Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 133
________________ 122 ) श्रीमदागमनुयासिन्धुः अष्टमो विभागः धी संमारो जहियं जुवाणयो परमरूव-गब्धिययो / मरिऊण जायइ किमी तत्थेव कलेवरे नियए // 511 // बहुसो अणुभूयाई अईयकालम्मि सव्वदुवखाई / पाविहिइ पुणो दुवखं न करेहिइ जो जणो धम्मं // 600 / / 5 / धम्मेण विणा जिणदेसिएण नन्नत्थ अस्थि किंचि सुहं / ठाणं वा कज्जं वा सदेवमणुयासुरे लोए // 601 // अत्थं धम्म कामं जाणि य कजाणि तिन्नि मिच्छति / जं तत्थ धम्मकन्जंतं सुभमियराणि असुभाणि // 602 // श्रायासकिलेसाणं वेराणं श्रागरो भयकरो य / बहुदुक्ख-दुग्गइकरो अत्थो मूलं अणत्थाणं // 603 // किच्छाहि पाविउ जे पत्ता बहुभय-किलेस-दोस्करा / तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविवरणा कामा / / 604 // 6 / नत्थि इहं संसारे ठाणं किंचिवि निरुवद् दुयं नाम / ससुरासुरेसु मणुए नरएसु तिरि. वखजोणीसु // 605 // बहुदुक्ख-पीलियाणं मइमूदाणं अणवसगाणं / तिरियाणं नस्थि सुहं नेरइयाणं कयो चेव ? // 606 // हरगम्भवास जम्म. ण-वाहिजरामरण-रोगसोगेहिं / अभिभूए माणुस्से बहुदोसहिं न सुहमस्थि // 607 / / मंसट्टियसंघाए मुत्तपुरीसभरिए नवच्छिद्दे / असुई परिस्सर्वते सुहं सरीरम्मि किं यत्थि ? // 608 // इट्ठजण-विपयोगो चषणभयं चेव देवलोगायो। एयारिसाणि सग्गे देवावि दुहाणि पाविति // 601 // ईसाविसाय-मयकोह-लोहदोसेहिं एवमाईहिं / देवावि समभिभूया तेसुवि य कयो सुहं अस्थि ? // 610 ॥एरिसय-दोसपुराणे खुत्तो संसारसायरे जीवो। जं अइचिरं किलिस्सइ तं वासवहेउग्रं सव्वं // 611 // रागदोसपमत्तो इंदियवसयो करेइ कम्माई / यासवदारेहिं अविगुहेहिं तिविहेण करणेणं // 612 // धीधी मोहो जेणिह हियकामो खलु स पावमायर३ / न हु पावं हवइ हियं विसं जहा जीवियत्थिस्स // 613 // रागस्स य दोसस्स य धिरत्थु जं नाम सद्दतोऽवि / पावेसु कुणइ भावं पाउरविजय अहिएसु // 614 // लोभेण अहव पत्थो कज्जं न गयेइ याय-अहियपि / अइलो.

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