Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि- 0 भीगच्छाचारप्रकीर्णकम् ] [55 श्रणुत्तरविहारिणो समक्खाया / सावयदाढगयाविहु साहंती उत्तम अट्ठ // 111 // किं पुण अणगारसहायगेहिं धीरेहिं संगयमणेहिं / नहु नित्थरिजइ इमो संथारो उत्तमं अट्ठ॥ 112 // उच्छूढसरीरघरा अन्नो जीवो सरीरमन्नति / धम्मस्स कारणे सुविहिया सरीरंपि छड्डुति // 113 // पोराणिश्र पच्चुप्पनिया उ अहियासिऊण विश्रणायो / कम्मकलंकलवल्ली विहुणइ संथारमारूढो // 114 // जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुअाहिं वासकोडीहिं / तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं // 115 // अट्ठविहकम्ममूलं बहुएहिं भवेहिं संचियं पावं / तं नाणी० // 116 // एवं मरिऊण धीरा संथारंमि उ गुरु पसत्थंमि / तइअभवेण व तेण व सिझिजा खीणकम्मरया // 117 // गुत्तीसमिइगुणड्डो संजमतवनिश्रम-करणकयमउडो / सम्मत्तनाणदंसण-तिरयण-संपाविसमग्यो (महग्घो) // 118 // संघो सइंदयाणं सदेवमणुासरम्मि लोगम्मि / दुल्लहतरो विसुद्धो सुविसुद्धो तो महामउडो॥ 111 // डझतेणवि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभूत्राए / सूरेण व चंडेण व किरणसहस्संपयंडेणं // 120 // लोगविजयं करितेण तेण झाणोवउत्तचित्तेणं / परिसुद्धनाणदंसण-विभूइमंतेण चित्तेणं // 121 // चंदगविज्झ लद्धं केवलसरिसं समाउ परिहीणं / उत्तमलेसाणुगो पडिवनो उत्तमं अट्ठ / / 122 // एवं मए अभिथुया संथारगइंद-खंधमारूढा / सुसमणनरिंदचंदा सुहसंक्रमणं सया दिंतु // 123 // संथारगपइराणयं सम्मनं। // इति श्री संस्तारक प्रकीर्णकम् // 6 // // 7 // अथ श्रीगच्छाचारप्रकीर्णकम् // नमिऊण महावीरं तित्रसिंद-नमंसियं महाभागं / गच्छायारं किंची उद्धरिमो सुश्रसमुदायो॥ 1 // प्रत्येगे गोयमा ! पाणी, जे उम्मग्गपइट्ठिए। गच्छमि संवसित्ताणं, भमइ भवपरंपरं // 2 // जामद्धं जाम दिण पक्खं,
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