Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 134.] [ भीमदागमसुधासिन्धुः // अष्टमो विमागा // 128 / / जइ य करेइ पमायं थोपि य अन्नचित्तदोसेणं / तह कयसंधाणो विय चंदगविज्झन विधेइ // 121 // तम्हा चंदगविज्झस्स कारणा अप्प. माइणा निच्चं / अविराहियगुणो अप्पा काययो मुक्खमग्गंमि // 130 // संमतलठ्ठबुद्धिस्प्त चरिमप्तमयंमि वट्टमाणस्त / बालोइय-निंदिर-गरहियस्स मरणं हाइ सुद्धं // 131 // जे मे जाणंति जिणा अवराहा नाणदंसणचरित्ते / ते सब्बे बालोए उपट्ठियो सबभावेणं // 132 // जो दुन्नि जीवसहिया रुंभइ संसारबंधणा पावा / रागं दोसं च तहा सो मरणे होइ कयजोगो // 133 // जो तिनि जीवसहिया दंडा मणवयणकायगुत्तीयो। नाणंकुसेण गिराहइ सो मरणे होइ कयजोगो॥ 134 // जो चत्तारि कमाए घोरे ससरीरसंभवे निच्चं / जिणगरहिए निरंभइ सो मरणे होइ कयजोगो // 13 // जो पंचइंदियाइं सन्नाणी विसय-संपलित्ताई। नाणंकुसेण गिराहइ सो मरणे होइ कयजोगो // 136 // छजीवनिकायहियो सत्तभयट्ठाण-विरहियो साहू। एगंत-मद्दवमश्रो सो मरणे होइ कयजोगो // 137 // जेण जिया अट्ठमया गुत्तो वि हु नवहिं बंभगुत्तीहिं। बाउत्तो दसकज्जे सो मरणे होइ कयजोगो॥१३८॥ श्रासायणा-विरहियो धाराहिसु दुलहं मुक्खं / सुहुज्माणाभिमुहो सो मरणे होइ कयजोगो // 136 // जो वि सहइ बाबीसंपरीसहा दुस्सहा उ उबसग्गा। सुराणे व पाउले वा सो मरणे होइ कयजोगो॥ १४॥धनाणं तु कप्ताया जगडिज्जंता वि परकसाएहिं / निच्छंति समुट्टित्ता सुनिविट्ठो पंगुलो चेव // 141 // सामन्न-मणुचरंतस्स कसाया जस्स उकडा हुँति / मन्नामि उन्छुपुष्फ व निष्फलं तस्स सामन्नं // 142 // जं अजियं चरितं देसूणाए य पुषकोडीए / तं पि कसाइयचित्तो हारेइ नरो मुहुत्तेण // 143 // जं अजियं च कम्मं श्रणंतकालं पमायदोसेणं / तं निहय-रागदोसो खविज पुत्राण कोडीए // 144 // जइ उपसंतकसायो लहइ अणंतं पुणोवि पडिवायं / किं सका वीससिउं थोवेवि कसायसेसंमि // 145 // खीणेसु
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