Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामसुधार CBI 888 विभाग:८ संपादकःसंशोधकच प.पन्यास श्रीजिनेन्द्रविजयजी गणिवर Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 港到港迷幻多姿多姿多姿多 श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला-ग्रन्थाङ्कः-७५ PADMANDERS श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः / तपोमूर्ति पूज्याचार्यदेवश्रीविजयकपूरसूरिगुरुभ्यो नमः / हालारदेशोद्धारक-पूज्याचार्यदेवश्रीविजयामृतसूरिगुरुभ्यो नमः / श्री आगमसुधासिन्धुः अष्टमो विभागः अनेक-पूज्य श्रुतस्थविर-मुनिवर-विरचित-प्रकीर्णकदशकात्मकः मतान्तरेण च प्रकीर्णकदशकान्तर्गतप्रकीर्णकद्वयोपेतः ___संपादक: संशोधकश्च . तपोमूर्तिपूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयकर्पूरसूरीश्वर-पट्टालङ्कार-हालारदेशोद्धारक कविरत्न-पूज्याचार्यदेवश्रीमद्विजयामृतसूरीश्वर--विनेयः पन्न्यास श्री जिनेन्द्रविजय गणी . T ANDARMA प्रकाशिकाश्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ময়ািঙ্কাश्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखाचावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) गुजरात वीर सं० 2501 ] विक्रम सं० 2031 [ सन् 1975 आ आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी है सुविहित मुनिराजो के. मूल्य रु. 25-0.. मुद्रक: गौतम पार्ट प्रिन्टर्स व्यावर (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * संपादकीय निवेदन निष्कारणबंधु विश्ववत्सल चरमशासनपति श्रमण भगवान महावीर देवे भव्यजीवोना हितने माटे स्थापेल शासन आजे विद्यमान के अने विषमकालमा पण भव्यजीवोने माटे सर्वज्ञ परमात्मानु अ शासन परम आलंबन रूप छे. तीर्थंकरदेवोनी अविद्यमानतामा तेओश्रीनी वाणी शासनना प्राण स्वरूप होय छे. तीर्थकरदेवो अर्थथी प्ररूपेल अने गणधरदेवोओ सूत्रथी गूथेल से जिनवाणी हितकांक्षी पुन्यात्माओ माटे अमृत तुल्य छे. विद्यमान आमम श्रुतज्ञानमा मुख्यतया 45 आगम गणाय छे. ते उपरांत पण 84 आगमनी गणतरीने हिसाबे बीजु पण केटलुक आगम रूपी श्रुतज्ञान विद्यमान छे. आगम सूत्रो उपर नियुक्तिओ, भाष्यो, चूर्णिओ अने टीकाओ रचाई छ. अने अथी सूत्र सहित आगमनी अ पंचांगी जैन शासना मान्य छे. तेना आधारे वर्तमान ज्ञानाचार, दशेनाचार, चारित्रचार, तपाचार अने वीर्याचार रूप व्यवहार प्रवर्ते छे. सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्चारित्र रूप मुक्ति-मार्ग प्रवर्तमान छे. .. . पंचांगीनो वाचना पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा अने धर्मकथा रूप पंचलक्षण स्वाध्याय जेटलो जोरदार तेटली श्री संघमा सम्यग् ज्ञाननी शुद्धि जोरदार, तेनाथी ज्ञानाचार उज्वल, उज्वल ज्ञानचारथी दर्शनाचार उज्वल, उज्वल दर्शनाचारथी चारित्राचार उज्वल, उज्वल चारित्राचारथी तपाचार उज्वल, अने अ चारे उज्वल आचारथी वीर्याचार उज्वल. वीर्याचारनी उज्वलताथी जैनशासन उज्वल, ए जैन शासन सदा जयवंत वर्ते छे. ____आम शासननो आधार कहो के पायो कहो, मूल कहो के प्राण कहो, अ श्री जिनवाणी छे. अने ते जिनवाणी 45 मृल आगम सहित पंचांगी स्वरूप छे. पंचांगीने अनुसरता प्रकरण अन्थो यावत् स्तवन सज्झाय के नाना निबंध के वाक्य स्वरूप छे. उपशम विवेक संबर-ओ त्रिपदी स्वरूप जिनवाणीथी घोर पापी चिलातीपुत्र पण पतनना मार्गथी नीकली प्रगतिमार्गना मुसाफिर बनी गया हता. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकीय निवेदन 45 मूल आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिवरो छे. साध्वीजी महाराजो श्रीआवश्यक सूत्र आदि मूल सूत्रोना तेमज श्रीआचारांग सूत्रना योगवहन करवा पूर्वक अधिकारी छे. श्रावक श्राविकाओं उपधान वहन करवा पूर्वक श्री आवश्यक सूत्र उपरांत दशवकालिकसूत्रना षड्जीव-निकाय-नामना चोथा अध्ययन पर्यतना श्रुतना अधिकारी छे. आम आगमश्रुतना अधिकारी मुनिवरो योगवहन करवा पूर्वक योग्यता मुजब अध्ययन आदि करीने पोताना ज्ञान दर्शन चारित्रने निर्मल बनावे के अने योग्यता मुजब धर्मकथा द्वारा जिणवाणीनु पान करावी साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चारे प्रकारना संघने तेमज मार्गाभिमुख जीवोने मुक्तिमार्ग प्रदान करे छे. 45 आगमसूत्रो 6 विभागोमां वहेंचायेल छ (1) अंगसूत्रो-११ (2) उपांगसूत्रो-१२ (3) पयत्नासूत्रो-१० (4) छेदसूत्रो-६ (5) मूलसूत्रो-४ (6) चूलिकासूत्रो-२. आ सूत्रोनु स्वाध्याय आदि अध्ययन वधे ते माटे उपयोगी बने ते रीते 45 मूल सूत्रो श्वेतांबर मर्तिपूजक श्रीसंघमां सळंग मुद्रित नथी अने जेथी आगम सूत्रोना स्वाध्याय आदिनी अनुकूलता थाय ते माटे शक्य प्रयत्ने संशोधन करीने प्रगट करवानी योजना विचारवामां आवी छे, ते योजना मुजब 45 आगमसूत्रो 14 विभागमा संपादन थशे प्रथम विभाग प्रगट थड गयो छे. आ आठमो विभाग प्रगट थाय छे बारमो अने तेरमो विभाग पण नजीकमा प्रगट थशे. - आ आठमा विभागमा दश पयन्ना सूत्र आपवामां आव्या छे. साथे मतांतरथी दश पयन्ना सूत्रोमा गणाता बे पयन्ना सूत्र पण आपवामां आव्या छे ते अनुक्रम जोवाथी ख्याल आवशे. आ मत्रोमा जदी जुदी प्रतो मेळववा साथे टीकामा रहेला पाठान्तरो मेलवीने मूल सूत्रो साथे कोशमा आपेला छे. पू. आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज द्वारा संशोधित श्री आगम मंजूषा, बाबुश्री घनपतसिंहजी द्वारा प्रकाशित पयत्रा संग्रह, आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित प्रकीर्णक दशक छाया सह तथा गच्छाचार प्रकीर्णक सटीक, पू. आ. श्री विजयक्षमाभद्र सू. म. सा.संपादित केशर बाई ज्ञानमंदिर प्रकाशित श्री चंद्रवेध्यक प्रकीर्णक, शेठ देवचंद लालभाइ पुस्तकोद्धारक फंड प्रकाशित श्री तन्दुवैयालिकप्रकीर्णक सटीक तथा चतुःशरण प्रकीर्णक सावसरि, श्री विजय सिद्धिसूरिजी जैन ग्रंथमाला प्रकाशित आराधना सार संग्रह मा प्रकाशित प्रकीर्णको, पू. आचार्य देवश्री विजय जंबूसूरीश्वर जिनागम रत्नकोश(डभोई)नी वीरस्तव पयन्नानी हस्तप्रत विगेरेनो आधार आ सूत्रो माटे संशोधनमा लेवामां आव्यो छे.. श्री श्रमणसंघमा आगमो कंठस्थ करवामां स्वाध्याय करवामां विस्तृत टीकाओना वाचन पछी मूलसूत्रोनु पुनरावर्तन करवामां आ मूल स्त्रोना संयुक्त संपादनथी घणी Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकीय निवेदन [5 अनुकूलता रहेशे. अने अथी होंशे होंशे उत्साही मुनि भगवंतो सूत्रो कंठस्थ करीने आगम श्रुतने धारण करवा माटे पण समर्थ बनी शकशे. 2, 5, के 10, 20 सूत्र कंठस्थ करनारा अने पुरतो प्रयत्न थाय तो अक लाख श्लोक प्रमाण मूल सूत्रो कंठस्थ करी धारी राखनारा अनेक गणो मुनिवरोमा थइ शकशे. 'ज्ञानधनाः साधवः' 'शास्त्रचक्षुषः साधवः' ओ विधान मुजब श्रमण संघना प्राण समान आ आगम सूत्रोनु श्री श्रमण भगवंतो द्वारा विशेष परिशीलन थतां श्रीसंघने माटे श्री शासन ने माटे घणी उज्वलता फेलाशे. अने ओ आशयथी स्वपरना श्रेयकारी आगम सूत्रोनां संशोधन संपादन रूप श्रुतभक्तिमा स्वपरना श्रेयनी भावना पूर्वक रस लइ रह्यो छे. चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीर देवे प्रकाशेल जिनवाणीनो प्रभाव पांचमा आराना छेडा सुधी रहेशे. अ ज्वलंत जिनवाणीनो प्रकाश आपणा आत्माने अजवालनारो चने ते माटे योग्यता अने अधिकार मुजब जिनवाणीनी उपासना भक्तिमां भावोल्लास पूर्वक सौ उजमाल बनी एज मारा अंतरनी शुभ भावना के. / वीर सं. 2501 वि. सं. 2031 आषाड सुद 1 शुक्रवार शांताक्रम हालार देशोद्धारक कविरत्न पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय. ममृतसूरीश्वरजी महाराजानो चरण सेवक पं. जिनेन्द्रविजय गणी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय निवेदन अमारी ग्रन्थमाला तरफथी आ श्रीआगमसुधासिन्धु आठमो विभाग प्रगट करता आनंद अनुभवीए छीए-हालमा 45 आगम मूल अने केटलाक आगम टीका सहित प्रगट करवानु काम शरू करता आ ग्रन्थ नागरी लिपिमा मोटा टाइपमा प्रगट करेल छे. आ ग्रन्थनु संशोधन संपादन हालारदेशोद्धारक कविरत्न स्व. पू० आचार्यदेव श्रीमद्:.' विजयअमृतसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यरत्न पू पंन्यास श्री जिनेन्द्रविजयजी गणिवरे घणी खंत थी करेल छे. कागळ छपाइ आदिना भाव वधवाने कारणे खर्च धार्या करतां वधु आवे छे, मोटा टाइपमा मुद्रित कराता पेज वधारे थाय छे. परंतु टकवानी अने अभ्यासनी दृष्टिए अनुकुलता रहेशे. आगम सूत्रोना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिओ छे. ए शास्त्रविधि मुजब पूज्य श्रमणसंघमा आगम वाचनादिमां अनुकुलता थाय ते रूप आ श्रुतभक्ति करता अमे आनंद अनुभवीए छीए. 45 मूल आगम 14 विभागमा प्रगट थशे. सटीक आगमोमां श्रीमदन्तकृद्दशा, श्रीमन्दतरोपपातिकदशा अने श्रीमदुपासकदशा सूत्र तैयार थइ गयो छे. मुद्रण माटे श्री गौतम आर्ट प्रिन्टर्सना व्यवस्थापको सारी खंत राखी छे ते माटे तेमनो आभार मानी छीओ. बीर संवत् 2501 वि० स० 2031 अषाढ सुब 6 सोमवार ता.१४-७-७५ लि:नेमचंद वाघजी गुढका नवीनचंद्र बाबुलाल शाह Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अनुक्रमणिका // . 1 श्री चतुःशरण प्रकीर्णकम् (गाथा-६३) (श्लोक-८०) 2 श्री आतुरप्रत्याख्यान-प्रकीर्णकम् (मा० 70) (श्लोक 100) 5 . 3 श्री महाप्रत्याख्यान-प्रकीर्णकम् (गाथा 142) (श्लोक 176) 6 4 श्री भक्तपरिज्ञा-प्रकीर्णकम् (गाथा 172) (श्लोक 215) 18 5 श्री तंदुलवैचारिक-प्रकीर्णकम् (गाथा ) (श्लोक 138) 28 6 श्री संस्तारक-प्रकीर्णकम् (गाथा 133) (श्लोक 155) 48 7 श्री गच्छाचार-प्रकीर्णकम् (गाथा 137) (श्लोक 175) 55 8 श्री गणिविद्या-प्रकीर्णकम् (गाथा 82) (श्लोक 105) 64 है श्री देवेन्द्रस्तव-प्रकीर्णकम् (गाथा 307) (श्लोक 375) 68 10 श्री मरणसमाधि-प्रकीर्णकम् (गाथा 663) (श्लोक 875) 86 // मतान्तरेण प्रकीर्णकदशकगत-प्रकीर्णकद्रयम् // - 1 श्री चन्द्रवेध्यक-प्रकीर्णकम् (गाथा 175) 2 श्री वीरस्तव-प्रकीर्णकम् (गाथा 43) 137 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * शुद्धिपत्रकम् * यजे जीवो पृष्ठं पंक्तिः अशुद्धं - शुद्ध | पृष्ठ पंक्तिः अशुद्धं शुद्ध 2 24676 हंतु 64 2 नवल. नवबल. 3 .5 च (वि) चिका (चि)चिका 65 1 पिट्टिओ पिट्टओ 3 22 कालत्तएहि कालतएवि 65 3 अनिव्वाणि अनिव्वाणी . 4 3 बोगञ्चहरं बोगच्चहर 65 19 मिगसिरे. मिगसिरं 4 4 सुचरिओमंच सुचरिअरोमंच 67 3 दिवसमुहूत्ता दिवसमुहुत्ता 4 10 गरिहाति गरिहामि 69 21 जसपमे जलपमे 14 17 पन्न धन्ना जहि 14 19 (बा) - (चा) 76 5 लोगिम्म ०लोगम्मि 20 17 महर० 78 16 ०कपणा महुर० ०कप्पवइणो 20 17 छ 84 7 विरायति / विराति अ 12 15 यज. 22 22 अन्नाणिऽवि अन्नाणीऽवि 24 9 बहुओ 15 13 वटुंतो . वट्टतो ०वहओ .. 101 18 तिविहेणं तिविहेण 25 17 जं 102 2 अट्टमय- अट्ठमय२६ 16 सुहिल्लिनं सु(मु)हिल्लि 103 12 कारण संथरो कारणं०संथारो 24 20 चितेयध चितेयव्वं 104 15 जोवो 31 14 पणूणि पाणि 104 19 जिणमदेसियं , जिणदेसियं 44 9 सोसघडो- सीसघडी. 104 19 अग्भूज्जयं 45 6 अप्परणा अग्भुज्जयं ... अप्पणो - 104 24 ०बंषणाया यं (इं) बंधणाया(इं)यं 10 इस्थयाओ इस्थियाओ .105 3 पिाइनच्चल. धिइनिच्चल. 52 / पडिधन्नो पशिवनो. 106 11 सव्वस्सवि, सव्वस्स 56 11 निच्चं निच्चं निच्चं 107 22 बेयणणावसट्टा वेयणावसट्टा 56 12 छत्तीसगुसमन्ना छत्तीसगुणसमन्ना० 108 8 उपमाई पउमाई 58 8 बिबि. विव 111 15 इंम 6. 20 निस्छयओ निच्छयओ 114 12 कन्नपूओ. कयपूओ 61 16 ०पत्तं ०पवत्तं 116 2 रागे रोगे 61 21 संजमुन्झट्ठा संजमुभट्ठा 117 4 विसया विसयाणु 62 5 मसणो समणो 118 17 विग्गमहगए विग्गहगए 62 14 गिहस्थाणं गिहत्थाणं 120 20 आणे हि आप्तेहि 62 17 संखडाई संखडाई 125 1 असुइय असुइयं 63 4 घरघोस० खरघोढा० 127 16 लछ, लट्ठ 63 15 कमेमाणि करेमाणी 130 23 मुरक्क 63 16 संसार संसारं 132 18 निवलम्मे न विलम्मे 63 18 ०कप्पओ ०कप्पाओ J133 2 सारागषम्ममि सरागधम्ममि 3 . मुक्खं Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सादर समर्पण कलिकालकल्पतरु, संघस्थविर, शताधिकवय भोगवनार, ___ शासनसंरक्षक, प्रकृष्टतपोमूर्ति, प्रातःस्मरणीय . परमशासनप्रभावक, सिद्धांत निष्ठ पूज्यपाद आचार्यदेवेशश्रीमद् विजयसिद्धिसूरीश्वरजी महाराज __(पूज्य बापजी महाराज) जेओश्रीना सानिध्यमा आराधनादि करता तेओश्री वरसावेल आराधना मार्गनी पुष्टि माटेनी वात्सल्य अमीवांना महान उपकारनी पुनीत स्मृतिमा यत्किचित् कृतज्ञता रूपे भी शाम सुधा सिन् अष्टम विभाग तेश्रोत्रीने सादर वंदना साथे अर्पण करी धन्यता अनुभवु छु. गुरुदेव चरणचंचरिक जिनेन्द्रविजय Page #11 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अहम् // // अथ प्रकीर्णकानि // // 1 // अथ श्रीचतुःशरण-प्रकीर्णकम् // सावजजोगविरई 1 उकित्तण 2 गुणवो थ पडिवत्ती 3 / खलिअस्स निंदणा 4 वणतिगिच्छ 5 गुणधारणा चेव 6 // 1 // चारित्तस्स विसोही कीरइ सामाइएण किल इहयं / सावज्जेअरजोगाण वजणासेवणत्तणो॥२॥दसणायारविसोही चउवीमायथएण किबइ य। अचभुत्रगुणकित्तणस्वेण जिणवरिंदाणं // 3 // नाणाईश्रा उ गुणा तस्संपनपडिवत्तिकरणाश्रो / वंदणएणं विहिणा कीरइ सोही उ तेसिं तु // 4 // खलिश्रस्स य तेसि पुणो विहिणा जं निंदणाइ पडिकमणं / तेण पडिक्कमणेणं तेसिंपि श्र कीरए सोही // 5 // चरणाईयारा(इयाइया)णं जहकम्मं वणतिगिच्छरूवेणं / पडिकमणासुद्धाणं सोही तह काउसग्गेणं // 6 // गुणधारगरूवेणं पञ्चक्खाणेण तवइबारस्स / विरिपायारस्स पुणो सम्वेहिदि कीरए सोही / / ७॥गय 1 वसह 2 सीह 3 अभिसे दाम 5 ससी 6 दिणयरं 7 झयं 8 कुंभं 1 / पउमसर 10 सागर 11 विमाण-भवण 12 रयणुच्चय 13 सिहिं 14 च // 8 // अमरिंदनरिंदमुणिंद-वंदिनं वंदिउं महावीरं / कुसलाणुबंधि बंधुरमज्झयणं कित्तइस्सामि // 1 // उसरणगमण 1 दुक्कडगरिहा 2 सुकडाणुमोषणा 3 चेव / एस गणो अणवरयं कायबो कुसलहेउत्ति // 10 // अरिहंत सिद्ध साहू केवलिकहियो सुहावहो धम्मो। एए चउरो चउगइहरणा सरणं लहइ धन्नो // 11 // श्रह सो जिणभत्ति-भरुन्धरंतरोम-चकंचुकरालो / पहरिसपणउम्मीसं सीसंमि Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमो विभागः कयंजली भणइ // 12 // रागदोसारीणं हंता कम्मट्ठगाइ अरिहंता / विसयकसायारीणं अरिहंता हुँतु मे सरणं // 13 // रायसिरिमुवकमि(सि)त्ता तव. चरणं दुचरं अणुचरित्ता / केवलसिरिमरिहंता अरिहंताहंतु मे सरणं // 14 // थुइवंदणमरिहंता अमरिंदनरिंदपुत्रमरिहंता ।सासयसुहमरहंता अरिहंताहंतु मे सरणं // 15 // परमणगयं मुणंता जोइंदमहिंदझाणमरहंता / धम्मकहं परहंता अरिहंता हंतु मे सरणं / / 16 // सवजियाणमहिसं परहंता सच्चवयणमरहता। बंभवयमरहंता अरिहंता हेतु मे सरणं // 17 // ग्रोसरणमवसरित्ता चउतीसं अइसए निसेवित्ता / धम्मकहं च कहता अरिहंता हंतु मे सरणं // 18 // एगाइ गिराऽणेगे संदेहे देहिणं समंछित्ता / तिहुयणमणुसासंता अरिहंता हेतु मे सरणं // 11 // वयणामएण भुवणं निव्वाविता गुणेषु ठावंता / जिअलोअमुद्धरंता अरिहंता हेतु मे सरणं // 20 // अच्चम्भुयगुणवते निग्रजसससहर-पसाहिदियुते / नित्रयमणाइअणते पडिवन्नो सरणमरिहते // 21 // उझिग्रजरमरणाणं समत्त. दुक्खत्त-सत्तसरणाणं / तिहुअणजणसुहयाणं अरिहंताणं नमो ताणं / / 22 // अरिहंतसरणमलसुद्धि-लद्धसुविसुद्ध-सिद्धबहुमाणो। पणयसिररइय-करकमल-सेहरो सहरिसं भणइ // 23 // कम्मट्ठक्खयमिद्धा साहाविअनाणदंसणसमिद्धा / सबट्ठलद्धिसिद्धा ते सिद्धा हुँतु मे सरणं // 24 // तिलोत्रमत्थयत्था परमपयत्था अचिंतसामत्था / मंगलसिद्धपयत्था सिद्धा सरणं सुहपमत्था // 25 // मूलुक्खयपडिवक्खा अमूढलक्खा सजोगिपञ्चक्खा / साहाविअत्तसुक्खा सिद्धा सरणं परममुक्खा // 26 // पडिपिल्लिअपडिणीया समग्गझाणग्गि-दड्डभवबीया / जोईसरसरणीया सिद्धा सरणं सुमरणीया // 27 // पावियपरमाणंदा गुणनीसंदा विभिन्न(विईगण)भवकंदा / लहुईकयरविचंदा सिद्धा सरणं खविअदंदा // 28 // उवलद्धपरमवंभा दुल्लहलंभा विमुकसरंभा। भुवणघरधरणखंभा सिद्धा सरणं निरारंभा // 26 // Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 1 चतुःशरणप्रकीर्णकम् ] सिद्धसरणेण नववंभ-हे उसाहुगुण-जणिबहुमाणो (अणुरायो) / मेइणिमिलतसुपनत्य-मन्थयो तत्थिमं भणइ // 30 // जिग्रलोअवंधुणो कुगइसिंधुणो पारगा महाभागा / नाणाइएहिं सिवसुक्ख-साहगा साहुणो सरणं // 31 // केवलिणो परमोही विउलमई सुग्रहरा निणमयंमि। पायरिय उवज्झायो ते सब्बे साहुणो सरणं // 32 // चउदसदसनवपुवी दुवालसिकारसंगिणो जे अ / जिणकप्पाहालंदिअ परिहारविसुद्धिसाहू अ॥ 33 // खीरासवमहुअासवसंभिन्नस्सोअकुटुबुद्धि य / चारणवेउविपयाणुसारिणो साहुणो सरणं // 34 // उझियवइरविरोहा निश्चमदोहा पसंतमुहसोहा। अभिमयगुणमंदोहा हयमोहा साहुणो सरणं // 35 // खंडिअसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा / सुपुरिसमणाभिरामा आयारामा मुणी सरणं // 36 // मिल्हियविसयकसाया उझिपघरवरणिसंगसुहसाया / अकलिग्रहरिसविसाया साहू सरणं गयपमाया // 37 // हिंसाइदोससुन्ना कयकारुन्ना सयं. भुरुप्पन्ना(प्पुराणा) / अजरामरपहखुन्ना साहू सरणं सुकयपुन्ना // 38 // कामविडंबणचुका कलिमलमुक्का विवि(मु)कचोरिका / पावरयसुरयरिका साहू गुणरयणच(वि)चिक्का // 31 // साहुत्तसुट्ठिया जं पायरियाई तयो य ते साहू / साहुभणिएण गहिया तम्हा ते साहुणो सरणं // 40 // पडियन्नसाहुसरणो सरणं काउं पुणोवि जिणधम्मं / पहरिसरोमंचपवंच-कंचुचिय-तणू भाइ // 11 // पवरसुकरहिं पत्तं पत्तेहिवि नवरि केहिवि न पत्तं / तं केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवन्नोऽहं // 12 // पत्तेण अपत्तेण य पत्ताणि श्र जेण नरसुरसुहाई / मुक्खसुहं पुण पत्तेण नवरि धम्मो स मे सरणं // 13 // निदलिअकलुसकम्मो कयसुहजम्मो खलीकय अहम्मो / पमुहपरिणामरम्मो सरणं मे होउ जिणधमो।। 44 // कालत्तएहि न मयं जम्मणजरमरणवाहिसयसमयं / अमयं व बहुमयं जिणमयं च सरणं पवन्नोऽहं // 45 // पसमित्रकामपमोहं दिट्ठादिद्रुसु नकलिअविरोहं / सिवसुहफलयममोहं धम्मं सरगां Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमो विभागः पपन्नोऽहं // 46 // नरयगइगमणरोहं गुणसंदोहं पवाइनिक्खोहं / निहणिय. वम्महजोहं धम्म सरणं पवन्नोऽहं // 47 // भासुरसुवन्नसुदर-रयणालंकारगारवमहग्घं / निहिमिव दोगञ्चहरं धम्मं जिणदेसिधे वंदे // 48 // चउसरणगमणसंचित्र-सुवरियोमंच-अंचियसरीरो। कयदुक्कडगरिहा असुहकम्मकखय-कंखिरो भणइ // 41 // इहभविअमनभविघं मिच्छत्तपवत्तणं जमहिगरणं / जिणपवयणपडिकुट्ट दुटु गरिहामि तं पावं // 50 // मिच्छत्ततमंधेणं अरिहताइसु अवन्नवयणं जं। अन्नाणेण विरइयं इसिंह गरिहामि तं पावं // 51 // सुयधम्मसंघसाहुसु पावं पडिणीअयाइ जं रइयं / अन्नेसु श्र पावेसुइसिंह गरिहामि तं पावं // 52 // अन्नेसु अ जीवेसु मित्तीकरुणाइगोयरेसु कयं / परिश्रावणाइ दुक्खं इसिंह गरिहाति तं पावं // 53 // जं मणवयकाएहिं कयकारिअणुमईहिं पायरियं / धम्मविरुद्धमसुद्धं सव्वं गरि. हामि तं पावं // 54 // यह सो दुक्कडगरिहा-दलिउक्कडदुक्कडो फुडं भाइ / सुकडाणुरायसमुइन्न-पुनपुलयंकुरकरालों // 55 / / अरिहत्तं अरिहंतेसु जं च सिद्धत्तणं च सिद्धेसु / अायारं पायरिए उज्मायत्तं उवज्भाए॥५६॥ साहूण साहुचरिगं देसविरई च सावयजणाणं / अणुमन्ने सव्वेसिं सम्मत्तं सम्मदिट्ठीणं // 57 // ग्रहवा सव्वं चित्र वीयरायवयणाणुसारि जं सुकयं / कालत्तएवि तिविहं (विहियं) अणुमोएमो तयं सव्वं // 58 // सुहपरिणामो निच्चं चउसरणगमाइ थायरं जीवो / कुसलपयडीउ बंधइ बद्धाउ सुहाणुबंधाउ // 51 // मंदणुभावा बद्धा तिवणुभावा उ कुणइ ता चेव / असुहाउ निरणुबंधा उ कुणइ तिब्बाउ मंदाउ / 60 ॥ता एयं कायव्वं बुहेहि निच्चपि संकिलेसम्मि / होइ तिकालं सम्मं असंकिलेसंमि सुकयफलं // 61 // चउरंगो जिणधम्मो न कश्रो चउरंगसरणमवि न कयं / चउरंगभवुच्छेयो न कयो हा हारियो जम्मो // 62 // इथ-जीवपमायमहारि-वीरभद्दतमेश्रमज्झयणं / भाएसु तिसंझ-मवंझकारणं निव्वुइसुहाणं // 63 // इइ चउसरणं पयन्नं समत्तं // 1 // / // इति श्रीचतुःशरणप्रकीर्णकम् // 1 // Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 2 आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] // 2 // अथातुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् // देसिकदेसविर यो सम्मट्टिी मरिज जो जीवो। तं होइ बालपंडिय-मरणं जिणसासणे भणियं // 1 // पंच य अणुब्बयाई सत्त उ सिखा उ देसजइधम्मो / सव्वेण व देसेण व तेण जुयो होइ देसजई // 2 // पाणिवहमुसावाए यदत्तपरदारनियमणेहिं च / अारिमिइच्छायोऽवि य अणुव्वयाई विरमणाई // 3 // जं च दिसावेरमणं अणस्थदंडाउ जं च वेरमणं / देसावगालियंपिय गुणव्वयाई भवे ताई // 4 // भोगाणं परिसंखा सामाझ्यअतिहिसविभागों य / पोसहविही य सव्वो चउरो सिक्खाउ वुत्तायो // 5 // थासुकारे मरणे अच्छिन्नाए य जीवियासाए। नाएहि वा अमुक्को पच्छिमसं. लेहणमकिच्चा // 6 // पालोइय निस्सल्लो सघरे चेवारहित्तु संथारं / जइ मरइ देसविरो तं वुत्तं बालपंडिययं ॥७॥जोभत्तपरिन्नाए उवक्कमो वित्थरेण निहिट्ठो। सो चेव बालपंडिय-मरणे नेयो जहाजुग्गं // 8 // वेमाणिएसु कप्पो-बगेसु नियमेण तस्स उववायो। नियमा सिज्मइ उको-सएण सो सत्तमंमि भवे // 6 // इय बालपंडियं होइ मरणमरिहंतमासणे दिट्ठ (भणियं)। इतो पंडियपंडिय-मरणं वुच्छ समासेणं // 10 // - इच्छामि भंते ! उत्तमट्ठ पडिकमामि यईयं पडिकमामि यणागयं पडिकमामि पच्चुप्पन्नं पडिकमामि कयं पडिकमामि कारियं पडिकमामि अणुमोइयं पडिकमामि मिच्छत्तं पडिकामामि असंजमं पडिकमामि कसायं पडिकमामि पावप्पयोगं पडिकमामि, मिच्छादसणपरिणामेलु वा इहलोगेसु वा परलोगेसु वा सच्चित्तेसु वा अचित्तेसु वा पंचसु इंदियत्थेसु वा, अन्नाणंझाणे अणायारंमाणे कुंदमणंझाणे कोहंमाणे माणंझाणे मायंझाणे लोभंझाणे रागंझाणे दोसंझाणे मोहंझाणे इच्छंझाणे मिच्छंझाणे मुच्छंझाणे संकझाणे कखं. माणे गेहिमाणे यासंझाणे तराहमाणे छुहंमाणे पंथंझाणे पंथाणंझाणे नि. झाणे नियाणंझाणे नेहंझाणे कामझाणे कलुसंझाणे कलहमाणे जुझझाणे Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमो विभागः निजुझझाणे संगंझाणे संगहंझाणे ववहारंमाणे कयविक्कयंमाणे अणत्थदंडंझाणे याभोगंझाणे अणाभोगंझाणे अणाइल्लंझाणे वेरंमाणे वियवकमाणे हिंसंझाणे हासंझाणे पहासंमाणे पत्रोसंमाणे फरुसंझाणे भयंमाणे स्वंझाणे अप्पपसंसंझाणे परनिंदंझाणे परगरिहंझाणे परिग्गहंझाणे परपरिवायंभाणे परदूसणंझाणे श्रारंभंझाणे संरंभझाणे पावाणुमोअणंझाणे अहिगरणंझाणे असमाहिमरणंझाणे कम्मोदयपच्चयंझाणे इडिगारवंझाणे रसगारखंझाणे सायागारवंझाणे अवेरमणंझाणे अमुत्तिमरणंझाणे, पसुत्तस्स वा पडिबुद्धस्स वा जो मे कोई देवसियो राइयो उत्तम? अइक्कमो वइकमो अईयारो अणायारो तस्स मिच्छामि दुक्कडं // सूत्रं 1 // एस करेमि पणामं जिणव रखसहस्स वद्धमाणस्स / सेसाणं च जिणाणं सगणहराणं च सव्वेसिं // 11 // सव्वं पाणारंभं पञ्चवखामित्ति अलियवयणं च / सव्वमदिन्नादाणं मेहुराणपरिग्गहं चेव // 12 // सम्मं मे सबभूएसु, वेरं मझ न केणई / प्रासाउ श्रोसिरित्ताणं, समाहिमामुपालए // 13 // सव्वं चाहारविहिं सन्नायो गारखे कसाए य / सव्वं चेव ममत्तं चएमि सव्वं खमावेमि // 14 // हुजा इममि समए उवक्कमो जीवियस्स जइ मज्झ / एयं पञ्चरखाणं विउला श्राराहणा होउ // 15 // सव्वदुवखपहीणाणं, सिद्धाणं अरहो नमो। सहहे जिणपन्नत्तं, पञ्चवखामि य पावगं // 16 // नमुत्थु धुयपावाणं, सिद्धाणं च महेसिणं / संथारं पडिवजामि, जहा केवलिदेसियं // 17 // जं किंचिय दुच्चरियं तं सव्वं वोसिरामि तिविहेणं / सामाइयं व तिविहं करेमि सव्वं निरागारं // 18 : बझं अभितरं उवहि, सरीराइ सभोयणं / मणसावयकाएहिं, सव्वभावेण वोसिरे // 11 // सर्व पाणारंभं पञ्चक्खामित्ति अलियवयणं च / सव्वमदिन्नादाणं मेहुण्णपरिग्गहं व // 20 // सम्मं मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झ न केणई / श्रासाउ श्रोसिरित्ताणं, समाहिमणुपालए // 21 // रागंबंधं पत्रोसं च, हरिसं दीणभावयं / उस्सुगत्तं Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 2 आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] भयं सोगं, रइंघरइं च वोसिरे ॥२२॥ममत्तं परिवजामि, निम्ममत्तं उवडियो। श्रालंबणं च मे पाया, अवसेसं च वोसिरे॥२३॥ आया हु महं नाणे पाया मे दंसणे चरिते या पाया पचक्खाणे पाया मे संजमे जोंगे॥२४॥ एगो बच्चई जीवो, एगो चेवुववजई। एगस्स चेव मरणं, एगो सिज्झई नीरो॥२५॥ एगो मे सासयो अप्पा, नाणदंसणसंजुयो। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा // 26 // संजोगमूला जीवेणं, पत्ता दुवखपरंपरा / तम्हा संजोगसंबंध, सव् तिविहेण (सब्वभावेण) वोसिरे // 27 // मूलगुणे उत्तरगुणे जे मे नाराहिया पमाएणं (पयत्तेणं) / तमहं सव्वं निंदे पडिकमे आगमिस्साणं // 28 // सत्त भए अट्ठ मए सन्ना चत्तारि गारवे तिनि / अासायण तेत्तीसं रागं दोसं च गरिहामि // 21 // अस्संजममन्नाणं मिच्छत्तं सव्वमेव य ममत्तं / जीवेसु अजीवेसु य तं निंदे तं च गरिहामि // 30 // निंदामि निंदणिज्ज गरिहामि य जं च मे गरहणिज्ज / बालोएमि य सव्वं सब्भितरबाहिरं उवहिं // 31 // जह बालो जपंतो कजमकज्जं च उज्जुयं भगाइ / तं तह बालोइजा मायामोसं पमुत्तूणं (मायामयविप्पमुक्को अ) // 32 // नाणंमि दसणंमि य तवे चरिते य चउसुवि अकंपो। धीरो भागमकुसलो अपरिस्सावी रहस्साणं // 33 // रागेण व दोसेण व जं भे अकयन्नुया पमाषणं / जो में किंचिवि भणियो तमहं तिविहेण खामेमि // 34 // तिविहं भणंति मरणं बालाणं बालपंडियाणं च / तइयं पंडितमरणं जं केवलिणो अणुमरंति // 35 // जे पुण अट्ठमईया पयलियसन्ना य वंकभावा य / असमाहिणा मरंति न हु ते बाराहगा भणिया // 36 / / मरणे विराहिए देवदुग्गई दुलहा य किर बोही / संसारो य अणंतो होइ पुणों यागमिस्साणं // 37 // का देबदुग्गई का अबोहि केणेव बुझई मरणं / केण अणंतमपारं संसारं हिंडई जीवो // 38 // कंदप्प-देवकिब्बिस-अभियोगा बासुरी य संमोहा। ता देवदुग्गईयो मरणमि विराहिए हुँति // 31 // मिच्छ. हमा // o तमहं तव / तइयं लियस पर Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः हसणरत्ता सनियाणा कराहलेसमोगाढा / इय जे मरंति जीवा तेसिं दुलहा भवे बोही // 40 // सम्मसणरत्ता नियाणा सुकलेसमोगाढा / इय जे मरंति जीवा तेसिं सुलहा भवे बोही // 41 // जे पुण गुरुपडिणीया बहुमोहा ससबला कुसीला य / असमाहिणा मरंति ते हुँति श्रणंतसंसारी // 42 // जिणवयणे अणुरत्ता गुरुवयणं जे करति भावेणं / असबल असंकिलिट्ठा ते हुँति परित्तसंसारी // 43 / / बालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामगाणि मरणाणि। मरिहंति ते वराया जे जिणवयणं न याणंति // 44 // सत्यग्गहणं बिसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो य / श्रणयारभंडसेवी जम्मणमरणाणुबंधीणि // 45 // उडमहे तिरियमिवि मयाणि जीवण बालमरणाणि / दंसणनाणसहगो पंडिअमरणं अणुमरिस्सं // 46 // उब्वेयणयं जाई मरणं नरएसु वेयणाश्रो य / एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरसु इसिंह // 47 // जइ उप्पजइ दुक्खं तो दट्ठव्वो सहावो नवरं / किं किं मए न पत्तं संसारे संसरतेणं ? // 48 // संसारचकवालंमि सव्वेऽविय पुग्गला मए बहुसो / पाहारिया य परिणामिया य नाहं गयो तित्तिं // 41 // तणकट्ठोहि व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं कामभोगेहिं // 50 // श्राहारनिमित्तेणं मच्छा गच्छति सत्तमि पुढवि / सञ्चित्तो थाहारो न खमो मणसावि पत्थेउं // 51 // पुखि कयपरिकम्मो अनियाणो अहिऊण मइबुद्धी / पच्छा मलियकसानो सज्जो मरणं पडिच्छामि // 52 // अक्कंडेऽचिरभाविय ते पुरिसा मरणदेसकालम्मि / पुवकयकम्मपरिभा-वणाए पच्छा परिवडंति / / 53 // तम्हा चंदगविज्झ सकारणं उज्जुएण पुरिसेणं / जीवो अविरहियगुणो कायव्वो मुक्समग्गमि // 54 // बाहिरजोगविरहियो अभितरमाणजोगमल्लीणो / जह तंमि देसकाले अमूढसन्नो चयइ देहं // 55 // हेतूण रागदोसं छित्तूण य अट्ठकम्मसंघायं / जम्मणमरणरहट्ट भित्तूण भवा विमुचिहिति // 56 // Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [6 प्रकीर्णकानि :: 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] एयं सखुवएसं जिणदिट्ठ सदहामि तिविहेणं / तसथावरखेमकरं पारं निव्वाणमग्गस्स // 57 // न हु तम्मि देसकाले सको बारसविहो सुयक्खंधो। सब्बो अणुचिंते धणियपि समत्थचित्तेणं // 58 // एगंमिवि जम्मि पए संवेगं वीयरायमग्गंमि / गच्छइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं // 5 // ता एगपि सिलोग जो पुरिसो मरणदेसकालम्मि / श्राराहणोवउत्तो चिंततो राहगो होइ // 60 // आराहणोवउत्तो कालं काऊण सुविहियो सम्मं / उकोसं तिन्नि भवे गंतूणं लहइ निव्वाणं // 61 // समणोत्ति अहं पढमं बीयं सव्वत्थ संजयोंमित्ति / सव्वं च वोसिरामि एवं भणियं समासेणं // 62 // लद्धं अलद्धपुब्वं जिणवयण सुभासियं अम(मि)यभूयं / गहियो सुग्गइमग्गो नाहं मरणस्त बीहेमि // 63 // धीरेणवि मरियव्वं काउरिसेणवि अवस्स मरियम्बं / दुराहपि हु मरियब्बे वरं खुधीरत्तणे मरिउं // 64 // सीलेणवि मरियव्वं निस्सीलेणवि अवस्स मरियव्वं / दुराहपि हु मरियव्वे वरं खु सीलतणे मरिउं // 65 // नाणस्स दंसणस्स य सम्मत्तस्स य चरित्तजुत्तस्स / जो काही उपयोगं संसारा सो विमुचिहिसि // 66 // चिरउसियबंभयारी प'फोडेऊगा सेसयं कम्मं / अणुपुब्बीइ विसुद्धो गच्छइ सिद्धिं धुयकिलेसो // 67 // निकसायस्स दंतस्स, सूरस्स ववसाइणो। संसारपरिभीयस्स, पञ्चक्खाणं सुहं भवे / 68 // एवं पञ्चक्खाणं जो काही मरणदेसकालम्मि / धीरो अमूढमन्नो सो गच्छइ सासयं ठाणं // 61 // धीरो जरमरणविऊ वीरो विनाणनाणसंपन्नो। लोगस्सुजोयगरो दिसउ खयं सव्वदुक्खाणं // 70 // // इति श्रीआतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् // 2 // (ग्रंथाग्रमादितः 133) // 3 // अथ श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् // एस करेमि पणामं तित्थयराणं अणुत्तरगईणं / सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च // 1 // सव्वदुक्खप्पहीणाणं, सिद्धाणं अरहयो नमो। सहहे जिणपन्नत्तं, पञ्चक्खामि य पावगं // 2 // जं किंचिवि दुचरियं तमहं Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : अष्टमो विभागः निंदामि सबभावेणं / सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं निरागारं // 3 // बाहिरभतरं उवहिं, सरीरादि सभोत्रणं / मणसा वयकाएणं, सव्वं तिविहेण वोसिरे // 4 // रागबंधं पश्रोसं च, हरिसं दीणभावयं / उस्सुअत्तं भयं सोगं, रइमरई च वोसिरे // 5 // रोसेण पडिनिवेसेणं अकयराणुयाए तहेवऽसज्झाए। जो मे किंचिवि भणियो तिविहं ( तमहं ) तिविहेण खामेमि // 6 // खामेमि सबजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे / श्रासायो (पासवे) वोसिरित्ताणं, समाहिं पडिसंधए // 7 // निंदामि निंदणिज्जं गरिहामि य जं च मे गरहणिज्ज / बालोएमि य सव्वं जिणेहिं जं जं च पडिसिद्धं ( कुटुं)॥८॥ उवही सरीरगं चेव, श्राहारं च चउविहं / ममत्तं सम्बदब्बेसु, परिजाणामि केवलं // 1 // ममत्तं परिजाणामि, निम्ममत्ते उपट्ठियो। बालंबणं च मे पाया, अवसेसं च वोसिरे // 10 // आया मे जं नाणे पाया मे दंसणे चरित्ते य / पाया पञ्चक्खाणे आया मे संजमे जोगे // 11 // मूलगुणे उत्तरगुणे जे मे नाराहिया पमाएणं / ते सव्वे निंदामि पडिकमे श्रागमिस्साणं // 12 // इकोऽहं नत्थि मे कोई, न चाहमवि कस्सई / एवं अदीणमणसो, अप्पाणमणुसासए // 13 // इको उप्पजए जीवो, इको चेव विवजई / इक्कस्स होइ मरणं, इको सिज्झइ नीरो // 14 // एको करेइ कम्म फलमवि तस्सिको समणुहवइ / इको जायइ मरइ परलोअं इक्कयो जाइ // 15 // इक्को मे सासो अप्पा, नाणदंसणसंजुश्रो (लक्खणो)। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा // 16 // संजोगमूला जीवेणं, पत्ता दुक्खपरंपरा / तम्हा संजोगसंबंध, सव्वं तिविहेण वोसिरे // 17 // अस्संजममराणाणं मिच्छत्तं सव्वोऽवि श्र ममत्तं / जीवेसु अजीवेसु य तं निंदे तं च गरिहामि // 18 // मिच्छत्तं परिजाणामि सव्वं अस्संजमं अलीयं च / सव्वत्तो श्रममत्तं चयामि सव्वं च खमावेमि (खमावेमि)॥ 11 // जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु / तं तह बालोएमी उवडियो Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 11. प्रकीर्णकानि / / 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] सव्वभावेणं // 20 // उप्पन्नाणुप्पन्ना माया अणुमग्गयो निहंतव्वा / बालोयाणनिंदणगरिहणाहिं न पुणत्ति या बीयं // 21 // जह बालो जंपन्तो कजमकजं च उज्जुयं भगइ / तं तह बालोइज्जा मायामयविप्पमुक्को उ // 22 // सोही उज्जुयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्टइ / निव्वाणं परमं जाइ, घयसित्तुब्ब पावए // 23 // न हु सिझई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं / उद्धरियसव्वसल्लो सिज्मइ जीवो धुअकिलेसो // 24 // सुबहुँपि भावसल्लं बालोएऊण (जे बालोयंति) कुरुसगासंमि / निस्सल्ला संथारगमुविति याराहंगा हुँति // 25 // अप्पंपि भावसल्लं जे नालोयंति गुरुसगा. संमि / तपि सुयसमिद्धा न हु ते बाराहगा हुँति // 26 // नवि तं सत्थं च विसं च दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो / जंतं व दुप्पउत्तं सप्पुब्व पमाययो कुरो / 27 // जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्टकालंमि / दुल्लभबोहियत्तं गणंतसंसारियत्तं च // 28 // तो उद्धरंति गारव-रहिया मूलं पुणब्भवलयाणं / मिच्छादमणसल्लं मायासल्लं नियाणं च // 21 // कयपावोऽवि मणूमो बालोइय निन्दिय (निदियो) गुरुसगासे।होइ श्रइरेगलहुश्रो श्रोहरियभरुव भारवहो // 30 // तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसंति (वइस्संति) / तं तह अणुसरियव्वं अणवत्थपसंगभीएणं // 31 // दसदोसविप्पमुक्कं तम्हा सव्वं अमूहमाणेणं / जं किंपि कयमकज्जं तं जहवत्तं कहेयव्वं // 32 // सब्बं पाणारंभं पचवखामि य अलियवयणं च / सव्वमदिन्नादाणं अब्बभपरिग्गहं चेव / / 33 // सव्वंपि असणपाणं चउन्विहं जो अ बाहिरो उवही / अभितरं च उवहिं सव्वं तिविहण वोसिरे // 34 // कंतारे दुन्भिक्खे पायंके व महया समुप्पन्ने / जं पालियं न भग्गं तं जाणसु पालणासुद्धं // 35 // रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दूसियं जं तु / तं खलु पञ्चक्खाणं भावविसुद्धं मुणेयव्वं // 36 // पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाउ बहुतरं हुजा। संसारंमि अणंते माईणं अन्नमन्नाणं // 37 // बहु Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः सोऽवि मए रुगणं पुणो पुणो तासु तासु जाईसु / नयणोदयंपि जाणसु बहुययरं सागरजलाश्रो // 38 // नत्थि किर सो पएसो लोए वालग्गको. डिमित्तोऽवि / संसारे संसरंतो जत्थ न जायो मयो वावि // 31 // चुलसीई किल लोए जोणीणं पमुह (जोणी पमुहाई) सयसहस्साई / इक्किक्कमि य इत्तो अणंतखुत्तो समुप्पनो // 40 // उडमहे तिरियंमि य मयाइं बहुयाई बालमरणाई / तो ताई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 41 // माया मित्ति पिया मे भाया भगिणी य पुत्त धूया य / एयाइं संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 42 // मायापिइबंधूहि संसारत्थेहिं पूरियो लोगो। बहुजोणिवासिएहिं न य ते ताणं च सरणं च // 43 // इक्को करेइ कम्मं इक्को अणुहवइ दुक्कयविवागं / इको संसरइ जियो जरमरणचउग्गईगुविलं // 44 // उव्वेयणयं जम्मण-मरणं नरएसु वेयणायो वा। एयाई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 45 // उव्वेयणयं जम्मणमरणं तिरिएसु वेयणायो वा / एयाई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 46 // उव्वेयणयं जम्मणमरणं मणुएसु वेयणायो वा / एयाई संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 47 // उव्वेयणयं जम्मणमरणं चवणं च देवलोगायो। एयाइं संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 48 // इक्क पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाइं बहुयाई / तं मरणं मरियव्वं जेण मयो सम्मश्रो होइ // 11 // कझ्या णु तं सुमरणं पंडियमरणं जिणेहिं पन्नत्तं / सुद्धो उद्धि(उद्धरि)यसल्लो पायोवगयो मरीहामि ? // 50 // भवसंसारे सव्वे चउब्विहा पुग्गला मए बद्धा / परिणामपसंगेणं अट्ठविहे कम्मसंघाए // 51 // संसारचकवाले सव्वे ते पुग्गला मए बहुसो / श्राहारिया य परिणामिया य नयऽहं गयो तित्तिं // 52 // श्राहारनिमित्तेणं श्रयं सव्वेसु नरयलोएसु / उववरणोमि य बहुसो सव्वासु य मिच्छजाईसु // 53 // श्राहारनिमित्तेणं मच्छा गच्छति दारुणे नरए। सचित्तो श्राहारो न खमो मणसावि पत्थेउं // 54 // तणकट्टण व अग्गी लवणजलो वा Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] [ 15 नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं कामभोगेहिं // 55 // तणकट्टेण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं अत्थसारेणं // 56 // तणकट्ठण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं भोषणविहीए // 57 // वलयामुहसामाणो दुप्पारो वणरयो अपरिमिजो / न इमो जीवो सको तिप्पेउं गंधमल्लेहिं // 58 // अवियद्धोऽ(अवितत्तो) यं जीवो अईयकालम्मि श्रागमिस्साए / सहाण य रूषाण य गंधाण रसाण फासाणं // 51 // कप्पतरुसंभवेसुदेवुत्तरकुरुवंसपसूएसु / उववाएं ण य तित्तो न य नरविजाहरसुरेसु // 60 // खइएण व पीएण व न य एसो ताइयो हवइ अप्पा / जह दुग्गइं न वच्चइ तो नूणं ताइयो होइ // 61 // देविंदचकवट्टित्तणाई रजाई उत्तमा भोगा / पत्ता अणंतखुत्तो न यऽहं तित्तिं गयो तेहिं // 62 // खीरदगेच्छुरसेसु साउसु महोदहीसु बहुसोऽवि / उववरणो ण य तराहा छिन्ना (मे) मे सीयलजलेणं // 63 // तिविहेण य सुहमउलं तम्हा कामरइविसयसुक्खाणं / बहुसो सुहमगुभूयं न य सुहतराहा परिच्छिण्णा // 64 // जा काइ पत्थणायो कया मए रागदोसवसयेण / पडिबंधेण बहुविहं तं निंदे तं च गरिहामि // 65 // हंतूण मोहजालं चित्तूण य अट्टकम्मसंकलियं / जम्मणमरणऽरहट्ट भित्तूण भवा विमुच्चिहिसि // 66 // पंच य महव्वयाई तिविहं तिविहेण चारुहेऊणं / मणवयणकायगुत्तो सजो मरणं पडिच्छिज्जा // 67 // कोहं माणं मायं लोहं पिज्जं तहेव दोसं च / चहउण अप्पमत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 68 // कलहं अभक्खाणं पेसुगणंपि य परस्स परिवायं / परिवज्जतो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच // 61 // पंचिंदियसंवरणं पंचेव निलंभिऊण कामगुणे। अचासायणभीयो खखामि महन्वए पंच // 70 // किराहानीलाकाऊ-लेसा झाणाई अट्टरुदाई / परिवज्जतो गुत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 71 // तेऊपम्हासुका-लेसा झाणाई धम्मसुक्काई / Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः / उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 72 // मणसा मणसचविऊ वाया। सच्चेण करणसञ्चेण / तिविहेणवि सञ्चविऊ रक्खामि महव्वए पंच // 73 // सत्तभयविप्पमुक्को चत्तारि निलंभिऊण य कसाए / अट्ठमयट्ठाणजड्डो रक्खामि महव्वए पंच // 74 // गुत्तीयो समिई भावणायो नाणं च दंसणं चेव / उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 75 // एवं तिदंडविरयो तिकर. णसुद्धो तिसल्लनिस्सल्लो / तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंचः // 76 // संगं परिजाणामि सल्लं तिविहेण उद्धरेऊणं / गुत्तीयो समिईयो मझ ताणं च सरणं च // 77 // जह खुहियचकवाले पोयं रयणभरियं समुहामि / निजामगा धरिती कयकरणा बुद्धिसंपराणा // 78 // तवपोयं गुणभरियं परीसहुम्मीहि खुहियमारद्धं / तह वाराहिति विऊ उवएसवलंबगा धीरा // 79 // जइ ताव ते सुपुरिसा बायारोवियभरा निरवयक्खा / पब्भारकंदरगया साहिती अप्पणो अट्ठ // 80 // जइ ताव ते सुपुरिसा गिरिकंदरकडगविसमदुग्गेसु / धिइधणियबद्ध कच्छा साहिती अप्पणो अटुं / 81 // किं पुण अणगारसहायगेण अराणुराणसंगहबलेणं / परलोए णं सको साहेउं अप्पणो अटुं? // 82 // जिणवयणमप्पमेयं महुरं कराणा. हुई सुणतेणं / सक्को हु साहुमज्झे साहेडं अप्पणो अटुं // 83 // धीरपुरिसपणत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं / धन्न सिलायलगया साहिती अप्पणो अट्ठ // 84 // बाहिति इंदियाई पुग्ध-मकारियपइराणचारीणं / अकयपरिकम्मकीवा मरणे सुहसंगता(वा)यमि // 85 // पुव्वमकारियजोगो समाहिकामो श्र मरणकालंमि / न भवइ परीसहसहो विसयसुहसमुइयो अप्पा // 86 // पुलिं कारियजोगो समाहिकामो य मरणकालंमि / स भवइ परीसहसहो विसयसुहनिवारियो अप्पा // 87 // पुदि कारियजोगो अनियाणो ईहिऊण मइपुव्वं / ताहे मलियकसायो सज्जो मरणं पडि. छिजा // 8 // पावीणं पावाणं कम्माणं अप्पणो सकम्माणं / सका Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] [ 15 पलाइउं जे तवेण सम्मं पउत्तेणं // 81 // इक्कं पंडियमरणं पडिवजिय सुपुरिसो असंभंतो। खिप्पं सो मरणाणं काही अंतं अणंताणं // 10 // किं तं पंडियमरणं ? काणि व बालंबणाणि भणियाणि ? / एयाइं नाऊणं किं पायरिया पसंसंति ? // 11 // श्रणसणपायोवगमं श्रालंबणझाणभावणायो / एयाई नाऊणं पंडियमरणं पसंसंति // 12 // इंदियसुहसाउलयो घोरपरीसहपरोइयपरज्झो / अकयपरिकम्मकीवो मुज्झइ थाराहणाकाले ! 13 // लजाइ गारवेण य बहुसुयमएण वावि दुचरियं / जे न कहति गुरूणं न हु ते बाराहगा हुँति // 14 // सुज्झइ दुक्करकारी जाणाइ मग्गंति पावए कित्तिं / विणिग्रहितो गिदइ तम्हा श्राराहणा सेया // 15 // नवि कारणं तणमयो संथारो नवि य फासुया भूमी। अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो मणो जस्स // 16 // जिणवयणअणुगया मे होउ मई माणजोगमल्लीणा। जह तंमि देसकाले अमूढसन्नो चयइ देहं // 17 // जाहे होइ पमत्तो जिणवयणसइरहियो प्रणाइत्तो / ताहे इंदियचोरा करिति तवसंजमविलोमं // 18 // जिणवयणमणुगयमई जं वेलं होइ संवरपविट्ठो / अग्गीव वाउसहियो समूलडालं डहइ कम्मं // 11 // जह डहइ वाउसहियो अग्गी रुक्खे विहरिप्रवणखंडे। तह पुरिसकारसहियो नाणी कम्म खयं णेई // 100 // जं अन्नाणीकम्मं खवेइ बहुआई वासकोडीहिं / तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं // 101 // न हु मरणंमि उबग्गे सको बारसविहो सुयकखंधो। सव्वो अणुचिंतेडे धणियपि समत्थचित्तेणं // 102 // इक्कमिवि जैमि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए / मो तेण मोहजालं छिदइ अझप्पयोगेणं // 103 // इक्कमिवि जंमि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए / तं तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तण मु. वेइ // 104 / इक्कमिवि जंमि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए / बच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं // 105 // जेण विरागो जायइ तं तं Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमो विमागः सवायरेण कायव्वं / मुच्चइ हु संवेगी अणंतत्रो होइ असंवेगी। 106 // धम्मं जिणपनत्तं सम्ममिणं सहहामि तिविहेणं / तसथावरभूयहियं पंथं निवाणनगरस्स // 107 // समणोमित्ति य पढमं बीयं सम्वत्थ संजयो मित्ति / सव्वं च वोसिरामि जिणेहिं जं जं च पडिकुटुं॥ 108 // उवही सरीरगं चेव, श्राहारं च चउन्विहं / मणसावयकाएणं, वोसिरामित्ति भावो // 101 // मणसा अचिंतणिज्ज सव्वं भासाइ अभासणिज्जं च / कारण अकरणिज्ज सव्वं तिविहेण वोसिरे // 110 // अस्संजमत्तोगसणं (अस्संजमे वेरमणं) उवही विवेगकरणं उबसमो य / अप्पडिरुयजोगविरयो खंती मुत्ती विवेगो श्र॥ 111 // एवं पञ्चक्खाणं बाउरजण श्रावईसु भावेण / अराणयरं पडिवगणो जंपंतो पावइ समाहिं // 112 // एयंसि निमित्तंमी पञ्चक्खाऊण जइ करे कालं / तो पञ्चखाइयव्वं इमेण इक्केणवि पएणं // 113 // मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य / तेसिं सरणोवगो सावज्जं वोसिरामिति // 114 // अरहंता मंगलं मझ, अरहंता मज्झ देवया / अरहते कित्तइत्ताणं, वोसिरामित्ति पावगं // 115 / सिद्धा य मंगलं मज्झ सिद्धा य मन्झ देवया। सिद्धे य कित्तइत्ताणं, वोसिरामित्ति पावगं // 116 // पायरिया मंगलं मन्झ, पायरिया मज्झ देवया / पायरिए कित्तइत्ताणं वोसिरामित्तिपावगं॥११७|| उज्माया मंगलं मज्झ, उज्झाया मज्झ देवया। उन्झाए कित्तइत्ताणं, वोसिरामित्ति पावगं // 118 // साहू य मंगलं मझ, साहू य मम देवया / साहू य कित्तइत्ताणं, वोसिरामित्ति पावगं // 111 // सिद्धे उपसंपराणो अरहते केवलित्ति भावेणं / इत्तो एगयरेणवि पएण बाराहयो होइ // 120 // समुइराणवेयणो पुण समणो हियएण किंपि चिंतिजा / श्रालंबणाई काई काऊण मुणी दुहं सहइ ? // 121 // वेयणासु उइन्नासु, कि मे सत्तं निवेयए। किं वाऽऽलंबणं किच्चा, दुक्खमहिया. सए ? // 122 // अणुत्तरेसु नरएसु, वेयणाओ अणुत्तरा / पमाए वट्टमा Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णम् ] . / 17 णेणं, मए पत्ता अणंतसो // 123 // मए कयं इमं कम्म, समासज्ज अबोहिउं। पोराणगं इमं कम्म, मए पत्तं अणंतसो // 124 // ताहिं दुक्खविवागाहिं, उखचिरणाहिं तहिं तहिं / न य जीवो अजीवो उ, कयपुव्वो उ चिंतए // 125 // अब्भुज्जुयं विहारं इत्थं जिणएसियं विउपसत्यं / नाउं महापुरिससेवियं अब्भुज्जुयं मरणं // 126 // जह पच्छिमंमि काले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं / पच्छा निच्छयपत्थं उवेमि अब्भुज्जुयं मरणं // 127 // बत्तीसमंडियाहिं कडजोगी जोगसंगहबलेणं / उज्जमिऊण य बारसविहेण तवणेहपाणेणं // 128 // संसाररंगमज्झे धिंडवलववसायबद्धकच्छायो / हंतूण मोहमल्लं हराहि याराहणपडागं // 12 // पोराणगं च कम्म खवेइ अन्नं नवं च न चिणाइ। कम्मकलंकलवलिं(लिवत्ति) छिदइ संथारमारूढो // 130 // श्राराहणोवउत्तो सम्म काउण सुविहियो कालं / उक्कोसं तिन्नि भवे गंतूण लभिज निव्वाणं // 131 // धीरपुरिसपन्नत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं / श्रोइराणो हु सि रंगं हरसु पडायं अविग्घेणं // 132 // धीर पडागाहरणं करेह जह तंमि देसकालंमि। सुत्तत्थमणुगुणंतो घिइनिचलबद्धकच्छारो // 133 // चत्तारि कसाए तिन्नि गारवे पंच इंदियग्गामे / हता परीसहचमू हराहि श्राराहणपडागं // 134 // माऽऽया ! हु व चितिजा जीवामि चिरं मरामि व लहुँति / जइ इच्छसि तरिउं जे संसारमहोत्रहिमपारं // 135 // जइ इच्छसि नित्थरिउं सम्वेसिं चेव पावकम्माणं / जिणवयणनाणदंसणचरित्तभावुज्जुयो जग्गं // 136 // दंसणनाणचरित्तं तवे य बाराहणा चउपखंधा / सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा मज्झिम जहन्ना // 137 // बाराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खधं / कम्मरयविप्पमुको तेणेव भवेण सिभिजा // 138 // श्राराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउक्खधं / सत्तट्ठभवग्गहणे परिणामेऊण सिज्झिज्जा // 136 // सम्मं मे सव्वभूएसु, वेरं मझ न केणइ / खामेमि सव्वजीवे, खमामऽहं सव्वजीवाणं // 140 ॥धीरेणवि Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमो विभागः मरियध्वं काऊरिसेणविवस्स मरियव्वं / दुराहपि य मरणाणं वरं खु धीर. तणे मरिउं // 141 // एयं पञ्चक्खाणं अणुपालेऊण सुविहियो सम्म / वेमाणियो व देवो हविज अहवावि मिमिजा // 142 // महापच्चक्खाणपइराणं संमत्तं // 3 // // इति श्री महारत्याख्यान-प्रकीर्णकम् // 3 // // 4 // अथ श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णकम् // नमिऊण महाइसयं महाणुभावं मुणिं महावीरं / भणिमो भत्तपरिगणं निग्रसरणट्ठा परट्ठा य // 1 // भवगहणभमणरीणा लहंति निलुइसुहं जमल्लीणा / तं कप्पदुमकाणण-सुहयं जिणसासणं जरइ // 2 // मणुअत्तं जिणवयणं च दुल्लहं पाविऊण सप्पुरिसा! / सासयसुहिकरसिएहिं नाणवसिएहिं होअव्वं // 3 // जे अज सुहं भविणो संभरणीयं तयं भवे कल्लं / मग्गंति निरुवसग्गं अपवग्गसुहं बुहा तेणं // 4 // नरविबुहेसरसुक्खं दुक्खं परमत्यत्रो तयं बिति / परिणामदारुणमसामयं च जं ता अलं तेण // 5 // जं सासयसुहसाहण-माणाबाराहणं जिणिंदाणं / ता तीए जइयवं जिणवयणविसुद्धबुद्धीहिं // 6 // तं नाणदंसणाणं चारित्ततवाण जिणपणीबाणं / जं बाराहणमिणमो प्राणायाराहणं विति // 7 // पवजाए अभुजश्रोऽवि श्राराहो अहासुत्तं / अभुजअमरणेणं अविगलमाराहणं लहइ // 8 // तं अब्भुज्जुमरणं अमरणधम्मेहिं वनियंतिविहं / भत्तपरिन्ना इंगिणि पायोवगमं च धीरेहिं // 1 // भत्तपरिनामरणं दुविहं सविधारमो य अविश्रारं। सपरकमस्स मुणिणो संलिहिअतणुस्स सवि. प्रारं // 10 // अपरकमस्स काले अप्पहुप्पंतमि जं तमविश्रारं। तमहं भत्तपरिन्नं जहापरिन्नं भणिस्सामि // 11 // घिइबलविश्रलाणमकालमचुकलिबाग-प्रकयकरणाणं / निवजमजकालिब-जईण जुग्गं निरुवस्सग्गं // 12 // परम(पसम)सुहसप्पिवासो असोयहासो सजीवित्रनिरासो। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 4 श्रीभक्तपरिशाप्रकीर्णकम् / विसयसुहविगयरागो धम्मुज्जमजायसंवेगो // 13 // निच्छिश्रमरणावत्थो वाहिग्घत्थो जई गिहत्थो वा। भविश्रो भत्तपरिन्नाइ नायसंसारनिग्गुनो // 14 // पच्छायावपरखो पियधम्मो दोसदूसणसय(ह)गहो। अरहइ पासत्थाईवि दोसदोसिल्लकलियोऽवि॥१५॥वाहिजरमरणमयरो निरंतरुप्पत्तिनीर-निकुरंबो। परिणामदारुणदुहो अहो दुरंतो भवसमुद्दो॥१६॥इय कलिउण सहरिसं गुरुपामूलेऽभिगम्म विणएणं ।भालयलमिलिअकरकमलसेहरो वंदिउँ भणइ // 17 // आरुहिश्रमहं सुपुरिस ! भत्तपरिनापसत्थबोहित्यं / निजामएण गुरुणा इच्छामि भवन्नवं तरिउं // 18 // कारनामयनीसंद-सुदरो सोऽवि से गुरू भणइ / थालोयणवयखामण-पुरस्सरं तं पवज्जेसु॥ 11 // इच्छामुत्ति भणित्ता भत्तीब. हुमाणसुद्धसंकप्पो / गुरुणो विगयावाए पाए अभिवंदिउं विहिणा // 20 // सल्ल उद्धरिउ मणो संवेगुब्वेअतिब्बसद्धायो / जं कुणाइ सुद्धिहेउं सो तेणाराहयो होइ // 21 // यह सो पालोयणदोस-वजिअं उज्जुग्रं जहाऽऽयरियं / बालुब्ब बालकालाउ देइ अालोणं सम्मं // 22 // ठविए पायच्छित्ते गणिणा गणिसंपयासमग्गेणं / सम्ममणुमनित्र तवं अपावभावो पुणो भणइ // 23 // दारुणदुहजलयरनिअर-भीमभवजलहि-तारणसमत्थो। निप्पचवायपोए महब्बए अम्ह उक्खिवसु // 24 // जइवि स खंडिअचंडो अखंडमहव्वयो जई जइवि / पव्वजवउट्ठावण-मुट्ठावणमरिहइ तहावि // 25 // पहुणो सुकयाणत्तिं भिचा(भव्वा)पञ्चप्षिणंति जह विहिणा। जावजीवपइराणा-णत्तिं गुरुणो तहा सोऽवि // 26 // जो साइबारचरणो पाउट्टिअदंडखंडिअवयो वा / तह तस्सवि सम्ममुवट्ठिअस्स उट्ठावणा भणिया // 27 // तत्तो तस्स महब्बय-पव्ययभारोनमंतसीसस्स / सीसस्स समारोवइ सुगुरुवि महत्वए विहिणा // 28 // अह हुज देसविरयो सम्मत्तरश्रो रो अ जिणधम्मे(वयणे) / तस्सवि अणुव्वयाई आरोविजंति सुद्धाई // 21 // थनियाणोदारमणो हरिसवसविसट्ट-कंचुयकरालो / एइ गुरुं संघं साहम्मि Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2.] / श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः अमाइ भत्तीए // 30 // निश्रदत्वमपुवजिणिंद-भवणजिणबिंबवरपइट्ठासु / विश्ररइ पसत्यपुत्थय-सुतित्थतित्थयरपूत्रासु // 31 // जइ सोऽवि सव्वविरई. कयाणुरायो विसुद्धमइकायो। छिन्नसयणाणुरायो विसयविसायो विरत्तो श्र॥ 32 // संथारयपव्वजं पडिव्वजइ सोऽवि निश्रम निरवज्ज / सव्व. विरइप्पहाणं सामाइअचरित्तमारुहइ // 33 // अह सो सामाइअधरो पडिवन्न. महव्वो अ जो साहू / देसविरो अ चरिमं पञ्चक्खामित्ति निच्छइयो // 34 // गुरुगुणगुरुणो गुरुणो पयपंकय नमित्रमत्थयो भणइ / भयवं ! भत्तपरिन्नं तुम्हाणुमयं पवज्जामि // 35 // श्राराहणाइ खेमं तस्सेव य अप्पणो अ गणिवसहो / दिव्वेण निमित्तेणं पडिलेहइ इहरहा दोसा // 36 // तत्तो भवचरिमं सो पञ्चक्खाइत्ति तिविहमाहारं / उक्कोसिश्राणि दवाणि तस्स सव्वाणि दसिज्जा // 37 // पासित्तु ताई कोई तीरं पत्तस्सिमेहिं किं मम ? देसं च कोइ भुच्चा संवेगगयो विचिंतेइ // 38 // किं चत्तं(चेत्थ)नोवभुत्तं मे, परिणामासुई सुई। दिट्ठसारो सुहं भाइ, चोत्रणेसाऽवसीयो // 31 // उधरमलसोहणट्ठा समाहिपाणं मणुनमेसोऽवि / महुरं पज्जेनबो मंदं च विरेयणं खमत्रो // 40 // एलतयनागकेसर तमालपत्तं ससकर दुद्धं / पाऊण कढिपसीअल-समाहिपाणं तयो पच्छा // 41 // महूरविरेपणमेसो कायव्वो फोफलाइदव्वेहिं / निधावियो छ अग्गी समाहिमेसो सुहं लहइ // 42 // जावजीवं तिविहं याहारं वोसिरइ इहं खबगो। निजवगो पायरियो संघस्स निवेत्रणं कुणइ // 43 // पाराहणपचइयं खमगस्स य निरुवसग्गपञ्चइग्रं / तो उस्सग्गो संघेण होइ सब्वेण कायब्वो // 44 // पञ्चक्खाविंति तो तं ते खमयं चउबिहाहारं / संघसमुदायमज्झे चिइवंदणपुव्वयं विहिणा // 45 // अहवा समाहिहेउं सागारं चयइ तिविहमाहारं / तो पाणयंपि पच्छा वोसिरियव्वं जहाकालं ॥४॥तो सोनमंतसिरसंघडतकर कमलसेहरो विहिणा।खामेइसव्वसंघसंवेगं संजोमाणो॥४७॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि४ श्रीमतपरिज्ञाप्रकीर्णकम् ] [ 21 पायरित्र उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य / जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि // 48 // सव्वे अवराहपए खामे मि अहं खमेउ मे भयवं ! / अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंघायस्स संघस्स // 41 // इत्र वंदणखामणगरिहणेहिं भवसयसमजिअं कम्मं / उवणेइ खणेण खयं मिगावई रायपत्तिब्व // 50 // अह तस्स महब्वयसुट्ठिअस्स जिणवयणभाविअमइस्स / पञ्चक्खायाहारस्स तिव्वसंवेगसुहयस्स // 51 // बाराहणलाभायो कयत्थमप्पाणयं मुणंतस्स / कलुसकलतरणलट्ठि अणुसढि देइ गणिवसहो-॥ 52 // कुग्गहपरूढमूलं मूला उच्छिद वच्छ ! मिच्छत्तं / भावेसु परमतत्तं सम्मत्तं सुत्तनीईए // 53 // भत्तिं च कुणसु तिव्वं गुणाणुराएण वीरायाणं / तह पंचनमुक्कारे पवयणसारे रई कुणसु ॥५४॥सुविहिअहिअनिज्झाए सज्झाएउज्जुश्रो सया होसु / निच्चं पंचमहब्बय-रक्खं कुण श्रायपचक्खं // 55 // उज्झसु निश्राणसल्लं मोहमहल्लं सुकम्मनिस्सल्लं / दमसु अ मुणिंदसंदोहेनिदिए इंदिनमइंदे // 56 // निबाणसुहावाए विइन्ननिरयाइदारुणावाए। हणसु कसायपिसाए विसयतिसाए सइसहाए // 57 // काले अपहुप्पंते सामन्ने सावसेसिए इसिंह / मोहमहारिउदारण-असिलहिँ सुणसु अणुसद्धिं // 58 // संसारमूलबीधे मिच्छत्तं सव्वहा विवज्जेह। सम्मत्ते ददचित्तो होसु नमुक्कारकुसलो अ॥५१॥ मिगतिरिहयाहिं तोयं मन्नंति नरा जहा सतराहाए / सुक्खाई कुहम्मायो तहेव मिच्छत्तमूहमणो // 60 // नवि तं करेइ अग्गी नेत्र विसं नेत्र किराहसप्पो अ। जं कुणइ महादोसं तिव्वं जीवस्स मिच्छत्तं // 61 // पावेइ इहेव वसणं तुरुमिणिदत्तुब दारुणं पुरिसो। मिच्छत्तमोहिश्रमणो साहुपश्रोसाउ पावायो // 62 // मा कासि तं पमायं सम्मत्ते सव्वदुक्खनासणए। जं सम्मत्तपइट्टाई नाणतवविरिश्रचरणाई // 63 // भावाणुरायपेमाणु-रायसुगु. णाणुरायरत्तो श्र। धम्माणुरायरत्तो थ होसु जिणसासणे निच्च / / 64 // दसणभट्ठो भट्ठो न हु भट्ठो होइ चरणपन्भट्ठो। दंसणमणुपत्तस्स हु परिअडणं Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22] / श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमो विभागः नत्थि संसारे॥ 65 ॥दसणभट्ठो भट्ठो दंसणभट्टस्स नत्थि निवाणं / सिमंति चरणरहिया दंसणरहिश्रा न सिझति // 66 // सुद्धे सम्मत्ते अविरोऽवि अज्जेइ तिस्थयरनामं / जह भागमेसिभद्दा हरिकुलपहुसेणियाईया // 67 // कल्लाणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता / सम्मइसणरयणं नऽग्घइ ससुरासुरे लोए // 68 // तेलुक्कस्स पहुत्तं लभ्रूणवि परिवडंति कालेणं / सम्मत्तं पुण लद्धु अक्खयसुक्खं लहइ मुक्खं // 61 // अरिहंतसिद्धचेइयपवयणायरियसव्वसाहसु। तिव्वं करेसु भत्तिं तिगरणसुद्धेण भावेणं // 70 // एगावि सा समत्था जिणभत्ती दुग्गइं निवारेउं / दुलहाई लहावेउं पासिद्धि परंपरसुहाई // 71 // विजावि भत्तिमंत्तस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य / किं पुण निव्वुइविजा सिज्झिहिइ अभत्तिमंतस्स ? // 72 // तेसि धाराहणनायगाण न करिज जो नरोभत्तिं / धणियपि उज्जमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ // 73 // बीएण विणा सस्सं इच्छइ सो वासमभएण विणा / श्राराहणमिच्छतो धाराहयभत्तिमकरंतो // 74 // उत्तमकुलसंपत्ति सुहनिप्पत्तिं व कुणइ जिणभत्ती। मणियारसिटिजीवस्स दददुररसेव रायगिहे || 75 // श्राराहणापुरस्सरमणन्नहियो विसुद्धलेसायो। संसारकखयकरणं तं मा मुंची नमुक्कारं // 76 // अरिहंतनमुक्कारो-इक्कोऽवि हविज जो मरणकाले / सो जिणवरेहिं दिट्ठो संसारुन्छेत्रणसमत्थो // 77 // मिठो किलिट्टकम्मो नमो जिणाणंतिसुकयपणिहाणो / कमलदलक्खो जक्खो जायो चोरुति सूलिहयो॥ 78 // भावनमुक्कारविवजिबाई जीवेण अकयकरणाई / गहियाणि अ मुक्काणि श्र अणंतसो दवलिंगाई // 7 // श्राराहणापडागागहणे हत्थो भवे नमोकारो। तह सुगइमग्गगमणे रहुब्ब जीवस्स अप्पडिहो // 80 // अन्नाणिवि श्र गोवो श्राराहित्ता मश्रो नमुक्कारं / चंपाए सिट्ठिसुत्रो सुदंसणो विस्सुश्रो जाओ // 81 // विजा जहा पिसायं सुट्ट वउत्ता करेइ पुरिसवसं। नाणं हियपिसायं सुठ्ठवउत्तं Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 4 श्रीभक्तपरिज्ञाप्रकीर्णकम् ] [ 23 तह करेइ // 82 // उवसमइ किराहसप्पो जह मंतेण विहिणा पउत्तेणं / तह हिययकिराहसप्पो सुट्ठवउत्तेण नाणेणं // 83 // जह मक्कडो खणमवि मज्मत्थो अच्छिउं न सक्केइ। तह खणमवि मज्झत्थो विसएहिं विणा न होइ मणो // 84 // तम्हा स उठ्ठिउमणो मणमकडयो जिणोवएसेणं / काउं सुत्तनिबद्धो रामेअब्बो सुहमाणे // 85 // सूई जहा ससुत्ता न नस्सई कयवरंमि पडियावि / जीवोऽवि तहससुत्तो न नस्सइ गोवि संसारे // 86 // खंडसिलोगेहि जवो जइ ता मरणाउ रक्खियो रापा / पत्तो असुलामन्नं किं पुण जिणउत्तसुत्तेणं ? / / 87 // अहवा चिलाइपुत्तो पत्तो नाणं तहाऽमरत्तं च / उवसमविवेगसंवर-पयसुमरणमित्त. सुयनाणो // 88 // परिहर छजीववहं सम्मं मणवयणकायजोगेहिं / जीवविसेसं नाउं जावजीवं पयत्तेणं // 81 // जह ते न पियं दुक्खं जाणित्र एमेव सव्वजीवाणं / सव्वायरमुवउत्तो अत्तोवम्मेण कुणसु दयं // 10 // तुंगं न मंदरायो भागासायो विसालयं नस्थि / जह तह जयंमि जाणसु धम्ममहिंसासमं नत्थि // 11 // सवेवि य संबंधा पत्ता जीवेण सबजीवहिं। तो मारतो जीवे मारइ संबंधिनो सवे // 12 // जीववहो अप्पवहो जीवदया अपणो दया होइ / ता सबजीवहिंसा परिचत्ता अत्तकामेहिं॥१३॥जावइबाई दुक्खाई हुँति चउगइगयस्स जीयस्म / सव्वाइं ताई हिंसाफलाई निउणं विश्राणाहि // 14 // जंकिंचि सुहमुबारं पहुत्तणं पयइसुदरं जं च / पारुग्गं सोहग्गं तं तमहिंसाफलं सव्वं // 15 // पाणोऽवि पाडिहेरं पत्तो छूढोऽवि सुसुमारदहे / एगेणवि एगदिणजिएणहिंसावयगुणेणं // 16 // परिहर असञ्चवयणं सव्वंपि चउब्धिहं पयत्तेणं / संजमवंतावि जयो भासादोसेण लिप्पंति // 17 // हासेण व कोहेण व लोहेण भएण वावि तमसच्चं / मा भणसु भणसु सच्चं जीवहिपत्थं पसत्थमिणं // 18 // विस्ससणिज्जो माया व होइ पुज्जो गुरुब्ध लोअस्स / सयणुव्व सचवाई पुरिसो सव्वस्स होइ टुक्खाई 4 // किन सवं // गणा Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमों विभागः पित्रो॥ 11 // होउ व जडी सिहंडी मुडी वा वकली व नग्गो वा / लोए असच्चवाई भन्नई पासंडचंडालो // 10 // अलिअं सइंपि भणिग्रं विहणइ बहुअाइं सच्चवयणाई / पडियो नरयंमि वसू इक्केण असनवयणेणं // 10 // मा कुणसु धीर बुद्धिं ! अप्पं व बहुँ व परधणं घित्तु। दंतंतरसोहणयं किलिंचमित्तंपि अधिदिन्नं // 102 // जो पुण अथं अवहरइ तस्स सो जीवि$पि श्रवहरइ। जं सो अत्थकएणं उन्झइ जीयं न उण अत्थं // 103 // तो जीवदयापरमं धम्म गहिऊण गिराह माऽदिन्नं / जिणगणहरपडिसिद्धं लोगविरुद्धं अहम्मं च // 104 // चोरो परलोगंमिऽवि नारयतिरिएसु लहंइ दुक्खाई / मणुअत्तणेवि दीणो दारिदोवहुयो होइ // 105 // चोरिकनिवित्तीए सावयपुत्तो जहा सुहं लहई। किदि मोरपिच्छचित्तिय गुट्ठीचोराण चलणेसु // 106 // रक्खाहि बंभचेरं बंभगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं / निच्चं जिणाहि कामं दोसपकामं विप्राणित्ता // 107 // जावइथा किर दोसा इहपरलोए दुहावहा हुँति / श्रावहइ ते उ सव्वे मेहुणसना मणूसस्स // 108 // रइअरइतरलजीहा-जुएण संकप्पउभडफणेणं / विसयबिलवासिणा मयमुहेण विब्बोअरोसेणं // 101 // कामभुअंगेण दट्ठा लज्जानिम्मोअदप्पदाढेणं / नासंति नरा अवसा दुस्सहदुक्खा वहविसेणं // 110 // लल्लकनिरयवित्रणाश्रो घोरसंसारसायसवणं / संगच्छइ न य पिच्छ। तुच्छत्तं कामिंगसुहस्त // 111 // वम्महसरसयविद्धो गिद्धो वाणिउब रायपत्तीए। पाउक्खालयगेहे दुग्गंधेऽयोगसो वसियो // 112 ! कामासत्तो न मुणइ गम्मागम्मपि वेसित्राणुव्व / सिट्टी कुबेरदत्तो निश्रयसु. श्रासुरयरइरत्तो // 113 // पडिपिल्लिय कामकलिं कामग्यस्थासु मुसु अणुबन्धं / महिलासु दोसविसवल्लरीसु पयई नियच्छंतो // 114 // महिला कुलं सुवंसं पियं सुग्रं मायरं च पियरं च। विसयंधा अगणंती दुक्खसमुद्दम्मि पाडेइ // 115 // नीअंगमाहिं सुपश्रोहराहिं उप्पिच्छमंथर Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [25 प्रकीर्णकानि : 4 श्रीमतपरिज्ञाप्रकीर्णकम् ] गईहिं। महिलाहिं नित्रयाहिं व गिरिवरगुरुत्रावि भिज्जति // 116 // सुट्ठवि जिया सुट्ठवि पिपासु सुट्ठवि परूढपेमासु / महिलासु भुगीसु व वीसंभं नाम को कुणइ ? // 117 // वीसंभनिन्भरंपि हु उवयारपरं परूढपणयंपि / कयविप्पियं पित्रं झत्ति निति निहणं हयासायो // 118 // रमणीयदंसणाश्रो सोमालंगीयो गुणनिबद्धाश्रो / नवमालइमालाउ व हरंति हिअयं महिलिग्राश्रो // 111 // किं तु महिलाण तासिं दसणसुदेर-जणिश्रमोहाणं / श्रालिंगणमइरा देइ वझमालाण व विणासं // 120 // रमणीण दंसणं चेव सुदरं होउ संगमसुहणं / गंधुच्चिय सुरहो मालाईइ मलणं पुण विणासो // 121 / साकेअपुराहिवइ देवरई रजसुवख-पन्भट्ठो। पंगुलहेतु छूढो बुढो अ नईइ देवीए // 122 // सोअप्तरी दुरिश्रदरी कवडकुडी महिलिया किलेसकरी / वइरविरोपण-अरणी दुषखखणी सुक्खपडिववखा // 123 // अमुणित्र-मणपरिकम्मो सम्मं को नाम नासिउं तरइ / वम्महसर-पसरोहे दिविच्छोहे मयच्छीणं ? // 124 // घणमालायो व दूरुन मंतसुपोहराउ वड्डीति / मोहविसं महिलायो अलकविसं व पुरिसस्स // 125 // परिहरसु तयो तासिं दिढेि दिट्ठीविसस्स व अहिरस / जं रमणिनयणबाणा चरित्तपाणे विणासंति // 126 // महिला-संसग्गीए अग्गी इव जं अप्पसारस्स / मयणं व मणो मुणिणोऽवि हंत सिग्घ(खणेगां) चिय विलाइ // 127 // जइवि परिचत्तसंगो तवतणुअंगो तहावि परिवडइ / महिं. लासंसग्गीए कोसाभवणूसिब्ब रिसी // 128 // सिंगार-तारंगाए विलासवेलाइ जुबण जलाए / के के जयंमि पुरिसा (पहसिअफेणाइ मुणी) नारिनईए न बुड्डति ? // 126 // विसयजलं मोहकलं विलासविबोध-जलयराइन्नं / मयमयरं उत्तिन्ना तारुनमहन्नवं धीरा // 130 // अभितर-बाहिरए सब्वे संगे (गंथे ) तुमं विवज्जेहि / कयकारिणुमईहिं Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2] [ मीनदागमसुधासिधुः :: अष्टमी विभागः कायमणो-वायनोगेहिं किलेससयकरए निच्चं // 131 // संगनिमित्तं मारइ. भणइ अलीयं करेइ चोरिक्कं / सेवइ मेहुण मुच्छं अप्परिमाणं कुणाइ जीवो // 132 // संगो(गंथे) महाभयं जं विहेडियो सावएण संतेणं / पुत्तेण हिए अत्यंमि मणिवई कुविएण जहा // 133 // सवग्गंथ-विमुक्को सोईभूयो पसंतचितो अ / जं पावइ मुतिसुहं न चकवट्टीवि तं लहइ // 134 / / निस्सल्लस्सेह महब्बयाई अखंड-निव्वणगुणाई। उवहम्मति अ ताई नियाणसल्लेण मुणिणोऽवि // 135 // श्रह रागदोसगभं मोहगभं च तं भवे तिविहं / धम्मत्थं हीणकुलाइ-पत्थणं मोहगभं च // 13 // रागेण गंगदत्तो दोसेणं विस्सभूइमाईया / मोहेण चंडपिंगल-माईया हुँति दिट्ठता // 137 // अगणिय जो मुक्खसुहं कुणइ नियाणं असारसुहहेउं / सो कायमणिकएणं वेरुलिश्रमणिं पणासेइ // 138 // दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं च बोहिलाभो अ / एवं पत्थेयव्वं न पत्थणिज्जं तयो अन्नं // 13 // उझिय-निपाणसल्लो निसिभत्तनियत्ति-समिइगुत्तीहि / पंचमहब्बयरक्खं कयसिवसुक्खं पसाहेइ // 140 // इंदिन-विसयासत्ता पडंति संसारसायरे जीवा। पक्खिध छिन्नपक्खा सुमोल गुण-पेहु ग-विहूणा // 141 // न लहइ जहा लिहंतो सुहिल्लियं ट्ठियं रसं सुणयो / सो सइय तालुअरसियं विलिहंतो मन्नए सुक्खं // 142 // महिलापसंगसेवी न लहइ किंचिवि सुहं तहा पुरिसो। सो मन्नए वरायो सयकायपरिस्समं सुक्खं // 143 // सुठुवि मग्गिज्जंतो कत्थवि केलीइ नत्थि जह सारो। इंदिन. विसएसु तहा नत्थि सुहं सुट्ठवि गविट्ठ॥ 144 // सोएण पवसिथपिया चक्खूराएण माहुरो वणियो / घाणेण रायपुत्तो निहयो जीहाइ सोदासो // 145 // फासिदिएण दुट्ठो नट्ठो सोमालिया-महीपालो। इकिक्केणवि निहया किं पुण जे पंचसु पसत्ता ? // 146 // विमया विक्खो निवडइ निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोहं / देवीदेवसमागय-भाउयजुयलं व भणियं च Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि: 4 भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णकम् ] [ 27 (जिणवीरविणिदिट्टो दिढतो बंधुजुयलेण) // 147 // छलिया अवयक्खंता निरावयक्खा गया अविग्घेणं / तम्हा पवयणसारे निरावयक्खेण होअव्वं // 148 // विसए अवियक्खंता पडंति संसारसायरे घोरे / विसएसु निराविक्खा तरंति संसारकंतारं // 14 // ता धीर ! धीवलेणं दुहते दमसु इंदिश्रमईदे / तेणुक्खयपडिवक्खो हराहि धाराहणपडागं // 150 // कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणं / निग्गिराह तेण सुपुरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं // 151 // जं अइतिक्खं दुक्खं जं च सुहं उत्तम तिलोईए। तं जाण कसायाणं वुड्डिक्खयहेउग्रं सव्वं // 152 // कोहेण नंदमाई निहया माणेण फरसुरामाई / मायाइ पंडरजा लोहेणं लोहनंदाई // 153 // इत्र उवएसामयपाणएण पल्हाइअम्मि चित्तंमि। जाग्रो सुनिव्वुयो सो पाऊण व पाणिग्रं तिसिश्रो // 154 // इच्छामो अणुसद्धिं भंते ! भव पंकतरणदढलढेि / जं जह उत्तं तं तह करेमि विणोणत्रो भणइ // 155 / / जइ कहवि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा / अहवा तराहाईश्रा परीसहा से उदीरिजा // 156 // निद्धं महुरं पल्हाणिजहिअयंगमं श्रणलियं च / तो सेहावेयचो सो खवयो पनवंतेणं // 157 // संभरसु सुश्रण ! जं तं मझमि चउन्विहस्स संघस्स / बूढा महापइना ग्रहयं श्राराहइस्लामि // 158 // अरिहंतसिद्धकेवलि-पञ्चवखं सबसंघसविखस्त / पञ्चखाणरस कयस्त भंजणं नाम को कुणइ ? || 151 // भालुकीए करुणं खज्जंतो घोरवियणत्तोऽवि / बाराहणं पवनो झाणेण अवंतिसुकुमालो // 160 // मुग्गिल्लगिरिंमि सुकोसलोऽवि सिद्धत्थदइयो भयवं / वग्धीए खज्जतो पडिवन्नो उत्तमं अट्ठ॥ 161 // गुढे पायोवगो सुबंधुणा गोमए पलिविम्मि / डझतो चाणको पडिवन्नो उत्तम टुं॥ 162 // अवलंबिऊण सत्तं तुमंपि ता धीर ! धीरयं कुणसु। भावेसु श्र नेगुन्नं संसारमहासमुदस्त // 163 // जम्मजरामरणजलो अगाइमं वसणसावयाइन्नो। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः जीवाण दुक्खहेऊ कटुं रुद्दो भवसमुद्दो // 164 // धन्नोऽहं जेण मए श्रणोरपारंमि भवसमुद्दम्मि / भवसयसहस्सदुलहं लद्धं सद्धम्मजाणमिणं // 165 // एअस्स पभावेणं पालिज्जंतस्स सइ पयत्तेणं / जम्मंतरेऽवि जीवा पावंति न दुवखदोगच्चं // 166 // चिंतामणी अउब्यो एमपुवो अकप्परुवखुत्ति / एग्रं परमो मंतो एवं परमामयं सरिच्छं॥ १६७॥श्रह मणिमंदिरसुंदर-फुरं. तजिण गुण-निरंजणुजोयो। पंचनमुकारसमे पाणे पणो विसज्जेइ // 16 // परिणामविसुद्धीए सोहम्मे सुरखरो महिड्डीयो। श्राराहिऊण जायइ भत्तपरिन्नं जहन्नं सो // 16 // उक्कोसेण गिहत्थो अच्चुत्रकप्पमि जायइ श्रमरों। निव्वाणसुहं पावइ साहू सबट्टसिद्धिं वा // 170 / / इत्र जोइसरजिणवीरभदभणियाणुसारिणीमिणमो। भत्तपरिन्नं धन्ना पढंति निसुणंति भावेंति // 171 // सत्तरिसयं जिणाण व गाहणं समयखित्तपन्नत्तं / धाराहतो विहिणा सासयसुक्खं लहइ मुखं // 172 // इहि भत्तपरिनापयगणयं सम्मत्तं // 4 // ॥इति श्रीभक्तपरिज्ञा प्रकीर्णकम् // 4 // // 5 // अथ श्रीतंदुलवैचारिकरकीर्णकम् // निजरियजरामरणं वंदित्ता जिणवरं महावीरं / वोच्छं पइन्नगमिणं तंदुलवेयालियं नाम // 1 // सुणह गणिए दस दसा वाससयाउस्स जह विभज्जति / संकलिए वाससए(वोगसिए) जं चाऊ सेसयं होइ // 2 // जत्तियमित्ने दिवसे जत्तिय राई मुहुत्त उसासे / गभमि वसइ जीवो श्राहार. विहिं च वोच्छामि // 3 // (द्वारगाथा) दोनि ग्रहोरत्तसए संपुराणे सत्तसत्तरं चेव / गम्भंमि वसइ जीवो अद्धमहोत्तमन्नं च // 4 // एए उ अहोरत्ता नियमा जीवस्स गब्भवासंमि / हीणाहिया उ इत्तो उवघायवसेण जायंति // 5 // अट्ठ सहस्सा तिन्नि उ सया मुहुत्ताण पराणवीसा य / गभगो वसइ जीवो नियमा हीणाहिया इत्तो // 6 // तिन्नेव य कोडीयो चउदस होइ // 2 // तरि वाम // 3 // दासास / गम्भमि Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 5 श्रीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] [ 29 य हवंति सयसहस्साई / दस चेव सहस्साई दोनि सया पन्नवीसा य // 7 // उस्साला निस्सासा इत्तिमित्ता हवंति संकलिया। जीवस्स गब्भवासे नियमा हीणाहिया इत्तो॥८॥ अाउसो ! इत्थीए नाभिहिट्ठा सिरादुगं पुष्फनालियागारं / तस्स य हिट्ठा जोणी श्रहोमुहा संठिया कोसा // 1 // तस्स य हिट्ठा चूयस्स मंजरी तारिसा उ मंसस्स / ते रिउकाले फुडिया सोणियलवया विमुचंति // 10 // कोसायारं जोणी संपत्ता सुक्कुमीसिया जइया / तइया जीवुववाए जोग्गा भणिया जिणिंदेहिं // 11 // बारस चेव मुहुत्ता उवरिं विद्धंम गच्छई सा उ / जीवाणं परिसंखा लक्वपुहुत्तं च उक्कोसा // 12 // पणपण्णाय परेणं जोणी पमिलायए महिलियाणं / पणसत्तरीय परयो पारण (वासेहि) पुमं भवेऽबीयो // 13 // वाससयाउयमेयं परेण जा होइ पुचकोडीयो / तस्सद्धे अमिलाया सव्वाउयवीसभागो उ॥ 14 // रत्तुकडा य इत्थी लवखपुहुत्तं च बारस मुहुत्ता। पिउसंख सयपुहुत्तं बारस वासा उ गम्भस्स // 15 // दाहिणकुच्छी पुरिसस्त होइ वामा उ इत्थियाए उ / उभ्यं. तरं नपुंसे तिरिए अट्ठव वरिसाइं // 16 // इमो खलु जीवो अम्मापिउसंयोगे माऊयोयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसट्ठ कलुसं किविसं तप्पढमयाए श्राहारं थाहारित्ता गम्भत्ताए वव.मइ // सू. 1 // सत्ताहं कललं होइ, सत्ताहं होइ अब्बुयं / बुया जायए पेसी, पेसीयोवि घणं भवे // 17 // तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायई, वीए मासे पेसी संजायए घणा, तईए मासे माउए डोहलं जणेइ, चउत्थे मासे माऊए अंगाई पीणेइ पंचमे मासे पंच पिंडियायो पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ, छट्टे मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ. सत्तमे मासे सत्त सिरासयाई पंच पेसीसयाई नव धमणीयो नवनउयं च रोमकूबसयसहस्साई(११०००००) निव्वत्तेइ, विणा केसमंसुणा, सह केसमंसुणा श्रद्धट्ठायो रोमकूवकोडीउ निव्वत्तेइ (35000000), अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ // सूत्रं 2 // जीवस्स णं भंते ! गभगयस्स समाणस्स Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30] श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः श्रथि उच्चारेइ वा पासवणेइ वा खेलेइ वा सिंघाणेइ वा वंतेइ वा पित्तेइ वा सुक्केइ वा सोणिएइ वा ?, नो इण? सम8, से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ. जीवस्स गभगयस्स समाणस्स नत्थी उच्चारेइ वा जाव सोणिएइ वा ?, गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे जं श्राहारमाहारेइ त चिणाइ सोइंदिय. ताए चक्खुइंदियत्ताए घाणिदिअत्ताए जिभिदियत्ताए फासिंदियत्ताए अट्टिश्रट्टिमिंजकेसमंसुरोमनहत्ताए, से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जीवस्स णं गभगयस्स समाणरस नत्थि उच्चारेइ वा जाव सोणिए वा // सू० 3 // जीवे णं भत्ते ! गभगए समाणे पहू मुहेणं कावलियं श्राहारं श्राहारित्तए ?, गोयमा ! नो इण? समढे, से केण?णं भंते ! एवं वुचइ-जीवे णं गभगए समाणे नो पहू मुहेणं कावलियं श्राहारं पाहारित्तए ?, गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे सव्वयो श्राहारेइ सवयो परिणामेइ सम्बो ऊससइ सब्बयो नीससइ अभिक्खणं श्राहारेइ अभिक्खणं परिणामेइ अभिक्खणं उससइ अभिक्खणं नीससइ अाहन श्राहारेइ थाहच्च परिणामेइ श्राहंच ऊससइ अाहन्न निस्ससइ, से माउजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवपडिबद्धा पुत्तजीवं फुडा तम्हा श्राहारेइ तम्हा परिणामेइ, श्रवरावि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा विणाइ तम्हा उवंचिणाइ, से पएणं अटेणं गोयमा ! एवं वुचइ-जीवे णं गभगए समाणे नो पहू मुहेणं कालिग्रं श्राहारं श्राहारित्तए // सू० 4 // जीवे णं गभगए समाणे किमाहारं श्राहारेइ ?, गोयमा ! जं से माया नाणाविहायो रसविगईयो तित्तकडुअकसायंत्रिलमहुराई दवाई थाहारेइ तयो एगदेसेणं श्रोअमाहारेइ, तस्स फलविंटसरिसा उप्पलनालोवमा भवइ नाभी, रसहरणी जणणीए सयाइ नाभीए पडिबद्धा नाभीए, तायो गम्भो योयं श्राइयइ, श्रगहयंतीए ओयाए तीए गम्भोऽवि वड्डइ जाव जाउत्ति // सूत्रं 5 ॥.कइ णं भंते ! माउभंगा पराणता ?, गोयमा ! तो माउभंगा परणता, तंजहा, Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 31 प्रकीर्णकानि / / 6 श्रीर्तदुवैचारिकप्रकीर्णकम् ] मसे सोगिए मत्थुलुगे। कइ णं भंते ! पिउगंगा पराणता ?, गोयमा ! तयो पिउगंगा पराणत्ता, तंजहा-अढि अट्टिमिजा केसमंसुरोमनहा // सू० 6 // जीवे णं भंते ! गभगए समाणे नरएसु उववजिजा ?, गोयमा ! अत्थेगइए उववजिजा अत्थेगइए नो उववजिजा, से केण?णं भंते ! एवं वुचइ-जीवे णं गभगए समाणे नरएसु अत्थेगइए उववजिजा अत्थेगइए नो उववजिजा ?, गोयमा ! जे णं जीवे गभगए समाणे सन्नी पंचिंदिए सबाहिं पजत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वेउबिश्रलद्धीए, वेउबिलद्धिपत्ते पराणीचं पागयं सुच्चा निसम्म पएसे विच्छूहइ निहित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ समोहणित्ता चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेइ सन्नाहित्ता पराणीएण सद्धिं संगामं संगाइ, से णं जीवे अत्थकामए रजकामए भोगकामए कामकामए, यत्थकंखिए रजकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए, अत्थपिवासिए रजपिवासिए भोगपिवासिए कामपिवासीए, तचित्ते तम्मणे तल्लेसे तदभवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तयट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तन्भावणाभाविए, एयंसि च णं अंतरंसि कालं करिजा नेरइएसु उववजिजा, से एएणं अट्ठणं एवं वुचइ-गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे नेरइएसु प्रत्येगइए उववजिजा, अत्थेगइए नो उववजिजा // सू० 7 // जीवे णं भंते ! गभगए समाणे देवलोएसु उववजिजा ?, गोयमा ! प्रत्येगइए उववजिजा अत्थेगइए नो उववजिजा, से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-अत्थेगइए उपबजिजा अत्थेगइए नो उववजिजा ? गोयमा ! जे णं जीवे गभगए समाणे सगणी पंचिंदिए सव्वाहिं पजत्तीहिं पजत्तए विउब्बियलद्धीए वीरियलद्धीए भोहिनाणलद्धीए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि पायरियं धम्मियं सुवयणं सुच्चा निसम्म तयो से भवइ तिब्वसंवेग-संजायसड्ढे तिव्वधम्माणुरायरत्ते, से णं जीवे धम्मकामए पुराणकामए सग्गकामए मुक्खकामए, धम्मकंखिए पुन्नकंखिए सग्ग Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32) [श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमी विभागः कंखिए मुक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुन्नपिवासिए सग्गपिवासिए मुक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदभवसिए तत्तिवझवसाणे तदप्पियकरणे तयट्ठोवउत्ते तब्भावणाभाविए, एयंसि णं अंतरंसि कालं करिजा देवलोएसु उववजिजा, से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं वुनइ-पत्थेगइए उववजिजा अत्थेगइए नो उववजिज्जा // सू०८ // जीवे णं भंते ! गभगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुजए वा अच्छिज वा चिट्ठिज वा निसीइज वा तुयट्टिज वा ग्रासइज वा सइज वा माऊए सुपमाणीए सुपइ जागरमाणीए जागरइ सुहियाए सुहियो भवइ दुहियाए दुखियो भवइ ?, हंता गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे उत्ताणए वा जार दुक्खियाए दुक्खियो भवइ // सू०१॥ थिरजायंपि हु रक्खइ सम्मं सारवखई तो जणणी / संवाहई तुयट्टई रक्खइ अप्पं च गभं च // 18 // अणुसुयइ सुयंतीए जागरमाणीऍ जागरइ गम्भो। सुहियाए होइ सुहियो दुहियाए दुक्खियो होइ // 11 // उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणोऽवि से नत्थि / अट्ठीमिंज-नहकेस-मंसुरोमेसु परिणामो // 20 // श्राहारो परिणामो उस्सासो तह य चेव नीसासो। सबपएसेसु भवई कवलाहारो य से नत्थि।। (प्र. एवं बुदिमइगयो गम्भे संवसइ दुक्खियो जीवो / परम-तमसंक्यारे अमेज्म-भरिए पएसंमि)॥ 21 // पाउसो! तयो नवमे मासे तीए वा पडुप्पन्ने वा अणागए वा चउराहं माया अन्नयरं पयायइ, तंजहा-इत्थिं वा इत्थिरूवेणं 1 पुरिसं वा पुरिसरूवेणं 2 नपुंसगं वा नपुंसगरूवेणं 3 बिं वा बिंबरूवेणं 4 ॥सूत्रं 10 // अप्पंसुक्कं बहुँ अ(उ)उयं, इत्थीया तत्थ जायई। अप्पं श्र(उ)उयं बहुँ सुक्कं, पुरिसो तत्थ जायइ // 22 // दुराहगि रत्तसुकाणं, तुलभावे नपुंसश्रो / इत्थीयोयसमारोगे, विवं वा तत्थ जायइ // 23 // ग्रह णं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा पाएहिं वा श्रागच्छइ समागच्छइ, तिरियमागच्छइ विणिघायमावजइ // सू० 11 / / Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / 4 बीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णर। [31 कोई पुण पावकारी बारस संवच्छराई उकोसं / अच्छइ उ गम्भवासे असुः इप्पभवे असुइयंमि // 24 // जायमामस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स वा पुणो / तेण दुक्खेण संमूढो, जाइं सरइ नऽप्पणो // 25 // विस्सरसरं रसंतो यह सो जोणीमुहाउ निष्फिडइ / माऊए अप्पणोवि य वेयणमउलं जणेमाणे // 26 // गब्भघरयम्मि जीवो कुभीपागम्मि नरयसंकासे / वुच्छो श्रमिझमज्झे असुइप्पभवे असुइयंमि // 27 // पित्तस्स य सिंभस्स य सुकस्स य सोणियस्सवित्र मज्झे। मुत्तस्म पुरीसस्स य जायइ जह वच्चकि मिउव्व // 28 // तं दाणिं सोयकरणं केरिसयं होइ तरस जीवस्स 1 / सुकरुहिरागरायो जस्सुप्पत्ती सरीरस्स // 21 // एषारिसे सरीरे कलमल. भरिए अमिज्मसंभूए / निययं विगणिज्जतं सोयमयं केरिसं तस्स ? // 30 // अाउसो ! एवं जायस्स जंतुस्स कमेण दस दसायो एवमाहिज्जति, तंजहा-बाला 1 किड्डा 2 मंदा 3 बला य 4 पन्ना य 5 हायणि 6 पवंचा 7 / पन्भारा 8 मुम्मुही 1 सायणी य 10 दसमा य कालदसा // 31 // जायमित्तरस जंतुस्स, जा सा पढमिश्रा दसा / न तत्थ भुजिउं भोए, जइ से अस्थि घरे धुवा // 32 // बीयाए किड्डया नाम, जं नरो दसमस्सियो / किड्डारमणभावेण, दुलहं गमइ नरभवं // 33 // तईयाए मंदया नाम, जं नरो दसमस्सियो / मंदस्स मोहभावेणं, इत्थीभोगेहिं मुच्छियो // 34 // (जायमित्तस्स जंतुस्स, जासा पढमिया दसा / न तत्थ सुहं दुवखं वा, बहुँ जाणंति बालया // 32 // बिइयं च दसं पत्तो, नाणाकीलाहिं कीई / न य से काम भोगेसु, तिव्वा उप्पजई रई // 33 // तइयं च दसं पत्तो, पंच कामगुणो नरो। समत्थो भुजिउं. भोए, जइ से अस्थि घरे धुवा // 34) चउत्थी उ बलानाम, जं नरो दसमस्सियो / समत्थो बलं दरिसेउं, जइ सो भवे निरवद्दवो // 35 // पंचमी तु दसं पत्तो, थाणुपुव्वीइ जो नरो / समत्थोऽत्थं विचिंतेचं, कुडुवं चाभिग Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34. . - [ श्रीमदागमसुवतिन्धुः / अष्टमो विनाग - च्छह // 36 // छट्ठी उ हायणी नाम, जं नरो दसमस्सियो / विरजई श्र कामेसु), इंदिएसु पहायई // 37 // सत्तमी य पवंचा उ, जं नरो दसमस्सियो। निच्छुभइ चिकणं खेलं, खासई य खणे खणे // 38 // संकुइअवलीचम्मो, संपत्तो अट्ठमि दसं / नारीणं च अणिट्ठो य, जराए परिणामियो // 31 // नवमी मुम्मुहीनाम, जं नरो दसमस्सियो / जराघरे विणस्सने, जीवो वसई अकामयो॥ 40 // हीणभिन्नसरो दीणो, विवरीम्रो विचित्तश्रो (विरुवो)। दुबलो दुक्खियो सुयइ, संपत्तो दसमि दसं // 41 // दसगस्स उवक्खेवो वीसइवरिसो उ गिराहई विजं / भोगा य तीसगस्स य चत्तालीसस्स य विनाणं (बलमेव) // 42 // पन्नासयस्स चक्खु हायइ सटिक्कयस्स बाहुबलं / भोगा य सत्तरिस्स य, असीययस्सा य विन्नाणं // 43 // नउई नमइ सरीरं वाससए जीवियं पुणो चयइ / कित्तियोऽस्थ सुहो भागो दुहभागो य कित्तियो ? // 44 // जो वाससयं जीवइ, सुही भोगे य भुजई / तस्सावि सेविउं सेश्रो, धम्मो य जिणदेसियो॥ 45 // किं पुण सपञ्चवाए, जो नरो निचदुक्खियो। सुठ्ठयरं तेण कायव्वो, धम्मो य जिणदेसियो // 46 // नंदमाणो चरे धम्म, वरं मे लट्ठतरं भवे / अणंदमाणोवि चरे, मा मे पावतरं भवे // 47 // नवि जाई कुलं वावि, विजा वावि सुसिक्खिया। तारे नरं व नारिं वा, सव्वं पुराणेहिं वडई // 48 // पुराणेहिं हायमाणेहिं, पुरिसगारोऽवि हायई। पुराणेहिं वड्डमाणेहिं, पुरिसगारोऽवि वडई // 4 // पुराणाई खलु पाउसो ! किच्चाई करणिज्जाइं पीइकराई वनकराई धणकराई जसकराई कित्तिकराई, नो य खलु अाउसो! एवं चितेयव्वं-एसंति खलु बहवे समया श्रावलिया खणा आणापाणू थोवा लवा मुहुत्ता दिवसा ग्रहोरत्ता पक्खा मासा रिऊ अयणा संवच्छरा जुगा वाससया वाससहस्सा वाससयसहस्सा वासकोडीयो वासकोडाकोडीयो जत्थ णं अम्हे बहूई सीलाई वयाइं गुणाई वेरमणाई पञ्चक्खाणाई पोसहोववासाइं पडिवजिस्सामो Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि.: 5 श्रीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] पट्टविस्सामो करिस्सामो, ता किमत्थं श्राउसो ! नो एवं चिंतेयब्वं भवइ ?, अंतरापबहुले खलु अयं जीविए, इमे यबहवे वाइयपित्तिश्र-सिंभियसन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंति जीवियं // मू० 12 // श्रासी य खलु पाउसो। पुब्बि मणुया ववगयरोगायंका बहुवाससयसहस्सजीविणो,तंजहा जुयलधम्मिश्रा अरिहंता वा चकवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा चारणा विजाहरा, ते णं मणुया अणतिवरसोमचारुरुवा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा सुजायसव्वंग-सुंदरंगा रत्तुप्पलपउम-करचरणकोमलंगुलितला नगणगर-मगरसागर-चक्कंक-धरंकलक्खणं केयनला सुपइट्ठिय-कुम्मचारुचलणा अणुपुविसुजाय-पीवरंगुलिया उन्नयतणुतंव-निद्धनहा संठिअसुसिलिट्ठ गुदगुप्फा एणीकुरुविंदावत्त-वट्ठाणुपुब्बिजंघा समुग्गनिम्मुग्ग-गूढजाणू गयससणसुजाय-सन्निभोरू वरवारण-मत्ततुल्ल. विक्कम-विलासियगई सुजायवरतुरय गुज्झदेसा पाइनहयव्व निरुवलेवा पमुइयवरतुरंग-सीह-अइरेगवट्टियकडी साहयसोणंद-मुसल-दप्पणनिग्गरिय-वरकणगच्छर-सरिसवर-वइरवलिअमज्मा गंगावत्त-पयाहिणावत्त तरंगभंगुर-रविकिरणतरुणबोहिय-उकोसायंतपउम-गभीरवियडनाभा उज्जुयसमसंहिय-सुजायजच्चतणुकिसिण-निद्धयाइज-लडहसुकुमाल-मउयरमणिज्जरोमराई झसविहगसुजायपीणकुच्छी झसोयरा पम्हविग्रडनाभा संगयपासा सन्नयपासा सुदरपासा सुजायपामा मिअमाइयपीण-रइयपासा अकरंडुय-कणगरुयग-निम्मलसुजाय-निरुवहयदेहधारी पसत्थबत्तीस-लक्खणधरा कणगसिलायलुजल-पसत्थसमतलउवचिअवित्थिन्नपिहुलवच्छा सिरिवच्छकियवच्छा पुरवरफलिह-वट्टियभुया भुयगी. सरविउल-भोगयाषाण फलिहउच्छूट दीहबाहू जुगसन्निभ-पीणरइथ-पीवरपउ8संठिय-उवचियघणथिरसुबद्ध-सुवट्ठ-सुसिलिट्ट-पव्वसंधी रत्ततलोव चिय-मउयमंसल-सुजायलक्खण-पसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवरवट्टिय सुजायकोमल-वरं. गुलिया तंवतलिण-सुइ रुइरनिद्धनवखा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा कपाणिलेहा सोत्थित्रपाणिलेहा ससिरवि-संखचक्कसोस्थिय विभत्तसु. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमी विमाना विरझ्य-पाणिलेहा वरमहिस-वराहसीहसद्द ल-उसभनाग-वरविउल-उन्नयमउद खंधा चउरंगुल-सुपमाण-कंबुवर-सरिसगीवा अवट्ठिय सुविभत्तचित्तमंसू मंसलसंठिय-पसत्थसह ल-विउलहणुया बोअविय-सिलप्पवाल बिंबफलसंनिभाधस्ट्ठा पंडुरससि-सगलविमल निम्मल-संखगोखीर-कुंददगरय-मुणालियाधवल-दंतसेढी अखंडदंता अफुडियदंता अविरलदंता सुनिद्धदंता सुजायदंता एगदंतसेती विव अणेगदंता हुयवह-निद्धंतधोयतत्त-तवणिज-रत्तल-तालुजीहा सारस-नवथणियमहुरगंभीर-कुचनिग्घोस-दु'दुहिसरा गरुलायय-उज्जुतुगनासा अवदारिश्रपुंडरीयवयणा कोकासिय-धवलपुंडरिय-पत्तलच्छा पानामित्र चावरुइल-किराहचिहुरराइ-सुसंठिय संगययायय-सुजायभुमया अल्लीणपमाण-जुत्तसवणा सुसवणा पीणमंसल-कवोलदेसभागा अइरुग्गय-समग्गसुनिद्ध-चंदद्धसंठिअनिडाला उडुवइ-पडिपुन्न-सोमवयणा छत्तागारुत्तमंग-देसा घणनिचिय-सुबद्धलक्खणुनय. कूडागारनिरुवम-पिडियग्गसिरा हुयवहनिद्धंत-धोयतत्त-तवणिज केसंतकेसभूमी सामलीबोंड-घणनिचिअच्छोडिअ-मिउविसय-सुहुमलवखण-पसस्थसुगंधि-सुदरभुयमोयग-भिंगनील-कजल-पहट्ठभमरगण-निद्धनिउरंवनिचिय-कुचिअ-पयाहिणावत्त-मुद्धसिरया लक्खणवंजण-गुणोववेया माणुम्माणपमाण-पडिपुन-सुजायसवंग-सुदरंगा ससिसोमागारा कंता पियदंसणा सम्भावसिंगारचारुवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा, ते णं मणुया पोहस्सरा मेहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा नंदिस्सरा नंदिघोसासीहस्सरा सीहयोसा मंजुस्सरा मंजुघोसा सुस्सरा सुसरघोसा अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोयपरिणामा सउणपोस-पिटुतरोरुपरिणया पउमुप्पल-सुगंधिसरिस-नीसासा सुरभिवयणा छवी निरायंका उत्तमपसत्थाइसेस-निस्वमतणू जलमल-कलंकसेयरय-दोसवजियसरीरा निरुलेवा छायाउजोवियंगमंगा बजरिसहनाराय-संघयणा समचउरंससंगणसंठिया छधणुसहस्साइं उट्ठ उच्चत्तेणं परणत्ता, ते णं मणुया दो छप्पनपिट्ठ-करंडगसया पगणता, समणाउसो!, ते णं मणुया पगइभद्दया पगइ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / / 5 मीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] [ 37 विणीया पगइउवसंता पगइपयणु-कोहमाणमायालोमा मिउमद्दवसंपन्ना श्रल्लीणा भइया विणीया अप्पिछा असन्निहिसंचया अचंडा असिमसिकिसि-वाणिजविवजिया विडिमंतरनिवासिणो इच्छियकामकामिणो गेहागाररुक्ख-कयनिलया पुढविपुष्फ-फलाहारा ते णं मणुयगणा पराणत्ता // सू. 13 // श्रासी य समणाउसो ! पुधि मणुयाणं छविहे संघयणे, तंनहा-वजरिसहनारायसंघयणे 1 रिसहनारायसंघयणे 2 नारायसंघयणे 3 श्रद्धनारायसंघरणे 4 कीलियासंघयणे 5 छेवट्ठसंघयणे 6, संपइ खलु पाउसो ! मणुयाणं छेवट्ठसंघयणे वट्टइ / बासी य ग्राउसो ! पुबि. मणुयाणं छविहे संगणे, तंजहा-समचउरंसे 1 नग्गोहपरिमंडले 2 सादि 3 खुज्जे 4 वामणे 5 हुँडे 6, संपइ खलु पाउसो ! मणुयाणं हुँडे संठाणे वट्टइ // सू० 14 // संवयणं संठाणं उच्चत्तं पाउयं च मणुयाणं / अणुसमयं परिहायइ श्रोसप्पिणिकालदोसेणं // 50 // कोहमयमायलोभा, उरसन्नं वड्डए य मणुयाणं / कूडतुला कूडमाणा तेणऽणुमाणेण सव्वंति // 51 // विसमा अज तुलायो विसमाणि य जणवएसु माणाणि। विसमा रायकुलाई, तेण उ विसमाई वासाइं // 52 // विसमेसु य वासेसु हुँति असाराई श्रोसहिबलाई / योसहिदुबल्लेण य, ग्राउं परिहायइ नराणं // 53 // एवं परिहायमाणे लोए चंदुब्ब कालपक्खंमि / जे धम्मिया मणूमा सुजीवियं जीवियं तेसिं // 54 // पाउसो ! से जहा नामए केइ पुरिसे गहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सिरसिराहाए कठेमालकडे पाविद्धमणिसुवराणे यहअसु. महग्य वत्थपरिहिए चंदणोकिराण-गायसरीरे सरससुरहिगंध-गोसीस-चंदणाणुलित्तगत्ते सुइमालावन्नग-विलेवणे कप्पियहारद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाणे कडिसुत्तय-सुक्यमोहे पिणिद्धगेविज्जे अंगुलिजग-ललियंगय-ललियकयाभरणे नाणामणि-कणगरयण-कडग-तुडियथंभियभुए अहिअरूवे सस्सिरीए कुंडलुजोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारुच्छयसुझ्य-रइयवच्छे पालंबपलंबमाण-सुक Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमी विमाना यपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगुलंगुलिए नाणामणिकणगरयण-विमलमहरिह-निउणोविय-मिसिमिसिंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-श्राविद्धवीर-वलए, किं बहुणा ?, कप्परुक्खए चेव प्रलंकियविभूसिए सुइपयए भवित्ता अम्मापियरो अभिवादइजा, तए णं तं पुरिसं अम्मापियरो एवं वइजा-जीव पुत्ता ! वाससयंति, तंपि पाउं तस्स नो बहुयं भवइ, कम्हा ?, वाससयं जीवंतो वीसं जुगाई जीवइ, वीसं जुगाई जीवंतो दो अयणसयाई जीवइ, दो अयणसयाई जीवंतो छ उऊसयाई जीवइ, छ उऊसयाइं जीवंतो वारस माससयाई जीवइ, बारस माससयाई जीवंतो चउवीसं पक्खसयाई जीवइ, चउवीसं पक्खसयाई जीवंतो छत्तीसं राइंदिग्रसहस्साइं जीवइ, छत्तीसं राइंदियसहस्साई जीवंतो दस असीयाई मुहुत्तसयसहस्साई जीवइ, दससीआई मुहुत्तसयसहस्साई जीवंतो चत्तारि ऊसासकोडिसए सत्त य कोडीयो अडयालीसं च सयसहस्साई चत्तालीसं च ऊसाससहस्साई जीवइ, चत्तारि य ऊसासकोडिसए जाव चत्तालीसं च ऊसाससहस्साई जीवंतो अद्ध तेवीसं तंदुलवाहे भुजइ, कहमाउसो ! श्रद्धतेवीसं तंदुलवाह भुजइ ?, गोयमा ! दुब्बलाए खंडियाणं बलियाए छडि. याणं खइरमुसलपच्चाहयाणं ववगयतुसकणियाणं अखंडाणं अफुडियाणं फलगसरियाणं इक्विकबीयाणं श्रद्धत्तेरसपलियाणं पत्थए, सेऽविय णं पत्थए मागहए, कल्लं पत्थे 1 सायं पत्थो 2, चउसट्ठिसाहस्सीयो मागहयो पत्थो, बिसाहस्सिएणं कवलेणं बत्तीस कवला पुरिसस्स थाहारो, अट्ठावीसं इत्थियाए, चउवीसं पंडगस्त, एवामेव अाउसो ! एयाए गणणाए दो असईयो पसई, दो पसईयो य सेइया होइ, चत्तारि सेइया कुलश्रो, चत्तारि कुलया पत्थो, चत्तारि पत्थगा श्रादगं, सट्ठिए बाढगाणं जहन्नए कुंभे, असीईए श्रादयाणं मज्झिमे कुंभे, श्रादगसयं उक्कोसए कुभे, अट्ठव य श्राढगसयाणि वाहे, एएणं वाहप्पमाणेणं अद्धत्तेवीसं तंदुलवाहे भुजइ / / सू० 15 // ते य गणियनिहिट्टा-चत्तारि य कोडिसया सद्धिं चेव य हवंति कोडीयो। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकार्नि 5 श्रीतंदुलपारिकाकीर्णकम् ] [1. असीई च तंदुलसयसहस्साणि हवंतित्तिमक्खायं (4608000000) // 55 // तं एवं श्रद्धत्तेवीसं तंदुलवाहे भुजंतो श्रद्धछ? मुग्गकुभे भुजइ, अद्धछट्ट मुग्गकुम्भे भुजंतो चउवीसं जेहाढगसयाई भुंजइ, चउग्रीसं णेहाढगसयाई भुजंतो छत्तीसं लवणपलसहस्साई भुजइ, छत्तीसं लवणपलसहस्साई भुजंतो छप्पडसाडगसयाइं नियंसेइ, दोमासियणं परिघट्टएणं मासिएण वा परियट्टणं बारस पडसाडगसयाइं नियंसेइ / एवामेव पाउसो ! वाससयाउयस्स सव्वं गणियं तुलियं मवियं नेहलवणभोयणच्छायणंपि, एवं गणियप्पमाणं दुविहं भगियं महरिसीहिं, जस्सऽस्थि तस्स गणिजइ, जस्त नत्थि तस्स कि गणिजइ ? // सू० 16 // ववहारगणिय-दिटुं सुहुमं निच्छ यगयं मुणेयवं / जइ एयं नवि एवं विसमा गणणा मुणेयया // 56 // कालो परमनिरुद्रो अविभजो तं तु जाण समयं तु / समया य असंखिजा हवंति उस्सासनिरसासे // 57 // हट्ठस्स अणवगलस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो। एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुन्नइ // 58 // सत्त पाणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे / लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्ते वियाहिए // 56 // एगमेगस्स णं भंते ! मुहुत्तस्स केवइया ऊसासा वियाहिया ?, गोयमा !-तिन्नि सहस्सा सत्त य सयाई तेवत्तरिं च ऊसासा / एस मुहुत्तो भणियो सव्वेहिं अणंतनाणीहिं // 60 // दो नालिया मुहुत्तो सद्धिं पुण नालिया अहोरत्तो। पनरस अहोरत्ता पक्खो पक्खा दुवे मासो // 61 // दाडिमपुष्फागारा लोहमई नालिया उ कायव्वा / तीसे तलम्मि छिद्द छिद्दपमाणं पुणो वोच्छं // 62 // छन्नउई पुच्छवाला तिवासजायाएँ गोतिहाणीए। अस्संवलिया उज्जय नायव्वं नालियाबि // 6 // ग्रहवा उ पुच्छवाला दुवासजायाऍ गयकरेणूए / दो वाला उ अभग्गा नायव्वं नालियाछिद्द॥ 64 // अहवा सुवराणमासा चत्तारि सुवट्टिया घणा सूई। चउरंगुलप्पमाणानायव्वं नालियाछिद्द // 65 // उदगरस नालि Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10] - श्रीमदागमसुधासिन्धारा अष्टमो विभाग श्राए भवंति दो श्राढयाउ परिमाणं / उदगं च भाणियव्वं जारिसयं तं पुणो वुन्छ // 66 // उदगं खलु नायव्वं कायव्वं दूमपट्टपरिपूयं / मेहोदगं पसन्न सारइयं वा गिरिनईए // 67 // बारस मासा संवच्छरो उ पक्खा य ते उ चउनीसं / तिन्नेव य सट्ठिसया हवंति राइंदित्राणं च // 68 // एगं च सयसहस्सं तेरस चेव य भवे सहरसाई। एगं च सयं नउयं हवंति राइदिऊसासा // 61 // तित्तीस सयसहस्सा पंचाणऊई भवे सहस्साई। सत्त य सया अण्णा हवंति मासेण ऊसासा / 70 // चत्तारि य कोडीयो सत्तेव य हुँति सयमहस्ताई। अडयालीससहस्सा चत्तारि सया य वरिसेणं / / 71 // चत्तारि य कोडिसया सत्त य कोडीउ हुँति अवरायो। अडयाल सयसहस्सा चत्तालीसं सहस्सा य // 72 / / वाससयाउस्सेए(नराणं)उस्मासा इत्तिया मुणेयवा। पिच्छह अाउस्स खयं ग्रहोनिसं झिज्ममाणस्स // 73 // राइदिएण तीसं तु मुहुत्ता नव सया उ मासेणं / हायंति पमत्ताणं न य णं अबुहा वियाणंति / / 74 // तिन्नि सहस्से सगले छच्च सए उडुवरो हरइ थाउं / हेमंते गिम्हासु य वासासु य होइ नायव्वं // 75 // वाससयं परमाउं इत्तो पन्नास हरइ निदाए / इत्तो वीसइ हायई बालते वुड्डभावे य // 76 // सीउराहपंथगमणे खुहा पिवासा भयं च सोगे य / नाणाविहा य रोगा हवंति तीसाइ(तीसाइ हरइ) पबद्धे // 77 // एवं पंचासीई नट्ठा पनरसमेव जीवंति / जे हुँति वाससइया न य सुलहा वाससयजीवी // 78 / / एवं निस्सारे माणुलत्तणे जीविए अहिवडते। न करेह चरणधम्म पच्छा पच्छाणुतप्पिह हा / / 76 // घुटुम्मि सयं मोहे जिणेहिं वरधम्मतित्थमग्गस्स। अत्ताणं च न याणह इह जाया कम्मभूमीए // 80 // नइवेगसमं चवलं जीवियं जोवणं च कुसुमसमं / सुक्खं च जमनियत्तं तिन्निवि तुरमाणभुजाई // 81 // एवं खु जरामरणं परिखिवइ वग्गुरा व मियजूहं / न य णं पिच्छह पत्तं संमूढा मोहजालेणं // 82 // श्राउसो ! जंपि इमं सरीरं Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि 5 श्रीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] [41 इ8 पियं कंतं मणुगणं मणाम मणाभिरामं थेज वेसासियं संमयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं रयणकरंडयोविव सुसंगोवियं चेलापेडाएविव सुसंपरिवुडं तिलपेडाविव सुसंगोवियं मा णं उगह मा णं सीयं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइयपित्तिय सिंभिय-संनिवाइया विविहा रोगायंका फुसंतुत्ति कटु, एवंपि याई अधुवं अनिययं असासयं चोवचइयं विप्पणासधम्मं पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं, एयस्सवि याई पाउसो ! अणुपुब्वेणं अट्ठारस य पिटुकरंडगसंधीयो बारस पांसुलिकरंडया छप्पंसुलिए कडाहे बिहत्थिया कुच्छी चउरंगुलिया गीवा चउपलिया जिब्भा दुपलियाणि अच्छीणि चउक्वालं सिरं बत्तीसं दंता सत्तंगुलिया जीहा अद्भुटुपलियं हिययं पणवीस पलाई कालिज्जं 1 / दो अंता पंचवामा पराणत्ता, तंजहा-थूलते यतणुते य, तत्थ णं जे से थूलते तेणं उच्चारे परिणमइ, तत्थ णं जे से तणुयंते तेणं पासवणे परिणमइ, दो पासा पराणत्ता, तंजहा-वामे पासे दाहिणे पासे य, तत्थ णं जे से वामे पासे से सुहपरिणामे, तत्थ णं जे से दाहिणे पासे से दुहपरिणामे 2 / अाउसो! इममि सरीरए सढि संधिसयं सत्तुत्तरं मम्मसयं तिनि अहिदामसयाई नव राहारुयसयाई सत्त सिरासयाई पंच पेसीसयाई नव धमणीउ नवनउइं च रोमकूवसयसहस्साई विणा केसमंसुणा, सह केसमंसुणा अछुट्टाउ रोमकूवकोडीयो 3 / अाउसो! इममि सरीरए सहि सिरासयं नाभिप्पभवाणं उड्ढगामिणीणं सिरमुवागयाणं जाउ रसहरणीयोत्ति वुच्चंति, जाणंसि निरुवघातेणं चक्खुसोयघाणजीहाबलं च भवइ, जाणंसि उवघाएणं चक्खुसोयघाणजीहावलं उवहम्मइ, अाउसो / इमंमि सरीरए सट्ठ सिरासयं नाभिप्पभवाणं होगामिणीणं पायतलमुवगयाणं जाणंसि निवघाएणं जंघावलं हवइ, जाणं चेव उवघाएणं सीसवेयणा श्रद्धसीसवेयणा मत्थयसूले अच्छीणि अंधिज्जति 4 / पाउसो ! इमंमि सरीरए सर्टि सिरासयं नाभिप्प Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42] भीमदागमसुधासिन्धुः // अष्टमो विभागः भवाणं तिरियगामिणीणं हत्थतलमुवगयाणं जाणंसि निस्वघाएणं बाहुबलं हवइ, ताणं चेव से उवघाएणं पासवेयणा पोट्टवेयणा पुट्टिवेयणा कुच्छिवेयणा कुच्छिसूले भवइ 5! पाउसो ! इमस्स जंतुस्स सर्हि सिरासयं नाभिप्पभवाणं अहोगामिणीणं गुदपविट्ठाणं जाणंसि निरुवघाएणं मुत्तपुरीसवाउकम्मं पवत्तइ, ताणं चेव उवघाएणं मुत्तपुरीसवाउनिरोहेणं अरिसायो खुम्भंति पंडुरोगो भवइ 6 / बाउसो ! इमस्स जंतुस्स पणवीसं सिराधो सिंभधारिणीश्रो, पणवीसं सिरायो पित्तधारणीयो दस सिराउ सुक्कधारिणीयो, सत्त सिरासयाई पुरिसस्स तीसूणाई इत्थीयाए वीसूणाई पंडगस्स 7 बाउसो ! इमस्स जंतुस्स रुहिरस्स पाढ्यं वसाए श्रद्धाढ्यं मत्थुलुगस्स पत्थो मुत्तस्स बाढयं पुरीसस्स पत्थो पित्तस्स कुलवो सिंभस्स कुलवो सुक्कस्स अद्धकुलवो, जं जाहे दुटुं भवइ तं ताहे अइप्पमाणं भवड, पंचकोट्टे पुरिसे छक्कोट्ठा इत्थिया, नवसोए पुरिसे इक्कारससोया इत्थिया, पंच पेसीसयाई पुरिसस्स तीसूणाई इत्थियाए वीसूणाई पंडगस्स 8 ||सू० 16 // अभंतरंसि कुणिमं जो (जइ) परियत्तेउ बाहिरं कुजा / तं असुई दट्टणं सयावि जणणी दुगुं. छिजा // 83 // माणुस्सयं सरीरं पूईयं मंतसुकहड्डेणं / परिसंठवियं सोहइ, अच्छायणगंधमल्लेणं // 84 // इमं चेव य सरीरं सीसघडी-मेयमज-मंसट्ठिय मत्थुलुगसोणिय-बालुंडयचम्मकोस-नासियसिंघाणयधीमलालयं श्रमणुगणगं सीसघडीभंजियं गलंतनयण-कराणोढगंडतालुयं अवालुयाखिल्लं चिकणं चिलिचिलियं दंतमलमइलं वीभत्थदरिसणिज्ज अंसुलग बाहुलगअंगुलीयंगुट्ठग-नहसंधिसंगय-संधियमिणं बहुरसियागारं नालखंधच्छिराश्रणेगराहारु बहुधमणिसंधिवद्धं पागडउदरकवालं कवखनिक्खुडं करखगकलिग्रं दुरंतं अद्विधमणिसंताणसतयं सवश्रो समंता परिसवंतं च रोमकूवेहि सयं असुई सभावो परमदुग्गंधि कालिजय-अंतपित्तजरहियय-फेफ(फिफ्फि) सपिलिहोदर-गुज्झकुणिम-नवछिइथिविथिविथिविंतहिययं दुरहिपित्त-सिंभ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानिः / श्रीदुलनैचारिफप्रकीर्णकम् / [43 मुत्तोसहायतणं सव्वश्रो दुरंतं गुज्झोरुजाणु-जंघापाय-संघायसंधियं श्रसुइ कुणिमगंधि, एवं चिंतिजमाणं बीभत्थदरिसणिज्ज अधुवं अनिययं असासयं सडणपडणविद्धंसणधम्मं पच्छा व पुरा व अवस्सवइयव्वं निच्छयत्रो सुट्ठजाण एवं श्राइनिहणं, एरिसं सव्वमणुयाण देह, एस परमत्थयो सभावो // सू० 17 // सुक्कम्मि सोणियम्मि य संभूत्रो जणणिकुच्छिमझमि ! तं चेव अमिज्झरसं नवमासे घुटिउं संतो // 5 // जोणीमुहनिप्फिडियो थणगच्छीरेण वडियो जायो / पगईअमिज्झमइयो कह देहो धोइउं सको ? // 86 // हा ! असुइसमुप्पन्ना(नया) निग्गया य जेण चेव दारेणं / सत्ता(तया)मोहपसत्ता(तया) रमंति तत्थेव असुइदारम्मि // 87 // किह ताव घरकुडीरी कइसहस्सेहिं अपरितंतेहिं / वनिजइ असुइबिलं जघणंति सकजमूढेहिं ? // 88 // रागेण न जाणंति य वराया कलमलस्स निद्धमणं / ताणं परिणदंती फुल्लं नीलुप्पलवणं व // 86 // कित्तिमित्तं वराणे ? अमिझमइयम्मि वच्चसंघाए। रागो हु न कायबो विरागमूले सरीरम्मि // 10 // किमिकुलसयसंकिराणे असुइमचुक्खे असासयमसारे / सेयमलपुवडंमी निव्वेयं वच्चह सरीरे // 11 // दंतमलकराणगृहग-सिंघाणमले य लालमलबहुले / एयारिसे बीभत्थे दुगुणिज्जंमि को रागो ? // 12 // को सडणपडणविकिरिण-विद्धंसण-चयणमरणधम्मम्मि / देहम्मि अहीलासो ? कुहियकढिणकट्ठभूयम्मि // 13 // कागसुणगाण भक्खे किमिकुलभत्ते य वाहिभत्ते य / देहम्मि मच्चु(मच्छ)भत्ते सुसाणभत्तम्मि को रागो ? // 14 // असुईअमिझपुन्नं कुणिमकलेवरकुडि परिसवंति / श्रागंतुय संठवियं नवच्छिदमसासयं जाण (जाणे) // 15 // पिच्छसि मुहं सतिलयं सविसेसं रायएण अहरेणं / सकडक्खं सवियारं तरलच्छि जोवणत्थीए // 16 // पिच्छसि बाहिरमट्ठन पिच्छसी उज्झरं कलिमलस्स / मोहेण नचयंतो सीसघडीकंजियं पियसि॥१७॥ सीसघडीनिग्गालं जं निळूहसि दुगु. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4.] . [ श्रीमवागमनुभासिन्धुः / अष्टमी विभागः छसी जं च। तं चेव रागरत्तो मूढो अइमुच्छियो पियसि // 18 // इयसीसकवालं पूइयनासं च पूइदेहं च। पूइअछिड्डविछिडं पूइअचम्मेण य पिणद्धं // 1 // अंजणगुणसुविसुद्धं गहाणुब्बट्टणगुणेहिं सुकुमालं। पुप्फुम्मीसियकेसं जणेइ बालस्स तं रागं // 10 // जं सीसपूरउत्तित्र पुष्पाइं भणंति मंदविन्नाणा / पुप्फाई चित्र ताइं सीसस्स पूरयं मुणह // 101 // मेदो वसा य रसिया खेले सिंघाणए य छुमसु एवं (छुभए अ)। यह सीसपूरो मे नियगसरीरम्मि साहीणो // 102 // सा किर दुप्पडिपूरा वचकुडी दुप्पया नवच्छिद्दा / उकडगंधविलित्ता बालजणो यइमुच्छियं गिद्धो // 103 // जं पेम्मरागरत्तो अवयासेऊण गूढ(थ)मुत्तोलिं / दंतमलचिकणंगं सोमघडी. कंजियं पियसि // 104 // दंतमुसलेसु गहणं गयाण मंसे य ससयमीयाणं / वालेसु य चमरीणं चम्मनहे दीवियाणं च // 105 // पूइयकाए य इहं चवणमुहे निचकालवीसत्थो / श्राइवखसु सम्भावं किम्हसि गिद्धो तुम मूढ ! // 106 // दंतावि अकजकरा वालावि विवढमाणबीभच्छा / चम्मपि य बीभच्छ भण किमसि तं गयो रागं ? // 107 // सिंभे पित्ते मुत्ते गृहाम्म वसाइ दंतकुंडीतुं / भणसु. किमत्थं तुझं असुइम्मिपि वडियो रागो ? // 108 // जंघट्ठियासु ऊरू पइट्ठिया तट्ठिया कडीपिट्टी / कडियट्टिवेढियाई अट्ठारस पिट्टिअट्ठीणि // 10 // दो अच्छिट्ठियाई सोलस गीवट्ठिया मुणेयव्वा / पिट्ठीपइट्ठियायो बारस किल पंसुली हुँति // 110 // अट्ठियकढिणे सिरहारुबंधणे मंसचम्मलेवम्मि। विट्ठाकोट्ठागारे को वच्चघरोवमे रागो ? // 111 // जह नाम वच्चकूवो निच्चं भिणिभिणिभिणंत कायकली। किमिएहिं सुलसुलायइ सोएहि य पूइयं वहइ // 112 // उद्धियनयणं खगमुह-विकड्डियं विप्पइन्नबाहुलयं / अंतविकद्वियमालं सीसघडीपागडियघोरं // 113 // भिणिभिणिभिणंतमह विसप्पियं सुलसुलंतमंसोडं। मिसिमिसिमिसंतकिमियं थिविथिविथिवंत-बीभत्थं // 11 // Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 5 भीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] [45 पागडियपासुलीयं विगरालं सुकसंधिसंघायं / पडियं निव्वेयणयं सरीरमेयारिसं जाण // 115 // वच्चायो असुइतरे नवहिं सोएहिं परिगलंतेहिं / श्रामगमल्लगरूवे निव्वेयं वचह सरीरे // 116 // दो हत्था दो पाया सीसं उच्चंपियं कबंधम्मि / कलिमलकोट्ठागारं परिवहसि दुयादुयं वच्चं // 117 // तं च किर स्ववंतं वच्चंतं रायमग्गमोइन्नं / परगंधेहिं सुगंधय मन्नतो अप्पणा गंधं // 118 // पाडलचंपयमल्लिय-अगुरुयचंदण-तुरुकवामीसं / गं, समोयरंतं मन्नतो अप्पणो गंधं // 111 // मुहवाससुरहिगंधं वातसुहं अगुरुगंधियं अंगं / केसा गहाणसुगंधा कयरो ते अप्पणो गंधो ? // 120 // अच्छिमलो कन्नमलो खेलो सिंघाणो श्र यो श्र। असुई मुत्तपुरीसो एलो ते अप्पयो गंधो // 121 // जागोवि अ इमायो इत्थयात्रो अणेगेहिं कइवरसहस्सेहिं विविहपासपडिबद्धेहिं कामरागमोहेहिं वनियात्रो तारोऽवि एरिसायो, तंजहा-पगइविसमायो (पियरुसणाश्रो कतिपयइ-चडुप्पस्नातो श्रवकहमिय-भासियविलासवीसंभभूयायो अविणयवातुलीउ मोहमहावत्तिणीयो विसमायो) पियवयणवल्लरीयो कइयवपेमगिरितडीयो अवराहसहस्सघरिणीयो 4, पभवो सोगस्स विणासो बलस्स सूणा पुरिसाणं नासो लजाए संकरो अविणयस्स निलयो निगडीण 10 खाणी वइरस्स सरीरं सोगस्स भेयो मजायाणं यासयो रागस्स निलो दुचरियाणं मा(म)ईए सम्मोहो खलणा नाणस्स चलणं सीलस्स विग्यो धम्मस्स अरी साहूण 20 दूमणं पायारपत्ताणं श्रारामो कम्मरयस्स फलिहो मुक्खमग्गस्स भवणं दरिदस्स 24, अवि घाई तायो ग्रामीविसो विव कुवियाथो मत्तगयो विव मयणपरवसायो वग्घी विव दुहिश्रयायो तणच्छन्नकूबो विव अप्पगासहिश्रयायो मायाकारो विव उवयारसयाबंधणपयोत्तीयो आयरिसबिंबंपिव दुग्गिज्मसम्भावायो 30 फुफया विव अंतोदहनसीलायो नग्गयमग्गो विव अणवट्ठियचित्तायो अंतोदुट्ठवणो विव कुहियहिययायो कराहसप्पो विव अवि Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीमदागमसुधासिन्धुः अष्टमो विमागः स्ससणिजाश्रो संथारो विव छन्नमायाश्रो संज्झन्भरागो विव मुहुत्तरागायो समुद्दवीचीश्रो विव चलस्सभावायो मच्छो विव दुपरियत्तणसीलायो वानरो विव चलचित्तायो मच्चू विव निविसेसायो 40 कालो विव निरणुकंपात्रो वरुणो विव पासहत्थायो सलिलमिव निन्नगामिणीयो किवणो विव उत्ताणहत्थाश्रो नरो विव उत्तासणिजायो खरो इव दुस्सीलायो दुट्ठरसो विव दुद्दमायो बालो इव मुहुत्तहिययायो अंधकारमिव दुप्पवेसायो विसवल्ली विव अणल्लियणिज्जायो 50 दुट्ठगाहा इव वावी अणवगाहायो गणभट्ठो विव इस्सरो अप्पसंसणिजायो किंपागफलमिव मुहमहुरायो रित्तमुट्ठी विव बाललोभणिजायो मंसपेसीगहणमिव सोवद्दवायो जलियचुडली विव अमुच्चमाण्डहणसीलायो अरिट्ठमिव दुल्लंवणिजायो कूडकरिसावणो विव . कालविसंवायणसीलायो चंडसीलो विव दुक्खरक्खियायो अइविसायो 60 दुगुछियायो दुरुवचरायो अगंभीरायो अविस्ससणिजायो अणवत्थियायो दुक्खरक्खियायो दुक्खपालियायो अरइकरायो ककसानो दढवेरायो 70 रूवसोहग्गमउम्मत्तानो भुयगगइकुडिलहिययात्रो कंतारगइट्टाणभूयायो कुलसयणमित्तभेयणकारियायो परदोसपगासियायो कयग्यायो बलसोहियायो एगंतहरणकोलायो चंचलायो जाइयभंडोवगारोविव (जचभंडोवरागो इव) मुहरागविरागायो 80 अवि याइं तायो (अणं)तरं भंगसयं अरज्जुश्रो पासो अवारुया अडवी अणालस्सनिलयो अणइवखा वेयरणी अनामियो वाही अवियोगो विप्पलावो अरू उवसग्गो रइवंतो चित्तविन्भमो सव्वंगयो दाहो 10 अणभप्पसूया(अणब्भा) वजासणी असलिलप्पवाहो समु. हरयो 13 // श्रवि याई तासिं इत्थियाणं अणेगाणि नामनिरुत्ताणि पुरिसे कामरागप्पडिबद्धे नाणाविहेहिं उवायसयसहस्सेहिं वहबंधणमाणयंति पुरि. .साणं नो अन्नो एरिसो अरी अथिति नारीयो, तंजहा-नारीसमान नराणं अरीयो नारीयो, नाणाविहेहिं कम्मेहिं सिप्पाइएहिं पुरिसे मोहंतित्ति महि. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 7 प्रकीर्णकानि // 5 श्रीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] लायो, पुरिसे मत्ते करंतित्ति पमयायो, महंतं कलिं जणयंतित्ति महिलियायो, पुरिसे हावभावमाइएहिं रमंतित्ति रामायो, पुरिसे अंगाणुराए करितित्ति अंगणाश्रो, नाणाविहेसु जुद्धभंडणसंगामाडवीसु मुहारणगिराहणसीउराहदुक्ख-किलेसमाइएसु पुरिसे लालंतित्ति ललणाओ, पुरिसे जोगनिश्रोएहिं वसे ठावितित्ति जोसियायो, पुरिसे नाणविहेहिं भावेहिं वरिणतित्ति वणिश्रायो, काई पमत्तभावं काई पणय सविन्भमं काई सासि(मि)व्व ववहरंति काई सत्तुब्ब रोरो इव काई पय(ण)एसु पणमंति काई उवणएसु उवणमंति काई कोउयनम्मंतिकाउं सुकडवखनिरिविखएहिं सविलासमहुरेहि उवहसिएहिं उवगूहिएहिं उवसद्देहिं गुज्झ / (रु)गदरिसणेहिं भूमिलिहणविलिहणेहिं च पारुहणनट्टणेहि अ बालथउवगृहणेहिं व अंगुलीफोडणथणपीलण-कडितडजायणाहिं तज्जणाहिं च, अवि याई तायो पासो विव सिउंजे पंकुव्व खुप्पिलं जे मच्छुब्ब मारेउं जे अगणिव्व डहिउं जे असिव्व छिजिउं जे ॥सू० १८॥असिमसिसारिच्छीणं कतारकवाडचारयसमाणं / घोरनिउरंबकंदरचलंत-बीभच्छभावाणं // 22 // दोससयगागरीणं अजससय-विसप्पमाण हिययाणं / कइयवपन्नत्तीणं ताणं अन्नायसीलाणं // 23 // अन्नं रयंति अन्नं रमंति अन्नस्स दिति उल्लावं / अन्नो कडयंतरियो अन्नो पडयंतरे ठवियो॥२४॥ गंगाए बालुयाए सायरे जलं हिमवयो य परिमाणं / उग्गस्स तवस्स गई गम्भुप्पत्तिं च विल(वाणि)याए // 25 // सीहे कुडुबयारस्स पुट्टलं कुक्कुहाइयं श्रस्से / जाणते बुद्धिमंता महिलाहिययं न याणंति // 26 // एरिसगुणजुत्ताणं ताणं कइयवसंठियमणाणं / न हु मे वीससियव्वं महिलाणं जीवलोगम्मि // 27 // निद्धन्नयं च खलयं पुप्फेहिं विवजियं च धारामं / निद् द्धियं च घेणु लोएवि अतिल्लियं पिंडं // 28 // जेणंतरेण निमिसंति लोयणा तक्खणं च विगसंति / तेणंतरेण हिययं वियार(चित्त)सहसाउलं होइ // 26 // जड्डाणं वुड्डाणं निविण्णाणं च निविसेसाणं / संसार. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // अष्टमो विमाना सूयराणं कहियपि निरत्थयं होइ // 30 // किं पुत्तेहिं पियाहि व प्रत्येण विढप्पिएणं (वि पिंडिएणं ) बहुएणं / जो मरणदेसकाले न होइ थालं. वणं किंचि // 31 // पुत्ता चयंति मित्ता चयंति भजावि णं मयं चयइ / तं मरणदेसकाले न चयइ सुबिइजो ( सुविअजियो) धम्मो // 32 // धम्मो ताणं धम्मो सरणं धम्मो गई पइट्ठा य / धम्मेण सुचरिएण य गम्मइ अयरामरं ठाणं // 33 // पीइकरो वराणकरो भासकरो जसकरो रइकरो य। अभयकरनिव्वुइकरो (य अभयकरो / निव्वुडकरो य सययं) पारत्तबिइजो धम्मो // 34 // अमरवरेसु अणोवमरुवं भोगोवभोगरिद्धी य / विनाणनाणमेव य ल भइ सुकरण धम्मेणं // 35 // देविंदचकवट्टि. त्तणाई रजाइं इच्छिया भोगा / एयाई धम्मलाभा फलाई जं वावि निवाणं // 36 // श्राहारो उस्सासो संधिछिरायो य रोमकूवाई। पित्तं रुहिरं सुक्कं गणियं गणियप्पहाणेहिं // 37 // एवं सोउं सरीरस्स वासाणं गणिय पागडमहत्थं / मुक्खपउमस्स ईहह सम्मत्त तहस्सपत्तस्स // 38 // एयं सगडसरीरं जाइजरामरणवेयणाबहुलं / तह घत्तह काउं जे जह मुबह सबदुक्खाणं // 31 // // तन्दुलवेयालीयपइराणयं सम्मत्तं // // इति श्रीतन्दुलवैचारिकप्रकीर्णकम् // 5 // // 6 // अथ श्रीसंस्तारक-प्रकीर्णकम् // काऊण नमुक्कारं जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्त / संथारंमि निबद्धं गुणपरिवाडि निसामेह // 1 // एस किराराहणया एस किर मणोरहो सुविहिाणं / एस किर पच्छिमंते पडागहरणं सुविहिपाणं // 2 // भूईगहणं जह नकयाण अवमाणयं अवज्झा(वऽझा)णस्स / मल्लाणं च पडागा तह संथारो सुविहियाणं // 3 // पुरिसवरपुंडरीश्रो अरिहा इव सव्वपुरिससीहाणं / महिलाण भगवईयो जिणजणणीयो जयंमि जहा // 4 // वेरुलिउव्व मणीणं गोसीस चंदणं व गंधाणं / जह व रयणेसु Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि- 6 श्रीसंस्तारकप्रकीर्णकम् ]. [ 46 वहरं तह संथारो सुविहिाणं // 5 // वंसाणं जिणवंसो सबकुलाणं च सावयकुलाई / सिद्धिगई य गईणं मुत्तिसुहं सव्वसुक्खाणं // 6 // धम्माणं च अहिंसा जणवयवयणाण साहुवयणाई। जिणवयणं च सुईणं सुद्धीणं दंसणं च जहा // 7 // कल्लाणं अब्भुदयो देवाणं दुलहं तिहुश्रणंमि / बत्तीसं देविंदा जं तं झायंति एगमणा // 8 // लद्धं तु तए एवं पंडिअमरणं तु जिणवरक्खायं / हंतूण कम्ममल्लं सिद्धिपडागा तुमेलद्धा // 1 // . झाणाण परमसुक्कं नाणाणं केवलं जहा नाणं / परिनिव्याणं च जहा कमेण भणियं जिणवरेहिं // 10 // सव्वुत्तमलाभाणं सामन्नं चेव लामं मन्नति / परमुत्तम तित्थयरो परमगई परमसिद्धत्ति // 11 // मूलं तह संजमो वा परलोगरयाण किलिट्ठकम्माणं / सम्वुत्तमं पहाणं सामन्नं चेव मन्नंति // 12 // लेसाण सुकलेसा नियमाणं बंभचेरवासो श्र। गुत्तिसमिई गुणाणं मूलं तह संजमोवायो // 13 // सव्वुत्तमतित्थाणं तित्थयरपयासिगं जहा तित्थं / अभिसेउव्व सुराणं तह संथारो सुविहियाणं // 14 // सियकमल-कलससत्थिय-नंदावत्तवरमल्ल-दामाणं / तेसिंपि मंगलाणं संथारो मंगलं अहिग्रं(पढम) // 15 // तवअग्गिनियमसूरा जिणवरनाणा विसुद्धपत्थयणा / जे निव्वहंति पुरिसा संथारगइंदमारूढा // 16 // परमट्ठो परमउलं परमाययणंति परमकप्पुत्ति / परमुत्तमतित्थयरो परमगई परमसिद्धित्ति / / 17 / ता एयं तुमि लद्धं जिणवयणामयविभूसिय देहं / धम्मरयणंसिया(०णस्सिया ०णामया) ते पडिया भवणंमि वसुहारा // 18 // पत्ता उत्तमपुरिसा कलाणपरंपरा परमदिव्वा / पावयण साहु धीरं(धीरी)कयं च ते अज सप्पुरिसा ! // 11 // सम्मत्तनाणदंसण-वररयणा नाणतेप्रसंजुत्ता / चारित्तसुद्धसीला तिरयणमाला तुमे लद्धा // 20 // सुविहिगुणवित्थारं संथारं जे लहंति सप्पुरिसा। तेसि जियलोगतारं रयणाहरणं कयं होइ // 21 // तं तित्थं तुमि लद्धं Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः जं पवरं सबजीवलोगंमि / राहाया जत्थ मुणिवरा निव्वाणमणुत्तरं पत्ता // 22 // श्रासवसंवरनिजर तिनिवि अत्था समाहिश्रा जत्थ / तं तित्थंति भणंती सीलब्बयबद्धसोवाणा // 23 // भंजिय परीस. हचा उत्तमसंजमबलेण संजुत्ता। भुजंति कम्मरहिया निव्वाणमणुत्तरं रज्जं // 24 // तिहुश्रणरजसमाहिं पत्तोऽसि तुमं हि (पि) समयकप्पंमि। रज्जाभिसेयमउलं विउलफलं लोइ विहरंति॥२५॥ अभिनंदइ मे हिअयं तुम्भे मुक्खस्स साहणोगायो / जं लद्धो संथारो सुविहिश्र ! परमत्थनित्यारो // 26 // देवावि देवलोए भुजंता बहुविहाई भोगाई / संथारं चिंतंता श्रासणसयणाई मुचंति॥ 27 ॥चंदुब्व पिच्छणिजो सूरो इव तेअसा विदिप्पंतो। धणवंतो गुणवंतो हिमवंतमहंतविक्खायो // 28 // गुत्तीसमिइउवेश्रो संजमतवनिअमजोगजुत्तमणो। समणो समाहिश्रमणो दंसणनाणे अणन्नमणो // 26 // मेरुब पव्वयाणं सयंभुरमणुब्ब चेव उदहीणं / चंदो इव ताराणं तह संथारो सुविहिबाणं // 30 // भण केरिसस्स भणिश्रो संथारो केरिसे व अवगासे / उक्खंपिगस्स ( भिकस्स) करणं एवं ता इच्छिमो नाउं // 31 // हायति जस्स जोगा जरा य विविहा य हुँति पायंका / पारुहइ श्र संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो // 32 // जो गारवेण मत्तो निच्छइ पालोणं गुरुसगासे / पारुहइ अ संथारं अविसुद्धो तस्स संथारो // 33 // जो पुण पत्तभूत्रो करेइ पालोणं गुरुसगासे / बारहइ 10 सुवि० // 34 // जो पुण दंसणमइलो सिढिलचरित्तो करेइ सामन्नं / पारु० वि० // 35 // जो पुण दसणसुद्धो श्रायचरित्तो करेइ सामन्नं / श्रारु० सुवि० // 36 // जो रागदोसरहियो तिगुत्तिगुत्तो तिसल्लमयरहियो / पारुहइ. सुवि० // 37 // तिहिं गारवेहिं रहियो तिदंडपडिमोयगो परिअकित्ती / पारुहइ. सुवि० // 38 // चउविहकसायमहणो चउहिं विकहाहिं विरहियो निच्चं / पारुहइ. सुवि० // 31 // पंचमहव्वयकलियो पंचसु समिईसु सुट्ठ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 6 श्रीसंस्तारक-प्रकीर्णकम् ] थाउत्तो / पारुहइ० सुवि० // 40 // छक्काया पडिविरयो सत्तभयट्ठाणविरः हिश्रमईयो। पारुहइ० सुवि० // 41 // अट्ठमयट्ठाणजढो कम्मट्टविहस्स खवणहेउत्ति / थारुहइ० सुवि० // 42 // नवबंभचेरगुत्तो उज्जुत्तो दसविहे समणधम्मे / थारुहइ० सुवि० // 43 // जुत्तस्स उत्तमट्ठ मलिअकसायस्स निम्वियारस्स / भण केरिसो उ लाभो संथारगयस्स समणस्स ?॥४४॥जुत्तस्स उत्तम? मलिअकसायस्स निव्वधारस्स / भण केरिसं च सुक्खं संथारगयस्स खमगस्स ? // 45 // पढमिल्लुगंमि दिवसे संथारगयस्स जो हवइ लाभो / को दाणि तस्स सको अग्धं काउं अणग्यस्स // ४६॥जो संखिजभवट्टिइं सव्वंपि खवेइ सो तहिं कम्मं / अणुसमयं साहू वुत्तो तहिं समए // 47 // तणसंथारनिसन्नोऽवि मुणिवरो भट्टरागमयमोहो / जं पावइ मुत्तिसुहं कत्तो तं चक्कवट्ठीवि ? // 48 // तप्पु(नियपु०)रिसनाडयंमिवि न सा(जा)रई तह सहस्स (त्थ)वित्थारे / जिणवयणमिवि सा ते हेउसहस्सोवगूमि // 41 // जं रागदोसमइयं सुवखं जं होइ विसयमईयं च / अणुहवइ चकवट्टी न होइ तं वीपरागस्स // 50 // मा होउ वासगणयान तत्थ वासाणि परिगणिज्जति। बहवे गच्छं वुत्था जम्मणमरणं च ते खुत्ता // 51 // पच्छावि ते पयाया खिप्पं काहिति अप्पणो पत्थं / जे पच्छिमंमि काले मरंति संथारमारूढा // 52 // नवि कारणं तणमयो संथारो नवि अ फासुथा भूमी। अप्पा खलु संथारो हवइ विसुद्धे चरित्तंमि // 53 // निच्चपि तस्स भावुज्जुस्स जत्थ व जहिं व संथारो / जो होइ ग्रहक्खायो विहारमभुट्ठि(ज्जु)यो लूहो // 54 // वासारत्तमि तवं चित्तविचित्ताइ सुट्ठ काऊणं / हेमंते संथारं बारहइ सव्वश्वत्थासु // 55 // अासीय पोयणपुरे अजा नामेण पुष्फचूलत्ति / तीसे धम्मायरियो पविस्सुयो अनिथाउत्तो // 56 // सो गंगमुत्तरंतो सहसा उस्सारियो अ नावाए / पडिवन्न उत्तिमटुं तेणवि श्राराहियं मरणं // 57 // पंचमहव्वयकलिया पंचसया अजया Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // अष्टमो विभाग: सुपुरिसाणं नयरंमि कुंभकारे कडगंमि निवेसिश्रा तइत्रा // 58 // पंचमया एगणा वायंमि पराजिएण रुटेणं / जंतंमि पावमइणा छुन्ना छन्नेण कम्मेण // 56 // निम्ममनिरहंकारा निश्रयसरीरेवि अप्पडीबद्धा / तेवि तह छुजमाणा पडिवन्ना उत्तमं अट्ठ॥ 60 // दंडुत्ति विस्सुश्रजसो पडिमादसधारो ठियो पडिमं / जउणावके नयरे सरेहिं विद्धो सयंगीयो॥ 61 // जिणवयणनिच्छिमई नियसरीरेऽवि अपडीबद्धो / सोऽवि तह विज्झमाणो पडिवन्नो० // 62 // श्रासी सुकोसलरिसी चाउम्मासस्स पारणादिवसे। श्रोरुहमाणो श्र नगा खइयो मायाइ बग्घीए // 63 // धीधणियबद्धकच्छो पञ्चक्खाणम्मि सुट्ठ उवउत्तो। सोतहवि खन्जमाणो पडिघन्नो० // 64 // उज्जेणीनयरीए अवंतिनामेण विस्सुयो श्रासी। पायोवगमनिवन्नो सुसाणमज्झम्मि एगते // 65 // तिन्नि रयणीइ खइयो भल्लुकी रुट्ठिया विकड्डती / सोवि तह खजमाणो पडिवन्नो०॥६६॥ जल्लमलपंकधारी श्राहारो सीलसंजमगुणाणं। अजीरणो अ गीयो कत्तिय अजो सुरवरं(ण)मि // 67 // रोहीडगंमि नयरे थाहारं फासुग्रं गवसंतो। कोवेण खत्तिएण य भिन्नो सत्तिप्पहारेणं // 68 // एगंतमणावाए विच्छिन्ने थंडिले चड्य देहं / सो वि तह भिन्नदेहो पडिवन्नो० // 61 // पाडलिपुत्तंमि पुरे चंदयगुत्तस्स चेव श्रासीथ। नामेण धम्मसीहो चंदसिरिं सो पयहिऊणं // 70 // कुल्लउरंमि पुरवरे श्रह सो अब्भुट्टियो ठियो धम्मे / कासी गिद्धपट्ट पञ्चक्खाणं विगयसोगो // 71 // यह सोवि चत्ततेहो तिरिसहस्सेहिं खजमाणो श्र। सोऽवि तह० // 72 // पाडलिपुत्तंमि पुरे चाणको नाम विस्सुयो श्रासी / सवारंभनिश्रत्तो इंगिणिमरणं अह निवन्नो // 73 // अणुलोमपूषणाए श्रह से सत्तू जो डहइ देहं / सो तहवि डज्ममाणो पडिवन्नो० // 74 // गुट्ठयपाअोवगो सुबंधुणा गोमये पलिवियंमि / डझतो चाणको पडि० // 75 // काइंदीनयरीए राया नामेण अमयघोसुत्ति / तो सो सुअस्स रज्जं दाऊणं इह चरे धम्मं // 76 // Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिच्छद्दिा पानामेण उसहयालो। प्रकीर्णकानि // 6 श्रीसंस्तारकप्रकीर्णकम् ] [5 श्राहिंडिऊण वसुहं सुत्तत्थविसारो सुअरहस्सो / काईदि चेव पुरि श्रह पत्तो विगयसोगो सो // 77 // नामेण चंडवेगो श्रह से पडिछिंदइ तयं देहं / सो तहवि छिज्जमाणो पडिवन्नो० // 78 // कोसंबीनयरीए ललिबघडा नाम विस्सुत्रा श्रासि / पाश्रोवगमनिवन्ना बत्तीसं ते सुअरहस्सा // 7 // जलमज्झे श्रोगाढा नईइ पूरेण निम्ममसरीरा। तहवि हु जलदहमज्झे पडिवन्ना० // 80 // श्रासी कुलाण(णाल)नयरे राया नामेण वेसमणदासो / तस्स अमचो रिट्ठो मिच्छट्टिी पडिनिविट्ठो // 81 // तत्थ य मुणिवरखसहो गणिपिडगधरो तहासि पारिश्रो / नामेण उसहसेणो सुश्रसायरपारगो धीरो॥ 82 // तस्सासी अ गणहरो नाणासत्थत्थगहिश्रपेयालो / नामेण सीहसेणो वायंमि पराजियो रुट्ठो // 83 // श्रह सो निराणुकंपो अग्गि दाऊण सुविहिअपसंते / सो तहवि डज्ममाणो पडि०॥ 84 // कुरुदत्तोऽवि कुमारो सिंबलिफालिव्व अग्गिणा दवो / सो तहवि डझ० // 5 // श्रासी चिलाइपुत्तो मुइंगुलियाहिं चालणिव करो। सो तहवि खजमाणो पडि० // 86 // यासी गयसुकुमालो अल्लयचम्मं व कीलयसएहिं / धरणीयले उबिद्धो तेणवि बाराहियं मरणं // 87 // मंखलिणावि य अरहो सीसा तेअस्स उवगया दड्डा / ते तहवि डज्झमाणा पडिवन्ना० // 88 // परिजाणई तिगुत्तो जावजीवाइ सव्वमाहारं / संघसमवायमझे सागारं गुरूनियोगेणं // 8 // अहवा समाहिहेडं करेइ सो पाणगस्स श्राहारं / तो पाणगंपि पच्छा वोसिरइ मुणि जहाकालं // 10 // खामेति सव्वसंघं संवेगं सेसगाण कुणमाणो / मणवइजोगेहिं पुरा कयकारि. अ अणुमए वावि // 11 // सव्वे अवराहपए एस खमावेमि अज निस्सलो। अम्मापिऊसरिसया सव्वेवि खमंतु मह जीवा // 12 // धीरपुरिसपराणत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं / धन्ना सिलायलगया साहंती उत्तमं अट्ठ॥१३॥ नारयतिरिअगईए मणुस्सदेवत्तणे वसंतेणं / जं पत्तं सुहदुक्खं तं अणुचिते Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमो विभागः अणन्नमणो // 14 // नरएसु वेश्रणाश्रो श्रणोवमाो असायबहुलायो / कायनिमित्तं पत्तो अणंतखुत्तो बहुविहारो // 15 // देवत्ते मणुत्ते पराभियोगत्तणं उवगएणं दुक्खपरिकिलेसकरी अणंतखुत्तो समणभूयो॥ 16 // तिरिअगई अणुपत्तो भीममहावेत्रणा अणोपरया(यारा) / जम्मणमरणऽरहट्टे अणंतखुत्तो परिभमियो // 17 // सुविहिश्र ! अईयकाले अणंतकालं तु श्रागयगएणं / जम्मणमरणमणंतं अणंतखुत्तो समणुभूयो // 18 // नत्थि भयं मरणसमं जम्मणसरिसं न विजए दुक्खं / जम्मणमरणायकं विंद ममत्तं सरीरायो // 16 // अन्नं इमं सरीरं अन्नो जीवत्ति निच्छयमईयो / दुक्खपरिकिलेसकरं छिंद ममत्तं० // 10 // जावंति केइ दुक्खा सारीरा माणसा व संसारे / पत्तो अणंतखुत्तो कायस्स ममत्तदोसेणं // 101 // तम्हा सरीरमाई सभितर बाहिरं निरवसेसं / छिंद ममत्तं सुविहिश्र ! जइ इच्छसि उत्तमं ठाणं // 102 // जगाहारी संघो सव्वो मह खमउ निरखसेसंपि। अहमवि खमामि सुद्धो मुणसंघायस्स संघस्स // 103 // आयरित्र उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य / जे मे केइ कसाया सब्वे तिविहेण खामेमि // 104 // सव्वस्स समणसंघस्स भगवयो अंजलिं करिश्र सीसे / सव्वं खमावइत्ता ग्रहमवि खामेमि सबस्स // 105 // सव्वस्स जीवरासिस्स भावो धम्मनिहियनियचित्तो। सव्वं खमावइत्ता ग्रहयपि खमामि सव्वेसि // 106 // इथ खामियाइयारो अणुत्तरं तवसमाहिमारूढो। पफोडतो विहरइ बहुविहबा(प्रायविवा)हाकरं कम्मं // 107 // जं बद्धमसंखिजाहिं असुभभवसयसहस्सकोडीहिं / एगसमएण विहुणइ संथारं श्रारहंतो य॥ 108 // इह तह विहारिणो से विग्धकरी वेश्रणा समु?ई / तीसे विझवणाए अणुसलुि दिति निजवया // 101 // जइ ताव ते मुणिवरा आरोविनवित्थरा अपरिकम्मा / गिरिपब्भार विलग्गा बहुसावयसंकर्ड भीमं // 11 // धीधणियबद्धकच्छा Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि- 0 भीगच्छाचारप्रकीर्णकम् ] [55 श्रणुत्तरविहारिणो समक्खाया / सावयदाढगयाविहु साहंती उत्तम अट्ठ // 111 // किं पुण अणगारसहायगेहिं धीरेहिं संगयमणेहिं / नहु नित्थरिजइ इमो संथारो उत्तमं अट्ठ॥ 112 // उच्छूढसरीरघरा अन्नो जीवो सरीरमन्नति / धम्मस्स कारणे सुविहिया सरीरंपि छड्डुति // 113 // पोराणिश्र पच्चुप्पनिया उ अहियासिऊण विश्रणायो / कम्मकलंकलवल्ली विहुणइ संथारमारूढो // 114 // जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुअाहिं वासकोडीहिं / तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं // 115 // अट्ठविहकम्ममूलं बहुएहिं भवेहिं संचियं पावं / तं नाणी० // 116 // एवं मरिऊण धीरा संथारंमि उ गुरु पसत्थंमि / तइअभवेण व तेण व सिझिजा खीणकम्मरया // 117 // गुत्तीसमिइगुणड्डो संजमतवनिश्रम-करणकयमउडो / सम्मत्तनाणदंसण-तिरयण-संपाविसमग्यो (महग्घो) // 118 // संघो सइंदयाणं सदेवमणुासरम्मि लोगम्मि / दुल्लहतरो विसुद्धो सुविसुद्धो तो महामउडो॥ 111 // डझतेणवि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभूत्राए / सूरेण व चंडेण व किरणसहस्संपयंडेणं // 120 // लोगविजयं करितेण तेण झाणोवउत्तचित्तेणं / परिसुद्धनाणदंसण-विभूइमंतेण चित्तेणं // 121 // चंदगविज्झ लद्धं केवलसरिसं समाउ परिहीणं / उत्तमलेसाणुगो पडिवनो उत्तमं अट्ठ / / 122 // एवं मए अभिथुया संथारगइंद-खंधमारूढा / सुसमणनरिंदचंदा सुहसंक्रमणं सया दिंतु // 123 // संथारगपइराणयं सम्मनं। // इति श्री संस्तारक प्रकीर्णकम् // 6 // // 7 // अथ श्रीगच्छाचारप्रकीर्णकम् // नमिऊण महावीरं तित्रसिंद-नमंसियं महाभागं / गच्छायारं किंची उद्धरिमो सुश्रसमुदायो॥ 1 // प्रत्येगे गोयमा ! पाणी, जे उम्मग्गपइट्ठिए। गच्छमि संवसित्ताणं, भमइ भवपरंपरं // 2 // जामद्धं जाम दिण पक्खं, Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : अष्टमो विभागः मासं संवच्छरंपि वा / संमग्गपट्टिए गच्छे, संवसमाणस्स गोयमा ! // 3 // लीलालसमाणस्स, निरुच्छाहस्त वीमणं / पक्खाविक्खीइ अन्नेसिं, महाणुभागाण साहूणं // 4 // उज्जमं सव्वथामेसु, घोरंवीरतवाइयं / लज्ज संकं अइकम्म, तस्स विरियं समुच्छले // 5 // वीरिएणं तु जीवस्स, समुच्छलिएणं गोयमा ! / जम्मंतरकए पावे, पाणि मुहुत्तेण निदहे // 6 // तम्हा निउणं निहालेउ, गछं सम्मग्गपट्टियं / वसिज तथ आजम्म, गोयमा ! संजए मुणी // 7 // मेही बालवणं खंभे, दिट्ठी जाणं सुउत्तमं / सूरी जं होइ गछस्स, तम्हा तं तु परिक्खर // 8 // भयवं ! केहि लिंगेहिं, सूरि उम्मगपट्ठिय ? / वियाणज्जा छउमत्थे, मुणी तं मे निसामय // 1 // सच्छंदयारिं दुस्सीलं, श्रारंभेसु पवत्तयं / पीढयाइपडिबद्धं, पाउकायविहिंसगं // 10 // मूलुत्तरगुणभट्ठ, सामायारीविराहधे / अदिनालोयणं निच्चं विगहपरायणं // 11 // छत्तीसगुसमन्नागएण तेणवि अवस्स दायब्वा / परसविखया विसोही सुट्ठवि ववहारकुसलेणं // 12 ॥जह सुकुसलोवि विज्जो अन्नस्स कहेइ अतणो वाहिं / विज्जुपएसं सुचा पच्छा सो कम्ममायरइ // 13 // देसं खित्तं तु जाणित्ता, वत्थं पत्तं उवस्सयं / संगहे साहुवग्गं च, सुत्तत्थं च निहालई // 14 // संगहोवग्गहं विहिणा, न करेइ अ जो गणी / समणं समणिं तु दिक्खित्ता, सामायारिं न गाहए (निगूहए) // 15 // बालाणं जो उ सीसाणं, जीहाए उवलिंपए। न सम्म मग्गं गाहेइ, सो सूरी जाण वेरियो // 16 // जीहाए विलिहंतो न भद्दयो सारणा जहिं नत्थि / डंडेणवि ताडतो स भद्दयो सारणा जत्थ // 17 // सीसोऽवि वेरियो सो उ, जो गुरु नवि बोहए। पमायमइरावत्थं, सामायारीविराहयं // 18 // तुम्हारिसावि मुणिवर ! पमायवसगा हवंति जइ पुरिसा / तो को अन्नो श्रम्हं श्रालंबण हुज संसारे ? // 11 // नाणंमि दंसणम्मि अ चरणमि य-तिसुवि समयसारेसु / चोएइ जो ठवेउं गणमप्पाणं च सो य गणी // 20 // पिंडं. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 7 गच्छाचरप्रकीर्णकम् ] . [ 57 उवहिं च सिज्ज उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं / चारित्तरक्खणट्ठा सोहिंतो होइ सत्ररित्ती // 21 // अप्परिस्सावी सम्मं समपासी चेव होइ कज्जेसु / सो रक्खइ चक्खुपिव सबालवुड्ढाउलं गच्छं // 22 // सीया वेइ विहारं सुहसीलीगुणेहिं जो अबुद्धीयो / सो नवरि लिंगधारी संजमजोए(सारे)ण निस्सारो // 23 // कुलगा मनगररज्जं पयहिश्र जो तेसु कुइ श्र ममत्तं / सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण निस्सारो // 24 // विहिणा जो. उ चोएइ, सुत्तं प्रत्थं च गाहए / सो धराणो सो य पुराणो य, स बंधू मुक्खदायगो // 25 // स एव भव्वसताणं, चक्खुभूए विवाहिए / दंसेइ जो जिणुट्टि, अणुट्ठाणं जहट्टिग्रं // 26 // तित्थयरसमो सूरी सम्मं जो जिणमयं पयासेइ / श्राणं श्रइक्कमंतो सो कापुरिसो न सप्पुरिसो // 27 // भट्ठायारो सूरी भट्टायाराणुवेवखयो सूरी / उम्मग्गठियो सूरी तिनिवि मग्गं पणासंति // 28 // उम्मग्गठिए सम्मग्गनासए जो श्र सेवए सूरी। निश्रमेणं सो गोयम ! अप्पं पाडेइ संसारे // 26 // उम्मग्गठियो इक्कोऽवि नासए भव्वसत्तसंघाए / तं मग्गमणु. सरते जइ कुतारू नरो होइ // 30 // उम्मग्गमग्गसंपट्टियाण सूरीण गोश्रमा गुणं / संसारो य अणंतो होइ य सम्मग्गनासीणं / 31 // सुद्धं सुसाहुमग्गं कहमाको ठवइ तइयपक्खंमि / अप्पाणं इयरो पुण गिहत्थधम्मायो चुक्केति // 32 // जइवि न सबकं काउंसम्मं जिणभासियं अणुट्ठाणं तो सम्म भासिन्जा जह भणियं खीणरागेहिं // 33 // श्रोसन्नोऽवि विहारे कम्मं सोहेइ सुलभबोही थ। चरणकरणं विसुद्धं उवहितो परूवितो // 34 // सम्मग्गमग्गसंपट्ठियाण साहूण कुणइ वच्छल्लं / श्रोसहभेसज्जेहि श्र सयमन्नेणं तु कारेई // 35 // भूए अस्थि भविस्संति केइ तेलुक्नमित्रकमजुअला / जेसिं परहिअकरणेकव(ल)द्धलक्खाण वोलिही (कालो) // 36 // तीबाणागयकाले केई होहिंति गोत्रमा ! सूरी / जेसि नामग्गहणेवि हुज नियमेण Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमागमसुभासिन्धुः / अष्टमी विमागः पच्छित्तं // 37 // जयो-सयरीभवंति अणविक्खयाइ जह भिववाहणा लोए। पडिपुच्छसोहिनोयण तम्हा उगुरू सया भयइ // 38 // जो उप्पमायदोसेणं, श्रालस्सेणं तहेव य / सीसवग्गं न चोएइ, तेण श्राणा विराहिया // 31 // संखेवेण मए सोम्म !, वरिणयं गुरुलक्खणं / गच्छस्स लक्खणं धीर !, संखेवेणं निसामय // 40 // गीयत्थे जे सुसंविग्गे, अणालसी दढव्वए। अक्खलियचरित्ते सययं, रागदोसविवजए // 41 // निट्ठवियअट्ठमयठाणे, सुसिकसाए जिइंदिए / विहरिजा तेण सद्धिं तु, छउमत्थेणवि केवली // 42 // जे अणहिअपरमत्था, गोत्रमा ! संजया भवे / तम्हा ते उ विविजिजा, दोग्गईपंथदायगे // 43 // गीत्थरस उ वयणेणं, विसं हलाहलं पिबे / निम्विकप्पो य भविखज्जा, तक्खणे जं समुद्दवे // 44 // परमत्थयो विसं णो तं, अमयरसायणं खु तं / निविग्धं जं न तं मारे, मोवि श्रमयस्समो // 45 // अगीयत्थस्स वयणेणं, अमयंपि न घुटए। जेण नो तं भवे अमयं, जं अगीयत्थदेसियं // 46 // परमस्थयो न तं अमयं, विसं हालाहलं खुतं / न तेण अजरामरो हुजा, तक्खणा निहणं वए // 47 // अगीयस्थकुसीलेहि, संग तिविहेण वोसिरे / मुक्खमग्गसिमे विग्धं, एहंमी तेणगे जहा // 48 // पजलियं हुयवहं दठ्ठ, निस्संको तत्थ पवेसिउं / अत्ताणं निद्दहिजाहि, नो कुसीलरस अल्लिए // 41 // पजलंति जत्थ धगधगधगस्स गुरुणावि चोइए सीसा। रागदोसेण विश्रणुसएण तं गोत्रम ! न गच्छं // 50 // गच्छो महाणुभावो तत्थ वसंताण निजरा विउला / सारणवारणचोअणमाईहिं न दोसपडिवत्ती // 51 // गुरुणो छंदणुवित्ती सुविणीए जिअपरीसहे धीरे / णवि थद्धे णवि लुद्धे णवि गारविए न विगहसीले // 52 // खते दंते गुत्ते मुत्ते वेरग्गमगमल्लीणे / दसविहसामायारीश्रावस्सगसंजमुज्जुत्ते॥ 53 // खरफरुसककसाएणिट्टदुट्ठाइ निठुरगिराए। निन्भन्छणनिद्धाडणमाईहिं न जे पउस्संति // 54 ॥जे य न अकित्तिजणए Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 7 गच्छाचारप्रकीर्णकम् ] [56 नाजसजणए नऽकजकारी श्र। न पवयणउड्डाहकरे कंठग्गयपाणसेसेवि // 55 // गुरुणा कजमकज्जे खरककसदुट्टनिट्ठरगिराए / भणिए तहत्ति सीसा भणंति तं गोत्रमा ! गच्छं // 56 // दूरुभित्र पत्ताइसु ममत्तए निप्पिहे सरीरेऽवि / जायमजायाहारे बायालीसेसणाकुसले // 57 // तंपि न स्वरसत्थं न य वराणत्थं न चेव दप्पत्थं / संजमभरवहणत्थं अक्खोवंगं व वहणत्थं // 58 // वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए / तह पाणवत्तियाए छ8 पुण धम्मचिंताए // 51 // जत्थ य जिट्टकणिट्ठो जाणिज्जइ जिट्टविणयबहुमायो / दिवसेणवि जो जिट्ठो न हीलिजइ स गोत्रमा गच्छो // 60 // जत्थ य अजाकप्पं पाणचाएवि रो(घो)रदुभिक्खे / न य परि. भुजइ सहसा गोश्रम ! गच्छं तयं भणियं // 61 // जत्थ य अजाहि समं थेरावि न उल्लविंति गयदसणा / न य झायंति थीणं अंगोवंगाइं तं गच्छं // 62 // वज्जेह अप्पमत्ता अजासंसग्गि अग्गिविससरिसी। अजाणुचरो साहू लहइ अकित्तिं खु अचिरेण // 63 // थेरस्स तवस्सियस्स व बहुसुयस्स व पमाणभूअस्स / अजासंसग्गीए जणजपणयं हविजाहि // 64 // किं पुण तरुणो अबहुस्सुयो अण यऽविहु विगिट्ठतवचरणो। अजासंसग्गीए जणजपणयं न पाविजा ? // 65 // जइवि सयं थिरचित्तो तहावि संसग्गिलद्धपसराए / अग्गिसमीवेव घयं विलिज चित्तं खु अजाए // 66 // सव्वत्थ इत्थिवग्गंमि अप्पमत्तो सया अवीसत्थो / निन्थरइ बंभचेरं तब्विवरीयो न नित्थरइ // 67 // सव्वत्थेसु विमुत्तो साहू सव्वत्थ होइ अप्पवसो। सो होइ अणप्पवसो अजाणं अणुचरंतो उ॥ 68 // खेलपडिअमप्पाणं न तरइ जह मच्छिया विमोएउं। अजाणुचरो साहू न तरइ अप्पं विमोएउं // 66 / साहुस्स नत्थि लोए अजासरिसी हु बंधणे उवमा / धम्मेण सह ठवतो न य सरिसो जाण असिलेसो॥ 70 // वायामित्तेणवि जत्थ भट्टचरित्तस्स निग्गहं विहिणा / बहुलद्धिजुस्सावि कीरइ गुरुणा तयं गच्छं Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धु अष्टो विमांगा // 71 // जत्थ यं सन्निहिउक्खउ(ड)याहडमाईण नामगहणेवि / पूईकम्मा भीत्रा पाउत्ता कप्पतिप्पेसु // 72 // मउए निहुअसहावे हासदवविजिए विगहमुक्के / असमंजसमकरिते गोबरभुम? विहरंति // 73 // मुणिणं नाणाभिग्गह दुक्करपच्छित्तमणुचरंताणं / जायइ चित्तचमवकं देविंदाणंपि तं गच्छं // 74 // पुढवि-दग-अगणि-मारुय-वणप्फइ-तसाण विविहंजीवाणं / मरणंतेवि न पीडा कीरइ मणसा तयं गच्छं // 75 // खजूरिपत्तमुजेण, जो पमज्जे उवस्सयं / नो दया तस्स जीवेसु, सम्मं जाणाहि गोयमा!॥७६।। जत्थ य बाहिरपाणिस्त बिंदूमित्तंपि गिम्हमाईसु / तराहासोसिअपाणा मरणेवि मुणी न गिराहंति // 77 // इच्छिजइ जत्थ सया बीअपएणावि फास्यं उदयं / बागमविहिणा निउणं गोयम ! गच्छं तयं भणियं // 78 // जत्थ य सूल विसूइय अन्नयरे वा विचित्तमायके / उप्पन्ने जलणुजालणाइ न करेइ तं गच्छं // 79 // बीअपएणं सारूविगाइसढाइमाइएहिं च / कारिती जयणाए गोयम ! गच्छं तयं भणियं // 80 // पुष्फाणं बीयाणं तयमाईणं व विविहदव्वाणं / संघट्टणपरिश्रावण जत्थ न कुजा तयं गच्छं // 81 // हासं खेड्डा कंदप्पं नाहियवायं न कीरए जत्थ / धावणडेवणलंघणममकारावरणउच्चरणं // 82 // जत्थित्थीकरफरिसं अंतरि कारणेऽवि उप्पन्ने / दिट्ठीविसदित्तग्गी विसं व वजिजए गच्छे // 83 // बालाए वुड्ढाए नत्तुय दुहियाए अहव भइणीए / न य कीरइ तणुफरिसं गोश्रम ! गच्छं तयं भणियं // 84 // जत्थित्थीकरफरिसं लिंगी अरिहावि सयमवि करिजा / तं निस्छययो गोत्रम ! जाणिजा मूलगुणभट्ठ॥ 85 // कीरइ बीअपएणं सुत्तमभणियं न जत्थाविहिणा उ। उत्पन्ने पुण कजे दिक्खाग्रायंकमाईए // 86 // मूलगुणेहि विमुकं बहुगुणकलिपि लद्धिसंपराणं / उत्तमकुलेवि जायं निद्धाडिजइ तयं गच्छं // 87 // जत्थ हिरगणसुवराणे धणधरणे कसतंबफलिहाणं / सपणाण पासणाण य झुसिराणं चेव परिभोगो // 8 // Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि - 7 गच्छाचारप्रकीर्णकम् ] : [61 जत्थ य वारडिवाणं तत(तेकू)डिआणं च तह य परिभोगो। मोत्तुं सुकिलवत्थं का मेरा तत्थ गच्छम्मि ? // 86 // जत्थ हिरगणसुवरणं हत्येण परागय(णगं)पि नो छिप्पे / कारणसमप्पिपि हु निमिसखणद्धपि तं गच्छं // 10 // जत्थ य अजालद्धं पडिगहमाई विविहमुवगरणं / परिभुजइ साहूहिं तं गोत्रम ! केरिसं गच्छं ? // 11 // अइदुलहमेसज्ज बलबुद्धिविवडणंपि पुट्टिकरं / अजालद्धं भुजइ का मेरा तत्थ गच्छंमि ? // 12 // एगो एगिथिए सद्धिं, जत्थ चिट्ठिज गोयमा ! संजईए विसेसेणं, निम्मेरं तं तु भासिमो // 13 // दढचारित्तं मोत्तुं श्राइज्जं मयहरं च गुणरासिं / इको अमावेई तमणायारं न तं गच्छं।१४॥ घणगजियहयकुहिग्रं विज दुग्गिज्म गूढहिश्रयायो / अजा अवारिपायो इत्थीरजं न तं गच्छं // 15 // जत्थ समुद्देसकाले साहणं मंडलीइ अजायो / गोत्रम ! ठवंति पाए इत्थीरज्जं न तं गच्छं // 16 // जत्थ मुणीण कसाए जगडिज्जंतावि परकसाएहिं / निच्छति समुट्ठ उं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव // 17 // धम्मतरायभीए भीए संसारगम्भवसहीणं / न उईरंति कसाए मुणी मुणीणं तयं गच्छं // 18 // कारणमकारणेणं ग्रह कहवि मुणीण उट्टहिं कसाए। उदिएवि जत्थ रुभन्ति खामिजइ जत्थ तं गछं // 11 // सीलतवदाणभावण चउबिहधम्मंतरायभयभीए / जत्थ बहू गीअत्थे गोश्रम ! गच्छं तयं भणियं // 10 // जत्थ य गोयम ! पंचगह कहवि सूणाण इक्कमवि हुजा / तं गच्छं तिविहेणं वोसिरिय वइज अन्नस्थ // 101 // सूणारंभपत्तं गच्छं वेसुजलं न सेविज्जा। जं चारित्तगुणेहिं उज्जलं तं तु सेविज्जा // 102 // जत्थ य मुणिणो कयविकयाई कुवंति संजमुझट्ठा / तं गच्छं गुणसायर ! विसं व दूरं परिहरिजा // 103 // श्रारंभेसु पसत्ता सिद्धंतपरम्मुहा विसयगिद्धा / मोत्तु मुणिणो गोयम ! वसिज्ज मज्झे सुविहिवाणं // 104 // तम्हा सम्म निहालेउं, गच्छं खम्मग्गपट्ठियं / वसिजा पक्ख मासं वा, जावजीवं तु गोयमा Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदगिमसुधीसिन्धुः / अष्टमी विभागः // 105 // कुड्डो बुट्ठो तहा सेहो, जत्थ रक्खे उवस्सयं / तरुणो वा जत्य एगागी, का मेरा तत्थ भासिमो ? // 106 // जत्थ य एगा खुडी एगा तरुणी उ रक्खए वसहिं / गोत्रम ! तत्थ विहारे का सुद्धी बंभचेरस्स ? // 10 // जत्थ य उवस्सयायो राइं गच्छे दुहत्थ(मुहुत्त)मित्तंपि। एगारत्तिं समणी का मेरा तत्थ गच्छस्स ? // 108 // जत्थ य एगा समणी एगो मसणो अ जंपए सोम्म ! / निबंधुणावि सद्धिं तं गच्छं गच्छगुणहीणं // 101 // जत्थ जयारमयारं समणी जंपइ गिहत्थपञ्चक्खं / पञ्चक्खं संसारे श्रजा पक्खिवइ. थप्पाणं // 110 // जत्थ य गिहत्थभासाइ भासए अजिया सुरुठ्ठावि / तं गच्छं गुणसापर ! समणगुणविवजियं जाण // 111 // गणि गोश्रम ! जा उचियं, सेयं वत्थं विवजिय। सेवए चित्तरूवाणि, न सा अजा विवाहियो // 112 // सीवणं तुन्नणं भरणं, गिहत्थाण तु जा करे। तिल्लउवट्टणं वावि, अप्पणो य परस्स य // 113 // गच्छइ सविलासगई सयणीय तूलियं सबिब्बोअं। उबट्टई सरीरं सिणाणमाईणि जा कुणइ // 114 // गेहेसु गिहस्थाणं गंतूण कहा कहेइ काहीथा। तरुणाइअहिवडते अणुजाणे सा उ पडिणीया // 115 // वुड्डाणं तरुणाणं रति अजा कहेइ.जा धम्मं / सा गणिणी गुणसायर ! पडणीया होइ गच्छस्त // 116 // जत्थ य समणीणमसंखडाई गछमि नेव जायंति। तं गच्छं गच्छवरं गिहत्थभासायो नो जत्थ // 117 // जो जत्तो वा जायो नालोअइ दिवसपविखणं वावि। सच्छंदा समणीयो मयहरयाए न ठयंति // 118 // विटलिपाणि पउंजंति गिलाणसेहीण नेव तिप्पंति। श्रणगाढे अागाढं करेंति श्रागादि अणगादं // 11 // अजयणाए पकुव्वंति, पाहुणगाण अवच्छला / चित्तलयाणि ... सेवंति, चित्ता रयहरणे तहा // 120 // गइविन्भमाइएहिं श्रागारविगार तह पगासिति / जह वुड्डाणवि मोहो समुईरइ किं नु तरुणाणं ? // 121 // बहुसो उच्छोलिंती मुहनयणे हत्थपायकक्खायो। गिरहेइ रागमंडल Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 7 गच्छाचारप्रकार्णका ] (मंडणु) भोइंति श्र तह य कब? // 122 // जत्थ यथेरी तरुणी थेरी तरुणी य अंतरे सुयइ / गोश्रम ! तं गच्छवरं वरनाणचरित्तबाहारं // 123 // धोइंति कंठियायो पोइंति तह य दिति पोत्ताणि / गिहजचिंतगीयो न हु अन्जा गोयमा ! ताश्रो // 124 // घरघोडाइट्ठाणे वयंति ते वावि तत्थ वच्चंति। वेसित्थीसंतग्गी उवस्सयायो समीवंमि // 125 // सन्माय मुकजोगा धम्मकहा विगहपेसण गिहीणं। गिहिनिस्सज्जं वाहिति संथवं तह करतीयो // 126 // समा सीसपडिच्छीणं, चोपणासु प्रणालसा / गणिणी गुणसंपराणा, पसस्थपुरिसाणुगा // 127 // संविग्गा भीयपरिसा य, उग्गदंडा य कारणे / सज्झायज्माणजुत्ता य, संगहे अ विसारया // 128 // जत्थुत्तरपडिउत्तरवडिया अजा व साहुणा सद्धिं। पलवंति सुरुठ्ठावी गोत्रम ! कि तेण गच्छेण ? // 12 // जत्थ य गच्छे गोश्रम ! उप्पराणे कारणमि अजायो। गणिणी पिट्ठीठियायो भासंती मउअसद्देणं // 130 // माऊए दुहियाए सुराहाए अहव भइणिमाईणं / जत्थ न अजा अक्खइ गुत्तिविभेयं तयं गच्छं // 131 // दंसणयारं कुणई चरित्तनासं जणेइ मिच्छत्तं / दुराहवि वग्गेणऽजा विहारभेयं करेमाणि // 132 // तंमूलं संसार जणेइ अजावि गोमा ! नूणं / तम्हा धम्मुवएस मुत्तु, अन्नं न भासिजा // 133 // मासे मासे उ जा अजा, एगसित्थेण पारए। कलहे गिहत्यभासाहि, सव्वं तीए निरस्थयं // 134 // महानिसीहकप्पयो, ववहाराश्रो तहेव य / साहुसाहुणिट्ठाए, गच्छायारं समुद्धियं // 13 // पदंतु साहुणो एग्रं, असज्झायं विवजिउं / उत्तमं सुयनिस्संदं, गच्छायारं तु उत्तम // 136 // गच्छायारं सुणिताणं, पढित्ता भिक्खुभिक्खुणी / कुणंतु जं जहा भणियं, इच्छंता हियमप्पणो // 137 // गच्छाचारपइराणयं सम्मत्तं / ॥इत्ति भी गच्छाचारप्रकीर्णकम् // 7 // Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64] ___ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमो विभागः // 8 // अथ श्रीगणिविद्याप्रकीर्णकम् // __ तुच्छं बलाबलविहिं नवलविहिमुत्तमं विउपसत्थं / जिणवयणभासियमिणं पवयणसत्यम्मि जह दिळं // 1 // दिवस 1 तिही 2 नक्खता 3 करण 4 ग्गहदिवसया 5 मुहुत्तं च 6 / सउणवलं 7 लग्गबलं 8 निमित्तालमुत्तमं वावि // 2 // होराबलिया दिवसा जुगहा पुण दुबला उभयपक्खे। विवरीयं राईसु य बलाबलविहिं वियाणाहि // 3 // दारं पाडिवए पडिवत्ती नत्थि विवत्ती भणंति बीघाए / तइयाए अत्यसिद्धी विजयग्गा पंचमी भणिया // 4 // जा एस सत्तमी सा उ बहुगुणा इत्थ संसो नत्थि। दसमीइ पत्थियाणं भवंति निक्कंटया पंथा // 5 // थारुग्गमविग्धं खेमियं च इक्कारसिं वियाणाहि / जेऽवि हु हुँति अमित्ता ते तेरसी पिट्ठयो जिणइ // 6 // चाउद्दसि पनरसिं वजिजा अट्टमि च नवमि च / छट्टि चउत्थिं बारसिं च दुराहंपि पक्खाणं // 7 // पदमीपंचमि दसमी पनरसिकारसीविय तहेव एएसु य दिवसेसु सेहे निक्खमणं करे // 8 // नंदा भद्दा विजया तुच्छा पुन्ना य पंचमी होइ / मासेण य छव्वारे इक्किकावत्तए नियए // 1 // नंदे जए य पुन्ने, सेहनिक्खमणं करे। नंदे भद्दे सुभदावे, पुन्ने अणसणं करे / 10 / दारं पुस्सऽस्सिणिमिगसिररेवई य हत्थो तहेव चित्ता य। अणुराहजिट्ठमूला नव नक्खत्ता गमणसिद्धा // 11 // मिगसिर महा य मूलो विसाहा तहेव होइ अणुराहा / हत्थुत्तर-रवाअस्सिणी य सवणे य नक्खत्ते // 12 // एएसु य श्रद्धाणं पत्थाणं गणयं च कायम् / जइ य गहुथं न चिट्ठइ संझामुवकं च जइ होइ // 13 // उप्पन्नभत्तपाणो श्रद्धाणम्मि सया उ जो होइ / फलपुष्फोवगवेयो गोवि खेमेण सो एइ // 14 // संझागयं रविगयं विड्डेरं सग्गहं विलंबिं च / राहुगयं गहभिन्नं च वजए सवनक्खत्ते // 15 // अस्थमणे संझागय रविगग जहियं ठियो उ पाइयो / विड्डेरमवद्दारिय सग्गह कूरग्गहठियं Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / 8 श्रीपाणिविद्याप्रकीर्णकम् ] तु // 16 // श्राइचपिटिश्रो से विलंबिराहूहयं जहिं गहणं / मझेण गहो जस्स उ गच्छइ तं होइ गहभिन्नं // 17 // संज्झागयम्मि कलहो होइ विवाश्रो विलंबिनक्खत्ते / विड्डरे परविजयो श्राइचगए अनिव्वाणि // 18 // जं सग्गहम्मि कीरइ नक्खत्ते तत्थ निग्गहो होइ। राहुहयम्मि य मरणं गहभिन्ने सोणिउग्गाले // 11 // संझागयं राहुगयं श्राइचगयं च दुब्बलं रिक्खं / संझाइचउविमुक्कं गहमुक्कं चेव बलियाई // 20 // पुस्सो हत्थो अभीई य, अस्सिणी भरणी तहा / एएसु य रिक्खेसु, पायोवगमणं करे॥ 21 // सवणेण धणिट्ठाइ पुणव्वसू नवि करिज निक्खमणं / सयभिसयपूसथंभे(हत्थे) विजारंभे पवित्तिज्जा // 22 // मिगसिर श्रद्दा पुस्सोपुव्वाई मूलमस्सेसा। हन्थो चित्ता य तहा दस बुड्डिकराई नाणस्स (तिन्नि धणिट्ठा पुणव्वसू रोहिणी / पुस्सो य) // 23 // पुणव्वसूणा पुस्सेण, सवणेण धणिया। एएहिं चउरिक्खेहिं, लोयकम्माणि कारए // 24 // कित्तियाहिं विसाहाहिं, मचाहिं भरणीहि य। एएहिं चउरिक्खेहि, लोयकम्माणि वजए // 25 // तिहिं उत्तराहिं रोहिणीहिं कुजा उ सेहनिक्खमणं / सेहोरट्ठावणं कुन्जा, अणुना, गणिवायए // 26 // गणसंगहणं कुजा, गणहरं चेव ठावए / उग्गहं वसहिं ठाणं, थावराणि पवत्तए // 27 // पुरसो हत्थो अभिई, अस्सिणी य तहेव य / चत्तारि विखप्पकारीणी, कज्जारंभेसु सोहणा // 28 // विजाणं धारणं कुज्जा, बंभजोगे य साहए / सज्झायं च अणुन्नं च, उद्देसे य समुदिसे // 26 // अणुराहा रेवई चेव, चित्ता मिगसिरे तहा। मिऊनियाणि चत्तारि, मिउकम्मं तेसु कारए // 30 // भिक्खाचरणमत्ताणं, कुजा गहणधारणं संगहोवग्गहं चेव, बालवुड्डाण कारए // 31 / / पदा अस्सेस जिट्टा य, मूलो चेव चउत्थयो। गुरुणो कारए पडिमं, तवोकम्मं च कारए // 32 // दिव्वमाणुसतेरिच्छे, उवसग्गाहियासए / गुरू सुचरणकरणो, उग्गहोवग्गहं करे // 33 // महा भरणि पुत्राणि, तिन्नि Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18] [मीनदानमावासिन्धु अष्टनो विनागर उग्गा वियाहिया / एएसु तवं कुजा, सभितरबाहिरं चेव // 34 // तिन्नि सयाणि सट्टाणि, तवोकम्माणि अाहिया। उग्गनवखत्तजोएसु तेसुमन्नतरे करे // 35 // वित्तिया य विसाहा य, उम्हा एयाणि दुनि उ। लिंपणं सीवणं कुजा, संथारुग्गहधारणं // 36 // उपकरणभंडमाईणं, विवायं चीवराणि य। उवगरणं विभागं च, पायरियाणं तु कारण // 37 // धणिट्ठा सयभिसा साई, सवणो य पुणवसू / एएसु गुरुसुस्सूसं, चेइयाणं च पूयणं // 38 ॥समायकरणं कुजा, विजा विरई च कारए / वयोवट्ठा. वणं कुजा, अणुन्नं गणिवायए // 31 // गणसंगहणं कुजा, सेहनिक्खमणं करे। संगहोवग्गहं कुजा, गणावच्छेइयं तहा // 40 // दारं // 3 // बव 1 बालवं च 2 तह कोलवं च 3 थीलोयणं 4 गराई च 5 / वणियं 6 विट्ठी य तहा 7 सुद्धपडिवए निसाईया // 41 // सउणि चउप्पय नागं किंथुग्धं च करणा धुवा हुँति / किराहचउद्दसि-रत्तिं सउणी पडिवजए करणं // 42 // काऊण तिहिं बिगुणं जुराहगे सोहए न पुण काले। सत्तहिं हरिज भागं सेसं जं तं भवे करणं // 43 // बवे य बालवे चेव, कोलवे वणिए तहा / नागे चउप्पए यावि, सेहनिवखमणं करे // 44 // बवे उवट्ठावणं कुन्जा, अणुन्नं गणिवायए / सउणीमि य विट्टीए, अणसणं तत्थ कारए // 45 // दारं // 4 // गुरुसुक्कसोमदिवसे, सेहनिक्खमणं करे। वयोवट्ठावणं कुना, अणुन्नं गणिवायए // 46 // रविभोमकोण(ड)दिवसे, चरणकरणाणि कारए / तवोकम्माणि कारिजा, पायोवगमणाणि य // 47 // दारं // 5 // रुद्दो उ मुहुत्ताणं बाई छन्नव. इअंगुलच्छात्रो। सेयो उ हवइ सट्ठी बारसमित्तो हवइ जुत्तो / 48 // छन्चेव य श्रारभडो सोमित्तो पंचअंगुलो होइ। चत्तारि य वइरिज़ो दुश्चेव य सावसू होइ // 41 // परिमंडलो मुहुत्तो असीवि मभंतिते ठिए होई। दो होइ रोहणो पुणबलो य चउरंगुलो होइ. // 50 // Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 8 श्रीगणिविद्याप्रकीर्णकम् / [60 विजत्रो पंचंगुलियो छच्चेव य नेरियो हवइ जुत्तो। वरुणो य हवइ. बारस अजमदीवा हवइ सट्ठी // 51 // छन्नई अंगुलाई // एए दिवसमुहूत्ता रत्तिमुहुत्ता वियाहिया / दिवसमुहुत्तगईए छायामाणं मुणेयव्वं / / 52 // मित्ते नंदे तह सुट्ठिए य, अभिई चंदे तहेव या। वरुणग्गिवेस-ईसाणे थाणंदे विजए इय / / 53 // एएसु मुहुत्तजोएसु, सेहनिक्खमणं करे। वउवट्ठावणाई च, अणुना गणिवायए // 54 // बंभे वलए वाउम्मि उसभे वरुणे तहा / श्रणसणपाउव-गमणं, उत्तमद्रं च कारए // 55 // दारं 6 // पुनामधिज-सउणेसु, सेहनिक्खमणं करे ।थीनामेसु सउणेसु, समाहिं कारए विऊ // 56 // नपुंसएसु सउणेसु, सव्वकम्माणि वजए। वामिस्सेसु निमित्तेसु, सवारंभाणि वजए // 57 // तिरियं बाहरतेसु, श्रद्धाण गमणं करे। पुफियफलिए वच्छे, सज्झायं करणं करे // 58 // दुमखंधे वाहरतेसु, सेहुवट्ठावणं करे / गयणे वाहरतेसु, उत्तमटुंतु कारए // 51 // बिलमूले वाहरंतेसु, ठाणं तु परिगिराहए। उप्पायम्मि वयंतेसु, सउणेसु मरणं भवे // 60 // पक्कमंतेसु सउणेसु, हरिसं तुटुिं च वागरे। दारं 7 / चलरासिविलग्गेसु, सेहनिक्खमणं करे // 61 // थिररासिविलग्गेस, वयोवट्ठावणं करे / सुयखंधाणुनायो, उहिसे य समुद्दिसे // 62 // बिसरीरविलग्गेसु, सज्मायकरणं करे। रविहोराविलग्गेसु, सेहनिक्खमणं करे। // 63 // चंदहोराविलग्गेसु, सेहीणं संगहं करे / सुम्मदिकोणलग्गेसु चरणकरणं तु कारए // 6 // कूणदिकोणलग्गेस, उत्तमट्ठं तु कारए / एवं लग्गाणि जाणिज्ज, दिकोणेसु ण संसयो // 65 // सोमग्गहविल गेस, सेहनिक्खमणं करे / कूरग्गहविलग्गेसु, उत्तम, तु कारए // 66 // राहुकेउविलग्गेसु सव्वकम्माणि वजए / विलग्गेसु पसत्थेसु पसत्थाणि उ धारभे // 57 // अप्पसत्थेसु लग्गेसु, सव्वकम्माणि वजए / विलग्गाणि उ जाणिज्जा, गहाण जिणभासिए // 6 // Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीमंदागमसुधासिन्धुः / अष्टमी बिभागा दारं 8 / न निमित्ता विवज्जंति, न मिच्छा रिसिभासियं दुट्टेिणं निमित्तेणं, श्रादेसो उ विणस्सइ // 61 // सुदि?ण निमित्तेणं, श्रादेसो न विणस्सइ / जा य उप्पाइया भासा, जं च जंपंति बालयो॥ 70 // जंवित्थीयो पभासंति, नत्थि तस्स वइक्कमो / तजाएण य तजायं, तन्निभेण य तन्निभं // 71 // तारूवेण य तास्वं, सरिसं सरिसेण निहिसे / थीपुरिसनिमित्तेस, सेहनिक्खमणं करे // 72 // नपुंसकनिमित्तेसु, सव्वकजाणि वजए। वामिस्सेसु निमित्तेसु, सब्बारंभे विवजए // 73 // निमित्ते कित्तिमे नस्थि, निमित्ते भावि सुज्झए / जेण सिद्धा वियाणंति, निमित्तुप्पायलवखणं // 74 // निमितेसु पसत्थेसु, दढेसु बलिएसु य / सेहनिवखमणं कुजा, वउवट्ठावणाणि य // 75 // गणसंगहणं कुज्जा, गणहरे इत्थ वा वए। सुयक्खंधाणुनायो अणुन्ना गणिवायए // 76 // निमित्तेसुऽपसत्थेस, सिट्टिलेसुबलेसु य / सव्वकजाणि वजिजा, अप्पसाहरणं करे // 77 // पसत्थेसु निमित्तेस, पसत्थागि सयाऽऽरभे / अप्पसत्थनिमित्तेसु, सव्वकजाणि वजए // 78 // दिवसायो तिही बलियो तिहीउ बलियं तु सुब्बई रिक्खं / नवखत्ता करणमाहंसु करणाउ गहदिणा बलिणणे // 79 // गहदिणाउ मुहुत्ता, मुहुत्ता सउणो बली। सउणायो बलवं लग्गं, तो निमित्तं पहाणं तु // 80 // विलग्गायो निमित्तायो, निमित्तबलमुत्तमं / न तं संविजए लोए, निमित्ता जं बलं भवे // 1 // एसो बलाबलविही समासयो कित्तियो सुविहिएहिं / अणुयोगनाग-गेज्मो नायव्वो अप्पमत्तेहिं // 82 // गणिविजापइराणयं सम्मत्तं / // इति श्रीगणिविद्याप्रकीर्णकम् // 8 // // 6 // अथ श्रीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् // ..: अमरनरवंदिए वंदिऊण उसभाइजिणवरिंदे / वीरवरअपच्छिमते तेलुकगुरू पणमिऊणं // 1 // कोई पढमपाउसंमि सावयो समयनिच्छयविहिराणू / वन्नेइ थयमुयारं जिणमाणे (जाय माणो) बद्धमाणम्मि // 2 // Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 61 प्रकीर्णकानि श्रीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् ] तस्स थुणंतस्स जिणं सोइयकडा पिया सुहनिसन्ना। पंजलिउडा अभिमुही सुगइ थयं वद्ध माणस्त // 3 // इंदविलयाहिं तिलय रयणंकिए लक्खणंकिए सिरसा / पाए अवगयमाणस वंदिमो वद्धमाणस्स // 4 // विणयपणएहिं सिढिलमउडेहिं अप(पय)डियजसस्स (अप्पडिहयाजस्स) देवेहिं / पाया पसंतरोसस्स बंदिमो वद्धमाणस्स ॥५॥बत्तीसं देविंदा जस्स गुणेहिं वहम्मिया छायं / तो (नो) तस्स वियच्छेयं पायच्छायं उवेहामो // 6 // बत्तीसं देविंदत्ति भणियमित्तमि सा पियं भणइ / अंतरभासं ताहे काहेमो कोउहल्लेणं // 7 // कारे ते बत्तीसं देविंदा को व कत्थ परिवसइ / केवइया कस्स ठिई को भवणपरिग्गहो तस्स ? // 8 // केवइया व विमाणा भवणा नगरा व हुँति केवइया / पुढवीण व बाहल्लं उच्चत्त विमाणवन्नो वा ? // 1 // का रंति व का लेणा उक्कोसं मज्झिमजहराणं / उस्सास्तो निस्सासो श्रोही विसयो व को केसिं ? // 10 // विणयोवयार ग्रोवहम्मियाइ हासवसमुव्वहंतीए। पडिपुच्छिए पियाए भाइ सुअणु ! तं निसामेह // 11 // सुश्रणाण-सागरायो सुणियो पडिपुच्छणाइ जं लद्धं / पुण वागरणावलियं नामावलियाइ इंदाणं // 12 // सुण वागरणावलियं रयणं व पणामियं च वीरेहिं / तारावलिब्ब धवलं हियएण पसन्नचित्तेणं // 13 // रयणप्पभाइकुडनिकुडवासी सुतणू ! तेउलेसागा। वीसं विकासियनयणा भवणबई ते निसामेह (समदिट्ठी सव्वदेविंदा)॥१४॥ दो भवणवई इंदा चमरे वइरोअणे य असुराणं (चमरिंदबलिंद असुरनिकायं च ) / दो नागकुमारिंदा भूयाणंदे य धरणे य // 15 // दो सुयणु ! सुवगिंणदा वेणूदेवे य वेणूदाली य। दो दीवकुमारिंदा पुराणे य तहा वसिष्ठे य // 16 // दो उदहिकुमारिंदा जलकते जसपमे ये नामेणं / अभियगइ-अमियवाहण दिसाकुमाराण दो इंदा // 17 // दो वाउ. कुमारिंदा वेलंब पभंजणे य नामेण / दो थणिय-कुमारिंदा घोसे य तहा महायोसे // 18 // दो विज्जुकुमारिंदा हरिकंत हरिस्सहे य नामेणं / Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीवदागमतुषासिन्धुः / / अष्टमी विभागा अग्गिसिह-अग्गिमाणव हुयासणवईवि दो इंदा // 11 // एए विकसिय. नयणे! दसदिसिविय-सियजसा मए कहिया। भवणवर-सुहनिसन्ने सुण भवणपरिग्गहमिमेसि // 20 // चमरवइरोत्रणाणं असुरिंदाणं महाणुभागाणं / तेसिं भवणवराणं चउसट्टिमहे सयसहस्से // 21 // नागकुमारि. दाणं भूयाणंद-धरणाण दुराईपि / तेसिं भवणवराणं चुलसीइमहे सयसहस्से // 22 // दो सुयणु ! सुरिणदा वेणूदेवे य वेणुदाली य / तेसिं भवणवराणं बावत्तरिमो सयसहस्सा // 23 // वाउकुमारिंदाणं वेलंवपमंजणाण दुराहंपि। तेसिं भवणवराणं छन्नवइमहे सयसहस्सा / 24 // चउसट्ठी असुराणं चुलसीई चेव होइ नागाणं / बावत्तरि सुवगणाणं वाउकुमाराण छन्नई // 25 // दीवदिसाउदहीणं विज्जुक्कुमारिंद-थणियमग्गीणं / छराईपि जुयलयाणं बा(बा)वत्तरिमो सयसहरसा // 26 // इकिकम्मि य जुयले नियमा बा(छा)वत्तरि सयसहस्सा। सुंदरि ! लीलाइ ठिए ठिईविसेसं निसामेहि // 27 // चमरस्स सागरोवम सुंदरि ! उकोसिया ठिई भणिया। साहीया बोद्धव्वा बलिस्स वइरोयणिंदस्स // 28 // जे दाहिणाण इंदा चमरं मुत्तूणं संसया भणिया। पलिश्रोवमं दिवड्ड लिई उकोसिया तेसिं // 26 // जे उत्तरेण इंदा बलिं पमुत्तूण सेसया भणिया / पलियोवमाइं दुरिण उ देसूणाई ठिई तेसिं // 30 // एसोवि ठिइविसेसो सुदरख्वे ! विसिट्ठरूवाणं / भोमिजसुरवराणं सुण अणुभागो सुनयराणं // 31 // जोयणसहस्समेगं श्रोगाहित्तण भवणनगराई। रयणप्पभाइ सव्वे इकारस जोयणसहस्से // 32 // अंतो चउरंसा खलु अहियमणोहर-सहाव. रमणिज्जा / बाहिरणोऽविय वट्टा निम्मलवइरामया सव्वे // 33 // उकिन्नंतर-फलिहा अभितरो उ भवणवासीणं। भवणनगरा विरायंति कणग-सुसिलिट्ठपागारा // 34 // वरपउमकरिणया मंडियाहिं हिट्ठा सहावलट्ठेहिं / सोहिंति पइट्ठाणेहिं विविहमणि-भत्तिचित्तेहिं // 35 // चंदण Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 9 भी देवेन्द्रस्त्वप्रकीर्णकम् ] . :: [71 पयट्टिएहि य ासत्तोस्सत्त-मल्लदामेहि। दारेहिं पुरवरा ते पडागमाला-उरा रम्मा // 36 // अठेव जोयणाई उविद्धा हुँति ते दुवारवरा / धूमघडियाउलाई कंत्रण-दामोवणद्धाणि // 37 // जहिं देवा भवणवई वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं / निचसुहिया पमुइया गयंपि कालं न याणंति // 38 // चमरे धरणे तह वेणुदेव पुराणे य होइ जलकंते / श्रमियगई वेलंबे घोसे हरी य अग्गिसिहे य // 31 // कणगमणि-रयणथूभिय-रम्माई सवेइयाई भवणाई। एएसिं दाहिणयो सेसाणं दाहिणे(उत्तरे) पासे // 40 // चउतीसा चोयाला अट्टतीसं च सयसहस्साई। चत्ता पन्नासा खलु दाहिणश्रो हुँति भाणाई // 41 // तीसा चतालीसा चउतीसं चेव सयसहस्साइं। छत्तीसा हायाला उत्तरयो हुँति भवणाई // 42 // भवण-विमाणवईणं तायत्तीसा य लोगपाला य / सव्वेसिं तिन्नि परिसा समाण-चउगुणायरवखा उ // 43 // चउसट्टी सट्टी खलु छच्च सहस्सा तहेव चत्तारि / भवणवइ-वाणवंतर-जोइसियाणं च सामाणे ॥४॥पंचग्गमहिसीयो चमरवलीणं हवंति नायव्वा। सेसय-भवणिंदाणं छच्चेव य अग्गमहिसीयो ॥४५॥दो चेव जंबुदीवे चत्तारिय माणुसुत्तरे सेले / छव्वारुणे समुद्दे अट्ठ य अरुणम्मि दीवम्मि // 46 // जनामए समुद्दे दीवे वा जंमि हुँति यावासा / तन्नामए समुद्दे दीवे वा तेसि उप्पाया // 47 // असुराणं नागाणं उदहिकुमाराण हुँति श्रावासा / वरुणवरे दीवम्मी तत्थेव य तेसिं उप्पाया // 48 // दीवदिसाबग्गीणं थणियकुमाराण हुँति श्रावासा / अरुणवरे दीवम्मि य तत्थेव य तेसिं उप्पाया // 11 // वाउसुवगिणदाणं एएसिं माणुसुत्तरे सेले / हरिणो हरिप्पहस्स य विज्जुप्पभमालवंतेसु // 50 // एएसिं देवाणं बलवीरिय-परकमो य जो जस्स / ते सुंदरि ! वराणेऽहं अहक्कम श्राणुपुवीए // 51 // जाव य जंबुद्दीवो जाव य चमरस्स चमरचंचा उ। असुरेहिं असुरकराणाहिं तस्स विसश्रो भरेउं जे // 52 // तं. चेव समइरेगं बलिस्स वइरोयणस्स बोद्धव्वं / असुरेहिं असुरकरणाहिं Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ] [बीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभाग: तस्स विसयो भरेउं जे॥ 53 ॥धरणोवि नागराया जंबुद्दीवं फडाइ छाइजा। तं चेव समइरेगं भूयाणंदे य बोद्धव्वं // 54 // गरुलोऽवि वेणुदेवो जंबुद्दीवं छइज पक्खेणं / तं चेव समइरेगं वेणुदालिम्मि बोद्धव्वं // 55 // पुराणोवि जंबुदीवं पाणितलेणं इज इक्केणं / तं चेव समइरेगं हवइ वसिट्टे वि बोद्धव्वं // 56 // इकाइ जलुम्मीए जंबुद्दीवं भरिज जलकंतो। तं चेव समइरेगं जलप्पभे होइ बोद्धव्वं // 57 // अमियगइस्सवि विसयो जंबुद्दीव तु पायपराहीए / कपिज निरवसेसं इयरो पुण तं समइरेगं // 58 // इकाइ वायुगुजाइ जंबुद्दीवं भरिज वेलंबो / तं चेव समइरेगं पभंजणे होइ बोद्धव्वं // 51 ॥घोसोऽवि जंबुद्दीवं सुंदरि ! इक्केण थणियसबेणं / बहिरीकरिज सव्वं इयरो पुण तं समइरेगं ॥६०॥इकाइ विज्जुयाए जंबुद्दीवं हरी पकासिज / तं चेव समइरेगं हरिरसह होइ बोद्धव्वं // 61 // इकाइ अग्गिजालाइ जंबुदीवं डहिज्ज अग्गिसिहो / तं व समइरेगं माणवए होइ बोद्धव्वं // 62 // तिरियं तु असंखिजा दीवसमुद्दा सरहिं रूवेहिं / अक्गादाउ करिजा सुंदरि ! एएसि एगयरो // 63 // पभू अन्नयरो इंदो जंबुद्दीवं तु वामहस्थेण / छत्तं जहा धरिजा अन्नयो मंदरं चित्तुं // 64 // जंबुद्दीवं काउण छत्तयं मंदरं व से दंडं / पभू श्रन्नयरो इंदो एसो तेसिं बलविसेसो // 65 // एसा भवणवईणं भवठिई वनिया समासेणं / सुण वाणमंतराणं भवणवईश्राणुपुबीए // 66 // पिसाय भूया जवखा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा / महोरगा य गंधमा अट्टविहा वाणमंतरिया // 67 // एए उ. समासेणं कहिया भे वाणमंतरा देवा / पत्तेयंपि य बुच्छं सोलस इंदे महिडिए / / 68 // काले य महाकाले सुरुष पडिरूव पुन्नभद्दे य / अमरवइ माणभद्दे भीमे य तहा महाभीमे // 66 // किन्नरकिंपुरिसे खलु सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे। अइकाय महाकाए गीयरई चेव गीयजसे // 7 // सन्निहिए सामाणे धाइ विधाए इसी य इसिपाले / इस्सर महिस्सरे या हवइ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 9 श्रीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् ] सुवच्छे विसाले य॥ 71 // हासे हासरईविश्र सेए अतहा भवे महासेए। पयए पययावईविय नेयव्वा पाणुपुवीए // 72 // उड्डमहे तिरियमिय व सहिं श्रोविंति वंतरा देवा / भवणा पुणराह रयणप्पभाइ उवरिल्लए कंडे // 73 // इक्किमि य जुयले नियमा भवणा वरा असंखिजा। संखिजविस्थडा पुण नवरं एतत्थ नाणत्तं // 74 // जंबुद्दीवसमा खलु उक्कोसेणं भवंति भवणवरा / खुद्दा खित्तसमावि विदेहसमया य मज्झिमया // 75 // जहं देवा वंतरिया वरतरुणीगीयवाइयरवेणं / निच्चसुहिया पमुइया गयंपि कालं न याणंति // 76 // काले सुख्ख पुराणे भीमे तह किन्नरे य सप्पुरिसे / अइकाए गीयरई अट्ठव य हुँति दाहिणो // 77 // मणिकणगरयणथूभिय-जंबूणयवेइयाई भवणाई / एएसिं दाहिणश्रो सेसाणं उत्तरे पासे / / 78 // दस वाससहस्साई ठिई जहन्ना उ वंतरसुराणं / पलियोवमं तु इक्कं ठिई उ उक्कोसिया तेसिं // 79 // एसा वंतरियाणं भवणठिई वनिया समासेणं / सुण जोइसालयाणं आवासविहिं सुरवगणं // 8 // चंदा सूरा तारागणा य नक्खत्त गहगण समत्ता / पंचविहा जोइसिया ठिई वियारी य ते गणिया // 81 // अद्धकविट्ठगसंठाण-संठिया फालियामया रम्मा / जोइसियाण विमाणा तिरियंलोए असंखिजा // 82 // धरणियलाउ समायो सत्तहिं नउएहिं जोयणसएहिं / हिट्ठिलो होइ तलो सूरो पुण अहिं सएहि // 83 // अट्ठसए ग्रासीए चंदो तह चेव होइ उवरितले / एगं दसु. त्तरसयं बाहल्लं जोइसस्स भवे // 84 // एगट्ठिभाय काऊण जोत्रणं तस्स भागछप्पराणं / चंदपरिमंडलं खलु अड्याला होइ सूरस्स // 85 // जहिं देवा जोइसिया वरतरुणीगीयवाइयरवेणं / निच्चसुहिया पमुइया गयंपि कालं नं याणंति // 86 // छप्पन्नं खलु भागा विच्छिन्नं चंदमंडलं होइ / अडवीसं च कलायो बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं // 87 // अडयालीसं भागा विच्छन्नं सूरमंडलं होइ चउवीसं च कलायो बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं / / 8 / / भागीयाइयरवेणं पाला होइ सूरस्स जोधणं तस्स Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0] [ भीमदोगनसुपातिन् / अष्टमी विभाग: श्रद्धंजोयर्णिया उ गहा तस्सद्धं चेव होइ नवसत्ता / नक्खत्तद्धे तारा तस्सद्ध चेव बाहल्लं // 81 // जोयणमद्धं तत्तो गाऊ पंचधणुसया हुँति / गहनक्खत्तगणाणं तारविमाणाण विक्खंभो // 10 // जो जस्सा विक्खंभो तस्सद्धं चेर होइ बाहल्लं / तं तिउणं सविसेसं परिरयो होइ बोद्धव्वो॥११॥ सोलस चेव सहस्सा अट्ट य चउरो य दुन्नि य सहस्सा / जोइसियाण विमाणा वहंति देवाभियोगायो॥ 12 ॥पुरयो वहति सीहा दाहिणयो कुंजरा महाकाया। पञ्चत्थिमेण वसहा तुरगा पुण उत्तरे पासे // 13 // चंदेहि उ सिग्घयरा सूरा सूरेहिं तह गहा सिग्घा / नक्खत्ता उ गहेहि य नक्खत्तेहिं तु तारायो // 14 // सव्वप्पगई चंदा तारा पुण हुँति सबसिग्धगई। एसो गईविसेसो जोइसियाणं तु देवाणं // 15 // अप्पिडियायो तारा नवखत्ता खलु तयो महिड्डियए / नक्खत्तेहिं तु गहा गहेहिं सूरा तो चंदा // 16 // सव्वन्मितररुभीई मूलो पुण सव्वबाहिरोभमइ / सबोवरिं च साई भरणी पुण सव्वहिट्ठिमया // 17 // साहा गहनक्खत्ता मज्झेगा हुँति चंदसूराणं / हिट्ठा समं च उप्पिं ताराथो चंदसूराणं // 18 // पंचेव धणुसयाइं जहन्नयं अंतरं तु ताराणं / दो चेव गाउपाइं निवाघाएण उक्कोसं // 11 ॥दोनि सए छाव? जहन्नयं अंतरं तु ताराणं / बारस चेव सहस्सा दो बायाला य उक्कोसा // 100 // एयस्स चंदजोगो सत्तट्टि खंडियो अहोरत्तो। ते हुँति नव मुहुत्ता सत्तावीसं कलायो अ॥ 101 // सयभितया भरणीयो श्रद्दा अस्सेस साइ जिट्टा य / एए छनक्खत्ता पन्नरसमुहुत्तसंजोगा // 102 // तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य / एए छन्नक्खत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा // 103 // अवसेसा नक्खत्ता पनरसया हुँति तीसइमुहुत्ता / चंदमि एस जोगो नवखत्ताणं मुणेयत्वो // 104 // अभिई छच्च मुहुत्ते चत्तारि थ केवले अहोरते / सूरेण समं वच्चइ इत्तो सेसाण वुच्छामि // 10 // सयभिसया भरणीयो श्रद्दा अस्सेस माइ जिट्ठा य / वच्चंति छहोरत्ते इक्कवीसं मुहत्ते य Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 6 श्रीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् ] [ 75 // 106 // तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य / वच्चंति मुहुत्ते तिन्नि चेव वीस चाहोरत्ते // 107 // अवसेसा नक्खत्ता पराणरसवि सूरसहगया जंति / बारस चेव मुहुत्ते तेरस य समे अहोरत्ते // 108 // दो चंदा दो सूरा नक्खत्ता खलु हवंति छप्पन्ना / छावत्तरं गहसयं जंबुद्दीवे वियारीणं // 106 // इक्कं च सयसहस्सं तित्तीसं खलु भवे सहस्साई / नव य सया पराणासा तारागणकोडिकोडीणं // 110 // चत्तारि चेव चंदा चत्तारि य सूरिया लवणतोये(जले) / वारं नक्खत्तसयं गहाण तिन्नेव बावन्ना // 111 // दो चेव सयसहस्सा सत्तट्टि खलु भवे सहस्साई / नव य सया लवणजले तारागणकोडिकोडीणं // 112 // चउवीसं ससिरविणो नवखत्तसया य तिरिण छत्तीसा / इक्कं च गहसहस्सं छप्पन्नं धायईसंडे // 113 // अटेव सयमहस्सा तिरिण सहस्सा य सत्त य सया उ। धायईसंडे दीवे तारागणकोडिकोडीणं // 114 // बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणयरा दित्ता। कालोदहिमि एए चरंति संबद्धलेसागा // 115 // नक्खत्तमिगसहस्सं एगमेव छावरिं च सयमन्नं / छच्च सया छन्नउया महग्गहाण तिनि य सहस्सा // 116 // अट्ठावीसं कालोदहिम्मि बारस य सयसहस्साई। नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं // 117 // चोयालं चंदसयं चोयालं चेव सूरियाण सयं / पुक्खरखरम्मि एए चरंति संबद्धलेसाया // 118 // चत्तारिं च सहस्सा बत्तीसं चेव हुति नवखत्ता / छच्च सया बावत्तर महग्गहा बारस सहस्सा // 111 ॥छन्नउइ सयसहस्सा चोयालीसं भवे सहस्साई। चत्तारी य सयाइं तारागणकोडिकोडीणं // 120 // बावत्तरिं च चंदा बावत्तरि. मेव दिणयरा दित्ता। पुवखरखरदीवड्ढे चरंति एए पगासिंता // 121 // तिरिण सया छत्तीसा छच सहस्सा महग्गहाणं तु / नक्खत्ताणं तु भवे सोलाणि दुवे सहस्साणि // 122 // अडयालीसं लक्खा बावीसं खलु भवे सहस्साई / दो य सय पुक्खरद्धे तारागणकोडिकोडीणं // 123 // बत्तीसं Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदाममनुपाति / अष्टमोरिमाणां - चंदसयं बत्तीसं चेव सूरियाण सय / सयलं मणुस्सलोयं चरंति एए पयासिता // 124 // इकारस य सहस्सा छप्पिय सोला महग्गहसया उ। छच्च सया छन्नउया नक्खत्ता तिगिण य सहस्सा // 125 // अट्ठासीई चत्ताई सयसहस्साई मणुयलोगम्मि / सत्त य सयामणूणा तारागणकोडिकोडीणं // 126 // एसो तासपिंडो सम्बसमासेण मणुयलोगिम्म / बहिया पुण ताराश्रो जिणेहिं भणिया असंखिजा // 127 // एवइयं तारग्गं जं भणियं मणुयलोगमज्झम्मि / चारं कलंबुयापुप्फसंठियं जोइस चरइ // 128 // रविससिगहनक्खत्ता एवइया श्राहिया मणुयलोए। जेसिं नामागोयं न पागया पनवेइंति // 12 // छावटि पिडयाई चंदाइचाण मणुयलोगम्मि / दो चंदा दो सूरा य हुति इकिकए पिडये // 130 // छावद्धिं पिडयाइं नवखत्ताणं तु मणुयलोगम्मि / छप्पन्नं नक्खत्ता हुति इकिकए पिडए // 131 // छावट्ठी पिडयाणं महग्गहाणं तु मणुयलोगम्मि / छावत्तरं गहसयं च होइ इकिकए पिडए // 132 // चतारि य पंतीयो चंदाइचाण मणुयलोगम्मि / छावढि छावढि होइ इक्विकया पंती // 133 // छापन्नं पंतीयो नवखत्ताणं तु मणुयलोगम्मि / छावडिं छावद्धिं च होइ इ.केकया पंती // 134 // छावत्तरं गहाणं पंतिसयं होइ मणुयलोगम्मि / छावढि छावढेि च होइ इक्किक्कया पंती // 135 // ते मेरुमाणुसुत्तर-पयाहिणावत्तमंडला सव्वे / अणवट्ठिएहिं जोएहिं चंदा सूरा गहगणा य // 136 // नक्खत्ततारयाणं अवट्ठिया मंडला मुणेयव्वा / तेवि य पयाहिणावत्तमेव मेरु अणुचरंति // 137 / / रयणियरदिणयराणं उड्डमहे एव संकमो नत्थि। मंडलसंकमणं पुण अभितरवाहिरं तिरियं // 138 // रयणियरदिणयराणं नक्खत्ताणं च महग्गहाणं च / चारविसेसेण भवे सुहदुक्खविही मणुस्साणं // 131 // तेसिं पविसंताणं तावविखत्ते उ वड्डए नियमा। तेणेव कमेण पुणो परिहायइ निक्खमिन्ताणं // 140 // तेसिं कलंबुयापुफसंठिया हुति तावक्खित्तमुहा / अंतो श्र संकुला बाहिं च विस्था चंदसू. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा जगहाइ अविरहियं / म उ सुकपक्खस्स ! पन्नरसमेव वं प्रकीर्णकांनि श्रीदेवेन्द्रस्तप्रकीर्णकम् ) : [77 राणं // 141 // केणं वड्डइ चंदो ? परिहाणी केण होइ चंदस्स ? / कालो वा जुराहा वा केणऽणुभावेण चंदस्स ? // 142 // किराहं राहुविमाणं निच्चं चंदेण होइ अविरहियं / चउरंगुलमप्पत्तं हिट्ठा चंदस्स तं चरइ // 143 // छावढि छावढेि दिवसे दिवसे उ सुक्कपक्खस्स / जं परिवड्डइ चंदो खवेइ तं चेव कालेणं // 144 // पन्नरसइभागेण य चंदं पन्नरसमेच चंकमइ / पन्नरसइमागेण य पुणोवि तं चेव पकमइ // 145 // एवं वड्डइ चदो परिहाणी एव होइ चंदस्म / कालो वा जुराहा वा तेण यऽणुभावेण चंदस्स // 146 // अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोगा य उववराणा / पंचविहा जोइसिया बँदा सूरा गहगणा य // 147 // तेण परं जे सेसा चंदाइच गहतारनक्खत्ता / नत्थि गई नवि चारो अवट्ठिया ते मुणेयव्वा // 148 // दो चंदा इह दीवे चत्तारि य सागरे लवणतोए। धायइसंडे दीवे बारस चंदा य सूरा य // 146 // एगे जंबुद्दीवे दुगुणा लवणे चउग्गुणा हुति / कालोयए तिगुणिया ससिसूरा धायईसंडे // 150 // धायइसंडप्पभिई उहिट्ठा तिगुणिया भवे चंदा / थाइलचंदसहिया अणंतराणंतरे खित्ते // 151 // रिवखग्गहतारग्गा दीवसमुदाण इच्छसे नाउं / तस्स ससोहि उ गुणियं रिक्खग्गहतारयग्गं तु // 152 // बहिया उ माणुसनगस्स चंदसूराणवट्ठिया जोगा। चंदा अभीइजुत्ता सूरा पुण हूंति पुस्सेहिं // 153 // चंदायो सूरस्स य सूरा ससिणो य अंतरं होई। पराणाससहस्साइं जोयणाणं अणूणाई // 154 // सूरस्स य सूरस्म य ससिणो ससिणो य अंतरं होइ। बहिया उ माणुसनगस्स जोगणाणं सयसहस्सं // 155 // सूरंतरिया चंदा चंदंतरिया उ दिणयरा दित्ता / चित्तंतरलेसागा सुहलेसा मंदलेसा य // 156 // अट्ठासीयं च गहा अट्ठावीसं च हुति नक्खत्ता। एगससीपरिवारो एत्तो ताराण वुच्छामि // 157 / / छावट्ठि सहस्साई नव चेव सयाई पंचसयराई। एगससीपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं // 158 // वाससहस्सं पलिग्रोवमं च सूराण सा Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78] [ श्रीमदागमसुधासिधु अष्टमो विमागा ठिई भणिया / पलिग्रोवम चंदाणं वाससयसहस्स-मभहिय॥ 151 // पलिश्रोवमं गहाणं नक्खत्ताणं व जाण पलियद्धं / पलियचउत्थो भायो ताराणवि सा ठिई भणिया // 160 // पलिग्रोवमट्ठभागो ठिई जहरणा उ जोइसगणस्स / पलियोरममुक्कोसं वाससयसहस्समभहियं // 161 // भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी ठिई मए कहिया। कप्पवईवि य वुच्छं बारस इंदे महिड्डीए॥ 162 // पढमो सोहम्मवई ईसाणवई उ भन्नए बीयो / तत्तो सणंकुमारो हवइ चउत्थो उ माहिंदो // 163 // पंचमए पुण बंभो छट्टो पुण लंतयोऽत्य देविंदो / सत्तमयो महसुक्को अट्ठमयो भवे सहस्सारो॥ 164 // नवमो श्र पाणइंदो दसमो उण पाणउत्थ देविंदो। श्रारण इक्कारसमो बारसमो अच्चुए इंदो // 165 // एए बारस इंदा कप्पवई कप्पसामिया भणिया। बाणाईसरियं वा तेण परं नत्थि देवाणं // 166 // तेण परं देवगणा सयइच्छियभावणाइ उववन्ना / गेविज्जेहिं न सको उववाग्रो अन्नलिंगेणं // 167 ॥जे दंसणवावन्ना लिंगग्गहणं करंति सामगणे / तेसिंपिय उववाश्रो उक्कोसो जाव गेविजा // 168 // इत्थ किर विमाणाणं बत्तीसं वरिणया सयसहस्सा / सोहम्मकप्पवइणो सक्कस्स महाणुभागस्स // 161 // ईसाणकप्पइणो अट्ठावीसं भवे सयसहस्सा / बारस्म सयसहस्सा कप्पम्मि सणंकुमारम्मि // 170 // अट्ठव सयसहस्सा माहिदमि उ भवंति कप्पम्मि / चत्तारि सयसहस्सा कप्पम्मि उ बंभलोगम्मि // 171 // इत्थ किर विमाणाणं पन्नासं लंतए सहस्साइं / चत्तारि महासुक्के छच्च सहस्सा सहस्सारे // 172 // पाणयपाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिनि / सत्त विमाणसयाई चउसुवि एएसु कप्पेसु // 173 // एयाइ विमाणाई कहियाइं जाई जत्थ कप्पम्मि / कप्पवईणवि सुंदरि ! ठिईविसेसे निसामेहि // 174 // दो सागरोवमाई सकस्स ठिई महाणुभागस्स / साहीया ईसाणे सत्तेव सणंकुमारम्मि // 175 // माहिंदे साहियाइं सत्त दस चेव बंभलोगम्मि / चउदस लंतइ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / / 6 श्रीदेवेन्द्रस्तप्रकीर्णकम् ] [79 कप्पे सत्तरस भवे महासुक्के // 176 // कप्पम्मि सहस्सारे अट्ठारस सागरोवमाई ठिई / एगूणवीसाऽऽणयकप्पे वीसा पुण पाणए कप्पे // 177 // पुराणा य इकवीसा उदहिसनामाण श्रारणे कप्पे / यह अच्चुयम्मि कप्पे बावीसं सागराण लिई // 178 // एसा कप्पवईणं कप्पठिई वरिणया समासेणं / गेविजणुत्तराणं सुण अणुभागं विमाणाणं // 171 // तिराणेव य गेविजा हिहिला मन्भिमा य उवरिल्ला / इकिकपि य तिविहं नव एवं हुति गेविजा // 180 // सुदंसणा अमोहा य, सुप्पबुद्धा जसोधरा। वच्छा सुवच्छा सुमणा, सोमणसा पियदंसणा // 181 // एकारसुत्तरं हेट्ठिमए सत्तुत्तरं च मज्झिमए / सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुत्तरविमाणा // 182 // हेटिमगेविजाणं तेवीसं सागरोवमाई ठिई। इकिकमारुहिज्जा अहिं सेसेहिं नमियंगी ! // 183 // विजयं च वेजयंतं जयंतमपराजियं च बोद्धव्वं / सव्वट्ठसिद्धनाम होइ चउराहं तु मज्झिमयं // 184 // पुब्वेण होइ विजयं दाहिणयो होइ वेजयंतं तु। अवरेणं तु जयंतं अवराइयमुत्तरे पासे // 185 // एएसु विमागोसु उ तित्तीसं सागरोवमाई ठिई / सबट्ठसिद्धनामे अजहन्नुकोस तित्तीसा // 186 // हिट्ठिला उवरिला दो दो जुयलद्धचंदसंठाणा / पडिपु. राणचंदसंठाण-संठिया मज्झिमा चउरो॥ 187 // गेविजाऽऽवलिसरिसा गेविजा तिरिण तिगिण यासन्ना / हुल्लुयसंटाणाई अणुत्तराई विमाणाई // 188 // घणउदहिपइट्टाणा सुरभवणा दोसु हुति कप्पेसु / तिसु वाउपइट्टाणा तदुभयसुपइट्ठिया तिनि // 181 // तेण परं उवरिमया भागासंतरपइट्ठिया सव्वे। एस पइट्ठाणविही उड्ड लोए विमाणाणं // 110 // किराहा नीला काऊ तेऊलेसा य भवणवंतरिया। जोइससोहम्मीसाणं तेउलेसा मुणेयव्वा // 111 // कप्पे सणंकुमारे माहिंदे चेव बंभलोए य / एएसु पम्हलेसा तेण परं सुक्कलेसा उ॥ 112 // कणगत्तयरत्तामा सुरवसभा दोसु हुँति कप्पेसु / तिसु हुति पम्हगोरा तेण परं सुकिल्ला देवा // 113 // भवणवइवाणमंतर-जोइसिया Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदाममसुभासिन्धुः * अटमो विनामा हुँति सत्तरयणीया। कप्पवईणऽइसुदरि ! सुण उच्चत्तं सुरवराणं // 114 // सोहम्मीसाणसुरा उच्चत्ते हुलि. सत्तरयणीया / दो दो कप्पा तुल्ला दोसुवि परिहायए रयणी // 115 // गेविज्जेसु य देवा रयणीयो दुन्नि हुति उच्चायो / रयणी पुण उच्चत्तं अणुत्तरविमाणवासीणं // 116 // कप्पायो कप्पम्मि उ जस्स ठिई सागरोवमन्भहिया। उस्सेहो तस्स भवे इकारसभागपरिहीणो॥ 117 // जो अविमाणुस्सेहो पुढवीणं जं च होइ बाहल्लं / -दुराहंपि तं पमाणं बत्तीसं जोयणसयाई॥११८॥ भवणवइवाणमंतर-जोइसिया हुति कायावियारा / कप्पवईणवि सुंदरि ! वुच्छं पवियारणविही उ // 11 // सोहम्मीसाणेसु सुरवरा हुति कायपवियारा / सणंकुमारमाहिदेसु फासपवियारया देवा // 20 // बंभे लंतयकप्पे सुरवरा हुति रूवपवियारा। महसुकसहस्सारे सद्दपवियारया देवा // 201 // प्राणयपाणयकप्पे पारण तह अच्चुए सुकप्पम्मि / देवा मणपवियारा तेण परं चूअपवियारा // 202 / / गोसीसागुरुकेयइ-पत्तपुन्नाग-बउलगंधा य / चंपयकुवलयगंधा तगरेलसुगंधगंधा य // 203 // एसा णं गंधविही उवमाए वरिगया समासेणं / दिट्ठीएवि य तिविहा थिरसुकुमारा य फासेणं // 204 // तेवीसं च विमाणा चउरासीई च सयसहस्साई। सत्ताणउई सहस्साई उडलोए विमाणाणं // 205 // अउणाणउई सहस्सा चउरासीइं च सयसहस्साई / एग्रणयं दिवढ सयं च पुष्पावकिराणाणं // 206 // सत्तेव सहस्साइं सयाई बावत्तराई अट्ठ भवे / श्रावलियाइ विमाणा सेसा पुष्फावकिराणाणं // 207 // श्रावलिाइ विमाणाण अंतरं नियमसो असंखिज्ज। संखिजमसंखिज्जं भणियं पुप्फावकिन्नाणं // 20 // श्रावलियाइ विमाणा वट्टा तंसा तहेव चउरंसा / पुप्फावकिराणया पुण अणेगविह-रूवसंगणा // 201 // वट्ट खु वलयगंपिव तंसा सिंघाडयंपिव विमाणा। चउरंसविमाणा पुण अक्खाडयसंठिया भणिया // 21 // पदमं वट्टविमाणं बीयं तंसं तहेव चउरंसं। एगंतरचउरंसं पुराणोवि व Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / 9 श्रीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् / पुणो तंसं // 211 // वट्ट वट्टस्सुवरि तंसं तंसस्स उप्परि होइ। चउरसे चउरंसं उर्दु तु विमाणसेढीयो // 212 // उवलंबयरज्जूयो सव्वविमाणाण हुँति समियायो / उपरिमचरिमंतायो हिटिलो जाव चरिमंतो॥ 213 // पागारपरिक्वित्ता वट्टविमाणा हवंति सम्वेवि / चउरंसविमाणाणं चउहिसिं वेइया भणिया // 214 // जतो वट्टविमाणं तत्तो तंतस्स वेइया होइ। पागारो बोयो अवसेसाणं तु पासाणं // 215 // जे पुण वट्टविमाणा एगदुवारा हवंति सब्वेवि / तिन्नि य तंसविमाणे चत्तारि य हुति चउरंसे // 216 // सत्तेत य कोडीयो हवंति बावत्तरि सयसहस्सा। एसो भवणसमासो भोमिजाणं सुखराणं // 217 // तिरियोववाइयाणं रम्मा भोम्मनगरा असंखिजा। तत्तो संखिजगुणा जोइसियाणं विमाणा उ // 218 // थोवा विमाणवासी भोमिन्जा वाणमंतरमसंखा। तत्तो संखिजगुणा जोइसवासी भवे देवा // 21 // पत्तेपविमाणाणं देवीणं छभवे सयसहस्सा / सोहम्मे कप्पम्मि उ ईसाणे हुति चतारि // 220 // पंवेवणुतराई अणुत्तरगईहिं जाई दिट्ठाई / जत्थ अणुत्तरदेवा भोगसुहमणुवमं पत्ता // 221 // जत्थ अणुत्तरगंधा तहेव रुवा अगुत्तरा सदा / अचित्तपुग्गलाणं रसो अ फासो श्र गंधो अ॥ 222 // पप्फोडियकलिकलुसा पप्फोडियकमलरेणुसंकासा / वरकुसुममहुकरा इव सुहुमपरं नंदि (दंति) घोति // 223 // वरपउम-गभगोरा सब्बे ते एगगभवसहीयो। गम्भवसहीविमुक्का सुंदरि! सुक्खं अणुहवंति॥२२४॥ तेतीसाए सुंदरि ! वाससहस्सेहिं होइ पुराणेण / थाहाराऽवहि देवाणऽणुत्तरविमाणवासिणं // 225 / / सोलसहि सहस्सेहिं पंचेहिं सएहिं होइ पुराणेहिं / श्राहारो देवाणं मज्झिममाउं धरिताणं // 226 // दस वाससहस्साई जहन्नमाउं धरंति जे देवा / तेसिपि य आहारो चउत्थभत्तेण बोद्धब्बो // 227 // संवच्छरस्स सुंदरि ! मासाणं श्रद्धपंचमाणं च / उस्सासो देवाणं अणुत्तरविमाणवासीणं // 228 // अट्ठमेहिं राइदिएहिं अट्ठहि य सुतणु ! मासेहिं / उस्सासो Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ भीनदानमालातिन अष्टमो विमाला देवाणं मज्झिममाउंधरिताणं ॥२२॥सत्ताह थोवाणं पुराणाणं पुराणइंदुसरिस मुहे ! / ऊसालो देवाणं जहन माउंपरिंताणं / / 230 // जइ सागरोत्रमाईजस्त ठिई तस्स तत्तिएहिं पक्खेहिं / ऊसासो देवाणं वाससहस्सेहिं आहारो॥ 231 // थाहारो ऊमासो एसो मे वनियो समासेणं / सुहुमंतरायनाहि ! (घणाहि) सुंदरि / अचिरेण कालेण // 232 // एएप्ति देवाणं श्रोही उ विसेसो उ जो जस्स / तं सुदरि ! वराणेऽहं श्रहक्कम पाणुपुब्बीए // 233 // सोहम्मीसाण पढमं दुच्चं च सणंकुमारमाहिंदा / तच्चं च बंभलंतग सुक्कसहस्सारय चउत्थिं // 234 // प्राण पपाणयकप्पे देवा पासंति पंचमि पुढदि / तं चेर श्रारणञ्चुय श्रोहियनाणेण पासंति // 235 // छलुि हिटिममझिमगेविजा सत्तमि च उपरिला / संमिनलोगनालिं पासंति श्रणुत्तरा देवा // 236 // संखिजजोयणा खलु देवाणं श्रद्धसागरे ऊणे / तेण परमसंखिजा जहनयं पन्नवीसं तु // 237 // तेण परमसंखिजा तिरियं दीवा य सागरा चेव / बहुपयरं उवरिमया उ8 तु सकप्पथूभाई // 238 / नेरइयदेवतित्थंकरा य ओहिस्सऽबाहिरा हुति / पासंति सव्वश्रो खलु सेसा देसेण पासंति॥२३॥ योहिन्नाणे विसश्रो एसो मे वरिणश्रो समासेणं / बाहल्लं उच्चत्तं विमाणवन्नं पुणो वुच्छं // 240 / / सत्तावीसं जोपणसयाई पुढवीण ताण बाहल्लं / सोहम्मीसाणेसुरयणविचित्ता य सा पुढवी // 241 // तत्थ विमाणा बहुविहा पासायपगइ-वेइयारम्मा। वेरुलियथूभियागा रयणामय-दामलंकारा॥२४२॥ केइत्थऽसियविमाणा अंजणधाउसरिसा सभावेणं / अद्दयरिट्ठ-सवण्णा जत्था. वाप्ता सुरगणाणं // 243 // केइ य हरियविमाणा मेयग-घाऊसरिसा सभावेणं / मोरग्गीव-सवराणा जत्थावासा सुरगणाणं // 244 // दीवसिहासरि. स-बरिणत्थ केई जासुमणसूर-सरिसवन्ना / हिंगुलुय-धा-उबराणा जत्थावासा सुरगणाणं // 245 // कोरिंट-धाउवरिणत्य केई फुल्लकणियार-सरिसवराणा य / हालिद्द-भेयवगणा जत्थावासा सुरगणाणं // 246 // अविउत्त-मल्दामा Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : भीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् ] निम्मलगाया सुगंबनीसासा / सम्बे अाट्ठियवया सयंपभा श्रणिमिसच्छा य // 247 // बावतरि-कलापंडिया उ देवा हवंति सम्बेवि / भवसंकमणे तेसिं पडिवायो होइ नायवो // 248 // कलाण-फलविवागा सच्छंद-विउविया. भरणधारी / श्राभरण-वसणरहिया हवंति साभावियसरीरा // 241 // वत्तु. ल-सरिसवरूवा देवा इक्कम्मि ठिइविसेसम्मि / पञ्चग्गहीण-महिमा श्रोगाहणवराणपरिमाणा // 250 // किराहा नीला लोहिय हालिदा सुकिल्ला विरायंति / पंचसए उविद्धा पासाया तेसु कप्पेसु // 251 // तत्थासणा बहुविहा सयणिज्जा मणिभत्ति-सयविचित्ता। विरइय-वित्थडभूसा रयणामय-दामलं. कारा // 252 // छब्बीस जोयणसयाई पुढवीणं ताण होइ बाहल्लं / सणंकुमारमाहिदे रयणविचित्ता य सा पुढवी // 253 // तत्थ य नीला लोहिय हालिदा सुकिला विरायंति / छच्च सए उविद्धा पासाया तेसु कप्पेसु // 254 // तत्थ विमाणा बहुविहा पासायपगइ-वेइयारम्मा / वेरुलिय-थूभियागा रयणामयदामलंकारा // 255 // पराणावीसं जोत्रणसयाई पुढवीण होइ बाहल्लं / बंभयलंत यकप्पे रयणविचित्ता य सा पुढवी // 256 // तत्थ विमाणा बहुविहा पासायपगइ-वेइयारम्मा। वेरुलियथूभियागा रयणामय-दामलंकारा // 257 // लोहियहालिदा पुण सुकिलवराणा य ते विरायंति / सत्तसए उन्धिद्धा पासाया तेनु कप्पेसु // 258 // चउवीसं जोयणसयाई पुढवीण होइ बाहल्लं / सुक्क य सहस्सारे रयणविचित्ता य सा पुढवी // 25 // तत्थ विमाण बहुविहा पासायपगइ-वेइयारम्मा / वेरुलियथूभियागा रयणामय. दामलंकारा // 260 // हालिदभेयवराणा सुकिलवराणा य ते विरायंति। अट्ट य ते उविद्धा पासाया तेसु कप्पेसु॥ 261 // तत्थासणा बहुविहा सयणिज्जा मणिभत्तिसयविचित्ता / विरइयवित्थडभूसा रयणामयदामलंकारा // 262 // तेवीसं जोयणमयाई पुढवीणं तासि होइ बाहल्लं / श्राणयपाणय-भारणञ्चुए विचित्ता उ सा पुढवी // 263 // तत्थ विमाणा बहुविहा Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ] [दागनुवाति अष्टमी विमान पासायपगइवेइयारम्मा / वेरुलिय-थूभियागा रयणामय-दामलंकारा / / 264 // संखंक-सन्निकासा सव्वे दगरयतुसार-सिरिवराणा / नव य सए उबिद्धा पासाया तेसु कप्पेसु // 265 // बावीसं जोयणसयाइं पुढवीण तासिं होइ बाहुल्लं / गेविजविमाणेसु रयणविचित्ता उ सा पुढवी // 266 // तत्थ विमाणा बहुविहा पासायपगइवेइयारम्मा / वेरुलियथूभियागा रयणामयदामलंकारा // 267 // संखंकसन्निकासा सब्वे दगरयतुसारसविराणा / दस य सए उविद्धा पासाया ते विरायति // 268 // एगवीस जोयणसयाई पुढवीणं तासिं होइ बाहल्लं / पंचसु अणुत्तरेसु रयणविचित्ता य सा पुढवी // 266 / / तत्थं विमाणा बहुविहा पासायपगइवेइयारम्मा। वेरुलियथूभियागा रयणामयदामलंकारा // 270 // संखंकसनिकासा सब्बे दगरयतुसारसरिवराणा / इकारस उविद्धा पासाया ते विरायंति // 271 // तत्थासणा बहुविहा सयणिजा मणिभत्तिसयविचित्ता / विरइयवित्थडभू(दू)सा य रयणामयदामलंकारा // 272 // सव्वट्ठविमाणस्स उ सव्वुवरिल्लाउ थूभियंतायो। बारसहिं जोयणेहिं इसिफभारा तो पुढवी // 273 ॥निम्मलदगरयवराणा तुसारगोखीर-फेणसविराणा / भणिया उ जिणवरेहिं उत्ताणय-छत्तसंठाणा // 274 // पणयालीसं पायाम-वित्थडा होइ सयसहस्साई / तं तिउणं सविसेसं परीरो होइ बोद्धब्बो // 275 // एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्लाई / तीसं चे सहस्सा दो य सया अउणपन्नासा // 276 // खित्तद्धय-विच्छिन्ना अट्ठव य जोयणाणि बाहल्लं / परिहायमाणी चरिमंते मच्छियपत्ताउ तणुययरी // 277 // संखंकसन्निकासा नामेण सुदंसणा अमोहा य / श्रज्जुण-सुवरणयमई उत्ताणय-छत्तसंठाणा // 278 // ईसीपभाराए सीयाए जोयणंमि लोगंतो। तस्सुवरिमम्मि भाए सोलसमे सिद्धमो. गाढे // 271 // कहिं पडिहया सिद्रा ?, कहिं सिद्धा पइट्ठिया ? / कहिं बोंदि चइत्ताणं, कत्थ गंतूण सिझई ! // 280 // अलोए पडिहया सिद्धा, Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / श्रीदेवेन्द्रस्तुप्रकीर्णकम् ] लोयग्गे य पइट्ठिया / इहं बोंदिं चइत्ताणं, तत्थ गंतूण सिझई // 281 // जं संगणं तु इहं भवं चयंतस्त चरमसमयम्मि / प्राप्ती य पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स // 282 // दीहं वा हस्सं वाजं संठाणं हविज चरमभवे / तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिया // 283 // तिन्नि सया छासट्ठा धणुत्तिभागो य होइ बोद्धब्बो / एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया // 284 // चत्तारि य रयणीयो रयणी तिभागणिया य बोद्धव्वा / एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमयोगाहणा भणिया / / 285 // इका य होइ रयणी अट्ठव य अंगुलाई साहीया। एसा खलु सिद्धाणं जहराणयोगाहणा भणिया // 286 // योगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुँति परिहीणा / संठाणमणित्यंत्थं जरामरणविप्पमुक्काणं // 287 // जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्ख विमुक्का / अन्नुन्नसमोगाढा पुट्ठा सव्वे अलोगते // 288 // असरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे य नाणे य / सागारमणागारं लवखणमेयं तु सिद्धाणं // 281 // फुसइ अणंते सिद्धे सव्वपएसेहिं णियमसो सिद्धो। तेवि असंखिजगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा // 210 // केवलनाणुवउत्ता जाणंती सव्वभावगुणभावे / पासंति सम्बयो खलु केवलदिट्ठीयणंताहिं // 211 // नाणंमिदंसणम्मि य इत्तो एगयरम्मि उवउत्ता। सव्वस्स केवलिस्सा जुगवं दो नत्थि उवयोगा // 212 // सुरगणसुहं समत्तं सम्बद्धापिंडियं श्रणंतगुणं / नवि पावइ मुत्तिसुहं ताहिं वग्गवग्गूहिं // 213 // नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नवि य सबदेवाणं / जं सिद्धाणं सुक्खं अवाबाहं उपगयाणं // 214 // सिद्धस्त सुहो रासी सम्बद्धापिंडियो जइ हविजा / णंतगुणवग्ग मइयो सव्वागासे न माइजा // 215 / / जह नाम कोइ मिन्छो नयरगुणे बहुविहे वियाणंतो। न चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए // 216 // इथ सिद्धाणं सुक्खं अणोवमं नत्थि तस्स ग्रोवम्म / किंचि विसेसेणित्तो सारिक्खमिणं सुणह वुच्छ // 217 // जह सव्वकाम Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4] [श्रीमागमसुधारिन् / अष्टमी विभाग गुणियं पुरिसों भोत्तूण भोयण कोई / तराहाछुहाविमुक्को अच्छिज जहा अमियतित्तों // 218 // इय सबकालतित्ता अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता॥२१॥सिद्धत्ति यबुद्धत्तिय पारगयत्ति य परंपरगयत्ति / उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य // 30 // वु(नि)च्छिन्नसबदुक्खा जाइजरामरण-बंधणविमुक्का / सासयमव्वाबाहं अणुहवंति सुहं सया कालं // 301 ॥सुरगणइड्डि-समग्गा सम्वद्धापिंडिया अणंतगुणा / नवि पावइ जिणइढि णंतेहिंवि वग्गवग्रहिं // 302 // भवणवइवाणमंतर-जोइसवासी विमाणगसी य। सब्बिड्डीपरियरिया अरहते वंदया हुति // 303 // भवणवइवाणमंतर-जोइसवासी विमाणवाणी य। इसिवालियमयमहिया करिति महिमं जिणवराणं // 30 // इसिवालियस्स भई सुरवरथयकारयस्स वीरस्स / जेहिं सया थुव्वंता सब्वे इंदा पवरकित्ती // 305 // इसिवा० तेसिं सुरासुरगुरू सिद्धा सिद्धिं उवणमंतु // 306 // भोमेजवणयराणं जोइसियाणं विमाणवासीणं / देवनिकायाणं (णंदउ) थवो समत्तो (सहस्सं) अपरिसेसो / 307 // देविंदस्थयपइराणयं सम्मत्तं // // इति श्री देवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् // 9 // // 10 // अथ श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् // तिहुयणसरीरिवंदं मप्प(संघ)वयणरयणमंगलं नमिउं / समणस्स उत्तम? मरणविहीसंगहं वुच्छं // 1 // सुणह सुयसारनिहसं ससमयपरसमयवायनिम्मायं / सीसो समणगुणड्ड परिपुच्छइ वायगं कंचि // 2 // अभिजाइसत्तविक्कम-सुयसीलविमुत्ति-खंतिगुणकलियं / श्रायारविणयमद्दव-विजाचरमागरमुदारं // 3 // कित्तीगुणगम्भहरं जसखाणिं तवनिहिं सुयसमिद्धं / सीलगुणनाणदंसण-चरित्तरयणागरं धीरं // 4 // तिविहं तिकरणसुद्धं मयरहियं दुविहठाण पुणरत्तं (स्ट)। विणएण कमविसुद्धं चउस्सिरं बारसावत्तं // 5 // योण्यं अहाजायं एयं काऊण तस्स किडकम्मं / भत्तीइ भरियहियो Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि 5-10 भीमरणसमाषिप्रकीर्णकम् ] [80 हरिस वसुभिन्न-रोमंचो॥६॥उवएसहेउकुसलं तं पवयणरयणसिरिघरं भणइ / इन्छामि जाणिउं जे मरणसमाहिं समासेणं // 7 // अभुज्जुयं विहारं इच्छं जिणदेसियं विउपसत्थं / नाउं महापुरिसदेसियं तु अभुज्जुयं मरणं // 8 // तुभित्थ सामि / सुश्रजलहि-पारगा समणसंघनिजवया / तुझ खु पायमूले सामन्नं उजमिस्सामि // 1 // सो भरियमहुरजलहर-गंभीरसरो निसन्नो भणइ / सुण दाणि धम्मवच्छल ! मरणसमाहिं समासेणं // 10 // सुण जह पच्छिमकाले पच्छिमतित्थयर-देसियमुयारं / पच्छा निच्छियपत्थं उविति अभुज्जुयं मरणं // 11 // पबजाई सव्वं काऊणालोयणं च सुविसुद्धं / दमणनाणवरित्ते निस्सल्लो विहर चिरकालं // 12 // पाउव्वेय-समत्ती तिगिच्छिर जह विसारो विजो। रोत्रायंकागहियो सो निस्यं श्राउरं कुणड // 13 // एवं पवयणसुयसार-पारगो सो चरित्तसुद्धीए / पायच्छित्त. विहिन्नू तं अणगारं विसोहेइ ॥१४॥भणइ यतिविहा भणिया सुविहिय! थाराहणा जिणिदेहिं / सम्मत्तम्मि य पढमा नाणचरित्तेहिं दो अण्णा // 15 // सद्दहगा पत्तियगा रोयगा जे य वीरवयणस्स / सम्मत्तमणुसरंता दंसणाराहगा हुति // 16 // संसारसमावराणे य छबिहे मुक्खमस्सिए चेव / एए दुविहे जीवे श्राणाए सबहे निव्वं // 17 // धम्माधम्मागासं च पुग्गले जीवमत्थिकायं च / प्राणाइ सहहता सम्मत्ताराहगा भणिया // 18 // अरहंतसिद्धचेइय-गुरूसु सुयधम्मसाहुवग्गे य / पायरियउवज्झाए पव्वयणे सवसंचे य // 16 // एएसु भतिजुता पूयंता अहरहं श्रणराणमणा / सम्मत्तमणुसरिन्ता परित्तसंसारिया हुति // 20 // सुविहिय ! इमं पइराणं श्रसदहतेहिं रोगजीवेहिं / बालमरणाणि तीए मयाइं काले अणंताई // 21 // एगं पंडियमरणं मरिऊण पुणो बहूणि मरणाणि / न मरंति अप्पमत्ता चरि. त्तमाराहियं जेहिं // 22 // दुविहम्मि अहक्खाए सुसंवुडा पुव्वसंगोमुक्का / जे उ चयंति सरीरं पंडियमरणं मयं तेहिं // 23 // एवं पंडियमरणं जे धीरा Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमदानासपुर : अष्टो निभाका उवमया उवाएम। तस्स डबाए उ इमा परिकम्मविही उ जुजीया // 24 // जे कुम्म-संखताडण-मारुजिन-गगणपंकय-तरूणं / सरिकप्पा सुयकप्पियश्राहारविहारचिट्ठागा // 25 // निचं तिदंडविरया तिगुत्तिगुत्ता तिसल्लनिसल्ला / तिविहेण अप्पमत्ता जगजीवदयारा समणा // 26 // पंचमहव्ययसुत्थिय संपुराणचरित्त सीलसंजुत्ता / तह तह मया महेसी हवंति बाराहगा समणा // 27 // इक्कं अप्पाणं जाणिऊण काऊण अत्तहिययं च / तो नाणदंसणचरित्त-तवसु सुट्ठिया मुणी हुति॥ 28 // परिणामजोगसुद्धा दोसु य दो दो निरासयं पत्ता / इहलोए परलोए जीवियमरणासए चेव // 21 // संसारबंधणाणि य रागहोसनियलाणि चित्तूणं / सम्मदसणसुनिसिय-सुतिक्खधिइ-मंडलग्गेणं // 30 // दुप्पणिहिए य पिहिऊण तिन्नि तिहिं चेव गारवविमुक्का / कायं मणं च वायं मणवयसा कायसा चेव // 31 // तवपरसुणा य चित्तूण तिरिण उजुखंतिविहिय-निसिएणं / दुग्गइमग्गा नरिएण मणवयसा कायर दंडे // 32 // तं नाऊण कसाए चउरो पंचहि य पंच हन्तूणं / पंचासवे उदिराणे पंचहि य महव्वयगुणेहिं // 33 // छज्जीवनिकाए रक्खिऊण छलदोसवजिया जइणो। तिगलेसापरिहीणा पच्छिमलेसातिगजुत्रा य // 34 // एकगदुगतिगचउपण-सत्तट्ठगनव-दमगंठाणेसु / श्रसुहेसु विप्पहीणा सुभेसु सय संठिया जे उ // 35 // वेयणवेयावच्चे इरियट्टाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छ8 पुण धम्मचिंताए // 36 // छसु गणेसु इमेसु य अण्णयरे कारणे समुप्पराणे / कडजोगी श्राहारं करंति जयणानिमित्तं तु // 37 // जोएसु किलायंती सरीरसंकप्प-चे?मचयंता / अविकप्पावजभीरू उविति अब्भुजयं मरणं // 38 // श्रायके उवसग्गे तितिक्खयाभचेरगुत्तीसु / पाणिदयातवहेउं सरीरपरिहार वुच्छेत्रो॥ 31 // पडिमासु सीहनिकीलियासु घोरेसुऽभिग्गहाईसु / छच्चिय अभितरए बझे य तवे समणुरत्ता॥ 40 // अविकलसीलायारा पडिवन्ना जे उ उत्तमं श्रद्ध। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [9 प्रकीर्णकानि :: 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] पुबिल्लाण इमाण य भणिया धाराहणा चेव // 41 // जह पुबटुअगमणो करणविहीणोऽवि सागरे पोयो / तीरासन्नं पावइ रहियोऽवि श्रवल्लगाईहिं // 42 // तह सुकरणो महेसी तिकरण थाराहयो धुवं होइ / ग्रह लहइ उत्तमट्टतं अइलाभत्तणं जाण / / 43 // एस समासो भणियो परिणामवसेण सुविहियजणस्त / इत्तो जह करणिज्ज पंडियमरणं तहा सुणह // 44 // फासेहिंति चरितं सव्वं सुहसीलयं पजहिऊणं / घोरं परीसहचमु अहिया. सिंतो घिनलेणं // 45 // सद्दे स्वे गंधे रसे य फासे य निग्विणधिईए। सब्वेसु कसाएसु य निहंतु परमो सया होहि // 46 // चइऊण कसाए इंदिए य सव्वे य गारवे हेतु। तो मलियरागदोसो करेह धाराहणासुद्धिं // 17 // दंसणनाणचरित्ते पव्वजाईसु जो य अड्यारो।तं सव्वं बालोयहि निरवसेसं पणिहियप्पा // 48 // जह कंटएण विद्धो सव्वंगे वेयणहियो होइ / तह चे उद्रियंमि उ निसलो निवुयो होइ // 41 // एवमणुद्धियदोसो माइलो तेण दुक्खियो होइ / सो चेव चत्तदोसो सुविसुद्धो निव्वयो होइ // 50 // रागदोसाभिहया ससल्लमरणं मरंति जे मूढा / ते दुवखसल्लबहुला भमंति संसारकंतारे // 51 // जे पुण तिगारवजढा निस्सल्ला दंसणे चरिते य / विहरंति मुक्कसंगा खवंति ते सधदुक्खाई // 52 // सुचिरमवि संकिलिट्ठ विहरितं भागसंवरविहीणं / नाणी संवरजुत्तो जिणइ ग्रहोरत्तमित्तेणं // 53 // जं निजरेइ कम्मं असंवुडो सुबहुणाऽवि कालेणं / तं संवुडो तिगुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं // 54 // सुबहुस्सुयावि संता जे मूदा सीलसंजमगुणेहिं / न करंति भावसुद्धिं ते दुक्खनिभेलणा हुँति // 55 // जे पुण सुयसंपन्ना चरित्तदोसेहिं नोवलिप्पंति। ते सुविसुद्धचरित्ता करंति दुवखक्खयं साहू // 56 // पुब्वमकारियजोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि / न भवइ परीसहसहो विसयसुहपराइयो जीवो // 57 // तं एवं जाणंतो महंतरं लाहगं सुविहिएसु। दंसणचरित्तसुद्धीइ निस्सल्लो विहर तं धीर ! // 58 // इत्थ पुण भाव Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः णायो पंच इमा हुति संकिलिट्ठायो। आराहिंत सुविहिया जा निच्चं वजणिजायो // 51 // कंदप्पा देवकिविस अभियोगा आसुरी य संमोहा। एयाउ संकिलिट्ठा असंकिलिट्ठा हवइ छट्ठा // 6 // कंदप्प कोकुयाइय दवसीलो निचहासणकहायो। विम्हावितो उ परं कंदप्पं भावणं कुणइ // 61 // नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहूणं / माई अवराणवाई किधिसियं भावणं कुणइ // 62 // मंताभियोगं कोउग भूईकम्मं च जो जणे कुणइ / सायरसइदिहेउं अभियोगं भावणं कुणइ // 63 // अणुबद्धरोस-बुग्गह-संपत्त तहा निमित्तपडिसेवी / एएहिं कारणेहिं अासुरियं भावणं कुणइ // 64 // उम्मग्गदेसणा नाणमग्गदूसणा मग्गविप्पणासो अ। मोहेण मोहयंतसि भावणं जाण सम्मोहं // 65 // एयाउ पंच वजिय इणमो छट्ठीइ विहर तं धीर ! / पंचसमियो तिगुत्तो निस्संगो सवसंगेहिं // 66 // एयाए भावणाए विहर विसुद्धाइ दीहकालम्मि / काऊण अंतसुद्धिं दंसणनाणे चरित्ते य // 67 // पंचविहं जे सुद्धिं पंचविहविवेगसंजयमकाउं / इह उवणमंति मरणं ते उ समाहिं न पाविति // 68 // पंचविहं जे सुद्धिं पत्ता निखिलेण निच्छयमईया / पंचविहं च विवेगं ते हु समाहिं परं पत्ता // 6 // लहिऊणं संसारे सुदुल्लहं कहवि माणुसं जम्मं / न लहंति मरणदुलहं जीवा धम्मं जिणक्खायं // 70 // किच्छाहि पावियम्मिवि सामराणे कम्मसत्तियोसन्ना / सीयंति सायदुलहा पंकोसनो जहा नागो // 71 // जह कागणीइ हेउं मग्रियणाणं तु हारए कोडिं / तह सिद्धसुहपरुखखा अबुहा सज्जति कामेसु // 72 // चोरो रक्खसपहयो अत्थत्थी हणइ पंथियं मूतो। इय लिंगी सुहरवखसपहयो विसयोउरो धम्मं // 73 // तेसुवि अलद्धपसरा अवियराहा दुविखया गयमईया / समुर्विति मरणकाले पगामभयभेरवं नरयं // 74 // धम्मो न को साहू न जेमियो न य नियंसियं सराहं / इसिंह परं परासुत्ति य नेव- य पत्ताई सुक्खाई // 75 // साहूणं नोवकयं परलोयच्छेय संजमो न करो / दुहनोऽवि Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् / [11 तो विहलो अह जम्मो धम्मरुक्खाणं // 76 // दिक्खं मइलेमाणा मोहमहावत्तसागराभिहया / तस्त अपडिकमंता मरंति ते बालमरणाई // 77 // इय अवि मोहयउत्ता मोहं मोत्तूण गुरुसगासम्मि / बालोइय निस्तल्ला मरिउं पाराहगा तेऽवि // 78 // इत्थ विसेसो भगणइ छलणा अवि नाम हुज जिणकप्पो। कि पुण इयरमुणीणं तेण विही देसियो इणमो॥ 79 // अप्पविहीणा जाहे धीरा सुयसारझरियपरमत्था / ते पायरिय विदिन्नं उविति अब्भुजयं मरणं // 80 // बालोयणाइ 1 संलेहणाइ 2 खमणाइ 3 काल 4 उस्सग्गे 5 / उग्गासे 6 संथारे 7 निसग्ग 8 वेरग्ग , मुक्खाए 10 / / 81 // माणविसे तो 11 लेसा 12 सम्मत्तं 13 पायगमणयं 14 चेव / चउदसश्रो एस विही पढमो मरणंमि नायव्वो॥८२ // विणयोवयार माणस्स भंजणा पूयणा गुरुजणस्स / तित्थयराण य थाणा सुयधम्माऽऽराहणाऽकिरिया // 3 // छत्तीसाठाणेसु य जे पवयणसारझरियपरमत्था। तेसिं पासे सोही पन्नत्ता धीरपु. रिसेहिं // 84 // वयछक्क 6 कायछक्कं 12 बारसगं तह अकप्प 13 गिहिभाणं 14 / पलियंक 15 गिहिनिसिजा 16 ससोभ 17 पलिमजण सिणाणं 18 // 85 // यायारवं च 1 उवधारवं च 2 ववहारविहिविहिन्नू य / उन्बीलगा य धीरा परूवणाए विहिराणू या 3 // 86 // तह य अवायविहिन्नू 4 निजवगा 5 जिणमयम्मि गहियत्था 6 / अपरिस्साई 7 य तहा विस्तासरहस्स निच्छिड्डा 8 // 87 // पढमं अट्ठारसगं अट्ट य ठाणाणि एव भणियाणि / इत्तो दस गणाणि य जेसु उबट्टावणा भणिया // 88 / / अगवट्ठतिगं पारंचिां च तिगमेय छहि गिहीभूया 6 / जाणंति जे उ एए सुअरयणकरंडगा सूरी // 81 // सम्महसणचनं जे य वियाणंति वागमविहिन्नू 7 / जाणंति चरित्तायो श्र निग्गयं श्रपरिसेसायो 8 // 10 // जो श्रारंभे वट्टइ चिअत्तकिच्चो अणणुतात्री य 1 / सोगो य भवे दसमो 10 जेसूवट्ठावणा भणिया // 11 // एएसु विहिविहराणू छत्तीसाठाणएसु जे Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः सूरी / ते पवयणसुहकेऊ छत्तीसगुणत्ति नायव्वो // 12 // तेसिं मेरुमहोयहिमेयणि-ससिसूर-सरिसकप्पाणं / पायमूले य विसोही करणिज्जा सुविहियजणेणं // 13 // काइयवाइय-माणसिय-सेवणं दुप्पयोगसंभूयं / जो अइयारो कोई तं पालोए अगृहितो // 14 // अमुगंमि इग्रोकाले अमुगत्थे अमुगगामभावेणं / जं जह निसेवियं खलु जेण य सव्वं तहाऽलोए // 15 // मिच्छादंसणसल्लं मायासल्लं नियाणसल्लं च / तं संखेवा दुविहं दव्वे भावे यबोद्धव्वं // 16 // वि(ति)विहं तु भावसल्लं दंसणनाणे चरित्तजोगे य / सच्चित्ताचित्तेऽविय मीसए यावि दव्वंमि // 17 / / सुहुमंपि भावसल्लं अणुद्धरित्ता उ जो कुणइ कालं / लजाय गारवेण य न हु सो धाराहयो भणियो॥१८॥ तिविहंपि भावसल्लं समुद्धरित्ता उ जो कुणइ काले / पवजाई सम्मं स होइ बाराहो मरणे // 16 // तम्हा सुत्तरमूलं अविकूलमविदुयं अणुविग्गो / निम्मोहिय-मणिगूढं सम्मं धालोथए सव्वं // 100 // जह बालो जंपंतो कजमकजं च उज्जुयं भणइ / तं तह बालोएजा मायमय-विप्पमुक्को य // 101 // कयपावोऽवि माणूमो पालोइय निंदिउं गुरुसगासे / होइ अइरेगलहुयो योहरियभरोब भारवहो // 102 // लजाइ गारवेण य ज नालोयंति गुरुसगासम्मि / धंतपि सुयसमिद्धा न हु ते बाराहगा हुति / / // 103 // जह सुकुसलोवि विजो अन्नस्म कहेइ अत्तणो वाहिं / तं तह श्रालोयव्वं सुट्ठवि ववहारकुमलेणं // 104 // जं पुव्वं तं पुव्वं जहाणुवि जहक्कम सव्वं / पालोइन सुविहियो कमकालविहिं अभिदंतो॥ 105 // अत्तंपरजोगेहि य एवं समुवट्टिए पयोगेहि। अमुगेहि य अमुगेहि य अमुयग-संगणकरणेहिं // 106 // वराणेहि य गंधेहि य सदफरिस-रसरुवगंधेहिं (सद्देहि य रसफरिसठाणेहिं)। पडिसेवणा कया पजवेहिं कया जेहि य जहिं च // 107 // जो जोगयो अपरिणामश्रो श्र दंसणचरित्तइयारो / छट्ठाण बाहिरो वा छट्ठाणभतरो वावि // 108 // तं उज्जुभावपरिणउ रागं दोसं च पयणु Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि ! 10 श्रीमस्पसमाधिप्रकीर्णकम् ] .. काऊणं / तिविहेण उद्धरिजा गुरुपामूले अहिंतो ॥१०॥नवि तं सत्थं च विसं च दुप्पउत्तु व कुणइ वेयालो।जंतंव दुप्पउत्तं सप्पुब्ब पमाइणो कुद्धो॥११॥ जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि / दुल्लहबोहीयत्तं च अणंतसंसारियत्तं च // 111 // तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भव-लयाणं / मिच्छादंमणसल्लं मायासल्लं नियाणं च // 112 // रागेण व दोसेण व भएण हासेण तह पमाएणं / रोगेणायंकण व वत्तीइ पराभियोगेणं // 113 / / गिहि. विजा-पडिएण व सपक्ख-परधम्मियोवसग्गेणं / तिरियं-जोणिगएण व दिव्वमणूसोवसग्गेणं // 114 // अहिइ व नियडीइ व तह सावयपेल्लिएण व परेणं / अपाण भएण कयं परस्स छंदाणुवत्तीए // 115 // सहसकार-मणाभोगयो अ जं पवयणाहिगारेणं / सन्निकरणे विसोही पुराणागारो य पराणत्ता // 116 // उज्जुअमालोइत्ता इत्तो प्रकरणपरिणाम जोगपरिसुद्रो / सो पयणुइ पइकम्मं सुग्गइमग्गं अभिमुहेइ // 117 // उवहीनियडिपइटो सोहिं जो कुणइ सोगईकामो / माई पलिकुंचतो करेइ बुंदुछियं मूढो // 118 / / थालोयणाइदोसे दस दोग्गइबंधणे परिहरंतते। तम्हा पालोइजा मायं मुत्तूण निस्सेसं // 111 ॥जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु गणेसु / ते तह अलोएमी उबट्ठियो सव्वभावेणं // 120 // एवं उवट्ठियस्सवि बालोएवं विसुद्धभावस्स / जं किंचिवि विस्सरियं सहसकारेण वा चुक्कं // 121 // थाराहयो तहवि सो गारव-परिकुंचणामविहूणो। जिणदेसियस्स धीरो सह. हगो मुत्तिमग्गस्त // 122 // श्राकंपण 1 अणुमाणण 2 जंदिट्ठ 3 बायरं 4 च सुहुमं 5 च / छन्नं 6 सदाउलगं 7 बहुजण 8 अवत्त 1 तस्सेवी // 123 // पालोयणाइ दोसे दस दुग्गइवडणा यमुत्तूणं / आलोइज सुवि. हियो गारवमाया-मयविहूणो // 124 // तो परियागं च बलं पागम कालं च कालकरणं च। पुरिसंजीयं च तहा खित्तं पडिसेवणविहिं च॥१२५॥ जोग्गं पायच्छित्तं तस्स य दाऊण बिति पायरिया / दसणनाणचरित्ते तवे य कुणमप्प Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64] ... श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमो विभागः मायति / / 126 // अणसणमूणोयरिया वित्तिच्छेत्रो रसस्स परिचायो। कायस्म परिकिलेसो छट्टो संलीणया चेव // 127 / / विणए वेयावच्चे पायच्छित्ते विवेग सझाए / अभितरं तवविहिं छटुंझाणं वियाणाहि // 12 // बारसविहम्मिवि तवे अभितरबाहिरे कुसलदि? / नवि अस्थि नवि य होही समायसमं तवोकम्मं // 121 // जे पयणुभत्तपाणा सुयहेऊ ते तवस्सिो समए / जो अ तवो सुयहीणो बाहिरयो सो छुहाहारो॥१३०॥ छट्टट्ठमदस. मदुवालसेहिं अबहुसुयस्स जा सोही / तत्तो बहुतरगुणिया हविज जिमियस्स नाणिस्स // 131 // कल्लं कल्लंपि वरं पाहारो परिमित्रो अ पंतो श्र। न य खमणो पारणए बहु बहुतरो बहुविहो होइ / / 132 // एगाहेण तवस्सी हविज नत्थित्य संसयो कोइ / एगाहेण सुयहरो न होइ धंतपि तूरमाणो // 133 // सो नाम अणसणतवो जेण मणो मंगुलं न चिंतेइ / जेण न इंदियहाणी जेण य जोगा न हायंति॥ 134 // जं अन्नाणी कम्म खवेइ बहुअाहिं वासकोडीहिं / तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ उसासमिरेणं // 135 // नाणे पाउत्ताणं नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं / को निजरं तुलिज्जा चरणे य परकमंताणं ? // 136 // नाणेण वजणिज्ज वजिजइ किजई य करणिज्ज / नाणी जाणइ करणं कजमकज्जं च वज्जेउं // 137 // नाणसहियं चरितं नाणं संपायगे गुणसयाणं / एस जिणाणं थाणा नत्थि चरित्तं विणा णाणं // 138 // नाणं सुसिक्खिय वं नरेण लभ्रूण दुल्लहं बोहिं / जो इच्छइ नाउं जे जीवस्स विसोहणामग्गं // 13 // नाणेण सव्वभावा णज्जती सबजीवलोयंमि / तम्हा नाणं कुसलेण सिक्खियव्यं पयत्तेणं // 140 // न हु सका नासेउं नाणं अरहंतभासियं लोए / ते धन्ना ते पुरिसा नाणी य चरित्तजुत्ता य // 141 // बंधं मुक्खं गइरागयं च जीवाण जीवलोयम्मि / जाणंति सुयसमिद्धा जिणसासण-चेइयविहिरा // 142 // भद्द सुबहुसुयाणं सवपयत्येसु पुच्छणिजाणं / नाणेण जोऽवयारे सिद्धिपि Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकोणेकानि / 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] गएसु सिद्धेसु // 143 // किं इत्तो लट्टयरं अच्छेरययं व सुंदरतरं वा ? / चंदमित्र सबलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति // 144 // चंदाउ नीइ जुराहा बहुस्सुय-मुहायो नीइ जिणवयणं / जं सोऊण सुविहिया तरंति संसारकतारं // 145 // चउदस-पुव्वधराणं श्रोहिनाणीण केवलीणं च। लोगुत्तम-पुरिसाणं तेसिं नाणं अभिन्नाणं // 146 // नाणेण विणा करणं न होइ नाणंपि करणहीणं तु / नाणेण य करणेण य दोहिवि दुक्खक्खयं होइ // 147 // दढमूल-महाणंमिवि वरमेगोऽवि सुयसील-संपराणो / मा हु सुयसीलविगला काहिसि माणं पवयणम्मि // 148 // तम्हा सुयम्मि जोगो कायब्बो होइ अप्पमत्तेणं / जेणाप्पाण परंपि य दुक्खसमुदायो तारेइ // 141 // परमत्थम्मि सुदिट्ठ अविण?सु तवसंजमगुणेसु / लब्भइ गई विसुद्धा सरीरसारे विण?म्मि॥१५० // अविरहिया जस्स मई पंचहिं समिईहिं तिहिवि गुत्तीहि / न य कुणइ रागदोसे तस्स चरित्तं हवइ सुद्धं // 151 // उक्कोसचरित्तोऽवि य परिवडई मिच्छभावणं कुणइ / किं पुण सम्महिट्ठी सारागधम्ममि व?तो ? / // 152 // तम्हा घत्तह दोसुवि काउं जे उज्जमं पयत्तेणं / सम्मत्तम्मि चरित्ते करणम्मि य मा पमारह // 153 // जाव य सुई न नासइ जाव य जोगा न ते पराहीणा / सद्धा व जा न हायइ इंदियजोगा अपरिहीणा // 15 // जाव य खेमसुभिक्खं पायरिया जाव अस्थि निजवगा / इड्डीगारव-रहिया नाणचरण-दंसणंमि रया // 155 // ताव खमं काउं जे सरीरनिवखेवणं विउपसत्थं / समय-पडागाहरणं सुविहिय-इ8 नियमजुत्तं // 156 // हंदि अणिचा सद्धा सुई य जोगा य इंदियाइं च / तम्हा एयं नाउं विहरह तवसंजमुजुत्ता // 157 // ताएयं नाऊणं अोवायं नाणदंसणचरिते। धीरपुरिसाणुचिन्नं करिति सोहिं सुयसमिद्धा // 158 // अभितर-बाहिरियं अह ते काऊण अप्पणो सोहिं / तिविहेण तिविहकरणं तिविहे काले वियडभावा // .151 // परिणाम-जोगसुद्धा उवहिविवेगं च गणविसग्गे य / श्रजाइय-उव Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16] भीमदागमसुभासिन्धुः / अष्टमी विमागः स्सय-वजणं च विगईविवेगं च // 16 // उग्गम-उप्पायण-एसणा-विसुद्धिं च परिहरणसुद्धिं / सन्निहि-संनिचर्यमि य तववेयावच्च-करणे य // 161 // एवं करंतु सोहि नवसारय-सलिल-नहयल-सभावा / कमकाल-दव्वपजव-अत्तपरजोगकरणे य // 162 // तो ते कयसोहीया पच्छित्ते फासिए जहाथामं / पुप्फावकिनयम्मि य तवम्मि जुत्ता महासत्ता // 163 / / तो इंदिय-परिकम्म करिति विसयसह-निग्गहसमत्था। जयणाइ अप्पमत्ता रागदोसे पयणुयंता॥१६४॥ पुव्वमकारिय-जोगा समाहिकामावि मरणकालम्मि / न भवंतिपरीसहसहा विसयसु. हपमोइया-अप्पा॥१६५॥ इंदियसुह-साउलयो घोरपरीसह-पराइयपरभो / अकय-परिकम्म-कीवो मुझइ अाराहणाकाले॥१६६॥बाहंति इंदियाई पुवि दुन्नियमियप्पयाराई / अकय-परिकम्मकीवं मरणे सुत्रसंपउत्तंपि // 167 // श्रागममयप्पभाविय इंदियसुह-लोलुयायइट्ठस्स / जइवि मरणे समाही हुज न सा होइ बहुयाणं // 168 // असमत्तसुयोऽवि मुणी पुब्धि सुकयपरिकम्म-परिहत्थो / संजमनियम-पइन्नं सुहमत्तहियो समराणेइ // 161 // न चयंति किंचि काउं पुचि सुकयपरिकम्म-जोगस्स। खोहं परीसहचर घिईबल-पराइया मरणे। 170 // तोतेऽवि पुवचरणा जयणाए जोगसंगह-विहीहिं। तो ते करिति दसणचरित्तसइ भावणाहेउं // 171 // जा पुब्वभाविया किर होइ सुई चरणदंसणे बहुहा / सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मरस मरणम्मि // 172 / / तं फासेहि चरित्तं तुमंपि सुहमीलयं पमुत्तूणं / सव्वं परीसहचमू अहियासंतो धिबलेणं // 173 // सद्दे रूवे गंधे रसे य फासे य सुविहिय ! जणेहिं / सव्वेसु कसाएसु अनिग्गहपरमो सया होहि // 174 // सव्वे रसे पणीए निज्जूहेऊण पंतलुक्खेहिं / अन्नयरेणु-वहाणेण संलिहे अप्पगं कमसो॥ 175 // संलेहणा य दुविहा अभितरिया य बाहिरा चेव / श्रभितरिय कसाए बाहिरिया होइ य सरीरे॥ 176 // उग्गम-उप्पायण-एसणा-विसुद्धेण असणपाणेणं / मियविरस-जुक्खलूहेण दुबलं कुणसु अप्पागं // 177 // उल्लीणोल्लीणेहि Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 10 भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [80 य अब न एगंत-बद्धमाणेहिं / संलिह सरीरमेयं आहारविहिं पयंणुयंतो // 178 // तत्तो अणुपुव्वेणाहारं उवहिं सुग्रोवएसेणं / विविह-तवोकम्मेहि य इंदिय-विकीलियाईहिं // 17 // तिविहाहिं एसणाहि य विविहेहि थभिग्गहेहिं उग्गेहिं / संजम-मविराहिंतो जहाबलं संलिह सरीरं // 180 // विविहाहि व पडिमाहि य बलवीरियजई य संपहोइ सुह। तायोवि न बाहिती जहक्कम संलिहंतम्मि // 181 // छम्मासिया जहन्ना उकोसा बारिसेव वरिसाइं / आयंबिलं महेसी तत्थ य उकोसयं चिंति // 182 // छट्टटुम-दसम-दुगलसेहिं भत्तेहिं चित्तकट्ठोहिं / मियलहुकं श्राहारं करेहि आयंबिलं विहिणा // 183 // परिवडियोवहाणो राहारु-विराविय-वियडपासुलि-कडीयो / संलिहिय-तणुसरीरो अन्झप्परयो मुणी निच्चं // 184 // एवं सरीरसंलेहणा-विहिं बहुविहंपि फासिंतो। अज्झवसाण-विसुद्धिं खणंपि तो मा पमाइत्था // 185 // अज्झवसाण-विसुद्धी-विवजिया जे तवं विगिट्टमवि / कु वंति बाललेसा न होइ सा केवला सुद्धी // 186 // एयं सराग-संलेहणा-विहिं जइ जई समायरइ। अझप्प-संजुयमई सो पावइ केवलं सुद्धिं // 187 // निखिला फासेयव्वा सरीरसंलेहणा-विही एसा / इत्तो कसायजोगा श्रमपविहिं परम वुच्छं // 188 // कोहं खमाइ माणं मदवया अजवेण मायं च। संतोसेण व लोहं निजिण चत्तारिवि कसाए // 186 / कोहस्स व माणस्स व मायालोमेसु वा न एएसिं / वचई वसं खणंपि हु दुग्गइगइ-बड्डणकराणं // 110 // एवं तु कसायाग्गि संतोसेणं तु विज्झवेयव्यो / रागहो. सपवत्तिं वज्जेमाणस्स विज्झाइ // 111 // जावंति केइ ठाणा उदीरगा हुति हु कसायाणं / ते उ सया वजंतो विमुत्तसंगो मुणी विहरे // 112 // संतोवसंतधिइमं परीसहविहिं व समहियासंतो। निस्संगयाइ सुविहिय ! संलिह मोहे कसाए य // 113 // इट्टाणिठे सु सया सदफरिसरसरूवगंधेहिं / सुहदुवख-निविसेसो जियसंग-परीसहो विहरे // 114 // समिईसु पंचस Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागंमसुधासिन्धुः अष्टमो विमागा मिश्रो जिणाहि तं पंच इंदिए सुट्ठ / तिहिं गारवेहिं रहियो होह तिगुत्तो य दंडेहिं // 115 // सन्नासु पासवेसु अ अट्टे रहे अतं विसुद्धप्पा। रागदोसपवंचे निजिणिउं सम्वणोज्जुत्तो // 116 // को दुवखं पाविज्जा ? कस्स य सुक्खेहिं विम्हो हुजा ? / को व न लभिज मुक्खं ? रागदोसा जइ न हुन्जा // 117 // नवि तं कुणइ अमितो सुटछ विय विराहियो समत्थोवि / जं दोवि अनिग्गहिया करंति रागो य दोसो य // 118 // तं मुयह रागदोसे सेयं चिंतेह अप्पणो निच्चं / जं तेहिं इच्छह गुणं तं बुक्कह बहुतरं पच्छा // 16 // इहलोए श्रायासं अयसं च करिति गुणविणासं च / पसर्वति य परलोए सारीरमणोगए दुक्खे // 200 // घिद्धी ग्रहो अकज्ज जं जाणं तोऽवि रोगरोसेहिं / फलमउलं कडुपरसं तं चेव निसेवए जीगे // 201 // तं जइ इच्छसि गंतु तीरं भवसायरस्स घोरस्स / तो तवसंजम-भंडं सुविहिय ! गिराहाहि तूरंतो / 202 // बहुभयकर-दोसाणं सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं / न हु वसमागंतव्वं रागहोसाण पावाणं // 203 // जं न लहइ सम्मत्तं लभ्रूणवि जं न एइ वेरग्गं / विसयसुहेसु य रजइ सो दोसो रागदोसाणं // 204 // भवसयसहस्स-दुलहे जाइजरामरण-सागरुत्तारे। जिणवयणम्मि गुणागर ! खणमवि मा काहिसि पमायं // 205 // दब्बेहिं पंजवेहि य ममत्तसंगेहिं सुठ्ठवि जियप्पा / निप्पणय-पेमरागो जइ सम्मं नेइ मुक्खत्थं // 206 // एवं कयसलेहं अभितर-बाहिरम्मि संलेहे / संसारमुक्ख. बुद्धी अनियाणो दाणि विहराहि // 207 // एवं कहिय समाही तहविह संवेग-करणगंभीरो / पाउरपञ्चक्खाणं पुणरवि सीहावलोएणं // 208 // न हु सा पुणरत्तविही जा संवेगं करेइ भरणंती। अाउरपञ्चक्खाणे तेण कहा जोइया भुजो // 201 // एस करेमि पणामं तित्थयराणं अणुत्तरगईणं। सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च // 210 // जं किंचिकि दुचरियं तमहं निंदामि सव्वभावणं। सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेमप्रणागारं // 211 // Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रागहोस विसाय 12 // बंधपोर मणवयणकाय कर प्रकीर्णकानि / 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [ 88 श्रभितरं च तह बाहिरं च उवहीं सरीर साहारं / मणवयणकाय-तिकरणसुद्धोऽहं मित्ति पकरेमि // 212 // बंधपत्रोसं हरिसं रइमरई दीणयं भयं सोगं / रागद्दोस विसायं उस्सुगभावं च पयहामि // 213 // रागेण व दोसेण व अहवा अकयन्नुया पडिनिवेसेणं / जो मे किंत्रिवि भणियो तमहं तिविहेण खामेमि // 214 // सव्वेसु य दव्वेसु य उवट्ठियो एस निम्ममत्ताए / श्रालंबणं च पाया दंसणनाणे चरित्ते य // 215 // श्राया पचक्खाणे श्राया मे संजमे तवे जोगो। जिणवयण-विहिविलग्गो अवसेसविहिं तु दंसेहि // 216 // मूलगुण उत्तरगुणा जे मे नाराहिया पमाएणं / ते सव्वे निंदामि पडिकमे श्रागमिस्साणं // 217 // एगो सयंकडाई श्राया मे नाणदंसणवलक्खो / संजोगलवखणा खलु सेसा मे बाहिरा भावा // 218 // पत्ताणि दुहसयाइं संजोगस्सा(वसा)णुएण जीवेणं / तम्हा ग्रंणतदुक्खं चयामि संजोगसंबंधं // 21 // अस्सं जममराणाणं मिच्छत्तं सव्वो ममत्तं च / जीवेसु अजीवेसु य तं निंदे तं च गरिहामि // 220 // परिजाणे मिच्छत्तं सव्वं अस्संजमं अकिरियं च। सव्वं चेव ममत्तं चयामि सव्वं च खामेमि // 221 ॥जे मे जाणंति जिणा अबराहा जेसु जेसु ठाणेसु / ते तह पालोएमि उवडियो सव्वभावेणं // 222 // उत्पन्ना उप्पन्ना माया अणुमग्गयो निहंतव्वा / बालोयण निंदण-गरिहणाहिं न पुणोत्ति या बिइयं // 223 ॥जह बालो जपंतो कजमकजं च उज्जुयं भणइ / तं तह श्रालोयव्वं मायं मुत्तूण निस्सेसं // 224 // सुबहुँ,पे भावसल्लं बालोएऊण गुरुसगासम्मि / निस्सल्लो संथारं उवेइ धाराहयो होइ // 225 // अप्पंपि भावसल्लं जे णालोयंति गुरुसगासम्मि। धंतपि सुयसमिद्धा न हु ते श्राराहगा हुँति / / 226 // नवि तं विसं च सत्यं च दुप्पउत्तो व कुणइ वेवालो। जं तं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमायत्रो कुवित्रो // 227 // जं. कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमों विभाग उत्तमट्टकालम्मि / दुल्लहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च // 228 // तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भव-लयाणं / मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च // 221 / / कयपावोऽवि मणूसो थालोइय निंदिय गुरुसगासे / होइ अइरेगलहुश्रो श्रोहरियभरुव्व भारवहो // 230 // तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसति / तं तह अणुचरियव्वं अणवत्थपसंगभीएणं // 231 // दसदोस-विप्पमुक्कं तम्हा सव्वं अगृह(मग्ग)माणेणं / जं किंचि कयमकज्ज अालोए तं जहावत्तं // 232 // सव्वं पाणारंभं पचक्खामित्ति अलियवयणं च / सव्वं अदिन्नदाणं अब्बंभ-परिग्गहं चेव / / 233 // सव्वं च असणपाणं चउब्विहं जा य बाधिरा उवही। अभितरं च उवहिं जावजीवं तु वोसिरामि // 234 // कंतारे दुभिवखे पायंक वा महया समुष्पन्ने। जं पालियं न भग्गं तं जाणसु पालणासुद्धं // 235 ॥रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दूसियं जं तु / तं खलु पञ्चक्खाणं भावविसुद्धं मुणेयव्वं // 236 // पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाउ बहुयरं हुजां / संसारे संसरंतो माऊणं अन्नमन्नाणं // 237 // नत्थि किर सो पएसो लोए वालग्गकोडिमित्तोऽवि / संसारे संसरंतो जत्थ न जायो मयों वाऽवि // 238 // चुलसीई किर लोए जोणीणं पमुह सयसहस्साई / इकिकमि य इत्तो अणंतखुत्तो समुप्पन्नो // 231 // उड्डमहे तिरियम्मि य मयाणि बालमरणाणिऽणंताणि / तो ताणि संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 240 // माया मित्ति पिया मे भाया भजत्ति पुत्त धूया य। एयाणिचिंतयंतो पंडियमरणं मरीहामि // 241 // मायापिइ-बंधूहिं संसारत्थेहिं पूरिश्रो लोगो। बहुजोणि-निवासीहिं न य ते ताणं च सरणं च / / 242 // इक्को जायइ मरइ इको अणुहवइ दुक्यविवागं। इको अणुसरइ जीयो जरमरण-चउग्गई-गुविलं // 243 // उव्वेयणयं जम्मण-मरणं नरएसु वेयणायो य / एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 244 // इक्क पंडियमरणं छिदइ जाईसयाणि Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 1. श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ) बहुयाणि / तं मरणं मरियव्वं जेण मत्रो सुम्मश्रो (मुक्को ) होई // 245 // कइया णु तं मुमरणं पंडियमरणं जिणेहि पराणत्तं। सुद्धो उद्धियसल्लो पायोवगमं मरीहामि // 246 // संसारचकवाले सव्वेवि य पुग्गला मए बहुसो / श्राहारिया य परिणामिया य न य तेसु तित्तोऽहं // 247 / / श्राहारनिमित्तेणं मच्छा वच्चंतिऽणुत्तरं नरयं / सञ्चित्ताहारविहिं तेण उ मणसावि निच्छामि // 248 // तणकट्टण व अग्गी लवणसमुद्दोव नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं कामभोगेहिं // 24 // लवणयमुहसामाणो दुप्पूरो धणरयो अपरिमिजो। न हु सको तिप्पेउं जीवो संसारियसुहेहिं // 250 // कप्पतरु-संभवेसु य देवुत्तरकुरुवंसपसूएसु। परिभोगेण न तित्तो न य नरविजाहर-सुरेसु॥२५१॥ देविंद-चकवट्टित्तणाई रजाइं उत्तमो भोगा। पत्ता अणंतखुत्तो न यऽहं तित्तिं गयो तेहिं // 252 // पयक्तीरुच्छुरसेसु य साऊसु महोदहीसु बहुसोवि / उववन्नो न य तराहा छिन्ना ते सीयल-जलेहिं // 253 // तिविहेणवि सुहमउलं जम्हा कामरइ-विसयसुवखाणं। बहुसोवि समणुभूयं न य तुह तराहा परिच्छिराणा / / 254 // जा काइ पत्थणायो कया मए रागदोसवप्सएणं / पडिबंधेण बहुविहा तं निंदे तं च गरिहामि // 255 // हंतूण मोहजालं चित्तूण य पट्टकम्म-संकलियं / जम्मणमरणरहट्ट भितण भवा णु मुचिहिसि // 256 // पंच य महब्बयाई तिविहं तिविहेणं थारुहेऊणं / मणवयणकायगुत्तो सन्जो मरणं पडिच्छिज्जा(लहिज्जा) // 257 / कोहं माणं मायं लोहं पिज्जं तहेव दोसं च / चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 258 // कलहं अभक्खाणं पेमुन्नपि य परस्स परिवायं / परिवजितो गुत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 25 // किराहा नीला काऊ लेसं झाणाणि अप्पसत्थाणि / परिवजितो गुत्तो रक्खामि मह. बए पंच // 260 // तेऊ पम्हं सुक्कं लेसा झाणाणि सुप्पसत्थाणि / उवसं. पनो जुत्तो. रक्खामि महव्वए पंच // 261 // पंचिंदियसंवरणं पंचेव Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमो विभागः निलंभिऊण कामगुणे / अचासायण-विरो रक्खामि महब्बए पंच / 262 // सत्तभय-विप्पमुको चतारि निरु भिऊण य कसाए। अट्टमय-टाणजटो रक्खामि महबए पंच // 263 // मणसा मणसचविऊ वायासच्चेण करणसच्चेण / तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महब्बए पंच / 264 // एवं तिदंडविरो तिकरणसुद्धो तिसल्लनिस्सल्लो / तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 265 // सम्मत्तं समिईयो गुत्तीयों भावणायो नाणं च / उपसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 266 // संगं परिजाणामि सल्लंपि य उद्धरामि तिविहेणं / गुत्तीयो समिईयो मज्झ ताणं च सरणं च / / 267 // जह खुहियचकवाले पोयं रयणभरियं समुद्दम्मि / निजामया धरिती कयरय(कर)णा बुद्धि संपराणा // 268 // तवपोधे गुणभरियं परीसहुम्मीहि धणियमाईद्धं / तह बाराहिंति विऊ उवएसज्वलंबगा धीरा // 26 // जइ ताव ते सुपुरिसा पायारोवियभरा निरवयक्खा / गिरिकुहर-कंदरगया माहंति य अप्पणो अट्ठ॥ 270 // जइ ताव सावयाकुल-गिरिकंदर-विसमदुग्ग-मग्गेसु। धिइधणिय-बद्धकच्छा साहति य उत्तमं अट्ठ॥ 271 // किं पुण अणगारसहायगेण वेरग्ग-संगहबलेणं / परलोएण ण सका संसारमहोदहि तरिउं ? // 272 // जिणवयण-मप्पमेयं महुरं कनामयं सुणताणं / सका हु साहुमम्झा साहेऊं अप्पणो अट्ठ॥ 273 // धीरपुरिस-पराणत्तं सप्पुरिस-निसेवियं परमघोरं / धन्ना सिलातलगया साहिंती अप्पणो अट्ठ॥ 27 // बाहेइ इंदियाइं पुवमकारिय-पइट्ठ(राण)चारिस्स / अकयपरिकम्म कीवं मरणेस अ संपउतंमि // 275 // पुबमकारिय-जोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि / न भवइ परीसहसहो विसयसह-पराइयो जीवो // 276 // पुखि कारियजोगो समाहि. कामो य मरणकालम्मि / होइ उ परीसहसहो विसयसुह-निवारियो जीवो ... // 277 // पुब्बिं कारियजोगो अनियाणो ई हेउण सुहभावो / ताहे मलि यकसायो सज्जो मरणं पडिच्छिज्जा॥२७॥ पावाणं पाषाणं कम्माणं अप्पणो Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवीर्णकानि 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् / [ 103 सकम्माणं / सका फ्लाइउं जे तवेण सम्मं पउत्तेणं // 279 // इक्कं पंडियमरणं पडिवजइ सुपुरिसो असंभंतो / खिप्पं सो मरणाणं काहिइ अंत अणंताणं // 280 // किं तं पंडियमरणं ? काणि व बालवणाणि भणियाणि ? / एयाइं नाऊणं किं पायरिया पसंसंति ? // 281 // अणसण-पाउवगमणं पालंवण झाण भावणायो / एयाइं नाऊणं पंडियमरणं पसंसंति // 282 // इंदियसुह-साउलश्रो घोरपरीसह-पराइय-परभो / अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ अाराहणा-काले // 283 // लजाइ गारवेणं बहुसुय-मएण वावि दुचरियं / जे न कहिंति गुरूणं न हु ते बाराहगा हुँति // 284 // सुझइ दुक्करकारी जाणइ मग्गंति पावए कित्तिं / विणिगृहितो निंदं तम्हा यालोयणा सेया // 285 // अग्गिम्मि य उदयम्मि य पाणेसु य पाणबीयहरिएसु। होइ मयो संथारो पडिवज्जइ जो(जइ) असंभंतो // 286 // नवि कारण तणमयो संथारो नवि य फासुया भूमी / अप्पा खलु संथरो होइ विसुद्रो परंतस्स // 287 // जिणवयण-मणुगया मे होउ मई माणजोग-मल्लीणा / जह तम्मि देसकाले अमूढसन्नो चए देहं // 288 // जाहे होइ पमत्तो जिणवयणरहियो अणायत्तो / ताहे इंदियचोरा करेंति तवसंजम-विलोमं // 286 // जिणवयण-मणुगयमई जंवेलं होइ संवरपविट्ठो / अग्गी व वायसहियो समूनडालं डहइ कम्मं // 210 // जह डहइ वायसहियो अग्गी हरिएवि रुखसंघाए / तह पुरिसकार-सहियो नाणी कम्मं खयं नेइ // 211 // जह यग्गिमि व पबले खडपूलिय खिप्पमेव झामेइ / तह नाणीवि सकम्म खवेइ ऊसाममित्तेणं // 212 // न हु मरणम्मि उवग्गे सको बारसविहो सुयक्खंधो / सबो अणुचितेउं धंतपि समत्थचित्तेणं // 213 // इक्कस्मिवि जमि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए / वनइ नरो अविग्धं तं मरणं तेण मरितव्वं // 214 // इम्मिवि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए / सो तेण मोहजालं छिदइ अझप्पयोगेणं // 215 // जेण विरागो जायइ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104) [ श्रीमदागमसुभासिन्धुः / अष्टमो विभागी तं तं सवायरेण करणिज्ज / मुच्चइ हु ससंवेगी अणंतश्रो होइ असंदेगी। // 216 // धम्म जिणपगणतं सम्मतमिणं सदहामि तिविहेणं / तसबायरभूयहियं पंथं निव्वाणमग्गस्स // 1 // (प्रत्यंतरेऽधिका) // समणोऽहंति य पढमं बीयं सम्बत्थ संजयोमित्ति / सव्वं च वोसिरामी जिणेहिं जं जं पडिक्कुटुं // 217 // मणसावि अचितणिज्जं सव्वं भामाइ अभासणिज्जं च / कारण अकरणिज्जं वोसिरि तिविहेण सावज्जं // 218 // अस्संजम-वोसिरणं उबहिविवेगो तहा उवसमो श्र। पडिरूव-जोगविरियो खंतो मुत्तो विवेगो. य / / 211 // एवं पञ्चक्खाणं पाउरजण श्रावईसु भावेणं / अनतरं पडिबन्नो जपतो पावइ समाहिं // 300 // मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य / ते से सरणोवगो सावज्जं वोसिरामित्ति॥ 301 // (इति सिरिमरणविभत्तिसुए संलेहणासुयं सम्मत्तं // 2 // अथ बाराहणासुर्य) सिद्धे उवसंपन्नो अरिहंते केवली य भावेण / इत्तो एगतरेणवि पएण बाराहयो होइ // 302 / / सम्इ नदेयणो पुण समणो हिययम्मि किं निवेसिजा ? श्रालंबणं च काई काऊण मुणी दुहं सहइ ? 303 // नरएसु अणुत्तरेसु श्र अणुत्तरा वेयणायो पत्तायो / वट्टतेण पमाए तायोवि. अणंतसो पत्ता // 304 // एयं सयं कयं मे रिणं व कम्मं पुरा असायं तु। तमहं एस धुणामी मणम्मि सत्तं निवेसिजा // 305 // नाणाविह-दुक्खेहि य समुइन्नेहि उ सम्म सहणिज्ज / न य जोवो उ अजीवो कयपुब्बो वेयणाईहिं // 306 // भुजयं विहारं इत्थं जिणमदेसियं विउपसत्थं / नाउं महापुरिस-सेवियं जं अभूजयं मरणं ॥३०७॥जह पच्छिमम्मि काले पच्छिमतिन्थयर-देसियमुयारं। पच्छानिच्छयपत्थं उवेइ अन्भुजयं मरणं // 308 // छत्तीस-मट्टि(मंडि)याहि य कडजोगीजोग संगहबलेणं // उजमिऊणं बारसविहेण तवनियमठाणेणं // 30 // संसाररं. गमज्झे धिइवल-सन्नद्ध-बद्धकन्छायो / हतूण मोहमल्लं हराहि धाराहण पडागं // 310 / पोराणयं च कम्मं खवेइ अन्नन्नबंधणाया यं (इं)। कम्मकलंकल Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [15 वलिं छिदइ संथारमारूढो // 311 // धीरपुरिसेहिं कहियं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं / उत्तिराणोमि हु रंग हरामि धाराहणपडागं // 312 ॥धीर पडा. गाहरणं करेहि जह तंसि देसकालम्मि / सुत्तस्थमणुगुणितो धिदिनचलबद्धकच्छायो॥ 313 // चत्तारि कसाए तिनि गारवे पंच इंदियग्गामे / जिणिउं परिसहसहे हराहि बाराहणपडागं // 314 // न य मणसा चिंतिजा जीवामि चिरं मरामि व लहुति / जइ इच्छसि तरिउं जे संसारमहो अहिंमपारं // 315 // जइ इच्छसि निसरिउं सव्वेसिं चेव पावकम्माणं जिणवयणनाणदमणचरित्त-भावुज्जुयो जग्ग // 316 // दंसणनाणचरित्ते तवे य बाराहणा चउक्खंधा / सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा मज्झिम जहराणा // 317 // श्राराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खधं / कम्मरयविष्पमुको तेणेव भवेण सिज्झिज्जा // 318 // श्राराहेऊण विऊ मझिमबाराहणं चउवखंधं / उक्कोसेण य चउरो भवे उ गंतूण सिझिजा // 31 // धाराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउपखंधं / सत्त? भवग्गहणे परिणामेऊण सिझिजा // 320 ॥धीरेणवि मरियव्वं काउरिसेणवि अवस्स मरियव्वं / तम्हा अवस्समरणे वरं खु धीरत्तणे मरिउं // 321 // एवं पञ्चक्खाणं अणुपालेऊण सुविहियो सम्मं / वेमाणियो व देवो हविज अहवावि सिज्झिज्जा // 322 // एसो सवियारकयो उवक्कमो उत्तमट्टकालम्मि / इत्तो उ पुणो वुच्छं जो उ कमो होइ अवियारे॥३२३ // साहू कयसलेहो विजियपरीसह-कसायसंताणो। निजवए मग्गिजा सुयरयण-रहस्सनिम्माए // 324 // पंचममिए तिगुत्ते श्रणिस्सिए रागदोसमयरहिए। कडजोगी कालगणू नाणचरणदसणसमिद्धे // 325 // मरणसमाहीकुसले इंगियपत्थिय-सभाववेत्तारे।ववहारविहिविहिराणू अन्भुजयमरणसारहिणो॥ 326 // उव-एसहेउकारण-गुणनिसढा णायकारणविहराणू / विराणाणनाणकरणो-वयारसुय-धारणसमत्थे // 327 // एगंतगुणे रहिया बुद्धीइ चउविहाइ उववेया / छंदगणू पव्वइया पञ्चवखाणंमि य Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106] [श्रीमदार्गमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः विहराणू // 328 // दुराहं पायरियाणं दो वेयावच्चकरणनिज्जुत्ता / पाणग. वेयाचे तवस्सिणो वत्ति दो पत्ता // 32 // उव्वत्तण परिवत्तण उच्चारुस्सासवकरणजोगेसु। दो वायगत्तिणजा सुत्तकरणे जहन्नेणं // 330 // असदह वेयणाए पायच्छित्ते पडिक्कमणए य। जोगायकहाजोगे पञ्चक्खाणे य थायरियो // 331 // कप्पाकप्पविहिन्नू दुवालसंगसुयसारही सव्वं / छत्तीसगुणोवेया पच्छित्तविसा(या)रया धीरा // 332 // एए ते निजवया परिकहिया अट्ठ उत्तमट्ठम्मि / जेसिं गुणसंखाणं न समत्था पायया वुत्तु // 333 // एरिसयाण सगासे सूरीणं पवयणप्पवाईणं / पडिबजिज महत्थं समणो अभुजयं मरणं // 334 // श्रायरियउवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य / जे मे किया कसाया (जंमि कसायो कोइवि) सव्वे तिविहेण खामेमि // 335 // सबस्सवि समणसंघस्स भा(भग)वो अंजलिं करे सीसे / सव्वं खमावइत्ता खमामि सबस्स ग्रहयंपि (खमिज सव्वस्तवि सयंमि // 336 // गरहिता अप्पाणं अपुणकारं पडिकमित्ताण / नाणम्मि दंसणम्मि अ चरित्तजोगाइयारे श्र॥ 337 // तो सीलगुणसमग्गो अणुवहयक्खो बलं च थामं च / विहरिज तवसमग्गो अनिवाणो अागमसहायो // 338 // तवसोसियंगमंगो संधिसिराजाल-पागडसरीरो। किच्छाहिय-परिहत्थो परिहरइ कलेवरं जाहे // 331 // पञ्चक्खाइ य ताहे अननसमाहि पत्तियंमित्ती / तिविहेणाहारविहि दियसुग्गइ-का पगईए // 340 // इहलोए परलोए निरायो जीविए अ मरणे य / सायाणुभवे भोगे जस्स य अवहट्टणाईए // 341 // निम्ममनिरहंकारो निरासयोकिंचणो अपडिकम्मो / वोमट्टविसटुंगो चत्तचियत्तेण देहेणं // 342 // तिविहेणवि सहमाणो परीसह दूसहे अ ऊसग्गे / विहरिज विसयतराहा-रयमलमसुभं विहुणमाणो // 343 // नेहक्खए व दीवो जह खयमुवणेइ दीववट्टिट्टिपि / खीणाहारसिणेहो सरीरवट्टि तह ख़वेइ // 34 // एव परज्मा असई परकमे पुब्रमणियसूरीणं / पासम्मि उत्तम? कुजा तो Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि #10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [ 107 एस परिकम्मं // 345 // श्रागरसमुट्ठियं तह अज्झसिरवागतण-पत्तकडए य। कट्ठसिल्लाफलगंमि व अणभिजय निष्पकप्पंमि // 346 // निस्संधिणा तणंमि व सुहपडिलेहेण जइपसत्थेणं / संथारो काययो उत्तरपुसिरो वावि // 347 // दोसुत्थ अप्पमाणे अंधकारे समम्मि अ णिसि? / निरुवहयम्मि गुणमणे वणम्मि गुत्ते (थणंनिगुत्ते) य संथारो // 348 // जुत्ते पमाणरइयो उभयोकाल-पडिलेहणासुद्धो / विहिविहिश्रो संथारो पारुहियब्बो तिगुत्तेणं // 34 // यारुहियचरित्तभरो अन्नेसु उ (अन्नसउ) परमगुरुसगासम्मि / दव्वेसु पजवेसु य खिते काले य सम्बंमि // 350 // एएसु चेव ठाणेसु चउसु सम्बो चउबिहाहारो। तवसंजमुत्ति किचा वोसिरियव्यो तिगुत्तेणं // 351 // अहवा समाहिहेउं कायवो पाणगस्त थाहारो। तो पाणगंपि पच्छा वो सिरियध्वं जहाकाले // 352 // निसिरेत्ता अप्पाणं सव्वगुणसमनियम्मि निजवए। संथारगसंनिविट्ठो अनियाणो चेव विहरिजा // 353 // इहलोए परलोए अनियाणो जीविए य मरणे य / वासीचंदणकप्पो समो य माणाप्रमाणेसु // 354 // ग्रह महुरं फुडवियडं तहप्पसायकरणिजविसयकयं। इज कहं निजवयो सुईसमन्नाहरणहेउं // 355 // इहलोए परलोए नाणचरणदंसणंमि य अवायं / दसेइ नियाणम्मि य मायामिच्छत्तसल्लेणं // 356 // बालमरगो वायं तह य उवायं अबालमरणम्मि / उस्सासरज्जु. वेहाणसे य तह गिद्धपट्टे य // 357 / / जह य अणु यसल्लो सप्तल्लमरणेण कइ मरेऊणं / दसणनाणविहूणो मरेंतिअसमाहिमरणेणं // 358 // जह सापरसे गिद्वा इथिग्रहंकार-पावसुयमत्ता / श्रोसन्नबालमरणा भमंति संसारकंतारं // 35 // यह मिच्छत्त ससल्ला मायासल्लेण जह ससल्ला य / जह य नियाण ससल्ला मरंति असमाहिमरणेणं // 360 // जह वेयणणावसट्टा मरंति जह केइ इंदियवसट्टा / जह य कसायवसट्टा मरंति असमाहिमरणेणं // 361 // जह सिद्धिमग्ग दुग्गइ-सग्गग्गल-मोडणाणि मरणाणि / मरिऊण Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः केइ सिद्धिं उविति सुप्तमाहिमरणेणं // 362 // एवं बहुपयारं तु अवायं उत्तमढकालम्मि / दंसंति अवायगणू सल्लुद्धरणे सुविहियाणं // 363 // दिति य सिं उपएस गुरुणो नाणाविहेहिं हेऊहिं / जेण सुगइं भयंतो संसारभय दुबाद दुहो) होइ // 364 // न हु तेसु वेयणं खलु अहो चिरम्मित्ति दारुणं दुक्खं / सहणिज्ज देहेणं मणसा एवं विचितिजा / / 365 // सागरतरणथमइ इयस्स पोयस्त जए (उजवे) धूवे / जो रज्जु (रक्ख) मुक्खकालो न सो विलंबत्ति काययो // 366 // तिल्लविहूणो दीवो न चिरं दिप्पइ जगम्मि पञ्चक्खं / न य जलरहियो मच्छो जिग्रइ चिरं नेव उपमाई // 367 // अन्नं इमं सरीरं यन्नोऽहं इय मणम्मि ठविजा। जं सुचिरेणऽवि मोच्चं देहे को तत्थ पडिबंधो ? // 368 // दूरस्थंपि विणासं अवस्समावं उवट्ठियं जाण / जो श्रह वट्टइ कालो अणागयो इत्थ यासिराहा // 366 // जं सुचिरेणवि होहिइ अणावसं तंमि को ममीकारो ? / देहे निस्संदेहे पिएवि सुयणतणं नत्थि // 370 // उबलद्धो सिद्धिपहो न य अणुचरणो पमायदोसेणं / हा जीव ! अप्पवेरिय ! न हु ते एयं न तिपिहिः // 371 // नत्थि य ते संघयणं घोरा य परीसहा अहे निरया। संतारो य असारो अइपमायो य तं जीव ! // 372 // कोहाइकसाया खलु बीयं संसारभेरवदुहाणं / तेसु पमतेसु सया कलो सुक्खो य मुक्खो वा ? // 373 // जायो परव्वसेणं संसारे वेयणायो घोरायो / पत्तायो नारगत्ते यहुया तायो विचिंतिजा / / 374 // इसिंह सयं वसिस्स उ निरुपमसुक्खापसाणमुदूयं(कडुयं)। कल्लाणमोसहं पिव परिणामसुहं न तं दुक्खं // 375 / / संबंधि बंधवेसु य न य अणुरायो खणंपि काययो / तेचिय हुँति अमित्ता जह जणणी बंभदत्तस्स // 376 // वसिऊण व सुहिमज्झे वचइ एगाणियो इमो जीवो / मोत्तूण सरीरवरं जह काहो मरणकालम्मि // 377 // इसिंह व मुलुत्तेणं गोसे व सुएं व अद्ररत्ते वा / जस्स न नजइ वेला कदिवसं गच्छिई जीवो ? // 378 // एवमणुचिंत Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / 10 भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [106 यंतो भावणुभावाणुरत सिरले तो। तदिवस मरिउकामो व होइ माणग्मि उज्जुत्तो // 371 // नरगतिरिक्खगईसु य माणुसदेवत्तणे वसंतेणं / जं सुहदुक्खं पत्तं तं अणुचिंतिज संथारे॥३८०॥ नरएसु वेयणायो अणोवमा सीयउणहवेरा(गा)यो। कायनिमित्तं पत्ता अणंतखुत्तो बहुविहायो॥ 381 // देवत्ते माणुस्से पराहियोगत्तणं उवगएणं / दुक्खपरिक्केसविही अणंतखुत्तो समणुभूया // 382 // भिन्निंदियपंचिंदिय-तिरिक्खकायम्मि णेगसंठाणे / जम्मणमरणरहट्ट अणंतखुत्तो गयो जीवो // 383 // सुविहिय ! अईयकाले अणंतकाएसु तेण जीवेणं / जम्मणमरणमणंतं बहुभवगहणं समणुभूयं // 384 // घोरम्मि गम्भवासे कलमलजंबाल-असुइबीभच्छे / वसियो अणंतखुत्तो जीवो कम्माणुभावेणं // 385 // जोणीमुह निग्गच्छतेण संसार इमे(रिमे)ण जीवेणं / रसियं अबीभच्छ कडीकडाहंतरगएणं // 386 // जं असियं बीभन्छ अईयोरम्मि गम्भवासम्मि / तं चिंतिऊण सयं मुक्खम्मि मई निवेसिजा // 387 // वसिऊण विमाणेसु य जीवो पसरंतमणिमहेसु / वसियो पुणोवि सुच्चिय जोणिसहस्संधयारेसु॥ 388 // वसिऊण देवलोए निच्चुजोए सयंपमे जीयो / वसइ जलवेग-कलमल-विउल-बलयामुहे घोरे // 381 // वसिऊण सुरनरीसर-चामीयररिद्धि-मणहरबरेसु / वसियो नरगनिरंतर-भयभेरवपंजरे जीवो // 310 // वसिऊण विचित्तेसु अ विमाणगणमाण सोमसिहरेसु / वसइ तिरिएसु गिरि-गुहविवर-महाकंदरदरीसु॥३६१॥भुत्तावि भोगसुहं सुरनरखयरेसु पुण पमाएणं / पियइ नरएसु भेरव-कलंत-तउतंबाणाई // 312 // सोऊण मुइयणरवइ-भवे श्र जयसमंगलखोघं / सुणइ नरएसु दुहपरं अक्कंदुद्दामसहाई // 313 // निहण हण गिराह दह पर उबंध पबंध बंध रुदाहि / फाले लोले घोले थूरे खारेहि से गत्तं // 314 // वेयर. णिखारकलिमल-वेसल्लंकुसल-करकयकुलेसु / वसियो नरएसु जीयो हाहणघणघोरसद्दे सु॥ 315 // तिरिएसु व भेरवसद-पक्षण-परपरख / छणास Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11] भीमदागमैसुधासिन्धुः / अष्टमों विभागर एसु / वसियो उब्धियमाणो जीवो कुडिलम्मि संसारे // 316 // मणुयत्तणेवि बहुविह विणिवाय-सहस्सभेसण-घणम्मि / भोगपिवासाणुगो वसियो भय(व)पंजरे जीवो // 317 // वसियं दरीसु वसियं गिरीसु वसियं समुद्दमन्झसु / रुस्खग्गेसु य वसियं संसारे संसरतेणं // 318 // पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलायो बहुयरं हुजा / संसारम्मि श्रणते माईणं श्ररणमराणाणं // 31 // नयणोदगंपि तासि सागरसलिलायो बहुयरं हुजा / गलियं रुयमाणीणं माईणं अण्णमण्णाणं // 40 // नत्थि भयं मरणसमं जम्मणसरिसं न विजए दुक्खं / तम्हा जरमरणकरं छिंद ममत्तं सरीरायो // 401 // अन्नं इमं सरीरं अरणो जीवृत्ति निच्छियमईयो / दुक्खपरीकेसकरं विंद ममत्तं सरीरायो॥ 402 // जावइयं किंचि दुहं सारीरं माणसं च संसारे / पत्तो अणंतखुत्तो कायस्त ममत्तदोसेणं // 403 // तम्हा सरीरमाई अभितर बाहिरं निरवसेसं / विंद ममत्तं सुविहिय ! जइ इच्छसि मुचिउ दुहाणं // 404 // सव्वे उबसग्ग परीसहे य तिविहेण निजिणाहि लहु / एएंसु निजिएसु होहिसि धाराहयो मरणे // 405 // मा हु य सरीरसंतावियो श्र तं झाहि अट्टरुहाई / सुठ्ठवि रूवियलिंगेवि अट्टहाणि स्वंति // 406 // मित्तसुयबंधवाइसु इटाणिढे सु इंदियत्थेसु / रागो वा दोसो वा ईसि मणेणं नकायब्वो / / 407 // रोगायकसु पुणो विउलासु य वेयणासुइन्नासु / सम्मं अहियासंतो इणमो हियएण चिंतिजा // 408 // बहुपलियसागराई सोडाणि मे नरयतिरियजाईसु। किं पुण सुहावसाणं इणमो सारं नरदुहंति ? // 401 // सोलस रोगायंका सहिया जह चकिणा चउत्थेणं / वाससहस्सा सत्त उ सामराणधरं उवगएणं // 410 // तह उत्तमट्टकाले देहे निरक्खयं उबगएणं / तिलछित्तलावगा इव श्रायंका विसहियघायो // 411 // पारियवायगभत्तो राया पट्ठीइ सेट्ठिणो मूढो / अच्चुराहं परमन्नं दासी य सुकोवियमणुस्सा // 412 // सा य सलिलुललोहिय-मंसवसा-पेसिथिग्गलं Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 1. भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] चित्तु / उपइया पट्ठीयो पाई जह रखसवडम्ब // 41 // तेण य निवेएणं निग्गंतूणं तु सुविहियसगासे। पारुहियचरित्तभरो सीहोरसियं समारूढो // 414 // तम्मि य महिहरसिहरे सिलायले निम्मले महाभागो। वोसिरइ थिराइनो सम्बाहारं महतणू य // 415 // तिविहोवसग्ग सहिउँ पडिमं सो श्रद्धमासियं धीरो / गइ य पुवाभिमुहो उत्तमधिइसत्तसंजुत्तो॥४१६॥ सा य पगतंतलोहिय मेयवसा-मंसल-परी(लंघरा)पट्टी। खजइ खगेहिं दूसहनिसट्ठवं. चुप्पहारेहिं // 417 // मसएहिं मच्छियाहि य कीडीहिवि-मंससंपलगाहिं / खज्जतोवि न कंपइ कम्मविवागं गणेमाणो॥ 418 // रत्तिं च पयइविहसियसियालियाहिं निरणुकंपाहिं / उपसग्गिजइ धीरो नाणाविहरूवधाराहिं // 411 // चिंतेइ य खरकरवय-असिपंजरखग्ग-मुग्गरपहायो / इणमो न हु कट्टयरं दुक्खं निरयग्गिदुक्खायो // 420 // एवं च गयो पक्खो बीयो पक्खो य दाहिणदिसाए / अवरेणवि पक्खोवि य समइक्कतो महेसिस्स // 421 // तह उत्तरेण पक्खं भगवं अविकंपमाणसो सहइ / पडियो य दुमासंते नमोत्ति वोतु जिणिंदाणं॥ 422 // कंचणपुरम्मि सिट्ठी जिणधम्मो नाम सावो याती। तस्स इंम चरियपयं तउ एयं कित्तिम मुणिस्त // 423 // जह तेग वितयमुणिणा उबसग्गा परमदूसहा सहिया / तह उबसग्गा सुविहिय ! सहियावा उतमट्ठमि // 424 // निफेडियाणि दुरिणवि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि / न य संजमाउ चलियो मेग्रजो मंदरगिरिव // 425 // जो कुचगावराहे पाणिदया कुंचगंपि नाइक्खे / जीवियमणुपेहंतं मेयजरिसि नमसामि // 426 // जो तिहिं पएहिं धम्मं समइगयो संजमं समारूढो / असमविवेगसंवर चिलाइपुत्तं नमसामि // 427 // सोएहिं अइगयायो लोहियगंधेण जस्स कीडीयो। खायंति उत्तमंगं तं दुकरकारयं वंदे // 428 // देहो पिपीलियाहिं चिलाइपुत्तस्स चालणिव्व कयो / तणुगोवि मणपश्रोसो न य जायो तस्स ताणुवरिं // 426 // धीरो चिलाइपुत्तो मूई. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112] श्रीमशमसुधासिन्धुः अष्टमों विमागः गलियाहिं चालिणिव को। न य धम्मायो चलियो तं दुक्करकारयं वर्दै // 430 // गयसुकुमालमहेसी जह दवो पिइवणंसि ससुरेणं / न य धम्माश्रो चलियो तं दुक्करकारयं वंदे // 431 // जह तेण सो हुयासो सम्मं अइरेगदूसहो सहियो / तह सहियो सुविहिय ! उवसग्गो देहदुक्खं च // 432 // कमलामेलाहरणे सागरचंदो सुईहिं नभसेणं / प्रागंतूण सुरत्ता संपइ संपाइणो वारे // 433 // जा तस्स खमा तइया जो भावोजा य दुक्करा पडिमा। तं अणगार ! गुणागर तुमंपि हियएण चिंतेहिं // 434 // सोऊण निसासमए नलिणिविमाणस्त वराणणं धीरो।संभरियदेवलोबो उज्जेणि अवंतिसुकुमालो॥४३५॥ चित्तूण समणदिक्खं नियमुझिय-सबदिव्वाहारो। बाहिं वंसकुडंगे पायवगमणं निवराणो उ // 436 // वोसट्टनिसटुंगो तहिं सो भुल्लंकियाइ खइयो उ / मंदरगिरिनिवकंपं तं दुकरकारयं वंदे // 437 // मरणंमि जरस मुक्क सुकुसुमगंधोदयं च देवेहिं / अजवि गंधवई सा तं च कुडंगी-सरहाणं // 438 // जह तेण तत्थ मुणिणा सम्मं सुमणेण इंगिणी तिराणा / तह तूरह उत्तमट्टतं च मणे सन्निवेसेह // 431 // जो निच्छएण गिराहइ देहचाएवि न अट्ठियं कुणइ / सो साहेइ सकज्जं जह चंदवसियो राया // 440 // दीवाभिग्गहधारी दूसहघणविणय-निचलनगिंदो / जह सो तिरांणपइराणो तह तूरह तुम पइन्नंमि ॥४४१॥जह दमदंतमहेसी पडयकोरव मुणी थुयगरहियो। श्रासि समो दुराहपि हु एव समा होह सव्वस्थ // 442 ॥जह खंदगसीसेहिं सुकमहामाण-संसियमणेहिं / न कयो मणप्पयोसो पीलिज्जतेसु जंतंमि // 443 // तह धनसालिभदा अणगारा दोवि तवमहिडीया / वेभारगिरिसमीवे नालंदाए समीमि // 444 // जुअलसिलासंथारे पायवगमणं उवगया जुगवं / मासं श्राणगं ते वोसट्टनिसट्टसव्वंगा॥ 445 ॥सीयायव-झडियंगा लग्गुद्धिय-मंसराहारुणि विणट्ठा / दोवि अणुत्तरवासी महसिणो रिद्धिसंपराणा // 446 // अच्छेरयं च लोए ताण तहिं देवयाणुभावेणं / श्रज्जवि Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि.१० श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [ 113 अटिनिवेसं पंकिब्ध सनामगा हत्थी / / 447 // जह ते समसचम्मे दुबलवि. लग्गेवि णो सयं चलिया। तह अहियासेयव्वं गमणे थेवंपिमं दुक्ख // 448 // अयलग्गाम कुडुबिय सुरइयसय-देवसमणयसुभदा / सव्वे उ गया खमगं गिरिगुह-निलयन्नियच्छीय // 441 // ते तं तवोकिलंतं वीसामेऊण विणयपुवागं / उवलद्धपुराणपावा फासुयसुमहं करेसीह // 450 // सुगहियसावयधामा जिगमहिमाणेसु जणियसोहग्गा / जप्तहरमुणिणो पासे निखंता तिव्वसंवेगा॥ 451 // सुगिहिय-जिणवयणामय-परिपुट्ठा सीलसुरहिगंधवा / विहरिय गुरुस्तगासे जिणवरवसुपुज्जतित्थंमि // 452 // कणगावलिमुत्तावलिरयणावलि सीहकीलियकलंता / काही य ससंवेगा आयंबिलवड्डमाणं च // 453 // श्रोसरिया य मणोहर-सिहरंतर-संचरंतपुश्खरयं / बाइकरचलणपंक्य-मिर-सेवियमाल हिमवंतं ॥४५४ारमणिजहरय-तरुवर-परहुअ-सिहिभमरमहुयरिविलोले / अमरगिरिविसय-मणहर जिणवयण-सुकाणणुद्दसे // 15 // तंमि सिलायल पुहवी पंचवि देहट्टिईसु मुणियत्था / कालगया उववरणा पंचवि अपराजियविमाणे // 456 // तायो चइऊण इहं भारहवासे असेसरिउदमणा / पंडुनराहिवतणया जाया जयलच्छिभत्तारा // 457 // ते कराहमरण-दूसह-दुक्खसमुप्पन्न-तिब्वसंवेगा / सुट्टियथेरसगासे निक्खता खायकित्तीया // 458 / / जिट्ठो चउदसपुवी चउरो इक्कारसंगवी श्रासी / विहरिय गुरुस्तगासे जसपडहभरंत-जियलोया // 451 // ते विहरिऊण विहिणा नवरि सुरटुं कमेण संपत्ता / सोउं जिणनिव्वाणं भत्तपरिन्नं करेसीय // 460 // घोराभिग्गहधारी भीमो कुतग्गगहिय-भिक्खायो / सत्तुजयसेल. सिहरे पायोवगयो गयभवोघो / / 461 // पुव्वविराहिय-वंतर-उवसग्गस ह. स्समारुयनगिंदो / अविकंपो ासि मुणी भाईणं इकपासम्मि // 462 // दो मासे संपुराणे सम्म धिइधणिय-बद्धकच्छायो। ताव उवसग्गियो सो जाव उ परिनि. व्वुयो भगवं // 463 // सेसावि पंडुपुत्ता पायोवगया उ निव्व्या सव्वे / एवं Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11. ] [श्रीमदागमसुभासिन्धुः / अष्टमी निमागा धिइसंपन्ना अरणेवि दुहाओं मुच्चंति // 464 // दंडोवि य अणगारो थायावणभूमितंठियो वीरो / सहिऊण वाणघायं सम्मं परिनिव्वुयो भगवं // 465 // सेलम्मि चित्तकूडे सुकोसलो सुट्टियो उ पडिमाए।नियजणणीए खइनो वग्धीभावं उवगयाए // 466 // पडि(णिय)मायगयो अ मुणी लंबेसु ठिो बहुसु ठाणेसु। तहवि य अकलुसभावो सा हु खमा सब्बसाहूणं // 467 // पंचसयापरिखुडया वइरिसी पवए रहावत्ते / मुत्तूणखुड्डगं किर अन्नं गिरि. मस्सियो सुजसो॥४६॥ तत्थ य सो उवलतले एगागी धीरनिच्छयमईश्रो। वोसिरिऊण सरीरं उराहम्मि ठियो वियप्पा(विगयण)णो // 46 // ता सो अइसुकुमालो दिणयरकिरणग्गि-तावियसरीरो / हविपिंडुब्ब विलीण उववराणो देवलोयम्मि // 470 // तस्स य सरीरपूयं कासीय रहेहि लोगपाला उ। तेण रहावत्तगिरी अजवि सो विस्सुत्रो लोए // 471 // भगवंपि वइरसामी विइयगिरि-देवयाइ कन्नपूयो / संपूइयोऽत्थ मरणे कुंजरभरिएण सक्केणं // 472 // पूइयसुविहियदेहो पयाहिणं कुंजरेण तं सेलं / कासीय सुरवरिंदो तम्हा सो कुजरावत्तो // 473 // तत्तो य जोगसंगह-उवहाणवखाणयम्मि कोसंबी। रोहगमवंतिसेणो रुज्झेइ मणिप्पभो भासो(ब्भास) // 474 // धम्मगसुसीलजुयलं धम्मजसे तत्थ रराणदेसम्मि / भत्तं पञ्चक्खा ASS TORREARS इय सेलम्मि उ वच्छगातीरे // 475 // निम्ममनिरहंकारो एगागी सेलकंदरसिलाए / कासीय उत्तम8 सो भावो सबसाहूणं // 476 // उराहम्मि सिलावट्ट जह तं अरहराणएण सुकुमालं / विग्यारियं सरीरं अणुचिंतिजा तमुच्छाहं // 477 // गुब्बर पायोवगयो सुबुद्धिणा णिग्घिणेण चाणको / दवो न य संचलियो सा हु धिई चिंतणिज्जा उ॥ 478 // जह सोवि सप्पएसी वोसट्टनिसिठ्ठ-चत्तदेहो उ / वंसीपत्तेहिं विनिग्गएहिं श्रागासमुक्खित्तो // 476 // जह सा बत्तीसघडा वोसट्ठनिसट्ट-चत्तदेहागा / धीरा- वारण उ दीवएण विगलिम्मि श्रोलझ्या // 480 // जंतेण करकएण व सत्थेहिं व Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् / [ 115 सावएहि विविहेहिं / देहे विद्धस्संते ईसिपि अकप्पणारु(झ)मणा // 481 // पडिणीययाइ केसि चम्मसे खीलएहिं निहणित्ता / महुघय-मक्खियदेहं पिवीलियाणं तु दिजाहि // 482 // जेण विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण करणिज्ज / सुब्बइ हु ससंवेगो इत्थ इलापुत्तदिटुंतो // 483 // समुइराणेसु य सुविहिय ! घोरेसु परीसहेसु सहणेणं / सो अत्थो सरणिज्जो जोऽधीयो उत्तरज्मयणे // 484 // उज्जेणि हत्थिमित्तो सस्थसमग्गो वणम्मि कट्टणं / पायहरो संवरण चिलगभिक्खा वण सुरेसु // 485 // तत्थेव य घणमित्तो चेलगमरणं नईइ तराहाए / निच्छराणेसुऽणज्जंत विटियविस्सारणं कासि // 486 // मुणिचंदेण विदिरणस्स रायगिहि परीसहो महाघोरो। जत्तो हरिवंसविहसणस्स वच्छं जिणिंदस्स // 487 // रायगिहनिग्गया खलु पडिमापडिवनगा मुणी चउरो। सीयविहूय कमेणं पहरे पहरे गया सिद्धिं // 488 // उसिणे तगरऽरहन्नग चंपा मसएसु सुमणभदरिसी। खमसमण अजरक्खिय अचेल्लय यत्ते अ उज्जेणी // 481 // अरईय जाइसूकरो मूयो भयो अ दुलहबोहीयो / कोसंबीए कहियो इत्थीए थूलभदरिसी // 460 // कुलइरम्मि य दत्तो चरियाइ परीसहे समक्खायो / सिट्ठिसुयतिगिच्छणणं अंगुलदीवो य वासम्मि // 411 // गयपुर कुरुदत्तसुयो निसी. हिया अडविदेस पडिमाए। गाविकुविएण दवो गयसुकुमालो जहा भगवं // 412 / / दो अणगारा विजाइयाइ कोसंबि सोमदत्ताई। पायोवगया णदिणेसिजाए सागरे छूटा // 413 // महुराइ महुरखमयो अकोसपरीसहे उ सविसेसो। बीयो रायगिहम्मि उ अज्जुणमालारदिट्ठतो // 414 // कुंभारकडे नगरे खंदगसीसाण जंतपीलणया। एवंविहे कहिजइ जह सहियं तस्स सीसेहिं // 45 // तह झाणनाणवु(जु)तं गीए संठि(पट्ठि)यस्स समुयाणं / तत्तो अलाभगंमि उ जह कोहं निजिणे कराहो // 416 // किसिपारासरटेंटो बीयं तु अलाभगे उदाहरणं / कराहबलभद्दमन्नं चइऊण Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः खमन्निश्रो सिद्धो // 417 // महुरा जियसत्तुसुत्रो अणगारो कालवेसियो रागे। मोग्गलसेलसिहरे खइयो किल सरसियालेणं // 418 // सावस्थी जियसत्तूतणयो निक्खमण पडिम तणफासे / बीरिय पविय विकंत्रण कुसले. सणकढणासहणं // 411 // चंपासु णंदगं चिय साहुदुगुलाइ जल्लखउरंगे। कोसंबि जम्मनिक्खमण वेयणं साहुपडिमाए // 500 // महुराइ इंददत्तोऽ. सक्कारा पायछेयणे सढो / पन्नाइ अजकालग सागरखमणो य दिट्टते // 501 // नाणे असगडतायो खंभगनिधी यणहियासणे भद्दो / दसणपरीसहम्मि उ आसाढभूई उ पायरिया // 502 // चरियार मरणग्मि उ समुइराणपरीसहो मुणी एवं / भाविज निउणजिणमय-उवएससुईइ अप्पाणं // 503 // उम्मग्गसंपयायं मणहत्थिं विसयसुमरियमणंतं। नाणंकुसेण धीरो धरेइ दित्तंपिव गइंदं // 504 // एए उ अहासूरा महिड्डिए को व भाणिउं सत्तो ? / किं वातिमूबमाए जिणगणधर-थेरचरिएसु // 585 // किं चित्तं जइ नाणी सम्मदिट्टी करंति उच्छाहं / तिरिएहिवि दुरणुचरो केहिवि अणु पालियो धम्मो // 506 // अरुणसिहं दवणं मच्छो सरणी महासमुद्दम्मि। हा ण गहिउत्ति काले झस(ड)त्ति संवेगमावराणो // 507 // अप्पाणं निदंतो उत्तरिऊणं महन्नवजलायो / सावजजोगविरयो भत्तपरिराणं करेसीय // 508 // खगडभिन्नदेहो दूसह-सूरग्गिताविय-सरीरो। कालं काऊण सुरो उववन्नो एव सहणिज्जं // 501 // सो वानरजूहबई कंतारे सुविहियाणुकंपाए / भासुरवर-बुदिधरो देवो वेमाणियो जायो // 510 तं सीहसेण-गयवरचरियं सोऊण दुक्करं रराणे / को हु णु तवे पमायं करेज जागो मणुस्सेसु ? // 511 // भुयग-पुरोहियडको राया मरिऊण सल्लइवणम्मि / सुपसत्थ-गंधहत्थी बहुभयगय-भेलणो जायो // 512 // सो सीहचंदमुणिवर-पडिमापडिबोहियो सुसंवेगो। पाणवहालियचोरिय-श्रवं. भपरिग्गह-नियत्तो / / 513 // रागद्दोसनियत्तो छट्टखमणस पारणे ताहे। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / / 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [ 117 श्राससिऊणं पंडं श्रायवतत्तं जलं पासी // 514 // खमगतणनिम्मंसो धवणिसिरोजाल-संतयसरीरो / विहरिय अप्पप्पाणो मुणिउवएसं विचितंतो // 515 // सो अनया णिदाहे पंकोसन्नो वणं निरुत्थारो। चिरवेरिएण दिवो कुक्कुडसप्पेण घोरेणं // 516 // जिणवयणमणुगुणितो ताहे सव्वं चउबिहारं / वोसिरिऊण गइंदो भावेण जिणे नमंसीय // 517 // तत्थ य वणयरसुरवर-विम्हियकीरंत-पूयसकारो / मज्झत्थो श्रासी किर कलहेसु य जजरिज्जतो // 518 // सम्मं सहिऊण तो कालगयो सत्तमंमि कप्पम्मि / सिरितिलयम्मि विमाणे उक्कोसठिई सुरो जायो // 511 // सुयदिठिवायकहियं एवं अखाणयं निसामित्ता / पंडियमरणम्मि मई दढं निवेसिज भावेणं // 520 // जिणवयणमणुस्सट्टा दोवि भुयंगा महाविसा घोरा / कासीय कोसियासथ तणूसु भत्तं मुइंगाणं // 521 // एगो विमाणवासी जायो वरविज-पंजर-सरीरो। बीयो उ नंदणकुले बलुत्ति जवखो महड्डियो // 522 // हिमचूलसुरुप्पत्ती भद्दगमहिसी य थूलभदो य / वेरोवसमे कहणा सुरभावे दंसणे खनणो॥५२३॥ बावीसमाणुपुधि तिरिक्खमणुयावि भेसणटाए। विसयाकंपरवखण करेज देवा उ उवसग्गं // 524 // संघयणधिईजुत्तो नवदसपुवी सुएण अंगा वा / इंगिणि पायोवगमं पडिवजइ एरिसो साहू // 525 // निचल निप्पडिकम्मो निविखवए जं जहिं जहा अंगं। एयं पायोवगर्म सनिहारि वा यनीहारिं / / 526 // पायोवगर्म भणियं समविसमे पायवुब्व जह पडिग्रो / नवरं परप्पयोगा कंपिज जहा फलतरुव्व // 527 // तसपाणबीयरहिए विच्छिराणवियारथंडिलविसुद्धे / एगते निदोसे उविति श्रभुजयं मरणं // 528 // पुव्वभवियवरेणं देवो साहरइ कोऽवि पायाले / मा सो चरिमप्सरीरो न वेणं किंचि पाविजा // 521 // उप्पन्ने उवसग्गे दिव्वे माणुस्सए तिरिवखे थ। सव्वे पराजिणित्ता पायोक्गया पविहरंति // 530 // जह. नाम असी कोसा अन्नो कोसो असीवि खलु अन्नो / इय Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118 ] [ श्रीमदागमनुवासिन्धुः / अष्टमो विमागः मे अन्नो जीवो अन्नो देहुसि मनिजा // 531 // पुत्वावर-दाहिणउत्तरेण वाएहिं अावडतेहिं / जह नवि कंपइ मेरू तह झाणायो नवि चलंति // 532 // पढमम्मि य संघयणे वट्टते सेलकुड्डसामाणे / तेसिपिय वुच्छेश्रो चउदसपुवीण वुच्छेए // 533 // पुढविदगश्रगणिमाख्य-तरुमाइ तसेसु कोइ साहरइ। वोसट्टचत्तदेहो अहाउयं तं परि(डि)विखजा // 534 // देवो नेहेण णए देवागमणं च इंदगमणं वा / जहियं इड्डी कंता सव्यसुहा हुँति सुहभावा / / 535 // उबसग्गे तिविहेवि य अणुछले चेव तह य पडिकूले / सम्मं अहियासंतो कम्मवखयकारयो होइ॥ 536 // एवं पायोवगम इंगिणि पडिकम्म वरिणयं सुत्ते / तिस्थयरगणहरेहि य साहूहि य सेवियमुयारं // 537 // सव्वे सव्वद्धाए सव्वन्नू सब्बकम्मभूमीसु / सव्वगुरू सव्वहिया सव्वे मेरुसु अहिसित्ता // 538 // सव्वाहिवि लद्धीहिं सव्वेऽवि परीसहे पराइत्ता / सवेऽविय तित्थयरा पायोवगयाउ सिद्धिगया॥ 531 // श्रवसेसा अणगारा तीयपडप्पन्नऽणागया सव्वे / केई पायोवगया पञ्चवखाणिंगिणिं केई // 540 // सव्वावि अ अजायो सम्वेऽवि य पढमसंघयणवजा। सव्वे य देसविरया पञ्चक्खाणेण य मरंति // 541 // सव्वसुहप्पभवायो जीवियसारायो सव्वजणिगायो। श्राहारायो रयणं न विजए उत्तम लोए // 542 // विग्गभहगए य सिद्धे मुत्तुं लोगम्मि जंमिया जीवा / सब्वे सव्वावत्यं पाहारे हुँति पाउत्ता // 543 // तं तारिसगं रयणं सारं जं सव्वलोय-रयणाणं / सव्वं परिचइत्ता पायोवगया प(रि)विहरंति // 544 // एयं पायोवगमं निप्पडिकम्मं जिणेहिं पन्नत्तं / तं सोऊणं खमत्रो ववसायपर. कम कुणइ // 545 // धीरपुरिसपराणत्ते सप्पुरिसनिसेविए परमरम्मे / धराणा सिलायलगया निरावयक्का णिवज्जतिं // 546 // सुव्वंति य अणगारा घोरासु भयाणियासु अडवीसु। गिरिकुहर-कंदरासु य विजणेसु य रुक्खहेटेसु॥ 547 // धीधणिय-बद्धकच्छा भीया जरमरण-जम्मणसयाणं / सेल Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि : 10 भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [119 सिला-सयणस्था साहंति उ उत्तमट्ठाई॥ 548 // दीवोदहि-रराणेसु य खयरावहियासु पुणरविय तासु / कमलसिरी-महिलादिसु भत्तपरिना कया थीसु // 546 // जह ताव सावयाकुल-गिरिकंदर-विसमकडग दुग्गासु / साहिति उत्तमटुंधिइधणिय-सहायगा धीरा // 550 // किं पुण अणगारसहायगेण अराणुनसंगहबलेणं / परलोए य न सका साहेउं अप्पणो अटुं? // 551 // समुइन्नेसु अ सुविहिय ! उवसग्गमहब्भएसु विविहेसु। हियएण चिंतणिज्जं रयणनिही एस उवसग्गो // 552 // किं जायं जइ मरणं अहं च एगाणियो इहं पाणी / वसियोऽहं तिरियत्ते बहुसोएगागियो रगणे // 553 // वसिऊणवि जणमझे वच्चइ एगागियो इमो जीवो / मुत्तूण सरीरघरं मच्चुमुहा-कड्डियो संतो॥ 554 // जह बीहंति अ जीया विविहाण विहासियाण एगागी / तह संसारगएहिं जीवहिं विहेसिया अन्ने // 555 // साययभयाभिभूयो बहूसु अडवीसु निरभिरामासु / सुरहिहरिण-महिस-सूयरकरवोडिय रुवखछायासु // 556 / / गयगवय-खग्गगंडय-वग्यतरच्छच्छ-भल्लचरिया / भल्लुकि कंक-दीविय-संचरसम्भाव-किराणासु॥ 557 // मत्तगइंदनिवाडिय-मिल्लपुलिंदावकुडियवणासु। वसियोऽहं तिरियत्ते भीसणसंसारचारम्मि // 558 // कत्थ य मुद्धमिगत्ते बहुसो अडवीसु पयइविसमासु / वग्धमुहावडिएणं रसियं अइभीयहियएणं // 551 // कथइ अइदुप्पिक्खो भीसणविगराल-घोरवयणोऽहं / यासि महविय वग्यो रुरुमहिस-वराह- विवश्रो // 560 // कथइ दुधिहिएहिं रक्खसवेयालभूयरूवेहिं / छलियो वहिश्रो य अहं मणुस्सजम्मम्मि निस्सारो // 561 // पयइकुडिलम्मि कत्थइ संसारे पाविऊण भूयत्तं / बहुतो उब्धियमाणो मएवि बीहाविया सत्ता // 562 // विरसं पारसमाणो कत्थइ रराणेसु घाइयो श्रयं / सावयगहणम्मि वणे भाभीरू खुभियचित्तोऽहं // 563 // पत्तं विचित्तविरसं दुवखं संसारसागरगएणं / रसियं च असरणेणं कयंत-दंतंतरगएणं // 564 // तइया कीस न Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12. ] ... ( श्रीमदागमसुभासिन्धुः / अष्टमो विभाम: हायइ जीवो जइया सुसाणपरिविद्धं / भल्लु कि-कंक-वायससासु दोकिजए देहं // 565 // ता तं निजिणिऊणं देहं मुत्तूण वच्चए जीवो / सो जीवो अविणासी भणियो तेलुकदंसीहि // 566 // तं जइ ताव न मुच्चइ जीवो मरणस्स उब्वियंतोवि / तम्हा मज्झ न जुजइ दाऊण भयस्स अप्पाणं // 567 / / एवमणुचिंतयंता सुविहिय ! जरमरणभावियमईया / पावंति कयपयत्ता मरणसमाहिं महाभागा // 568 // एवं भावियचित्तो संथारवरंमि सुविहिय ! सयावि / भावेहि भावणाश्रो बारस जिणवयणदिट्ठायो॥५६॥ इह इत्तो चउ. रंगे चउत्थमग्गं(मंग) सुसाहुधम्मम्मि / वन्नेइ भावणायो बारसंगविऊ // 570 // समणेण सावएण य जायो निच्चपि भावणिजाजो। दढसंवेग-करीयो विसेसो उत्तमम्मि // 571 // पदमं अणिचभावं असरणयं एगयं च अन्नत्तं / संसार-मसुभयाविय विविहं लोगस्सहावं च // 572 // कम्मस्स पासवं संवरं च निजरणमुत्तमे य गुणे / जिणसासणम्मि बोहिं च दुलहं स्तिए मइमं // 573 // सव्वट्ठाणाई असासयाई इह चेव देवलोगे य / सुरासुरनराईणं रिद्धिविसेसा सुहाई वा // 574 // मायापिईहिं सहवडिएहि मित्तेहिं पुत्तदारेहिं / एगययो सहवासो पीई पणोऽवित्र अणिचो // 574 / / भवणेहिं व वणेहि य सयणासण-जाणवाहणाईहिं / संजोगोवि अणिचो तह परलोगेहिं सह तेहिं / 576 // बलवीरिय-रूवजोवण-सामग्गीसुभगया . वसोभा ।देहस्स य थारुगं असासयं जीवियं चेव ॥५७णा जम्मजरामरणभए ... अभिद दुए विविह वाहिसंतत्ते / लोगम्मि नत्थि सरणं जिणिंदवर-सासणं मुत्तुं // 578 // थाणेहि य हत्थीहि य पव्वयमित्तेहिं निचमित्तेहिं / सावरणपहरणेहि य बलवयमत्तेहिं जोहेहिं // 579 // महया भडचडगर-पहकरेण अवि चकवट्टिणा मच्चू / न य जियपुवो केणइ नीइवलेणावि लोगम्मि // 580 // विविहेहि मंगलेहि य विजामंतोसही-पयोगेहिं / नवि सका तारेउ मरणा णवि रुगणसोएहिं / / 581 // पुत्ता मित्ता य पिया सयणो बंधवजणो श्र Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानिः॥ 1. श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णका ] [11 अत्यो य / न समत्था ताएउ मरणा सिंदावि देवगणा // 582 // सयणस्स य मझगयो रोगाभिहयो किलिस्सइ इहेगो। सयणोऽविय से रोगं न विरिं. चइ नेव नासेइ // 583 // 2 / मज्झम्मि बंधवाणं इक्को मरइ कलुणस्यंताणं / न य णं अन्नेति तयो बंधुजणो नेव दाराई / / 584 // इको करेइ कम्म फलमवि तस्सेको समणुहवइ / इको जायइ मरइ य परलोयं इक्कयो जाई // 585 // पत्तेयं पत्तेयं नियगं कम्मफल-मणुहवंताणं / को कस्स जए सयणो ? को कस्स व परजणो भणियो ? // 586 // को केण समं जायइ को केण समं च परभवं जाई / को वा करेइ किंत्री कस्स व को कं नियत्तेइ ? // 587 // अणुसोयइ अराणजणं अन्नभवंतरगयं तु बालजणो / नवि सोयइ अप्पाणं किलिस्समाणं भवसमुद्दे // 588 // 3 / अन्नं इमं सरीरं अन्नोऽहं बंधवाविमे अन्ने / एवं नाऊण खमं कुसलस्स न तं खमं काउं ? // 581 // 4 / हा ! जह मोहियमइणा सुग्गइमग्गं अजाणमाणेणं / भीमे भवकतारे सुचिरं भमियं भयकरम्मि // 510 // जोणिसय-सहस्सेसु य असई जायं मयं वऽणेगासु / संजोग विषयोगा पत्ता दुक्खाणि य बहूणि // 11 // सग्गेसु य नरगेसु य माणुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं / जायं मयं च बहुसो संसारे संसरतेणं // 512 // निभत्थणावमाणण-वहबंधण-रुंधणा धणविणासो / णेगा य रोगसोगा पत्ता जाईसहस्सेसु // 513 // सो नत्थि इहोगासो लोए वालग्गकोडिमित्तोऽवि / जम्मणमरणाबाहा अणेगसो जत्थ न य पत्ता // 514 // सव्वाणि सव्वलोए रूवी दव्वाणि पत्तपुव्वाणि / देहोवक्खर-परिभोगयाइ दुवखेसु य बहूसु॥ 515 // संबंधि-बंधवत्ते सव्वे जीवा अणेगसो मझ। विविहवह-वेरजणया दासा सामी य मे पासी // 516 // लोगसहावो धी धी जत्थ व माया मया हवइ धूया। पुत्तोऽवि य होइ पिया पियावि पुत्तत्तणमुवेइ // 517 // जत्थ पियपुत्तगस्सवि माया छाया भवतरगयस्स / तुट्ठा खायइ मंसं इत्तो कि कट्ठयरमन्नं 1 // 518 // Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122 ) श्रीमदागमनुयासिन्धुः अष्टमो विभागः धी संमारो जहियं जुवाणयो परमरूव-गब्धिययो / मरिऊण जायइ किमी तत्थेव कलेवरे नियए // 511 // बहुसो अणुभूयाई अईयकालम्मि सव्वदुवखाई / पाविहिइ पुणो दुवखं न करेहिइ जो जणो धम्मं // 600 / / 5 / धम्मेण विणा जिणदेसिएण नन्नत्थ अस्थि किंचि सुहं / ठाणं वा कज्जं वा सदेवमणुयासुरे लोए // 601 // अत्थं धम्म कामं जाणि य कजाणि तिन्नि मिच्छति / जं तत्थ धम्मकन्जंतं सुभमियराणि असुभाणि // 602 // श्रायासकिलेसाणं वेराणं श्रागरो भयकरो य / बहुदुक्ख-दुग्गइकरो अत्थो मूलं अणत्थाणं // 603 // किच्छाहि पाविउ जे पत्ता बहुभय-किलेस-दोस्करा / तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविवरणा कामा / / 604 // 6 / नत्थि इहं संसारे ठाणं किंचिवि निरुवद् दुयं नाम / ससुरासुरेसु मणुए नरएसु तिरि. वखजोणीसु // 605 // बहुदुक्ख-पीलियाणं मइमूदाणं अणवसगाणं / तिरियाणं नस्थि सुहं नेरइयाणं कयो चेव ? // 606 // हरगम्भवास जम्म. ण-वाहिजरामरण-रोगसोगेहिं / अभिभूए माणुस्से बहुदोसहिं न सुहमस्थि // 607 / / मंसट्टियसंघाए मुत्तपुरीसभरिए नवच्छिद्दे / असुई परिस्सर्वते सुहं सरीरम्मि किं यत्थि ? // 608 // इट्ठजण-विपयोगो चषणभयं चेव देवलोगायो। एयारिसाणि सग्गे देवावि दुहाणि पाविति // 601 // ईसाविसाय-मयकोह-लोहदोसेहिं एवमाईहिं / देवावि समभिभूया तेसुवि य कयो सुहं अस्थि ? // 610 ॥एरिसय-दोसपुराणे खुत्तो संसारसायरे जीवो। जं अइचिरं किलिस्सइ तं वासवहेउग्रं सव्वं // 611 // रागदोसपमत्तो इंदियवसयो करेइ कम्माई / यासवदारेहिं अविगुहेहिं तिविहेण करणेणं // 612 // धीधी मोहो जेणिह हियकामो खलु स पावमायर३ / न हु पावं हवइ हियं विसं जहा जीवियत्थिस्स // 613 // रागस्स य दोसस्स य धिरत्थु जं नाम सद्दतोऽवि / पावेसु कुणइ भावं पाउरविजय अहिएसु // 614 // लोभेण अहव पत्थो कज्जं न गयेइ याय-अहियपि / अइलो. Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णम् ] [ 123 हेण विणस्सइ मच्छुव्व जहा गलं गिलियो॥ 615 // अत्थं धर्म कामं तिरिणवि बुद्धो जणो परिचयइ / ताई करेइ जेहि उ (न) किलिस्सइ इहं परभवे य // 616 // हुँति अजुत्तस्स विणासगाणि पंचिंदियाणि पुरिसस्स / उरगा इव उग्गविसा गहिया मंतोसहीहि विणा // 617 // यासवदारेहिं सया हिंसाईएहिं कम्ममासवइ / जह नाराइ विणासो छिद्दे हि जलं उयहि-मज्झे // 618 // 8 / कम्मासवदाराई निलंभियब्वाइं इंदियाइं च / हंतव्वा य कसाया तिविहं तिविहेण मुक्खत्थं // 616 // निग्गहिय-कसाएहिं पासवा मूलयो हया हुँति / अहियाहारे मुक्के रोगा इव थाउरजणस्स // 620 // नाणेण य झाणेण य तवोबलेण य बला निरंभंति / इंदियविसय कसाया धरिया तुरगा व रज्जूहिं // 621 // हुँति गुणकारगाइं सुयरज्जूहिं धणियं नियमियाइं / नियगाणि इंदियाइं जइणो तुरगा इव सुदंता // 622 // मणवयण-कायजोगा जे भणिया करणसरिणया तिरिण / ते जुत्तस्स गुणकरा हुँति अजुत्तस्स दोसकरा // 623 // जो सम्मं भूयाई पासइ भूए अ श्रप्पभूए य / कम्ममलेण न लिप्पइ सो संवरियासवदुवारो // 624 // 1 / धराणा सत्त हियाई सुणंति धरणा करंति सुणियाइं / धराणा सुग्गइमग्गं मरंति धरणा गया सिद्धिं // 625 // धराणा कलत्तनियलेहिं विप्पमुक्का सुमत्तसंजुत्ता / वारीयोव गयवरा घरवारीयोवि निष्फिडिया // 626 // धराणा उ करंति तवं संजमजोगेहिं कम्ममट्टविहं / तवसलिलेणं मुणिणो धुणंति पोराणयं कम्मं // 627 // नाणमयवायसहियो सीलुजलियो तवो मयो अग्गी / संसारकरणबीयं दहइ दवग्गीव तणरासिं // 628 // 10 / इणमो सुगइगइपहो सुदेसियो उविखयो य जिणवरेहिं / ते धन्ना जे एयं पहमणवज्ज पवज्जति // 626 // जाहे य पावियव्वं इह परलोए य होइ कल्लाणं / ता एवं जिणकहियं पडिवजइ भावो धम्मं // 630 // जह जह दोसोवरमो जह जह विसएसु होइ वेरग्गं / तह तह विजाणयाहि Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 } [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः आसन्नं से पयं परमं // 631 // 11 / दुग्गो भाकंतारे भममाणेहिं सुचिरं पणट्ठोहिं / दिट्ठो जिणोवदिट्ठो सुग्गइमग्गो कहवि लद्धो // 632 / / माणुस्त-देसकुल-कालजाइ-इंदियबलोवयाणं च / विनाणं सद्धा दंसणं च दुलहं सुसाहूणं // 633 // पत्तेसुवि एएसु मोहस्सुदएण दुलहो सुपहो / कुपहब हुयत्तणेण य विसयसुहाणं च लोभेणं // 634 // सो य पहो उवलद्धो जस्त जए बाहिरो जणो बहुयो / संपत्तिच्चिय न चिरं तम्हा न खमोपमायो भे॥ 635 // जह जह दढप्पइराणो समणो वेरग्गभावणं कुणइ / तह तह असुभं श्रायव-हयं व सीयं खयमुवेइ // 636 / एगहोरत्तेणवि दढपरिणामा अणुत्तरं जंति / कंडरियो पुंडरियो ग्रहरगई-उड्ढगमणेसु॥ 637 // 12 // बारसवि भावणायो एवं संखेवयो समत्तायो। भावेमाणो जीवो जायो समुवेइ वेरग्गं // 638 // भाविज भावणायो पालिज वयाई रयणमरिसाई। पडिपुगगा-पावखमणे अइरा सिद्धिपि पावहिसि // 631 // कत्थइ सुहं सुरसमं कत्थइ निरयोवमं हवइ दुक्खं / कथइ तिरियसरित्थं माणुमजाई बहुविचित्ता // 640 // दणवि अप्पसुहं माणुस्सं णेगदोस(सोग). संजुतं / सुट्ठवि हियमुबइ8 कज्जं न मुणेइ मूढजणो // 641 // जह नाम पट्टणगया संते मुल्लंमि मूदभावेणं / न लहंति नरा लाहं माणुसभावं तहा पत्ता // 642 // संपत्ते बलविरिए सम्भाव-परिवखणं अजाणता / न लहंति बोहिलाभ (नरा बोहिं) दुग्गइमग्गं च पावंति // 643 // अम्मापियरो भाया भजा पुत्ता सरीर अत्यो य / भवसागरंमि घोरे न हुँति ताणं च सरणं च // 644 // नवि माया नवि य पिया न पुनदारा न चेव बंधुजणो / नवि य धणं नवि धन्नं दुवखमुइन्नं उवसमेंति // 645 // जइया सयणिजगयो दुक्खत्तो सयणबंधु-परिहीणो / उव्वत्तइ परियत्तइ उरगो जह अग्गिमममि // 646 // श्रसुइ सरीरं रोगा जम्मण-सयसाहणं छुहा तराहा। उराहं-सीयं वायो पहाभिघाया यऽणेगविहा // 647 // सोगजरामरणाई परिस्समो दीणया य Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि // 10 भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [ 125 दारिद। तहय पियविप्पयोगा अधियजण-संपयोगा य // 648 // एयाणि य अगणाणि य माणुस्से बहुविहाणि दुक्खाणि / पचक्खं पिक्खंतो को न मरइ तं विचितंतो ? // 641 // लभ्रूणवि माणुस्सं सुदुलहं केइ कम्मदोसेणं। सायासुह-मणुरत्ता मरणसमुद्देऽवगाहिति // 650 // तेण उ इहलोगसुहं मोत्तूणं माणसंसिय-मईयो। विरतिवख-मरणभीरू लोगसुई-करण-दोगुंछी // 651 // दारिद-दुक्खवेयण-बहुविहसीउगह-खुप्पिवासाणं / श्ररईभयसोगसामिय तकरदुभिवख-मरणाई // 652 // एएसिं तु दुहाणं जं पडिवक्खं सुहंति तं लोए। जं पुण अच्चंतसुहं तस्त परुखखा सया लोया // 653 // जस्त न छुहा ण तराहा नय सीउगहं न दुक्खमुकिट्ठ / न य असुइय सरीरं तस्सऽसणाईसु कि कज्जं ? // 654 // जह निंबदु-मुप्पन्नो कीडो कडुयंपि मन्नए महुरं / तह मुक्खसुह-परुक्खा संसारदुहं सुहं विति // 655 // जे कडयदु-मुष्पन्ना कीडा वरकर-पायव-गरुक्खा। तेसि विसालवल्ली विसं व सग्गो य मुक्खो य // 656 // तह परतित्थियकीडा विसयविसंकुर-विमूढदिट्ठीया। जिणसासणकप्पतरु-वरपारुक्खरसा किलिस्संति // 657 / / तम्हा सुवखमहातरु-सासयसिवफलय-सुवखसत्तेणं / मोत्तूण लोगसराणं पंडियमरणेण मरियध्वं // 658 // जिणमय-भावियचित्तो लोगसुईमल-विरेयणं काउं / धम्ममि तयो भाणे सुक्के य मई निवेसेह // 651 // सुणह-जह जिणवयणामय रस भावियहियएण झाणवावारो। करणिज्जो समणेणं जं भाणं जेसु भायव्वं // 660 // इति संले(बारा)हणासुयं // एवं 'मरणविभत्तिमरणविसोहिं च नाम गुणरयणं / मरणसमाही तइयं संलेहणसुयं चउत्थं च // 661 // पंचम भत्तपरिगणा छ8 ग्राउरपञ्चवखाणं च / सत्तम महपञ्चखाणं अट्ठम बाराहणपइराणो // 662 // इमायो अट्ट सुयायो भावा उ गहियंमि लेस प्रत्यायो। मरणविभत्ती रइयं बिय नाम मरणसमाहिं च // 663 // इति सिरिमरणविभत्तीपइराणयं संमत्तं // // इति भी मरणसमापि(विभकि)प्रकीर्णकम् // 10 // Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धु अष्टमो विभागः // परिशिष्टम् // मतान्तरेण प्रकीर्णकदशकगत-प्रकीर्णद्वयम् / / // 1 // श्रीचन्द्रवेध्यक-प्रकीर्णकम् // जगमत्थयट्ठियाणं विगसिय-वरनाणसण-धराणं / नाणुजोयगराणं लोगम्मि नमो जिणवराणं // 1 // इणमो सुणह महत्थं निस्संदं मुखमग्गसुत्तरस / विगहनियत्तिचित्ता सोऊण य मा पमाइत्थ // 2 // विणयं पायरियगुणे सी सगुणे विणयनिग्गहगुणे य। नाणगुणे चरणगुणे मरणगुणे इत्थ वुच्छामि // 3 // दारगाहा // .. ( 1 ) विणयो:जो परिभवइ मणुस्सो पायरियं जत्थ सिम्खए विज्ज / तस्स गहि. यावि विजा दुःखेणवि निष्फला होइ // 4 // थद्धो विणयविहूणो न लहइ कित्तिं जसं च लोगम्मि / जो परिभवं करेइ गुरूण गुरुयाइ कम्माणं // 5 // सव्वत्थ लभिज नरो विस्संभं पचयं च कित्तिं च / जो गुरुजणोवइट्ठ विज विणएण गिह्निजा॥ 6 // अविणीयस्स पणस्सइ जइवि न भस्सइ न जुजइ गुणेहिं / विजा सुसिविखया वि हु गुरुपरिभव बुद्धिदोसेणं // 7 // विजामणुसरियव्वा न हु दुब्बिणीयस्स होइ दायव्वा / परिभवइ दुविणी यो त विज्जं तं च यायरियं // 8 // विज्जं परिभत्रमाणो यायरियाणं गुणेऽप्रयासितो। रिसिघायग.ण लोयं वच्चइ मिच्छत्तसंजुत्तो॥१॥ विजावि होइ बलिया गहिया पुरिसेण भागधिज्जेण। सुकुलकुलवालिया विव असरिसपुरिसं पई पत्ता // 10 // सिक्खाहि ताव विणयं किं ते विजाइ दुविणीयस्स / दुस्सिक्खियो हु विणयो सुलहा विजा विणीयस्स // 11 // विज्जं सिखह विज्जं गुणेह गहियं च मा पमाएह / गहियगुणिया हु विजा परलोयसुहावहा होई // 12 // विणएण सिक्खियाणं विजाणं परिसमत्तसुत्ताणं / सका फलमणुभुत्तुं गुरुजण-तुट्ठोवइट्ठाणं // 13 // दुल्लभया थायरिया विजाणं दायगा समत्ताणं / ववगय-चउकसाया दुल्लहगा सिक्खगा Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि - 1 श्रीचन्द्रवेध्यकप्रकीर्णकम् ) सीता // 14 // पव्वइयस्स- गिहिस्स वा विणयं चेव कुसला पसंसंति / न हु पावइ अविणीयो कित्ति च जसं च लोगम्मि // 15 // जाणंतावि य विणयं केइ कम्माणुभाव-दोसेण / निच्छति पउंजित्ता अभिभूया रागदोसेहिं // 16 // अभणंतस्त य करसवि पसरइ कित्ती जसं च लोगंमि / पुरिसस्स महिलियाए विणीयविणयस्स दंतस्स // १७॥दिति फलं विजायो पुरिसाणं भागधिजभरियाणं / न हु भागधिज-परिवजियस्स विजा फलं दिति // 18 // विज्जं परिभवमाणो पायरियाणं गुणे पणासंतो। रिसिघायगाण लोयं बच्चइ मिच्छत्तसंजुत्तो॥ 11 // न हु सुलहा पायरिया विजाणं दायगा समत्ताणं / उज्जुय अपरित्तता न हु सुलहा सिक्खगा सीसा // 20 // विणयस्त गुणविसेसा एव मए वनिया समासेणं / पायरियाणं च गुणे एगमणा मे निसामेह // 21 // ( 2 ) पायरियगुणे:वुन्छ यायरियगुणे अणेगगुण-सयसहस्सधारीणं / ववहारदेसगाणं सुयरयणसुसत्यवाहाणं // 22 // पुढवीविव सबसहं मेव अकंपिरं ठियं धम्मे। चंदुब्ब सोमलेसं तं पायरियं पसंसंति // 23 // अपरिस्साविं बालोयणारिहं हेउकारणविहिराणु / गंभीर दुद्धरिसं तं पायरियं पसंसंति // 24 // कालगणु देसगणु भावराणु अतुरियं असंभंतं / अणुवत्तयं अमायं तं पायरियं पसंसंति // 25 // लोइय वइय सामाइएसु सत्थेसु जरस वक्खेवो / ससमय-परसमयविऊ तं पायरियं पसंसंति // 26 // बारसहिवि यंगेहिं सामाइयमाइ-पुत्वनिबद्धे / लछटुं गहिय? तं पायरियं पसंसंति // 27 // पायरियसहस्साई लहइ य जीवे भवेहिं बहुएहिं / कम्मेसु य सिप्पेसु य अन्नेसु य धम्मचरणेसु // 28 // जे पुण जिणोवइट्टे निग्गंथे परयणंमि थायरिया / संसारमुक्खमग्गस्स देसगा ते हु थायरिया // 26 // जह दीवा दीवसयं पइप्पए सो उ दिप्पए दीवो / दीवसमा पायरिया अप्पं च परं च दीवंति // 30 // धन्ना श्रायरि Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128] 1 श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमी विमागा याणं निचं प्राइचचंदभूयाणं / संसारमहराणव-तारयाणं पाए पणिवयंति // 31 // इहलोइयं च किसिं लहइ य ायरियभत्तिराएण / देवगई सुविसुद्धं धम्मे य अणुत्तरं बोहिं // 32 // देवा वि देवलोए निव्वं दिव्योहिणा वियाणित्ता / पायरियाण सरता भासणसयणाई मुचंति // 33 // देवावि देवलोए निग्गंथं पवयणं अणुसरंता / अच्छरगण-मझगया थायरिए वंदयाइति // 34 // छट्टट्ठम दसमदुवालसेहिं भत्तेहिं उववसंता वि / अकरिता गुरुवयणं ते हुँतेि अणंतसंसारी // 35 // एए अन्ने य बहू पायरियाणं गुणा अपरिमिजा। सीसाण गुणविससे केवि समासेण वुच्छामि // 36 // (3) सीसगुणे :____नीयावित्ति विणीयं धमत्तयं गुणवियाणयं सुयणं / पायरियमइ-वियाणिं सीसं कुसला पसंसति // 37 // सीयसह उराहसहं वायसहं खुह-पिवासअरइसहं / पुढवीविव सव्वसहं सीसं कुसला पसंसंति // 38 // लाभेसु अलाभेसु य अविवरणो होइ जस्स मुहवराणो / अपिच्छं संतुटुंसीसं कुसला पसंसंति // 31 // छविहविणय-विहिन्नू अन्मइयो सो हु वुच्चइ विण(गी)यो / इड्डीगारवरहियं सीसं कुसला पसंसति // 40 // दसविह-वेयावच्चमि उज्जुयं उज्ज(न)यं च सज्झाए। सव्वावस्सगजुत्तं सीसं कुसला पसंसति // 41 // पायरियवन्नवाई गणिसेविं कित्तिवद्धणं धीरं। धीधणिय-बद्धकन्छ सीसं कुसला पसंसति // 42 / / तूण सधमाणं सीसो होऊण ताव सिक्खाहि / सीसस्स हुँति सीसा न हुँति सीसा असीसस्स // 43 // वयणाई सुकडयाई पणयसिद्धाई विसहियन्वाई। सीसेणायरियाणं नीसेसं मग्गमाणेणं // 44 // जाइकुल-रुवजुब्बण-बलविरिय-समत्तसत्तसंजुत्तं / मिउसह-वाइमपिसुण-मसदमथद्धं श्रलोभं च // 45 // पडिपुराणपाणिपायं अणुलोमं निद्धवचियसरीरं / गंभीरतुगनासं उदारदिढेि विसालच्छं // 46 // जिणसासणमपुरत्तं गुरुजण-मुहपिच्छगं च धीरं च / सद्धागुण-पडिपुन्नं विकारविरयं विणयमूलं // 17 // Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि - 1 बीचन्द्रोऽयकप्रकीर्णकम् ] [ 126 कालन्नु देसन्नु समयन्नु सीलरूपविणयन्नु। लोहभय-मोहरहियं जियनिदपरीसहं चेत्र // 48 // जइवि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउकारणविहिन्नू। अषिणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति॥ 4 ॥सीसं सुइमणुरत्तं निच्चं विणयोवयारसंजुत्तं / वायजवगुणजुत्तं पवयणसोहाकरं धीरं // 50 // इत्तो जो परिहीणो गुणेहिं गुणस्य-नयोववेएहिं / पुत्तं पिन वाएजा किं पुण सीसं गुणविहीणं // 51 // एसा सीसपरिवखा कहिया निउणत्थसत्थ उवट्ठा / सीसो परिक्खयव्यो पारतं मग्गमाणेण // 52 // सीसाणं गुणकित्ती एसा मे वनिया समासेणं / विणयस्स निग्गहगुणे श्रोहियहियया निसामेह // 53 // ( 4 ) विण्यनिग्गहगुणे :विणो मुक्खदारं विणयं माहु कयावि छडिजा / अप्पसुत्रोवि हु पुरिसो विणएण खवेइ कम्माइं // 54 // जो अविणीयं विणाएण जिणइ सीलेण जिणइ निस्सीलं / सो जिणइ तिन्निलोए पावमपावेण सो जिणइ ॥५५॥जइवि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउकारणविहिन्नू। अविणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसति // 56 // सुबहुस्सुयं पि पुरिसं कुसला अप्पसुर्यमि ठावंति / गुणहीण विणयहीणं चरित्तजोगेहिं पासत्थं // 57 // तवनियमसीललियं उज्जुत्तं नाणदंसणचरित्ते / अप्पसुयं पि हु पुरिसंबहुस्सुयपयंमि ठावंति // 58 // सम्मत्तंमि य नाणं वायत्तं दसणं चरित्तंमि / खंतिबलाउ य तवो नियमविसेसो य विणयायो॥५१ // सव्वे य तवविसेसा नियमविसेसा य गुणविसेसा य / नस्थि हु विणो जेसि मुवखफलं निरत्थयं तेसि // 6 // पुव्वं परूवियो जिणवरेहिं विणयो अणंतनाणीहिं / सम्वासु कम्मभूमिसु निच्चं चिय मुक्खमग्गंमि // 61 // जो विणयो तं नाणं जं नाणं सो हु वुचइ विणयो। विणएण लहइ णाणं नाणेण वि जाणइ विणयं // 62 // सब्बो चरित्तसारो विणयंमि पइट्ठियो मणुरसाणं / न हु विणयविप्पहीणं निग्गंथ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धः : अष्टमो विभाग: रिसी पसंसंति // 6 // सुबहुस्सुनो वि जो खलु अविणीयो मंदसद्धमंवेगो। नाराहेइ चरितं चरितभट्ठो भमइ जीवो // 64 // थेवेण वि संतुट्ठो सुएण जो विणयकरणसंजुत्तो। पंचमहव्वयजुत्तो गुत्तो पाराहो होइ // 65 // बहुयंपि सुयमहीयं किं काही विणयविप्पहीणस्स / अंधस्स जह पलित्ता दीवसय-सहस्सकोडी वि // 66 // विणयस्स गुणविसेसा एव मए वनिया समासेणं / नाणस्स गुणविसेसा श्रोहियहियया निसामेह // 67 // (5) नाणगुणे :न हु सक्का नाउं जे नाणं जिणदेसियं महाविसयं / ते धन्ना जे पुरिमा नाणी य चरित्तमंता य // 68 // सका सुयनाणायो उड्टुं च अहं च तिरियलोयं च / ससुरासुरमणुयं सगरुलभुयगं सगंधव्वं // 61 // जाणंति बंधमुक्खं जीवाजीवे य पुराणपावं च श्रासवसंवरनिजर तो किर नाणं चरणहेऊ // 70 // नायाणं दोसाणं विवजणा सेवणा गुणाणं च / धम्मस्स साहणाई दुनिवि किर नाणसिद्धाई // 71 // नाणेण विणा करणं करणेणं विणा न तारयं नाणं / भवसंसारसमुह नाणी करणट्ठियो तरइ // 72 // नाणी वि श्राट्टतो गुणेसु दोसे य ते अवजितो। दोसाणं च न मुच्चइ तेमि नवि ते गुणे लहइ // 73 / / अस्संजमेण बद्धं अन्नाणेण य भवेहि बहुएहिं / कम्ममलं सुहमसुहं करणेण दढो धुणइ नाणी // 74 // सत्थेण विणा जोहो जोहेण विणा य जारिसं सत्थं / नाणेण पिणा करणं करणेण विणा तहा नाणं // 75 // नादंसणस्स नाणं न विणा नाणस्स हुँति करण गुणा। श्रगुणस्स नत्थि मुक्खो नत्थि अमुक्ख(त)स्स निव्वाणं // 76 // जं नाणं तं करणं जं करणं पवयणस्स सो सारो। जो पवयणस्स सारो सो परमत्यत्ति नायबो॥७७ // परमत्थगहियसारा बंधं मुक्खं च ते वियाणंता / नाऊण बंध. मुरवकं खर्विति पोराणयं कम्मं // 78 // नाणेण होइ करणं करणं नाणेण फासियं होइ / दुराहं पि समायोगे होइ विसोही चरित्तरस // 71 // नाणं विणाणा दुन्निवि किर नाणं दोसाणं विवजावसंवरनिजर तो // जाणोते Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि: 1 श्रीचन्द्रध्यकप्रकीर्णकम् ] [131 पयासयं सोहयो तवो संजमो य गुत्तिक(धारो। तिरहं पि समायोगे मुक्खो जिणसासणे भणियो॥८०॥किं इत्तो लट्ठयरं अच्छेरतरं सुंदरतरं वा / चंदमिव सव्वलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति // 81 // चंदाश्रो नियइ जोराहा बहुस्सुयमुहाउ नियइ जिणवयणं / जं सोऊण मणुस्सा तरंति संसारकंतारं // 82 // सूई जहा ससुत्ता न नस्सई कयवरंमि पडियावि / जीवो तहा ससुत्तो न नस्सइ गयो वि संसारे॥८॥सूई जहा असुत्ता नासइ सुत्ते अदिस्समाणंमि / जीवो. तहा असुत्तो नासइ मिच्छत्तसंजुत्तो॥८४ // परमत्थंमि सुदिट्ठ अविणढे सुतवसंजमगुणेसु / लब्भइ गई विसिट्ठा सरीरसारे विन?वि // 85 // जह श्रागमेण विजो जाणइ वाहिं तिगिच्छिउं निउणो / तह श्रागमेण नाणी जाणइ सोहिं चरित्तस्स // 86 // जह श्रागमेण हीणो विजो वा.हस्स न मुणइ तिगिच्छं / तह भागमारिहीणो चरित्तसोहिं न याणेइ / / 87 // तम्हा तित्थयरपरूवियंमि नाणम्मि अत्यजुत्तम्मि / उज्जोयो कायवो नरेण मुक्खाभिकामेण // 88 // बारसविहंमि वि तवे सम्भितर बाहिरे जिणक्खाए / नवि अत्थि नवि य होही सन्झायसमं तवोकम्म // 81 // मेहा होज न हुज व जं मेहा उवसमेण कम्माणं। उज्जोयो कायब्बो नाणं अभिक्खमाणेण // 10 // कम्ममसंखिजभवं खवेइ अणुसमयमेव थाउत्तो / बहुयभवसंचियं पि हु सज्झाएणं खणे खवइ // 11 // सतिरिय-सुरासुरनरो सकिनर महोरगो सगंधव्यो / सव्वो छउमस्थजणो पडि. पुच्छइ केवलिं लोए॥१२॥ इवकमि वि जम्मि पए संवेगं वचइ नरो अभिवखं / तं तरस होइ नाणं जेण विरागत्तणमुवेइ // 13 // इक्कमि वि जंमि पए संवेगं वीयरायमग्गंमि / बच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणंते ण मुत्तव्वं // 14 // इक्कमि वि जंमि पए संवेगं कुणह वीयरायमए। सो तेण मोहजालं खवेइ अझप्पजोगेहिं // 15 // न हु मरणंमि उवग्गे सको बारसविहो सुयक्खंधो / सव्वो अणुवितेउं धणियपि समस्थचित्तेण // 16 // Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132] / श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभाग तम्हा इक्कांपे पयं चिंततो तम्मि देसकालंमि / श्राराहणोवउत्तो जिणेहिं धाराहगो भणियो॥१७॥ श्राराहणोवउत्तो सम्म काऊण सुविहियो कालं / उक्कोसं तिरिण भवे गंतूणं लहइ निवाणं // 18 // नाणस्स गुणविसेमा केइ मए वनिया समासेणं / चरणरस गुणविसेसा श्रोहियहियया निसामेह // 11 // (6 ) चरणगुणे:ते धना जे धम्मं च रेउं जिणदेसियं पयत्तेणं / गिहपासबंधात्रो उम्मुक्का सवभावेणं // 10 // भावेण अणगणमणा जिणवयणं जे नरा अणुचरंति। ते मरणंमि अग्गे न विसीयन्ति गुणसमिद्धा // 101 // सीयं ते ते मणुस्सा सामगणं दुल्लहंपि लभ्रूण / जो अप्पा न निउत्तो दुक्खविमुक्समि मग्गंमि // 202 // दुक्खाण ते मणुस्सा पारं गच्छति जे य दधीमा / भावेण अणन्नमणा पारत्तहियं गवेसंति // 103 // मग्गंति परमसुहं ते पुरिसा जे खविंति उज्जुत्ता / कोहं माणं मायं लोभं अरई दुगंधं च॥१०॥ लढूण वि माणुस्सं सुदुल्लहं जे पुणो विरार्हिति / ते भिन्नपोय-संजत्तिया व पच्छा दुही हुँति // 10 // लभ्रूण वि सामन्नं पुरिसा जोगेहि जे न हाति। ते लद्धपोयसंजत्तिया व पच्छा न सोयंति // 106 // नहु सुलहं माणुःसं लभ्रूण वि होइ दुलहा बोही / बोहीए वि य लंभे सामन्नं दुलहं हो। // 107 // सामनस्स निवलम्भे नाणाभिगमो य दुल्लहो होई / नाणंमिय श्रागमिए चरित्तसोही हवइ दुलहा // 108 // अत्थि पुण केइ पुरिसा संमत्तं नियमसो पसंसंति / केई चरित्तसोहिं नाणं च तहा पसंसंति // 101 // सम्मत्तचरित्ताणं दुराहपि समागयाण सत्ताणं / किं तत्थ गिरिह यव्वं पुरिसेणं बुद्धिमंतेणं // 110 // सम्मत्तं प्रवरित्तस्स हवइ जहा कराह. सेणियाणं तु / जे पुण चरित्तमंता तेसिं नियमेण संमतं // 111 // भट्ठण चरित्तायो सुट्टयरं दंसणं गहेयव्वं / सिझति चरणरहिया दंसारहिया न Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि / 1 श्रीचन्द्रध्यकप्रकीर्णकम् ] [ 133 सिझति // 112 // उक्कोसचरित्तो वि य पडेइ मिच्छत्तभावो कोइ / किं पुण सम्मबिट्टी सारागधम्ममि वट्टतो // 113 // अविरहिया जस्स मई पंचहि समिईहिं तीहिं गुत्तीहिं / न कुए इ रागद्दोसे तस्स चरित्तं हवइ सुद्धं // 114 // तम्हा तेसु पवत्तह कज्जेसु य उज्जमं पयत्तेण / सम्मत्तंमि चरित्ते नाणंमि य मा पमाएह // 115 // चरणस्त गुणविसेसा एए मइ वनिया समासेणं / मरणस्स गुणविसेसा श्रोहियहियया निसामेह // 116 // .. (7) मरणगुणे :जह अनियमियतुरए अयाणमाणो नरो समारूढो / इच्छेइ पराणीयं यइवकंतु जो अकय जोगो // 117 // सो पुरिसो सो तुरो पुव्वं अनियमिय-करणजोगेणं / ठूण पराणीयं भजति दोवि संगामे // 11 // एवमकारियजोगो पुरिसो मरणे उवट्ठिए संते / न भवइ परीसहसहो अंगेसु परीसहनिवाए // 116 // पुव्वं कारियजोगो सम.हिकामो य मरणकालंमि / भवई य परीसहमहो विसयसुहनिवारयो अप्पा / / 120 // पुब्बि कयपरिकम्मो पुरिलो मरणे उवट्ठिए संते / छिदइ परीसहचमू निच्छय-परसुप्पहारेण // 121 // बाहिति इंदियाई पुबमकारिप-पइत्तचारिस / अकयपरिकम्मकीवो मुज्झइ याराहणाकाले // 122 // श्रागमसंजुत्तस्स वि इंदियरसलोलुपं पइट्ठस्त / जइ वि मरणे समाही हविज न वि हुज बहुयाणं // 123 // श्रमत्तसुयो वि मुणो पुव्वं सुक्यपरिकम्म-परिहत्थो / संजममरण-पइराणं सुहमव्वहियो समाणेइ / / 124 ॥इंदियसुह-साउलयो घोरपरीसह-परवसविउत्तो / अकयपरिकम्मकीवो मुझइ धाराहणाकाले // 125 // न चएइ किंचि काउं पुवं सुकयपरिकम्मबलियस्स / खोहं परीसहचमू धिइबलविणिवारिया मरणे // 126 // पूवं कारियजोगो अनियाणो ईहिऊण मइकुसलो। सव्वत्थ-अपडिबद्धो सकजजोगं समाणेइ // 127 // उप्पोलिया सरासणगहियाउह-चावनिच्छय-मईयो / विधइ चंदगविज्झ ज्झायंतो अप्पणो सिक्खं Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134.] [ भीमदागमसुधासिन्धुः // अष्टमो विमागा // 128 / / जइ य करेइ पमायं थोपि य अन्नचित्तदोसेणं / तह कयसंधाणो विय चंदगविज्झन विधेइ // 121 // तम्हा चंदगविज्झस्स कारणा अप्प. माइणा निच्चं / अविराहियगुणो अप्पा काययो मुक्खमग्गंमि // 130 // संमतलठ्ठबुद्धिस्प्त चरिमप्तमयंमि वट्टमाणस्त / बालोइय-निंदिर-गरहियस्स मरणं हाइ सुद्धं // 131 // जे मे जाणंति जिणा अवराहा नाणदंसणचरित्ते / ते सब्बे बालोए उपट्ठियो सबभावेणं // 132 // जो दुन्नि जीवसहिया रुंभइ संसारबंधणा पावा / रागं दोसं च तहा सो मरणे होइ कयजोगो // 133 // जो तिनि जीवसहिया दंडा मणवयणकायगुत्तीयो। नाणंकुसेण गिराहइ सो मरणे होइ कयजोगो॥ 134 // जो चत्तारि कमाए घोरे ससरीरसंभवे निच्चं / जिणगरहिए निरंभइ सो मरणे होइ कयजोगो // 13 // जो पंचइंदियाइं सन्नाणी विसय-संपलित्ताई। नाणंकुसेण गिराहइ सो मरणे होइ कयजोगो // 136 // छजीवनिकायहियो सत्तभयट्ठाण-विरहियो साहू। एगंत-मद्दवमश्रो सो मरणे होइ कयजोगो // 137 // जेण जिया अट्ठमया गुत्तो वि हु नवहिं बंभगुत्तीहिं। बाउत्तो दसकज्जे सो मरणे होइ कयजोगो॥१३८॥ श्रासायणा-विरहियो धाराहिसु दुलहं मुक्खं / सुहुज्माणाभिमुहो सो मरणे होइ कयजोगो // 136 // जो वि सहइ बाबीसंपरीसहा दुस्सहा उ उबसग्गा। सुराणे व पाउले वा सो मरणे होइ कयजोगो॥ १४॥धनाणं तु कप्ताया जगडिज्जंता वि परकसाएहिं / निच्छंति समुट्टित्ता सुनिविट्ठो पंगुलो चेव // 141 // सामन्न-मणुचरंतस्स कसाया जस्स उकडा हुँति / मन्नामि उन्छुपुष्फ व निष्फलं तस्स सामन्नं // 142 // जं अजियं चरितं देसूणाए य पुषकोडीए / तं पि कसाइयचित्तो हारेइ नरो मुहुत्तेण // 143 // जं अजियं च कम्मं श्रणंतकालं पमायदोसेणं / तं निहय-रागदोसो खविज पुत्राण कोडीए // 144 // जइ उपसंतकसायो लहइ अणंतं पुणोवि पडिवायं / किं सका वीससिउं थोवेवि कसायसेसंमि // 145 // खीणेसु Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकानि :: 1 श्रीचन्द्रशेयकप्रकीर्णकम् ] [ 115 जाण खेमं जियं जिएसु अभयं अभिहएसु / नट्ठसु याविणटुं सुक्खं च जयो कसायाणं // 146 // धना निचमरागा जिणवयणरया नियत्तियकसाया। नित्संगनिम्ममत्ता विहरंति जहिच्छिया साहू // 147 / धन्ना यविरहिय-गुणा विहरंती मुक्खमग्गमलीणा / इहय परत्थय लोए जीवियमरणे अपडिबद्धा // 148 // मिच्छत्तं वमिऊणं सम्मत्तंमि धणियं अहीगारो। कायब्वो बुद्धिमया मरणसमुग्धायकालंमि // 141 // हंत ! बलियंमि धीरा मरणे पच्छा उवट्ठिए संते। मरणसमुग्घाएणं अवसा निजंति मिच्छत्तं // 150 // तो पुवं बुद्धिमया श्रालोइय निंदिउं गुरुतगासे / कायव्वा अणसुद्री पबजाइ य जं सरइ // 151 // ताहे जं दिज गुरू पायच्छित्तं जहारिहं जस्म / इच्छामित्ति भणित्ता अहमवि नित्थारियो तुब्भे // 152 // परमत्याउ मुणीणं अबराहो नेव होइ काययो / च्छलियस्स पमाएणं पच्छित्तमवस्त काय // 153 // पच्छित्तेण विसोही पमायबहुलस्स होइ जीवस्स / तेण तयंकृषभूयं चरियव्वं चरणरक्खट्टा // 154 // न वि मुझंति सतला जह भणियं सवभावदंसीहिं / मरणपुणभव-रहिया बालोयण-निंदणा साहू // 155 // इषकं समलमरणं मरिऊण महब्भव(यं)मि संसारे / पुणरवि भमंति जीवा जम्मणमरणाई बहुयाइं // 156 // पंचसमियो तिगुत्तो सुचिरं कालं मुणी विहरिऊणं। मरणे विराहयंतो धम्ममणाराहयो भणियो // 157 // बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालंमि संवुडो सो उ / श्राहारणोवउतो जिणेहि बाराहयो भणियो // 158 // तो सबभावसुद्धो बाराहणमभिमुहो विसंभंतो। संथारं पडिवन्नो इणमं हियए विचितिजा // 15 // इक्को मे सासयो अप्पा नाणदंसणसंजुयो / सेसा मे बाहिरा भावा सब्ने संजोगलक्खणा // 160 // इक्को हं नत्थि मे कोइ नत्थि वा कस्सइ अहं / न तं पिक्खामि जस्साहं न सो भावो य जो महं // 161 // देवत्त-माणुसत्तं तिरिक्खजोणी तहेव नरयं च। पत्तो अणंतखुत्तो पुव्वं अन्नाणदोसेणं Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सापरे त माना पार / / 165 // मगदोसं च // मरणकाले गाया। 156]. ( श्रीमदागमसुधासिन्दुः / अष्टमो विभाग // 16 // न य संतोसं पत्तो सएहिं कम्मेहि दुक्खमूलेहिं / न यलद्धा परिसुद्धा बुद्धी सम्मत्तसंजुत्ता // 163 // सुचिरंपि ते मणुस्ता भमंति संसारसायरे दुग्गे / जे य करंति पमायं दुक्खविमुक्खमि धम्ममि // 164 // दुक्खाण ते माना पारं गच्छति जे य दढधिईया / पुबपुरिसाणुचिन्नं जिणवयाणपहं न मुञ्चति // 165 // मग्गंति परममुक्खं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता / कोहं माणं मायं लोभं तह रागदोसं च // 166 // नवि माया नवि य पिया न बंधवा नवि पियाई मित्ताई। पुरिसस्स मरणकाले न हुँति बालंबणं किंचि // 167 // हिरनसुवन्नं वा दासीदासं च जाणज्जुग्गं वा। पुरिसस्स मरणकाले न हुँति बालंबणं किंचि // 168 // श्रासबलं हथिवलं जोहबलं धणुबलं रहबलं च / पुरिसस्स मरणकाले न हुँति श्रालंबणं किंचि // 161 // एवं पाराहिंतो जिणोवइट्ठसमाहिमरणं तु / उद्धरिय-भावसल्लो सुज्झइ जीवों धुयकिलेसो // 17 // जाणतेण वि जइणा वयाइयारस्स सोहणोवायं / परसक्खिया विसोही कायव्वा भावसल्लस्स // 171 // जह सुकुमलों वि विजो अन्नस्स कहेइ बाप्पणो वाही(हिं) / सों से करेइ तिगि. च्छं साहूवि तहा गुरुसगासे // 172 // इत्थं समुप्पइ मुणिणो पयजा मरणकालसमयंमि / जो उ न मुज्झइ मरणे साहू(सो हु) धाराहयो भणियों // 173 // विणयं' पायरियगुणे सीसगुणे विणयनिग्गहगुणे य / नाणगुणे चरणगुणे मरणगुणविहिं च सोऊण // 174 // तह वत्तह काउं जे जह मुबह गमवास-वसहीणं / मरणपुणब्भव-जम्मण-दुग्गइ-विणिवायग मणाणं // 175 // इइ सिरि चंदावेझय(चंदगविज्झ) पइराणयं // - ॥इति भी चन्द्रवेध्यकप्रकीर्णकम् // 1 // -:: Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीरस्तव प्रकीर्णकं ] [ 137 // 2 // अथ श्री वीरस्तव-प्रकीर्णकम // नमिऊण जिणं जगजीव-बंधवं भविय-कुमुय-रयणियरं / वीरं गिरिं. दधीरं थुणामि पयडत्थनामेहिं // 1 // अह अरिहंत अरहंत देव जिण वीर (जिणवर) परमकारुणिय / सव्वन्नु सव्वदंसण, पारय तिकालविऊ नाह // 2 // जय वीयराय केवलि तिहुयणगुरु सव्व तिहुयणवरिट / भयवं तित्थयर ति य सक्केहिं नमंसिय जिणिंद // 3 // सिरिखद्धमाण-हरिहर. कमलासणपमुह-नामधेएहिं / अन्नत्थ-गुणजुएहिं जडमइवि सुयाणुसारेण // 4 // भवबीयंकुरभूयं कम्मं डहिऊण झाणजलणेण / न रुहसि भववणगहणे तेण तुमं नाह अहोसि // 5 // घोरुवसग्ग-परीसह-कसाय करणाणि पाणिणं अरिणो / सयलाण नाह ! ते हणसि जेण तेणारिहंतोऽसि // 6 // वंदण थुणण नमसण पूयण सकरण सिद्धिगमणंमि / अरिहोसि जेण वरपहु ! तेण तुमं होसि अरहंतो // 7 // अमर-नर-असुर-वर-पहु-गणाण पूयाए जेण अरिहोऽसि / धीर(सिद्धारमण)मणुन्मुक्को (?) तेण तुमं देव ! अरहंतो // 6 // रहगदिसेससंगह-निदरिसणमंतो गिरिगुहमणाणं / तं ते नत्थि दुयंपि हु (?) जिणिंद ! तेणारिहंतोऽसि // 6 // रहमग्गं तो अन्नंपि मरणमवणीय जेण वरनाणा / संपन्न-निय-सरूवो देव ! तुमं तेण अरहंतो // 10 // न रहसि सदाइ-मणोहरेसु अमणोहरेसु तं जेण / समधारं जियमणकरणजोग तेणारहंतोऽसि // 11 // अरिहा जोगा पूयाईयाण देविंदगुत्तरसुराई / ताणंपि य अंतो सीमाकोडी तं तेणऽरहंतो // 12 // सिद्धिवहुसंग-कीलापरोऽसि विजइ समो मोहरिउवग्गेणं / सुहपुन्न-परिणइ-परिगय तं तेण देवुत्ति // 13 // रागाइवेरि-निकितणेण दुहउ वि वयसमाहाणा। जय सत्तुकरिसगुणाइएहिं तेणं जिणो देव // 14 // दुइट्टकम्मगंट्ठि. पवियारणलद्धलद्धि-संससद्द तव सिरिवरगणकेलिय-सोहतं तेण वीरोसि // 15 // पढमवयगहणदिवसे संकंदण-विणयकरण-गयतराहा / जायोसि Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थुइ सत्ता भवति भावः कसिण मासिति // उजेणं मनाया / कहाण 138 ] [ श्रीमदाममसुधासिन्धुः :: अष्टमो विभागः जेण वरमुणि अह तेण तुमं महावीरो // 16 // सचराचर जंतुपुहुत्त भत्त थुइ सत्तसत्तुमित्तेसु / करुणरसरंजियमणो तेण तुमं परमकारुणिउ // 17 // जेसु य भविस्स भवंति भाव-सब्भावभावणपरेण / नाणेण जेण जाणसि भन्नसि तं तेण सव्वन्नू // 18 // ते कसिण-भुवण-भवणो य रिद्धिया निय-निय-रुवेण / सामनउवलोयसि तेण तुमं सव्व-दरिसित्ति // 11 // पारं कम्मस्स भवस्स वा वि सुयजलहिणो व नेयस्स / सव्वस्स उ जेणं भन्नसि तं पारगो तेणं // 20 // पच्चुप्पन-अणागयतीयद्धा-वत्तिणो जे पयस्था / करयलकलियामलयं व मुणसि तिकालविऊ तेण // 21 // नाहो विनाहनाहाण भीमभवगहण-मज्भवडियाण / उवएसदाणाउ मग्गनयणउ होसि तं जेण // 22 // रागोऽई सुभेयरवत्थुसु जंतूण चित्तविणिवेसो ! सो रागो दोसो उण तव्विवरीयो मुणेयव्वो // 23 // सो कमलासण-हरिहर-दिणयरपमुहाण माणदलणेण / लद्धेकरसो पत्तो जिण तयो मूले नउ तुमए // 24 // जं मलण-दलण-विहलण-म(कव)लणवि-समत्थो जो य जीवोवि / करचरण-नयण-कररुह-अहरदलं वसइ अणुजं च // 25 // दोसो वि ऊ डिलंकुतलभू-पम्हल-नयण-तारियमिसेण / गुरुनिकरणं सूयइ तं मन्ने गुणकरे लऊणो // 5 // जह वि बहु रूवधारी वसंति ते देव तुह सरीरंमि / तकय-विगार-रहियो तहवि तुमं वोयरागोत्ति // 27 // ज सव्वदव्वपजवपत्ते य पत्तेयमणंत-परिणइ-सरूवं / भगवं मुणइ तिकालसंठियं केवलं तमिह // 28 // ता ते अपहयसत्तिपसर-मणवरय-मविगलं अस्थि / मुणिणो वि मुणियपयस्थो तेण तुमं केवलिं बिंति // 26 // पंचेंदिसन्निणो जे तिऊयण सद्देण तेत्थ णज्जंति (गिज्झति) / तेसि सधम्म-निउयणेण तं तिहुयण. गुरुत्ति // 30 // पत्तेयर-मुहुमेयर-जिएसु गुरुहुह-विलप्पमाणेसु / सव्वेसु वि हियकारी तेसु तेसु तुमं तेण सम्बोसि // 31 // बल-विरिय-सत-सोहग्ग-रूवविनाण-नाणपवरोऽसि / उत्तम-पय-कयवासो तेण तुमं तिहुयण-वरिट्टो Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 136 श्री वीरस्तव-प्रकीर्ण // 32 // पडिपुन्न-रूव-धण-धन्न-कति-उज्जम-जसाण भयसन्ना / ते अस्थि अवियला तुम्ह नाह ! तेणाऽसि भयवं तो // 33 // इह-परलोयाईयं भयंति वावन्नयंति सत्तविहं / तेण चिय परिचत्तो जिणेस ! तं तेण भयवंतो // 34 // तित्थं चउविहसंघो पढमो चिय गणहरोऽहवा तित्थं / तत्तित्थ-करणसीलो तंसि तुमं तेण तित्थयरो // 35 // एवं गुणगणसकस्स कुगाइ सकोवि किमिह अच्छरियं / अभिवंदणं जिणेसर ता सकभिवंदिय नमो ते // 36 // मणपजवोहि-उवसंत-खीणमोहा-जिणत्ति भन्नति / ताणं चिय तं इंदो परमिस्सरिया जिणिंदुत्ति // 37 // सिरिसिद्धत्थ-नरेसर-गिहमि धणकणय-देस-कोसेहिं वड्ढेसि तं जिणेसर ! तेण तुमं वद्धमाणोसि // 38 // हरसि खमं कमलालय-करयलगय-संखचक्क-सारंगो। दाणवरिसुत्ति जिणवर ! तेण तुमं भन्नसे विराहू // 39 // हरसि रयं जंतूणं बझ अभिंतरं नरवट्टगं (तं) / नयनीलकंडकलिउ हरो तितं भणसे तह वि // 40 // कमलासणोवि जेण दाणाई चरह-धम्म-चउवयणो। हंसगमणो यं गमणो तेण तुमं भन्नसे बंभो // 41 // बुद्धं अवगयमेगट्टियं ति जीवाइतत्त-मवसेसं / वरविमल-केवलाउ तेण तुमं भनसे बुद्धो // 42 // इय नामावलि-संथुय सिरिवीरनिणिंद मंद पुन्नस्स / वियर करुणाइ जिणवर सिवपय. मणहत्थिरं वीरं // 4 // // इति श्री वीरस्तव-प्रकीर्णकम् // 2 // (आ वीरस्तवपयन्ना ना संशोधनमा शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी लिंबडी ना हस्तलिखित भंडारनी प्रतनो उपयोग पण करवामां आव्यो छे) Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // श्री आगमसुधासिन्धुः ) 0 अष्ठमो विभागः .. ) समाप्तः॥ ) 0000000000) Page #152 -------------------------------------------------------------------------- _