Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 148
________________ श्री वीरस्तव प्रकीर्णकं ] [ 137 // 2 // अथ श्री वीरस्तव-प्रकीर्णकम // नमिऊण जिणं जगजीव-बंधवं भविय-कुमुय-रयणियरं / वीरं गिरिं. दधीरं थुणामि पयडत्थनामेहिं // 1 // अह अरिहंत अरहंत देव जिण वीर (जिणवर) परमकारुणिय / सव्वन्नु सव्वदंसण, पारय तिकालविऊ नाह // 2 // जय वीयराय केवलि तिहुयणगुरु सव्व तिहुयणवरिट / भयवं तित्थयर ति य सक्केहिं नमंसिय जिणिंद // 3 // सिरिखद्धमाण-हरिहर. कमलासणपमुह-नामधेएहिं / अन्नत्थ-गुणजुएहिं जडमइवि सुयाणुसारेण // 4 // भवबीयंकुरभूयं कम्मं डहिऊण झाणजलणेण / न रुहसि भववणगहणे तेण तुमं नाह अहोसि // 5 // घोरुवसग्ग-परीसह-कसाय करणाणि पाणिणं अरिणो / सयलाण नाह ! ते हणसि जेण तेणारिहंतोऽसि // 6 // वंदण थुणण नमसण पूयण सकरण सिद्धिगमणंमि / अरिहोसि जेण वरपहु ! तेण तुमं होसि अरहंतो // 7 // अमर-नर-असुर-वर-पहु-गणाण पूयाए जेण अरिहोऽसि / धीर(सिद्धारमण)मणुन्मुक्को (?) तेण तुमं देव ! अरहंतो // 6 // रहगदिसेससंगह-निदरिसणमंतो गिरिगुहमणाणं / तं ते नत्थि दुयंपि हु (?) जिणिंद ! तेणारिहंतोऽसि // 6 // रहमग्गं तो अन्नंपि मरणमवणीय जेण वरनाणा / संपन्न-निय-सरूवो देव ! तुमं तेण अरहंतो // 10 // न रहसि सदाइ-मणोहरेसु अमणोहरेसु तं जेण / समधारं जियमणकरणजोग तेणारहंतोऽसि // 11 // अरिहा जोगा पूयाईयाण देविंदगुत्तरसुराई / ताणंपि य अंतो सीमाकोडी तं तेणऽरहंतो // 12 // सिद्धिवहुसंग-कीलापरोऽसि विजइ समो मोहरिउवग्गेणं / सुहपुन्न-परिणइ-परिगय तं तेण देवुत्ति // 13 // रागाइवेरि-निकितणेण दुहउ वि वयसमाहाणा। जय सत्तुकरिसगुणाइएहिं तेणं जिणो देव // 14 // दुइट्टकम्मगंट्ठि. पवियारणलद्धलद्धि-संससद्द तव सिरिवरगणकेलिय-सोहतं तेण वीरोसि // 15 // पढमवयगहणदिवसे संकंदण-विणयकरण-गयतराहा / जायोसि

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