Book Title: Bharatiya Samvato Ka Itihas
Author(s): Aparna Sharma
Publisher: S S Publishers

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Page 17
________________ - काल गणना का संक्षिप्त इतिहास, इकाईयाँ व विभिन्न चक्र जिसमें चन्द्र सौर दोनों से गणना होती थी, १२ चन्द्र मास थे, समय की गणना • दसमलव में की जाती थी । उत्तरी अमेरिका के कलंन्डर में समय की गणना के लिए छड़ियों का प्रयोग किया जाता था । दिन प्रमुख इकाई था जिसे सभी जनजातियां स्वीकार करती थीं। वर्ष को कभी चार व कभी पांच मौसमों में बांटा जाता था । वर्ष का आरम्भ पूर्णिमा से माना जाता था । सुदूर पूर्व में हिन्दू व चीनी कलैन्डरों का विकास हुआ । हिन्दू कलेन्डर का * विकास हजारों वर्ष पूर्व से पूर्ण विकसित अवस्था में है। वैदिक युग में ही पंचवर्षीय चक्र का आरम्भ किया गया जिसमें नियमित दिन माह व सप्ताह का क्रम था । इसके पश्चात् बृहस्पति चक्र, परशुराम का चक्र, सप्तर्षि चक्र आदि विभिन्न पद्धतियों का विकास पंचांग व्यवस्था के संदर्भ में किया गया । सिद्धान्त ज्योतिष का विकास हुआ । सूर्य सिद्धान्त द्वारा वर्ष की लम्बाई पुनः निर्धारित की गयी । अब आधुनिक समय में ही १६५५ में भारत सरकार द्वारा कलैन्डर सुधार के लिए नियुक्त की गयी समिति की रिपोर्ट में सम्पूर्ण भारतीय गणना पद्धति का शोधित रूप प्रस्तुत किया गया है जिसको भारतीय राष्ट्रीय कलैन्डर के रूप में ग्रहण किया गया है। चीनी कलैन्डर का आरम्भ ई० से १४०० वर्ष पूर्व से माना जाता है । इसमें वर्ष ३६५, १/४ दिन का माना गया, १२ माह का वर्ष होता था तथा प्रत्येक १६ वर्ष बाद एक अतिरिक्त माह होता था, अर्थात् १३ माह का वर्ष होता था । यहूदी कलैन्डर चन्द्रसौर है । इसके वर्ष सौर व माह चन्द्रीय हैं । यह १६ वर्षीय चक्र है । अतः तीसरा, छठा, आंठवा, ग्याहरवां, चौदहवां, सत्रहवां व उन्नीसवां वर्षं लौंद का होता है । साधारण वर्ष में ३५३, ५४, ५५ दिन तथा १२ चन्द्रमाह होते हैं जबकि लौंद के वर्ष में ३८३, ८४, ८५ दिन तथा १३ चन्द्रमाह होते हैं । इस्लामिक कलैन्डर (हिज्रा कलैन्डर) पूर्ण रूप से चन्द्रीय पद्धति पर आधारित है जिसके साधारण वर्ष में ३५४ तथा लौंद के वर्ष में ३५५ दिन होते हैं । सऊदी अरब व ईरान आदि में यह राजकीय संवत् है । विश्व के अन्य स्थानों पर जहां भी इस्लाम के अनुयायी रहते हैं यह धार्मिक पंचांग के रूप में प्रचलित है । मिस्र व ग्रीस के अतिरिक्त मध्य पूर्व के सभी देशों में चन्द्रसौर कलैन्डरों का प्रचलन है । इस क्षेत्र से २७०० ई० पूर्व तक की गणना की तालिकायें पायी गयीं हैं । इन तालिकाओं से सिद्ध होता है कि इनके निर्माताओं ने मानव की तत्कालीन आवश्यकताओं के अनुसार समय का विभाजन किया था ।

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