Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ प्रकीर्णकानि // 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णम् ] [ 123 हेण विणस्सइ मच्छुव्व जहा गलं गिलियो॥ 615 // अत्थं धर्म कामं तिरिणवि बुद्धो जणो परिचयइ / ताई करेइ जेहि उ (न) किलिस्सइ इहं परभवे य // 616 // हुँति अजुत्तस्स विणासगाणि पंचिंदियाणि पुरिसस्स / उरगा इव उग्गविसा गहिया मंतोसहीहि विणा // 617 // यासवदारेहिं सया हिंसाईएहिं कम्ममासवइ / जह नाराइ विणासो छिद्दे हि जलं उयहि-मज्झे // 618 // 8 / कम्मासवदाराई निलंभियब्वाइं इंदियाइं च / हंतव्वा य कसाया तिविहं तिविहेण मुक्खत्थं // 616 // निग्गहिय-कसाएहिं पासवा मूलयो हया हुँति / अहियाहारे मुक्के रोगा इव थाउरजणस्स // 620 // नाणेण य झाणेण य तवोबलेण य बला निरंभंति / इंदियविसय कसाया धरिया तुरगा व रज्जूहिं // 621 // हुँति गुणकारगाइं सुयरज्जूहिं धणियं नियमियाइं / नियगाणि इंदियाइं जइणो तुरगा इव सुदंता // 622 // मणवयण-कायजोगा जे भणिया करणसरिणया तिरिण / ते जुत्तस्स गुणकरा हुँति अजुत्तस्स दोसकरा // 623 // जो सम्मं भूयाई पासइ भूए अ श्रप्पभूए य / कम्ममलेण न लिप्पइ सो संवरियासवदुवारो // 624 // 1 / धराणा सत्त हियाई सुणंति धरणा करंति सुणियाइं / धराणा सुग्गइमग्गं मरंति धरणा गया सिद्धिं // 625 // धराणा कलत्तनियलेहिं विप्पमुक्का सुमत्तसंजुत्ता / वारीयोव गयवरा घरवारीयोवि निष्फिडिया // 626 // धराणा उ करंति तवं संजमजोगेहिं कम्ममट्टविहं / तवसलिलेणं मुणिणो धुणंति पोराणयं कम्मं // 627 // नाणमयवायसहियो सीलुजलियो तवो मयो अग्गी / संसारकरणबीयं दहइ दवग्गीव तणरासिं // 628 // 10 / इणमो सुगइगइपहो सुदेसियो उविखयो य जिणवरेहिं / ते धन्ना जे एयं पहमणवज्ज पवज्जति // 626 // जाहे य पावियव्वं इह परलोए य होइ कल्लाणं / ता एवं जिणकहियं पडिवजइ भावो धम्मं // 630 // जह जह दोसोवरमो जह जह विसएसु होइ वेरग्गं / तह तह विजाणयाहि
Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152