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________________ प्रकीर्णकानि :: 7 गच्छाचारप्रकीर्णकम् ] [56 नाजसजणए नऽकजकारी श्र। न पवयणउड्डाहकरे कंठग्गयपाणसेसेवि // 55 // गुरुणा कजमकज्जे खरककसदुट्टनिट्ठरगिराए / भणिए तहत्ति सीसा भणंति तं गोत्रमा ! गच्छं // 56 // दूरुभित्र पत्ताइसु ममत्तए निप्पिहे सरीरेऽवि / जायमजायाहारे बायालीसेसणाकुसले // 57 // तंपि न स्वरसत्थं न य वराणत्थं न चेव दप्पत्थं / संजमभरवहणत्थं अक्खोवंगं व वहणत्थं // 58 // वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए / तह पाणवत्तियाए छ8 पुण धम्मचिंताए // 51 // जत्थ य जिट्टकणिट्ठो जाणिज्जइ जिट्टविणयबहुमायो / दिवसेणवि जो जिट्ठो न हीलिजइ स गोत्रमा गच्छो // 60 // जत्थ य अजाकप्पं पाणचाएवि रो(घो)रदुभिक्खे / न य परि. भुजइ सहसा गोश्रम ! गच्छं तयं भणियं // 61 // जत्थ य अजाहि समं थेरावि न उल्लविंति गयदसणा / न य झायंति थीणं अंगोवंगाइं तं गच्छं // 62 // वज्जेह अप्पमत्ता अजासंसग्गि अग्गिविससरिसी। अजाणुचरो साहू लहइ अकित्तिं खु अचिरेण // 63 // थेरस्स तवस्सियस्स व बहुसुयस्स व पमाणभूअस्स / अजासंसग्गीए जणजपणयं हविजाहि // 64 // किं पुण तरुणो अबहुस्सुयो अण यऽविहु विगिट्ठतवचरणो। अजासंसग्गीए जणजपणयं न पाविजा ? // 65 // जइवि सयं थिरचित्तो तहावि संसग्गिलद्धपसराए / अग्गिसमीवेव घयं विलिज चित्तं खु अजाए // 66 // सव्वत्थ इत्थिवग्गंमि अप्पमत्तो सया अवीसत्थो / निन्थरइ बंभचेरं तब्विवरीयो न नित्थरइ // 67 // सव्वत्थेसु विमुत्तो साहू सव्वत्थ होइ अप्पवसो। सो होइ अणप्पवसो अजाणं अणुचरंतो उ॥ 68 // खेलपडिअमप्पाणं न तरइ जह मच्छिया विमोएउं। अजाणुचरो साहू न तरइ अप्पं विमोएउं // 66 / साहुस्स नत्थि लोए अजासरिसी हु बंधणे उवमा / धम्मेण सह ठवतो न य सरिसो जाण असिलेसो॥ 70 // वायामित्तेणवि जत्थ भट्टचरित्तस्स निग्गहं विहिणा / बहुलद्धिजुस्सावि कीरइ गुरुणा तयं गच्छं
SR No.004369
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size16 MB
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