Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कर
प्रकरण - २ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ की
आचार्य परम्परा
बचपन में तो धर्म की वात कम समझ में आती थी पर धर्म के साथ जुड़े तो धर्म की यात्रा का बहुआयानी सफर शुरू हुआ। अव धर्म ही मेरी आस्था का सफर था। मैं शुरू में इतिहास का विद्यार्थी रहा हुं। जिस सम्प्रदाय में मैन सर्वप्रथम माना, उसका इतिहास जानने की चेष्टा भी की है। जव हम श्री उतराध्ययन सूत्र के अनुवादक का सम्पादन कर रहे थे तब मैने जाना कि जैन धर्म के दो सम्प्रदाय प्राचीन काल से चले आ रहे हैं : १. अचेलक (वस्त्र रहित) २. सचेलक (वस्त्र सहित)। भगवान महावीर के निर्वाण के ६०० साल तक सारी विचार धारा, संस्कृति एक थी। ८. :
आचार्य कुन्दकुन्द के समय जैन धर्म के सम्प्रदाय क्रमा: दिगम्बर व श्वेताम्बर कहलाए। तब से श्वेताम्बर ६ दिगम्दनें में सिद्धांतिक मतभेद शुरू हो गए। यह मतभेद दडे मामूती स्तर के थे। ऐसी मान्यता भी है कि दिगम्बर व श्वेताम्बर सम्प्रदाय का समन्वय यापनीय संघ का निर्माण हुआ। जो वाद में दिगम्बर सम्प्रदाय का भाग बन गया। अकेले श्वेताम्बर सम्प्रदाय में ८४ गच्छ पैदा हो गए। फिर चैत्यवादीदों का युग शुरू हुआ। नए ग्रंथों का निर्माण हुआ। भगवान् महावीर के सिद्धांतों को सब ने भूला दिया। जिस व्राहमण वादी परम्परा को छोडा था उसे किसी न किसी रूप में अपनाया जाने लगा। धर्म के नाम पर एक दूसरे को मिथ्यात्वी कहा जाने लगा। इन्हीं मतभेदों के कारण दोनों सम्प्रदायों में कई नए सम्प्रदायों को जन्म दिया। जिसने जैन