Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि: 1 श्रीचन्द्रध्यकप्रकीर्णकम् ] [131 पयासयं सोहयो तवो संजमो य गुत्तिक(धारो। तिरहं पि समायोगे मुक्खो जिणसासणे भणियो॥८०॥किं इत्तो लट्ठयरं अच्छेरतरं सुंदरतरं वा / चंदमिव सव्वलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति // 81 // चंदाश्रो नियइ जोराहा बहुस्सुयमुहाउ नियइ जिणवयणं / जं सोऊण मणुस्सा तरंति संसारकंतारं // 82 // सूई जहा ससुत्ता न नस्सई कयवरंमि पडियावि / जीवो तहा ससुत्तो न नस्सइ गयो वि संसारे॥८॥सूई जहा असुत्ता नासइ सुत्ते अदिस्समाणंमि / जीवो. तहा असुत्तो नासइ मिच्छत्तसंजुत्तो॥८४ // परमत्थंमि सुदिट्ठ अविणढे सुतवसंजमगुणेसु / लब्भइ गई विसिट्ठा सरीरसारे विन?वि // 85 // जह श्रागमेण विजो जाणइ वाहिं तिगिच्छिउं निउणो / तह श्रागमेण नाणी जाणइ सोहिं चरित्तस्स // 86 // जह श्रागमेण हीणो विजो वा.हस्स न मुणइ तिगिच्छं / तह भागमारिहीणो चरित्तसोहिं न याणेइ / / 87 // तम्हा तित्थयरपरूवियंमि नाणम्मि अत्यजुत्तम्मि / उज्जोयो कायवो नरेण मुक्खाभिकामेण // 88 // बारसविहंमि वि तवे सम्भितर बाहिरे जिणक्खाए / नवि अत्थि नवि य होही सन्झायसमं तवोकम्म // 81 // मेहा होज न हुज व जं मेहा उवसमेण कम्माणं। उज्जोयो कायब्बो नाणं अभिक्खमाणेण // 10 // कम्ममसंखिजभवं खवेइ अणुसमयमेव थाउत्तो / बहुयभवसंचियं पि हु सज्झाएणं खणे खवइ // 11 // सतिरिय-सुरासुरनरो सकिनर महोरगो सगंधव्यो / सव्वो छउमस्थजणो पडि. पुच्छइ केवलिं लोए॥१२॥ इवकमि वि जम्मि पए संवेगं वचइ नरो अभिवखं / तं तरस होइ नाणं जेण विरागत्तणमुवेइ // 13 // इक्कमि वि जंमि पए संवेगं वीयरायमग्गंमि / बच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणंते ण मुत्तव्वं // 14 // इक्कमि वि जंमि पए संवेगं कुणह वीयरायमए। सो तेण मोहजालं खवेइ अझप्पजोगेहिं // 15 // न हु मरणंमि उवग्गे सको बारसविहो सुयक्खंधो / सव्वो अणुवितेउं धणियपि समस्थचित्तेण // 16 //
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