Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम बीज अंकुरित करने शुरू कर दिये। मुझे उन लोगों से भी घृणा होने लगी जो पशुओं पर शक्ति से ज्यादा भार लाद कर इन्हें पीटते। गरीव का शोषण करते। यह छोटी छोटी वातें थी जिन्हें मेरे मन पर गहरा प्रभाव होता। मैं आहेसा दर्शन की और प्रभावित हुआ। स्कूल का समय तो खेल कूद __ में वीत जाता। इस तरह स्कूल के समय से ही अहिंसा धर्म
की और अग्रसर होने लगा। शिक्षा :
मैने १६६३ में मैट्रिक की परीक्षा पूर्ण की थी। उस के वाद कस्तूरवा शिक्षण संस्थान राजपुरा का कार्यक्रम वना। चाहे इस स्थान पर मेरा मन नहीं लगा, फिर भी वहां मेरे मन को गांधीवाद ने काफी प्रभावित किया। मुझे लगा कि गांधीवाद और प्रभु महावीर की अहिंसा एक सिक्के के दो पहलु हैं। जहां मेरा मन नहीं लगा। मात्र कुछ माह के बाद _ मैं घर आ गया क्यों कि कालेजों में दाखिला वंद हो चुका
था। मेरे को कभी भौतिक वाद प्रभावित न कर सका है। मेरे पिता जी गांधी वादी विचारों से प्रभावित हैं। मैंने देश के स्वतंत्रता अंदोलन में महात्मा गांधी के अहिंसक योगदान को समझा। मुझे इस आश्रम में अभूतपूर्व ज्ञान मिला। मेरा यह विश्वास पक्का हो गया कि जैन साधू ही अहिंसा का सच्चा रूप हैं चाहे अन्य धमों में अहिंसा के अंश पाये जाते हैं पर जिस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने अहिंसा दर्शन प्रस्तुत किया है। वह संसार के प्रत्येक जीव के लिए अभूतपूर्व हैं। २६०० वर्ष बीत जाने पर भी उनकी अहिंसा जीवत है, शाश्वत है, वा जागृत है। यह वर्ष घर में रहकर व धर्म चर्चा (मुनि दर्शन) व समाज को समझने में बीता। इस समय कोई उल्लेखनीय घटना नहीं हुई।
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