________________ [ 11. प्रकीर्णकानि / / 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ] सव्वभावेणं // 20 // उप्पन्नाणुप्पन्ना माया अणुमग्गयो निहंतव्वा / बालोयाणनिंदणगरिहणाहिं न पुणत्ति या बीयं // 21 // जह बालो जंपन्तो कजमकजं च उज्जुयं भगइ / तं तह बालोइज्जा मायामयविप्पमुक्को उ // 22 // सोही उज्जुयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्टइ / निव्वाणं परमं जाइ, घयसित्तुब्ब पावए // 23 // न हु सिझई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं / उद्धरियसव्वसल्लो सिज्मइ जीवो धुअकिलेसो // 24 // सुबहुँपि भावसल्लं बालोएऊण (जे बालोयंति) कुरुसगासंमि / निस्सल्ला संथारगमुविति याराहंगा हुँति // 25 // अप्पंपि भावसल्लं जे नालोयंति गुरुसगा. संमि / तपि सुयसमिद्धा न हु ते बाराहगा हुँति // 26 // नवि तं सत्थं च विसं च दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो / जंतं व दुप्पउत्तं सप्पुब्व पमाययो कुरो / 27 // जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्टकालंमि / दुल्लभबोहियत्तं गणंतसंसारियत्तं च // 28 // तो उद्धरंति गारव-रहिया मूलं पुणब्भवलयाणं / मिच्छादमणसल्लं मायासल्लं नियाणं च // 21 // कयपावोऽवि मणूमो बालोइय निन्दिय (निदियो) गुरुसगासे।होइ श्रइरेगलहुश्रो श्रोहरियभरुव भारवहो // 30 // तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसंति (वइस्संति) / तं तह अणुसरियव्वं अणवत्थपसंगभीएणं // 31 // दसदोसविप्पमुक्कं तम्हा सव्वं अमूहमाणेणं / जं किंपि कयमकज्जं तं जहवत्तं कहेयव्वं // 32 // सब्बं पाणारंभं पचवखामि य अलियवयणं च / सव्वमदिन्नादाणं अब्बभपरिग्गहं चेव / / 33 // सव्वंपि असणपाणं चउन्विहं जो अ बाहिरो उवही / अभितरं च उवहिं सव्वं तिविहण वोसिरे // 34 // कंतारे दुन्भिक्खे पायंके व महया समुप्पन्ने / जं पालियं न भग्गं तं जाणसु पालणासुद्धं // 35 // रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दूसियं जं तु / तं खलु पञ्चक्खाणं भावविसुद्धं मुणेयव्वं // 36 // पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाउ बहुतरं हुजा। संसारंमि अणंते माईणं अन्नमन्नाणं // 37 // बहु