________________ 32) [श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमी विभागः कंखिए मुक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुन्नपिवासिए सग्गपिवासिए मुक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदभवसिए तत्तिवझवसाणे तदप्पियकरणे तयट्ठोवउत्ते तब्भावणाभाविए, एयंसि णं अंतरंसि कालं करिजा देवलोएसु उववजिजा, से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं वुनइ-पत्थेगइए उववजिजा अत्थेगइए नो उववजिज्जा // सू०८ // जीवे णं भंते ! गभगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुजए वा अच्छिज वा चिट्ठिज वा निसीइज वा तुयट्टिज वा ग्रासइज वा सइज वा माऊए सुपमाणीए सुपइ जागरमाणीए जागरइ सुहियाए सुहियो भवइ दुहियाए दुखियो भवइ ?, हंता गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे उत्ताणए वा जार दुक्खियाए दुक्खियो भवइ // सू०१॥ थिरजायंपि हु रक्खइ सम्मं सारवखई तो जणणी / संवाहई तुयट्टई रक्खइ अप्पं च गभं च // 18 // अणुसुयइ सुयंतीए जागरमाणीऍ जागरइ गम्भो। सुहियाए होइ सुहियो दुहियाए दुक्खियो होइ // 11 // उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणोऽवि से नत्थि / अट्ठीमिंज-नहकेस-मंसुरोमेसु परिणामो // 20 // श्राहारो परिणामो उस्सासो तह य चेव नीसासो। सबपएसेसु भवई कवलाहारो य से नत्थि।। (प्र. एवं बुदिमइगयो गम्भे संवसइ दुक्खियो जीवो / परम-तमसंक्यारे अमेज्म-भरिए पएसंमि)॥ 21 // पाउसो! तयो नवमे मासे तीए वा पडुप्पन्ने वा अणागए वा चउराहं माया अन्नयरं पयायइ, तंजहा-इत्थिं वा इत्थिरूवेणं 1 पुरिसं वा पुरिसरूवेणं 2 नपुंसगं वा नपुंसगरूवेणं 3 बिं वा बिंबरूवेणं 4 ॥सूत्रं 10 // अप्पंसुक्कं बहुँ अ(उ)उयं, इत्थीया तत्थ जायई। अप्पं श्र(उ)उयं बहुँ सुक्कं, पुरिसो तत्थ जायइ // 22 // दुराहगि रत्तसुकाणं, तुलभावे नपुंसश्रो / इत्थीयोयसमारोगे, विवं वा तत्थ जायइ // 23 // ग्रह णं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा पाएहिं वा श्रागच्छइ समागच्छइ, तिरियमागच्छइ विणिघायमावजइ // सू० 11 / /