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________________ 102] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमो विभागः निलंभिऊण कामगुणे / अचासायण-विरो रक्खामि महब्बए पंच / 262 // सत्तभय-विप्पमुको चतारि निरु भिऊण य कसाए। अट्टमय-टाणजटो रक्खामि महबए पंच // 263 // मणसा मणसचविऊ वायासच्चेण करणसच्चेण / तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महब्बए पंच / 264 // एवं तिदंडविरो तिकरणसुद्धो तिसल्लनिस्सल्लो / तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 265 // सम्मत्तं समिईयो गुत्तीयों भावणायो नाणं च / उपसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 266 // संगं परिजाणामि सल्लंपि य उद्धरामि तिविहेणं / गुत्तीयो समिईयो मज्झ ताणं च सरणं च / / 267 // जह खुहियचकवाले पोयं रयणभरियं समुद्दम्मि / निजामया धरिती कयरय(कर)णा बुद्धि संपराणा // 268 // तवपोधे गुणभरियं परीसहुम्मीहि धणियमाईद्धं / तह बाराहिंति विऊ उवएसज्वलंबगा धीरा // 26 // जइ ताव ते सुपुरिसा पायारोवियभरा निरवयक्खा / गिरिकुहर-कंदरगया माहंति य अप्पणो अट्ठ॥ 270 // जइ ताव सावयाकुल-गिरिकंदर-विसमदुग्ग-मग्गेसु। धिइधणिय-बद्धकच्छा साहति य उत्तमं अट्ठ॥ 271 // किं पुण अणगारसहायगेण वेरग्ग-संगहबलेणं / परलोएण ण सका संसारमहोदहि तरिउं ? // 272 // जिणवयण-मप्पमेयं महुरं कनामयं सुणताणं / सका हु साहुमम्झा साहेऊं अप्पणो अट्ठ॥ 273 // धीरपुरिस-पराणत्तं सप्पुरिस-निसेवियं परमघोरं / धन्ना सिलातलगया साहिंती अप्पणो अट्ठ॥ 27 // बाहेइ इंदियाइं पुवमकारिय-पइट्ठ(राण)चारिस्स / अकयपरिकम्म कीवं मरणेस अ संपउतंमि // 275 // पुबमकारिय-जोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि / न भवइ परीसहसहो विसयसह-पराइयो जीवो // 276 // पुखि कारियजोगो समाहि. कामो य मरणकालम्मि / होइ उ परीसहसहो विसयसुह-निवारियो जीवो ... // 277 // पुब्बिं कारियजोगो अनियाणो ई हेउण सुहभावो / ताहे मलि यकसायो सज्जो मरणं पडिच्छिज्जा॥२७॥ पावाणं पाषाणं कम्माणं अप्पणो
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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