SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 30] श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः श्रथि उच्चारेइ वा पासवणेइ वा खेलेइ वा सिंघाणेइ वा वंतेइ वा पित्तेइ वा सुक्केइ वा सोणिएइ वा ?, नो इण? सम8, से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ. जीवस्स गभगयस्स समाणस्स नत्थी उच्चारेइ वा जाव सोणिएइ वा ?, गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे जं श्राहारमाहारेइ त चिणाइ सोइंदिय. ताए चक्खुइंदियत्ताए घाणिदिअत्ताए जिभिदियत्ताए फासिंदियत्ताए अट्टिश्रट्टिमिंजकेसमंसुरोमनहत्ताए, से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जीवस्स णं गभगयस्स समाणरस नत्थि उच्चारेइ वा जाव सोणिए वा // सू० 3 // जीवे णं भत्ते ! गभगए समाणे पहू मुहेणं कावलियं श्राहारं श्राहारित्तए ?, गोयमा ! नो इण? समढे, से केण?णं भंते ! एवं वुचइ-जीवे णं गभगए समाणे नो पहू मुहेणं कावलियं श्राहारं पाहारित्तए ?, गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे सव्वयो श्राहारेइ सवयो परिणामेइ सम्बो ऊससइ सब्बयो नीससइ अभिक्खणं श्राहारेइ अभिक्खणं परिणामेइ अभिक्खणं उससइ अभिक्खणं नीससइ अाहन श्राहारेइ थाहच्च परिणामेइ श्राहंच ऊससइ अाहन्न निस्ससइ, से माउजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवपडिबद्धा पुत्तजीवं फुडा तम्हा श्राहारेइ तम्हा परिणामेइ, श्रवरावि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा विणाइ तम्हा उवंचिणाइ, से पएणं अटेणं गोयमा ! एवं वुचइ-जीवे णं गभगए समाणे नो पहू मुहेणं कालिग्रं श्राहारं श्राहारित्तए // सू० 4 // जीवे णं गभगए समाणे किमाहारं श्राहारेइ ?, गोयमा ! जं से माया नाणाविहायो रसविगईयो तित्तकडुअकसायंत्रिलमहुराई दवाई थाहारेइ तयो एगदेसेणं श्रोअमाहारेइ, तस्स फलविंटसरिसा उप्पलनालोवमा भवइ नाभी, रसहरणी जणणीए सयाइ नाभीए पडिबद्धा नाभीए, तायो गम्भो योयं श्राइयइ, श्रगहयंतीए ओयाए तीए गम्भोऽवि वड्डइ जाव जाउत्ति // सूत्रं 5 ॥.कइ णं भंते ! माउभंगा पराणता ?, गोयमा ! तो माउभंगा परणता, तंजहा,
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy