Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ सापरे त माना पार / / 165 // मगदोसं च // मरणकाले गाया। 156]. ( श्रीमदागमसुधासिन्दुः / अष्टमो विभाग // 16 // न य संतोसं पत्तो सएहिं कम्मेहि दुक्खमूलेहिं / न यलद्धा परिसुद्धा बुद्धी सम्मत्तसंजुत्ता // 163 // सुचिरंपि ते मणुस्ता भमंति संसारसायरे दुग्गे / जे य करंति पमायं दुक्खविमुक्खमि धम्ममि // 164 // दुक्खाण ते माना पारं गच्छति जे य दढधिईया / पुबपुरिसाणुचिन्नं जिणवयाणपहं न मुञ्चति // 165 // मग्गंति परममुक्खं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता / कोहं माणं मायं लोभं तह रागदोसं च // 166 // नवि माया नवि य पिया न बंधवा नवि पियाई मित्ताई। पुरिसस्स मरणकाले न हुँति बालंबणं किंचि // 167 // हिरनसुवन्नं वा दासीदासं च जाणज्जुग्गं वा। पुरिसस्स मरणकाले न हुँति बालंबणं किंचि // 168 // श्रासबलं हथिवलं जोहबलं धणुबलं रहबलं च / पुरिसस्स मरणकाले न हुँति श्रालंबणं किंचि // 161 // एवं पाराहिंतो जिणोवइट्ठसमाहिमरणं तु / उद्धरिय-भावसल्लो सुज्झइ जीवों धुयकिलेसो // 17 // जाणतेण वि जइणा वयाइयारस्स सोहणोवायं / परसक्खिया विसोही कायव्वा भावसल्लस्स // 171 // जह सुकुमलों वि विजो अन्नस्स कहेइ बाप्पणो वाही(हिं) / सों से करेइ तिगि. च्छं साहूवि तहा गुरुसगासे // 172 // इत्थं समुप्पइ मुणिणो पयजा मरणकालसमयंमि / जो उ न मुज्झइ मरणे साहू(सो हु) धाराहयो भणियों // 173 // विणयं' पायरियगुणे सीसगुणे विणयनिग्गहगुणे य / नाणगुणे चरणगुणे मरणगुणविहिं च सोऊण // 174 // तह वत्तह काउं जे जह मुबह गमवास-वसहीणं / मरणपुणब्भव-जम्मण-दुग्गइ-विणिवायग मणाणं // 175 // इइ सिरि चंदावेझय(चंदगविज्झ) पइराणयं // - ॥इति भी चन्द्रवेध्यकप्रकीर्णकम् // 1 // -::
Page Navigation
1 ... 145 146 147 148 149 150 151 152