________________ [6 प्रकीर्णकानि :: 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] एयं सखुवएसं जिणदिट्ठ सदहामि तिविहेणं / तसथावरखेमकरं पारं निव्वाणमग्गस्स // 57 // न हु तम्मि देसकाले सको बारसविहो सुयक्खंधो। सब्बो अणुचिंते धणियपि समत्थचित्तेणं // 58 // एगंमिवि जम्मि पए संवेगं वीयरायमग्गंमि / गच्छइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं // 5 // ता एगपि सिलोग जो पुरिसो मरणदेसकालम्मि / श्राराहणोवउत्तो चिंततो राहगो होइ // 60 // आराहणोवउत्तो कालं काऊण सुविहियो सम्मं / उकोसं तिन्नि भवे गंतूणं लहइ निव्वाणं // 61 // समणोत्ति अहं पढमं बीयं सव्वत्थ संजयोंमित्ति / सव्वं च वोसिरामि एवं भणियं समासेणं // 62 // लद्धं अलद्धपुब्वं जिणवयण सुभासियं अम(मि)यभूयं / गहियो सुग्गइमग्गो नाहं मरणस्त बीहेमि // 63 // धीरेणवि मरियव्वं काउरिसेणवि अवस्स मरियम्बं / दुराहपि हु मरियब्बे वरं खुधीरत्तणे मरिउं // 64 // सीलेणवि मरियव्वं निस्सीलेणवि अवस्स मरियव्वं / दुराहपि हु मरियव्वे वरं खु सीलतणे मरिउं // 65 // नाणस्स दंसणस्स य सम्मत्तस्स य चरित्तजुत्तस्स / जो काही उपयोगं संसारा सो विमुचिहिसि // 66 // चिरउसियबंभयारी प'फोडेऊगा सेसयं कम्मं / अणुपुब्बीइ विसुद्धो गच्छइ सिद्धिं धुयकिलेसो // 67 // निकसायस्स दंतस्स, सूरस्स ववसाइणो। संसारपरिभीयस्स, पञ्चक्खाणं सुहं भवे / 68 // एवं पञ्चक्खाणं जो काही मरणदेसकालम्मि / धीरो अमूढमन्नो सो गच्छइ सासयं ठाणं // 61 // धीरो जरमरणविऊ वीरो विनाणनाणसंपन्नो। लोगस्सुजोयगरो दिसउ खयं सव्वदुक्खाणं // 70 // // इति श्रीआतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् // 2 // (ग्रंथाग्रमादितः 133) // 3 // अथ श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् // एस करेमि पणामं तित्थयराणं अणुत्तरगईणं / सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च // 1 // सव्वदुक्खप्पहीणाणं, सिद्धाणं अरहयो नमो। सहहे जिणपन्नत्तं, पञ्चक्खामि य पावगं // 2 // जं किंचिवि दुचरियं तमहं