Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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= आस्था की ओर बढ़ते कदम इतना कठोर अनुशासन रहा है कि मैं कोई बात उन्हें पूछे विना नहीं करता था। आज भी हर बात उन्हें बता कर करता हूं। ताकि कहीं किसी कार्य में त्रुटि न रह जाए। मैने अपने माता-पिता को अपनी बुद्धि के अनुसार चाहा है। पर मैं यह नहीं कह सकता कि मैं उनके लिए कुछ कर पाया हूं। माता-पिता का उपकार चुकाया नहीं जा सकता। यह श्रपण भगवान महावीर जी का कथन है। मेरे को यह कथन पूर्ण तथ्य पर लगता है। प्रभु महावीर कहते हैं "कोई व्यक्ति दिन रात्रि माता-पिता की सेवा करे, उन्हें कंधे पर उठा कर घूमता फिरे, उनकी हर वात को पूरा करे, फिर भी माता-पिता का उपकार नहीं चुका सकता।" कुरआन ने कहा है "मां के पांव के नीचे जन्नत है" जिस स्वर्ग की प्राप्ति के लिए धर्म कर्म-कांड होता है उस से ज्यादा तो अपने घर में माता-पिता के दर्शन व सेवा से प्राप्त हो जाता है।
मेरे पिता शुरू से सादगी पसंद हैं। वह व्यर्थ क्रियाओं के विरोधी हैं। सच्चे साधुओं के प्रति समर्पित हैं। सादगी व संयम उनके जीवन के हर कार्य में झलकता है। हम उनके पद चिन्हों पर चल कर ही सफलता प्राप्त कर पाते हैं। उनका जीवन प्रमाणिक जीवन है। उनकी करनी व कथनी में अंतर नहीं है। उनके फैसले अटल होते हैं। वह सारे काम परिवार के विमर्श से सम्पन्न करते हैं। इस लिए सभी सदस्य उनका कहना मानते हैं।
मेरे पिता जी अपने व्यापार में प्रमाणिकता रखते रहे हैं। वह ऐसा करने में मुझे भी प्रेरणा देते रहे हैं। उन्होंने जीवन में अनेकों उतार चढाव देखे, पर उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
मेरी माता धर्म परायण महिला हैं। बचपन से हम उन्हें देखते आए हैं कि वह प्रातः उठती हैं उठ कर
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