Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 114
________________ प्रवीर्णकानि 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् / [ 103 सकम्माणं / सका फ्लाइउं जे तवेण सम्मं पउत्तेणं // 279 // इक्कं पंडियमरणं पडिवजइ सुपुरिसो असंभंतो / खिप्पं सो मरणाणं काहिइ अंत अणंताणं // 280 // किं तं पंडियमरणं ? काणि व बालवणाणि भणियाणि ? / एयाइं नाऊणं किं पायरिया पसंसंति ? // 281 // अणसण-पाउवगमणं पालंवण झाण भावणायो / एयाइं नाऊणं पंडियमरणं पसंसंति // 282 // इंदियसुह-साउलश्रो घोरपरीसह-पराइय-परभो / अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ अाराहणा-काले // 283 // लजाइ गारवेणं बहुसुय-मएण वावि दुचरियं / जे न कहिंति गुरूणं न हु ते बाराहगा हुँति // 284 // सुझइ दुक्करकारी जाणइ मग्गंति पावए कित्तिं / विणिगृहितो निंदं तम्हा यालोयणा सेया // 285 // अग्गिम्मि य उदयम्मि य पाणेसु य पाणबीयहरिएसु। होइ मयो संथारो पडिवज्जइ जो(जइ) असंभंतो // 286 // नवि कारण तणमयो संथारो नवि य फासुया भूमी / अप्पा खलु संथरो होइ विसुद्रो परंतस्स // 287 // जिणवयण-मणुगया मे होउ मई माणजोग-मल्लीणा / जह तम्मि देसकाले अमूढसन्नो चए देहं // 288 // जाहे होइ पमत्तो जिणवयणरहियो अणायत्तो / ताहे इंदियचोरा करेंति तवसंजम-विलोमं // 286 // जिणवयण-मणुगयमई जंवेलं होइ संवरपविट्ठो / अग्गी व वायसहियो समूनडालं डहइ कम्मं // 210 // जह डहइ वायसहियो अग्गी हरिएवि रुखसंघाए / तह पुरिसकार-सहियो नाणी कम्मं खयं नेइ // 211 // जह यग्गिमि व पबले खडपूलिय खिप्पमेव झामेइ / तह नाणीवि सकम्म खवेइ ऊसाममित्तेणं // 212 // न हु मरणम्मि उवग्गे सको बारसविहो सुयक्खंधो / सबो अणुचितेउं धंतपि समत्थचित्तेणं // 213 // इक्कस्मिवि जमि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए / वनइ नरो अविग्धं तं मरणं तेण मरितव्वं // 214 // इम्मिवि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए / सो तेण मोहजालं छिदइ अझप्पयोगेणं // 215 // जेण विरागो जायइ


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