Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 19
________________ चौथे उद्देशक के अन्त में सर्वज्ञ संबंधी प्रश्नोत्तर थे और उसके पश्चात् पांचवे उद्देशक की आदि में नरक-पृथ्वी संबंधी प्रश्न किया गया है। यहां यह देखना चाहिए कि सर्वज्ञ सम्बन्धी प्रश्नोत्तर के साथ नरक-पृथ्वी के प्रश्नोत्तर में क्या कुछ संबंध है? ऊपरी दृष्टि से देखा जाय तो सर्वज्ञ विषयक प्रश्नोत्तर एवं पृथ्वी संबंधी प्रश्नोत्तर परस्पर असंबद्ध से प्रतीत हो रहे हैं। इस विषय में टीकाकार का कथन है कि यह दोनों प्रश्नोत्तर असंबद्ध नहीं हैं किन्तु प्रस्तुत पृथ्वी संबंधी प्रश्न सर्वज्ञ विषयक प्रश्नोत्तर से संबंध रखता है। वह संबंध यह है कि सर्वज्ञ पृथ्वी पर ही होते हैं अथवा पृथ्वीकाय रूप गति से निकल कर मनुष्यभव पाकर ही अर्हन्त-सर्वज्ञ होते हैं। अतएव सर्वज्ञ और पृथ्वी का संबंध है। ___ 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। अर्थात्-जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक बढ़कर हैं। जिसने जन्मभूमि के महत्व पर विचार किया है, वह इस बात को अवश्य ही स्वीकार करेगा कि अर्हन्त भी इसी भूमि पर होते हैं। संसार में बिना पगड़ी के, बिना जूते के और बिना कपड़े के काम चल सकता है। इसके अभाव में कोई काम नहीं रुकता। साधु न पगड़ी बांधते हैं और न जूते ही पहनते हैं। कई जिनकल्पी महात्मा कपड़े भी नहीं पहनते। इस प्रकार इनके अभाव में काम चलते तो देखा जाता है लेकिन क्या कोई ऐसा भी है जो पृथ्वी की सहायता के बिना-पृथ्वी का आश्रय लिये बिना रहता हो ? 'नहीं।' फिर पगड़ी की तो लाज रखते हो, पगड़ी की प्रतिष्ठा बनाये रखने की चिन्ता करते हो मगर इस पृथ्वी की भी लाज रक्खोगे या नहीं? जिस पगड़ी के बिना काम चल सकता है उसकी लाज रखने की तो चिन्ता करते हो लेकिन जिस पृथ्वी पर स्वयं रहते हो और जिस पृथ्वी पर 'जिन' भी रहते हैं, उसकी लाज रखने की चिन्ता क्यों नहीं करते? गौतम स्वामी ने चौथे उद्देश्य के अन्त में आधेय का प्रश्न किया था इस पांचवे उद्देशक के आरंभ में आधार का प्रश्न किया है। बहुत से लोग आधार का महत्व ही नहीं समझते। कई जैनधर्मी भी कहते हैं कि यह तो पृथ्वीकाय का जीवन है, इसमें क्या धरा है? लेकिन अगर पृथ्वीकाय में कुछ न होता तो गौतम स्वामी भगवान् से प्रश्न ही क्यों करते? यह पृथ्वी आधार है और इस पर रहने वाले आधेय हैं। भगवान् ने शास्त्र में कहा है-'पाढ़वं शरीरं ।' अर्थात् यह शरीर पार्थिव है-पृथ्वी से पैदा होने वाला है। ६ श्री जवाहर किरणावली

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