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________________ [ भीनदानमालातिन अष्टमो विमाला देवाणं मज्झिममाउंधरिताणं ॥२२॥सत्ताह थोवाणं पुराणाणं पुराणइंदुसरिस मुहे ! / ऊसालो देवाणं जहन माउंपरिंताणं / / 230 // जइ सागरोत्रमाईजस्त ठिई तस्स तत्तिएहिं पक्खेहिं / ऊसासो देवाणं वाससहस्सेहिं आहारो॥ 231 // थाहारो ऊमासो एसो मे वनियो समासेणं / सुहुमंतरायनाहि ! (घणाहि) सुंदरि / अचिरेण कालेण // 232 // एएप्ति देवाणं श्रोही उ विसेसो उ जो जस्स / तं सुदरि ! वराणेऽहं श्रहक्कम पाणुपुब्बीए // 233 // सोहम्मीसाण पढमं दुच्चं च सणंकुमारमाहिंदा / तच्चं च बंभलंतग सुक्कसहस्सारय चउत्थिं // 234 // प्राण पपाणयकप्पे देवा पासंति पंचमि पुढदि / तं चेर श्रारणञ्चुय श्रोहियनाणेण पासंति // 235 // छलुि हिटिममझिमगेविजा सत्तमि च उपरिला / संमिनलोगनालिं पासंति श्रणुत्तरा देवा // 236 // संखिजजोयणा खलु देवाणं श्रद्धसागरे ऊणे / तेण परमसंखिजा जहनयं पन्नवीसं तु // 237 // तेण परमसंखिजा तिरियं दीवा य सागरा चेव / बहुपयरं उवरिमया उ8 तु सकप्पथूभाई // 238 / नेरइयदेवतित्थंकरा य ओहिस्सऽबाहिरा हुति / पासंति सव्वश्रो खलु सेसा देसेण पासंति॥२३॥ योहिन्नाणे विसश्रो एसो मे वरिणश्रो समासेणं / बाहल्लं उच्चत्तं विमाणवन्नं पुणो वुच्छं // 240 / / सत्तावीसं जोपणसयाई पुढवीण ताण बाहल्लं / सोहम्मीसाणेसुरयणविचित्ता य सा पुढवी // 241 // तत्थ विमाणा बहुविहा पासायपगइ-वेइयारम्मा। वेरुलियथूभियागा रयणामय-दामलंकारा॥२४२॥ केइत्थऽसियविमाणा अंजणधाउसरिसा सभावेणं / अद्दयरिट्ठ-सवण्णा जत्था. वाप्ता सुरगणाणं // 243 // केइ य हरियविमाणा मेयग-घाऊसरिसा सभावेणं / मोरग्गीव-सवराणा जत्थावासा सुरगणाणं // 244 // दीवसिहासरि. स-बरिणत्थ केई जासुमणसूर-सरिसवन्ना / हिंगुलुय-धा-उबराणा जत्थावासा सुरगणाणं // 245 // कोरिंट-धाउवरिणत्य केई फुल्लकणियार-सरिसवराणा य / हालिद्द-भेयवगणा जत्थावासा सुरगणाणं // 246 // अविउत्त-मल्दामा
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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