Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 24
________________ प्रकीर्णकानि // 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] [ 15 नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं कामभोगेहिं // 55 // तणकट्टेण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं अत्थसारेणं // 56 // तणकट्ठण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं भोषणविहीए // 57 // वलयामुहसामाणो दुप्पारो वणरयो अपरिमिजो / न इमो जीवो सको तिप्पेउं गंधमल्लेहिं // 58 // अवियद्धोऽ(अवितत्तो) यं जीवो अईयकालम्मि श्रागमिस्साए / सहाण य रूषाण य गंधाण रसाण फासाणं // 51 // कप्पतरुसंभवेसुदेवुत्तरकुरुवंसपसूएसु / उववाएं ण य तित्तो न य नरविजाहरसुरेसु // 60 // खइएण व पीएण व न य एसो ताइयो हवइ अप्पा / जह दुग्गइं न वच्चइ तो नूणं ताइयो होइ // 61 // देविंदचकवट्टित्तणाई रजाई उत्तमा भोगा / पत्ता अणंतखुत्तो न यऽहं तित्तिं गयो तेहिं // 62 // खीरदगेच्छुरसेसु साउसु महोदहीसु बहुसोऽवि / उववरणो ण य तराहा छिन्ना (मे) मे सीयलजलेणं // 63 // तिविहेण य सुहमउलं तम्हा कामरइविसयसुक्खाणं / बहुसो सुहमगुभूयं न य सुहतराहा परिच्छिण्णा // 64 // जा काइ पत्थणायो कया मए रागदोसवसयेण / पडिबंधेण बहुविहं तं निंदे तं च गरिहामि // 65 // हंतूण मोहजालं चित्तूण य अट्टकम्मसंकलियं / जम्मणमरणऽरहट्ट भित्तूण भवा विमुच्चिहिसि // 66 // पंच य महव्वयाई तिविहं तिविहेण चारुहेऊणं / मणवयणकायगुत्तो सजो मरणं पडिच्छिज्जा // 67 // कोहं माणं मायं लोहं पिज्जं तहेव दोसं च / चहउण अप्पमत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 68 // कलहं अभक्खाणं पेसुगणंपि य परस्स परिवायं / परिवज्जतो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच // 61 // पंचिंदियसंवरणं पंचेव निलंभिऊण कामगुणे। अचासायणभीयो खखामि महन्वए पंच // 70 // किराहानीलाकाऊ-लेसा झाणाई अट्टरुदाई / परिवज्जतो गुत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 71 // तेऊपम्हासुका-लेसा झाणाई धम्मसुक्काई /


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