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________________ ] [बीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभाग: तस्स विसयो भरेउं जे॥ 53 ॥धरणोवि नागराया जंबुद्दीवं फडाइ छाइजा। तं चेव समइरेगं भूयाणंदे य बोद्धव्वं // 54 // गरुलोऽवि वेणुदेवो जंबुद्दीवं छइज पक्खेणं / तं चेव समइरेगं वेणुदालिम्मि बोद्धव्वं // 55 // पुराणोवि जंबुदीवं पाणितलेणं इज इक्केणं / तं चेव समइरेगं हवइ वसिट्टे वि बोद्धव्वं // 56 // इकाइ जलुम्मीए जंबुद्दीवं भरिज जलकंतो। तं चेव समइरेगं जलप्पभे होइ बोद्धव्वं // 57 // अमियगइस्सवि विसयो जंबुद्दीव तु पायपराहीए / कपिज निरवसेसं इयरो पुण तं समइरेगं // 58 // इकाइ वायुगुजाइ जंबुद्दीवं भरिज वेलंबो / तं चेव समइरेगं पभंजणे होइ बोद्धव्वं // 51 ॥घोसोऽवि जंबुद्दीवं सुंदरि ! इक्केण थणियसबेणं / बहिरीकरिज सव्वं इयरो पुण तं समइरेगं ॥६०॥इकाइ विज्जुयाए जंबुद्दीवं हरी पकासिज / तं चेव समइरेगं हरिरसह होइ बोद्धव्वं // 61 // इकाइ अग्गिजालाइ जंबुदीवं डहिज्ज अग्गिसिहो / तं व समइरेगं माणवए होइ बोद्धव्वं // 62 // तिरियं तु असंखिजा दीवसमुद्दा सरहिं रूवेहिं / अक्गादाउ करिजा सुंदरि ! एएसि एगयरो // 63 // पभू अन्नयरो इंदो जंबुद्दीवं तु वामहस्थेण / छत्तं जहा धरिजा अन्नयो मंदरं चित्तुं // 64 // जंबुद्दीवं काउण छत्तयं मंदरं व से दंडं / पभू श्रन्नयरो इंदो एसो तेसिं बलविसेसो // 65 // एसा भवणवईणं भवठिई वनिया समासेणं / सुण वाणमंतराणं भवणवईश्राणुपुबीए // 66 // पिसाय भूया जवखा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा / महोरगा य गंधमा अट्टविहा वाणमंतरिया // 67 // एए उ. समासेणं कहिया भे वाणमंतरा देवा / पत्तेयंपि य बुच्छं सोलस इंदे महिडिए / / 68 // काले य महाकाले सुरुष पडिरूव पुन्नभद्दे य / अमरवइ माणभद्दे भीमे य तहा महाभीमे // 66 // किन्नरकिंपुरिसे खलु सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे। अइकाय महाकाए गीयरई चेव गीयजसे // 7 // सन्निहिए सामाणे धाइ विधाए इसी य इसिपाले / इस्सर महिस्सरे या हवइ
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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