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दिगम्बर जैन ग्रंथ प्रशस्तियों का महाखान मोजखान
श्री प्रस्तर हुसन निजामी, रीवां (म० प्र०)
चदेरी देश के इतिहास के तीन युग है -पहला राज में भी पादपाह महमूद के राजत्वकाल का उगव प्रत काल जिसमें परिहारो तथा याज्वपेल्लो का शासन जिसमे उसके लिए महासुल्तान" की उपालिका प्रयोग रहा है। इस समय की प्रशस्तियो और शिलालेखो पर किया गया है और एक अन्य लेख में उसके लिए "महाअनुमधान की प्रावश्यकता है। दूसरा युग उस समय राज साहि" तथा "महाराजाधिराज सुरताण" भी पाया है। प्राता है जब अलाउद्दीन खिलजी की भेजी हुई सेना ने दतिया के पास एक शिलालेख मिला है जिसमे फीसेज चंदेरी पर दिल्ली सुलतानो की सत्ता जमाई । तीसरा युग शाह तुगलक को सन १३६४ ई० में "परम भटारक है माडव के गोरी खिलजी नरेशो का जब बृहद् मालवा परमेश्वर" के विरूद से स्मरण किया गया है। परगना. के उत्तरी खण्ड की राजधानी चन्देरी रखी गई, जिसका धिकारियो के लिए प्राय: 'महामलिक' का उएयोग शिला. अपना महत्त्व रहा। इस दिल्ली-माडव काल म मनको लखो में मिलता है। शिलालेख सस्कृत तथा देशी बोली अथवा मिश्रित भाषा
___ माडव सलतनत की नीव डालने वाला दिलावर बाँ मे पोर इमी प्रकार ग्रथ प्रशस्तिया तथा लिपि प्रशस्तिया भी पाई गई है जो दिगम्बर जैन ग्रंथों में लगी हुई है। है। एक फारसा के शिलालख म उसकी उपाधिया इस
प्रकार है-"उलुग कुत्लुग, माजम मुअज्जम, शम्सुद्दौलत चंदरी देश मे दिल्ली सुलतानी के राज्यांतर्गत
वहीन अमीद बिन दाऊद गोरी प्रलमुखातुब दिलावर बटिहाडिम को उप-राजधानी बनाकर गढ़ का निर्माण
खा।" विदित हो कि 'उलुग कुत्लुग' (तुर्की) और 'माजम कराया गया था। तुगलक काल के अनेको शिलालेख मिले
मुअज्जम' (परबी) पर्यायवाची है जिनके लिए सस्कृत है। सवत १३८५ (सं० १३२८ ई.) के बटिहागढ़ लेख
वालो न 'महाभोज' की शब्दावली चलाई। यहां प्रयोजन मे सुलतान मुहम्मद बिन तुगलक के विषय में इस प्रकार
तो चदेरी देश से है। चंदेरी का प्रथम राज्यपाल कद्रखा लिखा है :
जान पड़ता है । दिलावर खाँ का जेठा पुत्र अल्य खां (होशग) "प्रस्ति कलियुगे राजा शकेन्द्रो वसुधाधिपः ।
युवराज पद के पश्चात् सुलतान बना और कनिटपुत्र कद्रखा योगिनीपुरमास्थाय यो भुक्ते म कलां महीम् ।।
चदेरी का शासक था जिसके दो शिलालेख चदेरी सर्वसागरपर्यन्त वशीचक्रे नराधिपान् ।
(१४१६) तथा शिवपुरी (१४१६) के प्राप्त है। इसके नहमृदसुरत्राणो नाम्ना शोभिनन्दतु ॥
दरबार में काजी खाँ बद्र मुहम्मद दिल्ली निवासी जो अर्थात् -कलियुग में पृथिवी का स्वामी शकेन्द्र (मुसल- अपने को 'घारवाल' कहता है पोर 'प्रदातुल कुदला' नाम मान राजा) है जो योगिनीपुर (दिल्ली) मे रहकर के शब्दकोश का सम्पादक था, मन १४१८ में पाया था। समस्त पृथ्वी का भोग करता है और जिसने ममुद्र पर्यन्त उसने चंदेरी के शासक की आधिया इस प्रकार दी है. सब राज्यो को अपने वश में कर लिया है। उस शुरवीर "खाने भाजम खाकाने मुअज्जम मसनदे प्राली कद्र या सुलतान महमूद का कल्याण हो।" यहा 'महमूद' से अभि- इन दिलावर पॉ।' बग यू समझना चाहिए कि देरी प्राय मुहम्मद बिन तुगलक है।
के गवर्नरो का विरूद “खाने आजम खाकाने मनम" संवत १३८३ (सन् १३२६ ई.) के एक सती लेख कद्र ग्वां शाहजादे से चला और बाद के उत्तराधिकारी १. देखिये उर्दू (पत्रिका) ,जिल्द ४३, प्रक ४ (प्रक्तूबर १९६७)।