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________________ प्रकीर्णकानि : 1. भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] चित्तु / उपइया पट्ठीयो पाई जह रखसवडम्ब // 41 // तेण य निवेएणं निग्गंतूणं तु सुविहियसगासे। पारुहियचरित्तभरो सीहोरसियं समारूढो // 414 // तम्मि य महिहरसिहरे सिलायले निम्मले महाभागो। वोसिरइ थिराइनो सम्बाहारं महतणू य // 415 // तिविहोवसग्ग सहिउँ पडिमं सो श्रद्धमासियं धीरो / गइ य पुवाभिमुहो उत्तमधिइसत्तसंजुत्तो॥४१६॥ सा य पगतंतलोहिय मेयवसा-मंसल-परी(लंघरा)पट्टी। खजइ खगेहिं दूसहनिसट्ठवं. चुप्पहारेहिं // 417 // मसएहिं मच्छियाहि य कीडीहिवि-मंससंपलगाहिं / खज्जतोवि न कंपइ कम्मविवागं गणेमाणो॥ 418 // रत्तिं च पयइविहसियसियालियाहिं निरणुकंपाहिं / उपसग्गिजइ धीरो नाणाविहरूवधाराहिं // 411 // चिंतेइ य खरकरवय-असिपंजरखग्ग-मुग्गरपहायो / इणमो न हु कट्टयरं दुक्खं निरयग्गिदुक्खायो // 420 // एवं च गयो पक्खो बीयो पक्खो य दाहिणदिसाए / अवरेणवि पक्खोवि य समइक्कतो महेसिस्स // 421 // तह उत्तरेण पक्खं भगवं अविकंपमाणसो सहइ / पडियो य दुमासंते नमोत्ति वोतु जिणिंदाणं॥ 422 // कंचणपुरम्मि सिट्ठी जिणधम्मो नाम सावो याती। तस्स इंम चरियपयं तउ एयं कित्तिम मुणिस्त // 423 // जह तेग वितयमुणिणा उबसग्गा परमदूसहा सहिया / तह उबसग्गा सुविहिय ! सहियावा उतमट्ठमि // 424 // निफेडियाणि दुरिणवि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि / न य संजमाउ चलियो मेग्रजो मंदरगिरिव // 425 // जो कुचगावराहे पाणिदया कुंचगंपि नाइक्खे / जीवियमणुपेहंतं मेयजरिसि नमसामि // 426 // जो तिहिं पएहिं धम्मं समइगयो संजमं समारूढो / असमविवेगसंवर चिलाइपुत्तं नमसामि // 427 // सोएहिं अइगयायो लोहियगंधेण जस्स कीडीयो। खायंति उत्तमंगं तं दुकरकारयं वंदे // 428 // देहो पिपीलियाहिं चिलाइपुत्तस्स चालणिव्व कयो / तणुगोवि मणपश्रोसो न य जायो तस्स ताणुवरिं // 426 // धीरो चिलाइपुत्तो मूई.
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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