Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 143
________________ 132] / श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभाग तम्हा इक्कांपे पयं चिंततो तम्मि देसकालंमि / श्राराहणोवउत्तो जिणेहिं धाराहगो भणियो॥१७॥ श्राराहणोवउत्तो सम्म काऊण सुविहियो कालं / उक्कोसं तिरिण भवे गंतूणं लहइ निवाणं // 18 // नाणस्स गुणविसेमा केइ मए वनिया समासेणं / चरणरस गुणविसेसा श्रोहियहियया निसामेह // 11 // (6 ) चरणगुणे:ते धना जे धम्मं च रेउं जिणदेसियं पयत्तेणं / गिहपासबंधात्रो उम्मुक्का सवभावेणं // 10 // भावेण अणगणमणा जिणवयणं जे नरा अणुचरंति। ते मरणंमि अग्गे न विसीयन्ति गुणसमिद्धा // 101 // सीयं ते ते मणुस्सा सामगणं दुल्लहंपि लभ्रूण / जो अप्पा न निउत्तो दुक्खविमुक्समि मग्गंमि // 202 // दुक्खाण ते मणुस्सा पारं गच्छति जे य दधीमा / भावेण अणन्नमणा पारत्तहियं गवेसंति // 103 // मग्गंति परमसुहं ते पुरिसा जे खविंति उज्जुत्ता / कोहं माणं मायं लोभं अरई दुगंधं च॥१०॥ लढूण वि माणुस्सं सुदुल्लहं जे पुणो विरार्हिति / ते भिन्नपोय-संजत्तिया व पच्छा दुही हुँति // 10 // लभ्रूण वि सामन्नं पुरिसा जोगेहि जे न हाति। ते लद्धपोयसंजत्तिया व पच्छा न सोयंति // 106 // नहु सुलहं माणुःसं लभ्रूण वि होइ दुलहा बोही / बोहीए वि य लंभे सामन्नं दुलहं हो। // 107 // सामनस्स निवलम्भे नाणाभिगमो य दुल्लहो होई / नाणंमिय श्रागमिए चरित्तसोही हवइ दुलहा // 108 // अत्थि पुण केइ पुरिसा संमत्तं नियमसो पसंसंति / केई चरित्तसोहिं नाणं च तहा पसंसंति // 101 // सम्मत्तचरित्ताणं दुराहपि समागयाण सत्ताणं / किं तत्थ गिरिह यव्वं पुरिसेणं बुद्धिमंतेणं // 110 // सम्मत्तं प्रवरित्तस्स हवइ जहा कराह. सेणियाणं तु / जे पुण चरित्तमंता तेसिं नियमेण संमतं // 111 // भट्ठण चरित्तायो सुट्टयरं दंसणं गहेयव्वं / सिझति चरणरहिया दंसारहिया न

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