________________
प्रथम अध्याय काल गणना का संक्षिप्त इतिहास, इकाईयाँ व
विभिन्न चक्र
काल गणना का इतिहास
सभ्यता की सीढ़ी पर पहला कदम रखते ही मनुष्य को समय की गणना करने व समय को विभाजित करने की आवश्यकता महसूस हुई। आरम्भ में मनुष्य ने धूप व छाया के सहारे दिन को बाँटा' । शन-शन दिनों के समूहों, पक्ष, माह, वर्ष आदि का विकास हुआ । गहन अध्ययन व विज्ञान की उन्नति के साथ ही इस क्षेत्र में भी प्रगति हुई तथा समय गणना की सूक्ष्मतम इकाई प्रतिपल, विपल, पल-से युग व महायुग तक विभिन्न इकाईयों का विकास हुआ। विश्व की विभिन्न सभ्यताओं में यह विकास भिन्न-भिन्न तरीकों से हुआ । सभ्यताओं के परस्पर सम्पर्क व विचारों के आदान प्रदान ने भी दूसरे के सिद्धान्तों को प्रभावित किया। समय गणना को अधिकाधिक स्पष्ट, व्यवहारिक व वैज्ञानिक बनाने के संदर्भ में अनेक सुधार हुए। आधुनिक समय में विश्व भर में अनेक तत्त्व समय गणना के लिए समान रूप से ही प्रयुक्त होने लगे हैं व कुछ तथ्यों में आश्चर्यजनक भिन्नता है। भारतीय खगोल-शास्त्र का इतिहास भी हजारों वर्ष पुराना है। समय-समय पर इसमें अनेक परिवर्तन किये गये । प्रस्तुत अध्याय में काल गणना के संक्षिप्त इतिहास, विभिन्न काल चक्रों व समय गणना के आधारभूत स्तम्भ चन्द्रमान व सूर्यमान का उल्लेख है ।
तिथिक्रम के अध्ययन में पंचांग के विकास का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसका सम्बन्ध समय का हिसाब लगाने, नियमित विभाग करने तथा घटनाओं की तिथि निश्चित करने के लिए किया जाता है। "प्रथम पंचांग मिश्र द्वारा
१. 'बाइबिल' के प्रथम अध्याय व्युत्पत्ति में लिखा है, "- और भगवान ने
रोशनी को दिन और अंधेरे को रात कहा इस प्रकार शाम और सुबह पहला दिन था।" (व्युत्पत्ति १:५) और इस प्रकार दिनों को गिनते हुए भगवान ने बाइबिल के अनुसार इस संसार की रचना की।