Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि - 1 बीचन्द्रोऽयकप्रकीर्णकम् ] [ 126 कालन्नु देसन्नु समयन्नु सीलरूपविणयन्नु। लोहभय-मोहरहियं जियनिदपरीसहं चेत्र // 48 // जइवि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउकारणविहिन्नू। अषिणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति॥ 4 ॥सीसं सुइमणुरत्तं निच्चं विणयोवयारसंजुत्तं / वायजवगुणजुत्तं पवयणसोहाकरं धीरं // 50 // इत्तो जो परिहीणो गुणेहिं गुणस्य-नयोववेएहिं / पुत्तं पिन वाएजा किं पुण सीसं गुणविहीणं // 51 // एसा सीसपरिवखा कहिया निउणत्थसत्थ उवट्ठा / सीसो परिक्खयव्यो पारतं मग्गमाणेण // 52 // सीसाणं गुणकित्ती एसा मे वनिया समासेणं / विणयस्स निग्गहगुणे श्रोहियहियया निसामेह // 53 // ( 4 ) विण्यनिग्गहगुणे :विणो मुक्खदारं विणयं माहु कयावि छडिजा / अप्पसुत्रोवि हु पुरिसो विणएण खवेइ कम्माइं // 54 // जो अविणीयं विणाएण जिणइ सीलेण जिणइ निस्सीलं / सो जिणइ तिन्निलोए पावमपावेण सो जिणइ ॥५५॥जइवि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउकारणविहिन्नू। अविणीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसति // 56 // सुबहुस्सुयं पि पुरिसं कुसला अप्पसुर्यमि ठावंति / गुणहीण विणयहीणं चरित्तजोगेहिं पासत्थं // 57 // तवनियमसीललियं उज्जुत्तं नाणदंसणचरित्ते / अप्पसुयं पि हु पुरिसंबहुस्सुयपयंमि ठावंति // 58 // सम्मत्तंमि य नाणं वायत्तं दसणं चरित्तंमि / खंतिबलाउ य तवो नियमविसेसो य विणयायो॥५१ // सव्वे य तवविसेसा नियमविसेसा य गुणविसेसा य / नस्थि हु विणो जेसि मुवखफलं निरत्थयं तेसि // 6 // पुव्वं परूवियो जिणवरेहिं विणयो अणंतनाणीहिं / सम्वासु कम्मभूमिसु निच्चं चिय मुक्खमग्गंमि // 61 // जो विणयो तं नाणं जं नाणं सो हु वुचइ विणयो। विणएण लहइ णाणं नाणेण वि जाणइ विणयं // 62 // सब्बो चरित्तसारो विणयंमि पइट्ठियो मणुरसाणं / न हु विणयविप्पहीणं निग्गंथ
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