________________ प्रकीर्णकानि - 7 गच्छाचारप्रकीर्णकम् ] : [61 जत्थ य वारडिवाणं तत(तेकू)डिआणं च तह य परिभोगो। मोत्तुं सुकिलवत्थं का मेरा तत्थ गच्छम्मि ? // 86 // जत्थ हिरगणसुवरणं हत्येण परागय(णगं)पि नो छिप्पे / कारणसमप्पिपि हु निमिसखणद्धपि तं गच्छं // 10 // जत्थ य अजालद्धं पडिगहमाई विविहमुवगरणं / परिभुजइ साहूहिं तं गोत्रम ! केरिसं गच्छं ? // 11 // अइदुलहमेसज्ज बलबुद्धिविवडणंपि पुट्टिकरं / अजालद्धं भुजइ का मेरा तत्थ गच्छंमि ? // 12 // एगो एगिथिए सद्धिं, जत्थ चिट्ठिज गोयमा ! संजईए विसेसेणं, निम्मेरं तं तु भासिमो // 13 // दढचारित्तं मोत्तुं श्राइज्जं मयहरं च गुणरासिं / इको अमावेई तमणायारं न तं गच्छं।१४॥ घणगजियहयकुहिग्रं विज दुग्गिज्म गूढहिश्रयायो / अजा अवारिपायो इत्थीरजं न तं गच्छं // 15 // जत्थ समुद्देसकाले साहणं मंडलीइ अजायो / गोत्रम ! ठवंति पाए इत्थीरज्जं न तं गच्छं // 16 // जत्थ मुणीण कसाए जगडिज्जंतावि परकसाएहिं / निच्छति समुट्ठ उं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव // 17 // धम्मतरायभीए भीए संसारगम्भवसहीणं / न उईरंति कसाए मुणी मुणीणं तयं गच्छं // 18 // कारणमकारणेणं ग्रह कहवि मुणीण उट्टहिं कसाए। उदिएवि जत्थ रुभन्ति खामिजइ जत्थ तं गछं // 11 // सीलतवदाणभावण चउबिहधम्मंतरायभयभीए / जत्थ बहू गीअत्थे गोश्रम ! गच्छं तयं भणियं // 10 // जत्थ य गोयम ! पंचगह कहवि सूणाण इक्कमवि हुजा / तं गच्छं तिविहेणं वोसिरिय वइज अन्नस्थ // 101 // सूणारंभपत्तं गच्छं वेसुजलं न सेविज्जा। जं चारित्तगुणेहिं उज्जलं तं तु सेविज्जा // 102 // जत्थ य मुणिणो कयविकयाई कुवंति संजमुझट्ठा / तं गच्छं गुणसायर ! विसं व दूरं परिहरिजा // 103 // श्रारंभेसु पसत्ता सिद्धंतपरम्मुहा विसयगिद्धा / मोत्तु मुणिणो गोयम ! वसिज्ज मज्झे सुविहिवाणं // 104 // तम्हा सम्म निहालेउं, गच्छं खम्मग्गपट्ठियं / वसिजा पक्ख मासं वा, जावजीवं तु गोयमा