________________ प्रकीर्णकानि.: 5 श्रीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] पट्टविस्सामो करिस्सामो, ता किमत्थं श्राउसो ! नो एवं चिंतेयब्वं भवइ ?, अंतरापबहुले खलु अयं जीविए, इमे यबहवे वाइयपित्तिश्र-सिंभियसन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंति जीवियं // मू० 12 // श्रासी य खलु पाउसो। पुब्बि मणुया ववगयरोगायंका बहुवाससयसहस्सजीविणो,तंजहा जुयलधम्मिश्रा अरिहंता वा चकवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा चारणा विजाहरा, ते णं मणुया अणतिवरसोमचारुरुवा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा सुजायसव्वंग-सुंदरंगा रत्तुप्पलपउम-करचरणकोमलंगुलितला नगणगर-मगरसागर-चक्कंक-धरंकलक्खणं केयनला सुपइट्ठिय-कुम्मचारुचलणा अणुपुविसुजाय-पीवरंगुलिया उन्नयतणुतंव-निद्धनहा संठिअसुसिलिट्ठ गुदगुप्फा एणीकुरुविंदावत्त-वट्ठाणुपुब्बिजंघा समुग्गनिम्मुग्ग-गूढजाणू गयससणसुजाय-सन्निभोरू वरवारण-मत्ततुल्ल. विक्कम-विलासियगई सुजायवरतुरय गुज्झदेसा पाइनहयव्व निरुवलेवा पमुइयवरतुरंग-सीह-अइरेगवट्टियकडी साहयसोणंद-मुसल-दप्पणनिग्गरिय-वरकणगच्छर-सरिसवर-वइरवलिअमज्मा गंगावत्त-पयाहिणावत्त तरंगभंगुर-रविकिरणतरुणबोहिय-उकोसायंतपउम-गभीरवियडनाभा उज्जुयसमसंहिय-सुजायजच्चतणुकिसिण-निद्धयाइज-लडहसुकुमाल-मउयरमणिज्जरोमराई झसविहगसुजायपीणकुच्छी झसोयरा पम्हविग्रडनाभा संगयपासा सन्नयपासा सुदरपासा सुजायपामा मिअमाइयपीण-रइयपासा अकरंडुय-कणगरुयग-निम्मलसुजाय-निरुवहयदेहधारी पसत्थबत्तीस-लक्खणधरा कणगसिलायलुजल-पसत्थसमतलउवचिअवित्थिन्नपिहुलवच्छा सिरिवच्छकियवच्छा पुरवरफलिह-वट्टियभुया भुयगी. सरविउल-भोगयाषाण फलिहउच्छूट दीहबाहू जुगसन्निभ-पीणरइथ-पीवरपउ8संठिय-उवचियघणथिरसुबद्ध-सुवट्ठ-सुसिलिट्ट-पव्वसंधी रत्ततलोव चिय-मउयमंसल-सुजायलक्खण-पसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवरवट्टिय सुजायकोमल-वरं. गुलिया तंवतलिण-सुइ रुइरनिद्धनवखा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा कपाणिलेहा सोत्थित्रपाणिलेहा ससिरवि-संखचक्कसोस्थिय विभत्तसु.