________________ प्रकीर्णकानि // 7 गच्छाचारप्रकार्णका ] (मंडणु) भोइंति श्र तह य कब? // 122 // जत्थ यथेरी तरुणी थेरी तरुणी य अंतरे सुयइ / गोश्रम ! तं गच्छवरं वरनाणचरित्तबाहारं // 123 // धोइंति कंठियायो पोइंति तह य दिति पोत्ताणि / गिहजचिंतगीयो न हु अन्जा गोयमा ! ताश्रो // 124 // घरघोडाइट्ठाणे वयंति ते वावि तत्थ वच्चंति। वेसित्थीसंतग्गी उवस्सयायो समीवंमि // 125 // सन्माय मुकजोगा धम्मकहा विगहपेसण गिहीणं। गिहिनिस्सज्जं वाहिति संथवं तह करतीयो // 126 // समा सीसपडिच्छीणं, चोपणासु प्रणालसा / गणिणी गुणसंपराणा, पसस्थपुरिसाणुगा // 127 // संविग्गा भीयपरिसा य, उग्गदंडा य कारणे / सज्झायज्माणजुत्ता य, संगहे अ विसारया // 128 // जत्थुत्तरपडिउत्तरवडिया अजा व साहुणा सद्धिं। पलवंति सुरुठ्ठावी गोत्रम ! कि तेण गच्छेण ? // 12 // जत्थ य गच्छे गोश्रम ! उप्पराणे कारणमि अजायो। गणिणी पिट्ठीठियायो भासंती मउअसद्देणं // 130 // माऊए दुहियाए सुराहाए अहव भइणिमाईणं / जत्थ न अजा अक्खइ गुत्तिविभेयं तयं गच्छं // 131 // दंसणयारं कुणई चरित्तनासं जणेइ मिच्छत्तं / दुराहवि वग्गेणऽजा विहारभेयं करेमाणि // 132 // तंमूलं संसार जणेइ अजावि गोमा ! नूणं / तम्हा धम्मुवएस मुत्तु, अन्नं न भासिजा // 133 // मासे मासे उ जा अजा, एगसित्थेण पारए। कलहे गिहत्यभासाहि, सव्वं तीए निरस्थयं // 134 // महानिसीहकप्पयो, ववहाराश्रो तहेव य / साहुसाहुणिट्ठाए, गच्छायारं समुद्धियं // 13 // पदंतु साहुणो एग्रं, असज्झायं विवजिउं / उत्तमं सुयनिस्संदं, गच्छायारं तु उत्तम // 136 // गच्छायारं सुणिताणं, पढित्ता भिक्खुभिक्खुणी / कुणंतु जं जहा भणियं, इच्छंता हियमप्पणो // 137 // गच्छाचारपइराणयं सम्मत्तं / ॥इत्ति भी गच्छाचारप्रकीर्णकम् // 7 //