Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम का सौभाग्य मिला। मुझे इन अध्यापकों से बहुत स्नेह मिला। स्कूल के टाईम में मेरा कोई उल्लेखनीय मित्र नहीं था। मैं अपने तक ही सीमित था। मेरे माता-पिता का मेरे प्रति वहुत ध्यान रहा।
मेरी दैनिक चर्या संक्षिप्त थी। मेरे मित्र मेरे मुहल्ले के लोग थे। हमारे मुहल्ले में लोग आपसी सहयोग से रहते थे। परस्पर प्यार था। वह समय था जब पडोसी के वच्चे को अपना वच्चा समझा जाना मुहल्ले की विशेषता थी। यह विशेषता ही मेरे चरित्र निर्माण में मेरे बाल्यकाल से महत्त्वपूर्ण रही। माता पिता के स्वाभाव अध्यापक की अच्छी संगत व मुहल्ले के वातावरण ने मुझे धर्म के प्रति वढने की
ओर प्रेरित किया। हमारे मुहल्ले में जैन मुनियों व साध्वीयों का आगमन रहता धा। कभी कभी यह मुनि व साध्वीयां हमारे घर भोजन के लिए पधारते। भोजन के साथ साथ हमें प्रवचन में आने की प्रेरणा देते थे। उस समय मुझे धर्म का विशेष ज्ञान नहीं था। परन्तु घर का वातावरण इतना
आदर्शक था कि जैन साधु, साध्वीयों को देखते ही मेरे पैर उनके चरणों में शीश झुकाने को बढ़ जाते। यह धर्म के प्रति श्रद्धा की शुरूआत धी जो आगे चल कर धर्म अध्ययन का कारण वनी।
यह आस्था के बीज थे। जो श्रद्धा के रूप में विकसित होने लगे थे। आज मैं सोचता हूं कि मनुष्य के व्यक्तित्त्व निर्माण में समाज को कितना बडा हाथ होता है ? समाज मनुष्य को नई पहचान देता है। उस के जीवन को भी । आगे वढाने व भविष्य निर्माण में परिवार, स्कूल, मुहल्ले के अच्छे वातावरण व समाज का प्रमुख हाथ रहता है। अच्छा वातावरण मनुष्य को स्वास्थ्य समाज प्रदान करता है। इस वातावरण का अहसान मेरे भावी जीवन का कारण वना है।
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