________________ 16] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमो विमागः सवायरेण कायव्वं / मुच्चइ हु संवेगी अणंतत्रो होइ असंवेगी। 106 // धम्मं जिणपनत्तं सम्ममिणं सहहामि तिविहेणं / तसथावरभूयहियं पंथं निवाणनगरस्स // 107 // समणोमित्ति य पढमं बीयं सम्वत्थ संजयो मित्ति / सव्वं च वोसिरामि जिणेहिं जं जं च पडिकुटुं॥ 108 // उवही सरीरगं चेव, श्राहारं च चउन्विहं / मणसावयकाएणं, वोसिरामित्ति भावो // 101 // मणसा अचिंतणिज्ज सव्वं भासाइ अभासणिज्जं च / कारण अकरणिज्ज सव्वं तिविहेण वोसिरे // 110 // अस्संजमत्तोगसणं (अस्संजमे वेरमणं) उवही विवेगकरणं उबसमो य / अप्पडिरुयजोगविरयो खंती मुत्ती विवेगो श्र॥ 111 // एवं पञ्चक्खाणं बाउरजण श्रावईसु भावेण / अराणयरं पडिवगणो जंपंतो पावइ समाहिं // 112 // एयंसि निमित्तंमी पञ्चक्खाऊण जइ करे कालं / तो पञ्चखाइयव्वं इमेण इक्केणवि पएणं // 113 // मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य / तेसिं सरणोवगो सावज्जं वोसिरामिति // 114 // अरहंता मंगलं मझ, अरहंता मज्झ देवया / अरहते कित्तइत्ताणं, वोसिरामित्ति पावगं // 115 / सिद्धा य मंगलं मज्झ सिद्धा य मन्झ देवया। सिद्धे य कित्तइत्ताणं, वोसिरामित्ति पावगं // 116 // पायरिया मंगलं मन्झ, पायरिया मज्झ देवया / पायरिए कित्तइत्ताणं वोसिरामित्तिपावगं॥११७|| उज्माया मंगलं मज्झ, उज्झाया मज्झ देवया। उन्झाए कित्तइत्ताणं, वोसिरामित्ति पावगं // 118 // साहू य मंगलं मझ, साहू य मम देवया / साहू य कित्तइत्ताणं, वोसिरामित्ति पावगं // 111 // सिद्धे उपसंपराणो अरहते केवलित्ति भावेणं / इत्तो एगयरेणवि पएण बाराहयो होइ // 120 // समुइराणवेयणो पुण समणो हियएण किंपि चिंतिजा / श्रालंबणाई काई काऊण मुणी दुहं सहइ ? // 121 // वेयणासु उइन्नासु, कि मे सत्तं निवेयए। किं वाऽऽलंबणं किच्चा, दुक्खमहिया. सए ? // 122 // अणुत्तरेसु नरएसु, वेयणाओ अणुत्तरा / पमाए वट्टमा