Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि :: 1 श्रीचन्द्रशेयकप्रकीर्णकम् ] [ 115 जाण खेमं जियं जिएसु अभयं अभिहएसु / नट्ठसु याविणटुं सुक्खं च जयो कसायाणं // 146 // धना निचमरागा जिणवयणरया नियत्तियकसाया। नित्संगनिम्ममत्ता विहरंति जहिच्छिया साहू // 147 / धन्ना यविरहिय-गुणा विहरंती मुक्खमग्गमलीणा / इहय परत्थय लोए जीवियमरणे अपडिबद्धा // 148 // मिच्छत्तं वमिऊणं सम्मत्तंमि धणियं अहीगारो। कायब्वो बुद्धिमया मरणसमुग्धायकालंमि // 141 // हंत ! बलियंमि धीरा मरणे पच्छा उवट्ठिए संते। मरणसमुग्घाएणं अवसा निजंति मिच्छत्तं // 150 // तो पुवं बुद्धिमया श्रालोइय निंदिउं गुरुतगासे / कायव्वा अणसुद्री पबजाइ य जं सरइ // 151 // ताहे जं दिज गुरू पायच्छित्तं जहारिहं जस्म / इच्छामित्ति भणित्ता अहमवि नित्थारियो तुब्भे // 152 // परमत्याउ मुणीणं अबराहो नेव होइ काययो / च्छलियस्स पमाएणं पच्छित्तमवस्त काय // 153 // पच्छित्तेण विसोही पमायबहुलस्स होइ जीवस्स / तेण तयंकृषभूयं चरियव्वं चरणरक्खट्टा // 154 // न वि मुझंति सतला जह भणियं सवभावदंसीहिं / मरणपुणभव-रहिया बालोयण-निंदणा साहू // 155 // इषकं समलमरणं मरिऊण महब्भव(यं)मि संसारे / पुणरवि भमंति जीवा जम्मणमरणाई बहुयाइं // 156 // पंचसमियो तिगुत्तो सुचिरं कालं मुणी विहरिऊणं। मरणे विराहयंतो धम्ममणाराहयो भणियो // 157 // बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालंमि संवुडो सो उ / श्राहारणोवउतो जिणेहि बाराहयो भणियो // 158 // तो सबभावसुद्धो बाराहणमभिमुहो विसंभंतो। संथारं पडिवन्नो इणमं हियए विचितिजा // 15 // इक्को मे सासयो अप्पा नाणदंसणसंजुयो / सेसा मे बाहिरा भावा सब्ने संजोगलक्खणा // 160 // इक्को हं नत्थि मे कोइ नत्थि वा कस्सइ अहं / न तं पिक्खामि जस्साहं न सो भावो य जो महं // 161 // देवत्त-माणुसत्तं तिरिक्खजोणी तहेव नरयं च। पत्तो अणंतखुत्तो पुव्वं अन्नाणदोसेणं

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