Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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: आस्था की ओर बढ़ते कदग धर्म को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया। आज श्वेताम्बर पूजकों में और दूसरा अमुतिपूजक सम्प्रदाय स्थानक वासी हैं। इसी स्थानकवासी सम्प्रदाय से निकला है तेरापंथ। इस पंध के संस्थापक आचार्य भिक्षु जी महाराज धे। आप आचार्य रघुनाथ जी के शिष्य थे।
इसी तरह दिगम्बर सम्प्रदाय में तारणपंथ, वीस पंध, तेरहपंथ निकले। गुजरात में पूज्य श्री कान जी स्वामी ने एक नया सम्प्रदाय चलाया। जिस का सारे गुजरात में अच्छा प्रचार हुआ। पर इतिहासक दृष्टि से जैन धर्म का सव से नवीनतम सम्प्रदाय श्वेताम्बर तेरहपंथ है। इस सम्प्रदाय के साधु, साध्वी व आचार्य विद्वान रहे हैं। तेरह पंथ सम्प्रदाय की एक विशेषता अनुशासन है। तेरहपंथ में अधिकांश साधु साध्वी राजस्थान अथवा हरियाणा के ओसवाल हैं। मैं सर्वप्रथम इसी सम्प्रदाय के साधुओं की शरण में आना। मैं इस अध्याय के माध्यम से तेरहपंथ धर्म संघ के आचायों का परिचय प्रस्तुत कर रहा हूं। इस सम्प्रदाय के सभी आचायों के जीवन पर दृष्टि डालेंगे। ताकि पाठकों इस सम्प्रदाय के आचायों के बारे में जानकारी मिल सके। आचार्य श्री भिक्षु जी :
जैसे पहले लिखा जा चुका है कि आप ने ही जैन श्वेताम्बर तेरहपंथ की स्थापना की थी। आप का जन्म कटालिया (जोधपुर) के श्रावक बल्लु जी संकलेचा व माता दीपावाई के यहां संवत् १७८३ शुकल त्रयोदश में हुआ। बचपन से ही आप ओजस्वी शिशु थे। वैराग्य आप के शरीर के कण कण में समाया हुआ था। पहले वह पोतियावंध सम्प्रदाय की ओर अग्रसर हुए। स्वयं को असंतुष्ट पा कर आप ने स्थानक वासी आचार्य श्री रघुनाथ को सुना। आचार्य भिक्षु की शादी अल्पायु में हो गई थी।
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