________________ 1.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : अष्टमो विभागः निंदामि सबभावेणं / सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं निरागारं // 3 // बाहिरभतरं उवहिं, सरीरादि सभोत्रणं / मणसा वयकाएणं, सव्वं तिविहेण वोसिरे // 4 // रागबंधं पश्रोसं च, हरिसं दीणभावयं / उस्सुअत्तं भयं सोगं, रइमरई च वोसिरे // 5 // रोसेण पडिनिवेसेणं अकयराणुयाए तहेवऽसज्झाए। जो मे किंचिवि भणियो तिविहं ( तमहं ) तिविहेण खामेमि // 6 // खामेमि सबजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे / श्रासायो (पासवे) वोसिरित्ताणं, समाहिं पडिसंधए // 7 // निंदामि निंदणिज्जं गरिहामि य जं च मे गरहणिज्ज / बालोएमि य सव्वं जिणेहिं जं जं च पडिसिद्धं ( कुटुं)॥८॥ उवही सरीरगं चेव, श्राहारं च चउविहं / ममत्तं सम्बदब्बेसु, परिजाणामि केवलं // 1 // ममत्तं परिजाणामि, निम्ममत्ते उपट्ठियो। बालंबणं च मे पाया, अवसेसं च वोसिरे // 10 // आया मे जं नाणे पाया मे दंसणे चरित्ते य / पाया पञ्चक्खाणे आया मे संजमे जोगे // 11 // मूलगुणे उत्तरगुणे जे मे नाराहिया पमाएणं / ते सव्वे निंदामि पडिकमे श्रागमिस्साणं // 12 // इकोऽहं नत्थि मे कोई, न चाहमवि कस्सई / एवं अदीणमणसो, अप्पाणमणुसासए // 13 // इको उप्पजए जीवो, इको चेव विवजई / इक्कस्स होइ मरणं, इको सिज्झइ नीरो // 14 // एको करेइ कम्म फलमवि तस्सिको समणुहवइ / इको जायइ मरइ परलोअं इक्कयो जाइ // 15 // इक्को मे सासो अप्पा, नाणदंसणसंजुश्रो (लक्खणो)। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा // 16 // संजोगमूला जीवेणं, पत्ता दुक्खपरंपरा / तम्हा संजोगसंबंध, सव्वं तिविहेण वोसिरे // 17 // अस्संजममराणाणं मिच्छत्तं सव्वोऽवि श्र ममत्तं / जीवेसु अजीवेसु य तं निंदे तं च गरिहामि // 18 // मिच्छत्तं परिजाणामि सव्वं अस्संजमं अलीयं च / सव्वत्तो श्रममत्तं चयामि सव्वं च खमावेमि (खमावेमि)॥ 11 // जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु / तं तह बालोएमी उवडियो