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मार्ममवलीला । कारसे रक्खे तो मनुष्य पनेका भी ज्ञान | सका जब तक कि उसे म्यूकोमन के नहीं हो मक्ता तथा जैसे बड़े बन में | बनाये हुए एंजिन की मरम्मत करने मनुष्योंको बिना उपदेशके यथार्थ ज्ञान | का अवसर न मिला।" नहीं होता है किन्त पशओं की भांति इसही प्रकार अन्य बहुत बातें क. उनकी प्रवृत्ति देखने में आती है वैसे | रके हमारे भार्या भाई वेदों की बही वेदोंके उपदेशके बिना भी सब | डाई यहां तक करना चाहते हैं कि मनुष्यों की प्रवृत्ति होजाती” दनिया भर में जो कछ भी किसी प्र
इस विषयमें श्रीबाबराम शर्मा एक कार की विद्या मोजद है वा जो कह प्रार्यासमाजी महाशय "भारतका प्रा- नवीन २ कल बनाई जाती हैं या चीन इतिहास' नामक पुस्तक में लि
मागे को बनाई जावेगीं उन सबका खते हैं किः
जान वेदों के ही द्वारा ममण्यों को “युरोपके अनेक विद्वानोंने यह सिद्ध हुआ है। सष्टि की धादि में जो कड करने की चेष्टाकी है कि ज्ञान और भी जान मनष्य को हो सकता है वह भाषा ईश्वर प्रदत्त नहीं है प्रत्युत म- | सब जान वेदों के द्वारा तिसत देशमें नुष्यों ने ही इन्हें बनाया है, परन्तु मनप्यों के पैदा करते ही ईश्वर ने देयुक्ति और प्रमाण शून्य होनेसे उनका दिया था और पृथिवी भर में मब यह कथन कदापि माननीय नहीं हो | देशों में तिपत से ही मनुष्य जाकर सकता।
बसे हैं । इस कारण उस ही घेदोक्त "प्रतएव सिद्ध है कि मनुष्पोंको अ- | जाम के द्वारा मन प्रकार की विद्या स्पन करते ही उस परमपिता परमा
| के कार्य करते हैं। यदि ईश्वर वेदोंके त्माने अपना मान भी प्रदान किया
द्वारा सर्व प्रकार का नाम न देता तो था जिसके द्वारा मनुष्य अपने भाव
मनुष्य जाति भी पशु ममानही रहती। एक दूसरे पर प्रगट कर ममें और | प्यारे पाठको ! यह हिन्दुस्तान किसृष्टि की समस्त बस्तुओं के गुणागुणों | मी समय में प्रत्यन्त उन्नति शिखर का अनुभव करके उसको धन्यवाद | को पहुंच चुका है और अनेक प्रकार देते हुए अपने जीवन को सुख और की विद्या इस हिन्दुस्तान में होपको शान्ति पूर्वक धितावें।
है कि जिसका एक अंश भी अभी तक "यदि अम्सबाटने पकती हुई खि- अंगरेज भादिक विद्वानोंको प्राप्त नहीं चड़ी के ऊपर सड़कते हुए ढकने का हुश्रा है परन्तु ऐमा ज्ञात होता है कारण भाप की शक्ति को अनुभव | कि जब इस हिन्दुस्तान के प्रभाग्य किया तो भाप के गुण जानने पर भी का उदय माया उस समयमें ही किमी वह स्टीम एंजिन तब तक नहीं बना । ऐसे मनुष्य ने जो स्वामी दयानन्द
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