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________________ 2] [ मीनदागमसुधासिधुः :: अष्टमी विभागः कायमणो-वायनोगेहिं किलेससयकरए निच्चं // 131 // संगनिमित्तं मारइ. भणइ अलीयं करेइ चोरिक्कं / सेवइ मेहुण मुच्छं अप्परिमाणं कुणाइ जीवो // 132 // संगो(गंथे) महाभयं जं विहेडियो सावएण संतेणं / पुत्तेण हिए अत्यंमि मणिवई कुविएण जहा // 133 // सवग्गंथ-विमुक्को सोईभूयो पसंतचितो अ / जं पावइ मुतिसुहं न चकवट्टीवि तं लहइ // 134 / / निस्सल्लस्सेह महब्बयाई अखंड-निव्वणगुणाई। उवहम्मति अ ताई नियाणसल्लेण मुणिणोऽवि // 135 // श्रह रागदोसगभं मोहगभं च तं भवे तिविहं / धम्मत्थं हीणकुलाइ-पत्थणं मोहगभं च // 13 // रागेण गंगदत्तो दोसेणं विस्सभूइमाईया / मोहेण चंडपिंगल-माईया हुँति दिट्ठता // 137 // अगणिय जो मुक्खसुहं कुणइ नियाणं असारसुहहेउं / सो कायमणिकएणं वेरुलिश्रमणिं पणासेइ // 138 // दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं च बोहिलाभो अ / एवं पत्थेयव्वं न पत्थणिज्जं तयो अन्नं // 13 // उझिय-निपाणसल्लो निसिभत्तनियत्ति-समिइगुत्तीहि / पंचमहब्बयरक्खं कयसिवसुक्खं पसाहेइ // 140 // इंदिन-विसयासत्ता पडंति संसारसायरे जीवा। पक्खिध छिन्नपक्खा सुमोल गुण-पेहु ग-विहूणा // 141 // न लहइ जहा लिहंतो सुहिल्लियं ट्ठियं रसं सुणयो / सो सइय तालुअरसियं विलिहंतो मन्नए सुक्खं // 142 // महिलापसंगसेवी न लहइ किंचिवि सुहं तहा पुरिसो। सो मन्नए वरायो सयकायपरिस्समं सुक्खं // 143 // सुठुवि मग्गिज्जंतो कत्थवि केलीइ नत्थि जह सारो। इंदिन. विसएसु तहा नत्थि सुहं सुट्ठवि गविट्ठ॥ 144 // सोएण पवसिथपिया चक्खूराएण माहुरो वणियो / घाणेण रायपुत्तो निहयो जीहाइ सोदासो // 145 // फासिदिएण दुट्ठो नट्ठो सोमालिया-महीपालो। इकिक्केणवि निहया किं पुण जे पंचसु पसत्ता ? // 146 // विमया विक्खो निवडइ निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोहं / देवीदेवसमागय-भाउयजुयलं व भणियं च
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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