्धांत बहुत गृह विषय हैं । लेखक पुज्य श्री १०८ आदिसागरजी मुनि महाराज प्रकाशन स्थान मेरठ से हजारों मील दूर आंध्रप्रदेश में विद्यमान थे इस कारण से भूलतो बहुत आई है परन्तु पं. ताराचंदजी शास्त्री न्यायतीर्थं नागपूर तथा श्रीयुत सि. मूलचंदजी अध्यक्ष परवार मंदिर ट्रस्ट नागपूर ने बहुत भारी परिश्रम करके विषय का संशोधन तो बहुत कुछ करदिया है अबभी पाठक सज्जनों की दृष्टि में जो भूल और दिखाई दे तो कृपा करके भूल को शुद्ध करलेना । मुझको क्षमा करना भूल सुधार की सूचना लेखक और प्रकाशक को देने के कष्ट सहन करने की कृपा दृष्टि करना ।
पुस्तक प्राप्त करने के १३ केन्द्रों की नामावली सूची शुद्धि पत्रक
७९४१
लेखक ब्रह्मचारी उत्तराय रोहतक [हरियाना] भगवान महावीर शांति का संदेश
आपका सेवक ब्र. उल्फतशय रोहतक (हरियाना)
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हे भव्य जीवो नर से नारायण बनने के पांच मार्ग इस प्रकार है:
७९५)
७९६)
१) सरवेषु मंत्री - जीवो जीने दो । जब जन प्राणियों को धन भूमि देश राज स्त्री वैभव बढाने की इच्छायें प्रबल होती जाती है । मानवता नष्ट होती चली जाती है। दानवता भयंकर रूप बना देती है । आज सारे विश्व में नर संहार चल रहा हैं भयंकर राज युद्ध, राज विद्रोह, चोरी डकैती, रेलों, वाहनों के उपद्रव हडताल आग लगाना गृह युद्ध भाषा सांप्रदायकता पद लोलुपता स्वार्थ भावना के नाम पर मानवता को भूल बैठा है । यह सुख शांति देश उन्नति आत्म कल्याण के विरुद्ध जा रहा है । प्राणी मात्र पर मित्रता ही एक मात्र शांति मार्ग है । पशु पक्षी जल थल नभ के प्राणियों में भी तुम्हारी जैसी आत्मा है। सब ही सुख शांति से जीना चाहते है ।