Book Title: Aryamatlila
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 17
________________ आर्यमत्तलीला ॥ ( १३ ) जाती है और जलती नहीं है और। भाईयो ! यद्यपि मनध्यकी उन्नति उसको इनमें से कोई खालेना है तो इस प्रकार हो मक्ती है और इस ही वह बहुत स्वाद मालम होती है और कारण किनी प्रश्न के करने की प्रावश्य तब यह बिधार होता है कि प्राग ता नहीं थी परन्तु हम इन प्रश्नांके को किमी प्रकार काब करना चाहिये करने पर इम कार या मजघर हुव है। और इसे खाने के पदार्थ भन गिये | कि श्री स्वामी दयानन्द जोने अपने | · जाया करें । कालान्तर में कोई ज़रा चगों को सम प्रकार मनष्य की उन्नति ममझदार पा निर मनुष्य आग को होने के विपरीत शिशादी है-स्वामी अपने ममीप भी ले पाता है और जी को वदों को ईश्वर का वाक्य और । लकडो में लगाकर उसको रक्षा करना प्राचीन मिल करने के वास्ते इनकी है और उम में हाल कर खाने की वस्तु | उत्पति मष्टिकी श्रादि में वर्णन कर- | । भन लेता है। क्रम २ पत्थर की मिन्न | नी पड़ी और उस ममय इनके प्रगट ; वा परथर के गोले प्रादिक से खाने | करने की जरूरत को इस प्रकार जा: आदिककी बातुका चरा करना सी म्ब | हिर करना पड़ा कि मनुष्य बिना | आत हैं फिर जब कभी कहीं में उनकी निखाय कछ मीख ही नहीं भरता है। : लोहे प्रादिककी ग्यान मिल जाता है | स्यामीजी इम विषयमें इस प्रकार नि तो सभको पत्थरों से छट पीटकर | खते हैं:। कोई बाजार बनानेते हैं इनही प्रका- "ब वरने प्रथम बंद रचे हैं उन । र सब काम अद्धि से निकालते चलेजात को पढ़ने के पश्चात् ग्रन्थ रचने की है जब २ उनमें कोई विशेष बदि बाला माम रच किमी मनष्यको हो मक्की है। । पदा होता रहता है तब तब अधिक | उनके पढ़ने और ज्ञान बिना कोई . बात प्राप्त होजाती है यह एक मा- | भी मनुष्य विद्वान नहीं हो सकता । धारणा बात है कि म मनष्य एकमा जने इस ममय में किसी शास्त्रको पढ़के | अद्धिके नहीं होते हैं कभी २ कोई म- | किसी का उपदेश सुनके और मनष्यों नुष्य बहुन विशेष बुद्धि का भी पदा | के पास्पर व्यवहारोंको देखके ही मनु बोजाया करता है और उमसे बहुत प्यों को ज्ञान होना है । अन्यथा कभी का चमत्कार हो जाता है जैगा कि नहीं होता । जैसे किमी मनुष्यके बाभायो भाइयोंके कथनानमार स्वामी लकको जन्म से एकांतमें रखके उसकी दरानन्द मरस्वती जी एक अद्भुत अद्धि अन्न और जन युक्तिसे देवे, उसकेमाथ के मनष्य पैदाहुवे और अपने ज्ञान , भाषणादि व्यवहार लेशमात्र भी कोई के प्रकाश से मारे भारतके मनष्यों में | मनुष्य न करे कि जब तक उमका म- । उजियाला कर दिया। | रण न हो तब तक उमको इमी प्र

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