________________ प्रकीर्णकानि : 3 श्रीमहाप्रत्याख्यानप्रकीर्णम् ] . / 17 णेणं, मए पत्ता अणंतसो // 123 // मए कयं इमं कम्म, समासज्ज अबोहिउं। पोराणगं इमं कम्म, मए पत्तं अणंतसो // 124 // ताहिं दुक्खविवागाहिं, उखचिरणाहिं तहिं तहिं / न य जीवो अजीवो उ, कयपुव्वो उ चिंतए // 125 // अब्भुज्जुयं विहारं इत्थं जिणएसियं विउपसत्यं / नाउं महापुरिससेवियं अब्भुज्जुयं मरणं // 126 // जह पच्छिमंमि काले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं / पच्छा निच्छयपत्थं उवेमि अब्भुज्जुयं मरणं // 127 // बत्तीसमंडियाहिं कडजोगी जोगसंगहबलेणं / उज्जमिऊण य बारसविहेण तवणेहपाणेणं // 128 // संसाररंगमज्झे धिंडवलववसायबद्धकच्छायो / हंतूण मोहमल्लं हराहि याराहणपडागं // 12 // पोराणगं च कम्म खवेइ अन्नं नवं च न चिणाइ। कम्मकलंकलवलिं(लिवत्ति) छिदइ संथारमारूढो // 130 // श्राराहणोवउत्तो सम्म काउण सुविहियो कालं / उक्कोसं तिन्नि भवे गंतूण लभिज निव्वाणं // 131 // धीरपुरिसपन्नत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं / श्रोइराणो हु सि रंगं हरसु पडायं अविग्घेणं // 132 // धीर पडागाहरणं करेह जह तंमि देसकालंमि। सुत्तत्थमणुगुणंतो घिइनिचलबद्धकच्छारो // 133 // चत्तारि कसाए तिन्नि गारवे पंच इंदियग्गामे / हता परीसहचमू हराहि श्राराहणपडागं // 134 // माऽऽया ! हु व चितिजा जीवामि चिरं मरामि व लहुँति / जइ इच्छसि तरिउं जे संसारमहोत्रहिमपारं // 135 // जइ इच्छसि नित्थरिउं सम्वेसिं चेव पावकम्माणं / जिणवयणनाणदंसणचरित्तभावुज्जुयो जग्गं // 136 // दंसणनाणचरित्तं तवे य बाराहणा चउपखंधा / सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा मज्झिम जहन्ना // 137 // बाराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खधं / कम्मरयविप्पमुको तेणेव भवेण सिभिजा // 138 // श्राराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउक्खधं / सत्तट्ठभवग्गहणे परिणामेऊण सिज्झिज्जा // 136 // सम्मं मे सव्वभूएसु, वेरं मझ न केणइ / खामेमि सव्वजीवे, खमामऽहं सव्वजीवाणं // 140 ॥धीरेणवि