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________________ [25 प्रकीर्णकानि : 4 श्रीमतपरिज्ञाप्रकीर्णकम् ] गईहिं। महिलाहिं नित्रयाहिं व गिरिवरगुरुत्रावि भिज्जति // 116 // सुट्ठवि जिया सुट्ठवि पिपासु सुट्ठवि परूढपेमासु / महिलासु भुगीसु व वीसंभं नाम को कुणइ ? // 117 // वीसंभनिन्भरंपि हु उवयारपरं परूढपणयंपि / कयविप्पियं पित्रं झत्ति निति निहणं हयासायो // 118 // रमणीयदंसणाश्रो सोमालंगीयो गुणनिबद्धाश्रो / नवमालइमालाउ व हरंति हिअयं महिलिग्राश्रो // 111 // किं तु महिलाण तासिं दसणसुदेर-जणिश्रमोहाणं / श्रालिंगणमइरा देइ वझमालाण व विणासं // 120 // रमणीण दंसणं चेव सुदरं होउ संगमसुहणं / गंधुच्चिय सुरहो मालाईइ मलणं पुण विणासो // 121 / साकेअपुराहिवइ देवरई रजसुवख-पन्भट्ठो। पंगुलहेतु छूढो बुढो अ नईइ देवीए // 122 // सोअप्तरी दुरिश्रदरी कवडकुडी महिलिया किलेसकरी / वइरविरोपण-अरणी दुषखखणी सुक्खपडिववखा // 123 // अमुणित्र-मणपरिकम्मो सम्मं को नाम नासिउं तरइ / वम्महसर-पसरोहे दिविच्छोहे मयच्छीणं ? // 124 // घणमालायो व दूरुन मंतसुपोहराउ वड्डीति / मोहविसं महिलायो अलकविसं व पुरिसस्स // 125 // परिहरसु तयो तासिं दिढेि दिट्ठीविसस्स व अहिरस / जं रमणिनयणबाणा चरित्तपाणे विणासंति // 126 // महिला-संसग्गीए अग्गी इव जं अप्पसारस्स / मयणं व मणो मुणिणोऽवि हंत सिग्घ(खणेगां) चिय विलाइ // 127 // जइवि परिचत्तसंगो तवतणुअंगो तहावि परिवडइ / महिं. लासंसग्गीए कोसाभवणूसिब्ब रिसी // 128 // सिंगार-तारंगाए विलासवेलाइ जुबण जलाए / के के जयंमि पुरिसा (पहसिअफेणाइ मुणी) नारिनईए न बुड्डति ? // 126 // विसयजलं मोहकलं विलासविबोध-जलयराइन्नं / मयमयरं उत्तिन्ना तारुनमहन्नवं धीरा // 130 // अभितर-बाहिरए सब्वे संगे (गंथे ) तुमं विवज्जेहि / कयकारिणुमईहिं
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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