Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 136
________________ प्रकीर्णकानि // 10 भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [ 125 दारिद। तहय पियविप्पयोगा अधियजण-संपयोगा य // 648 // एयाणि य अगणाणि य माणुस्से बहुविहाणि दुक्खाणि / पचक्खं पिक्खंतो को न मरइ तं विचितंतो ? // 641 // लभ्रूणवि माणुस्सं सुदुलहं केइ कम्मदोसेणं। सायासुह-मणुरत्ता मरणसमुद्देऽवगाहिति // 650 // तेण उ इहलोगसुहं मोत्तूणं माणसंसिय-मईयो। विरतिवख-मरणभीरू लोगसुई-करण-दोगुंछी // 651 // दारिद-दुक्खवेयण-बहुविहसीउगह-खुप्पिवासाणं / श्ररईभयसोगसामिय तकरदुभिवख-मरणाई // 652 // एएसिं तु दुहाणं जं पडिवक्खं सुहंति तं लोए। जं पुण अच्चंतसुहं तस्त परुखखा सया लोया // 653 // जस्त न छुहा ण तराहा नय सीउगहं न दुक्खमुकिट्ठ / न य असुइय सरीरं तस्सऽसणाईसु कि कज्जं ? // 654 // जह निंबदु-मुप्पन्नो कीडो कडुयंपि मन्नए महुरं / तह मुक्खसुह-परुक्खा संसारदुहं सुहं विति // 655 // जे कडयदु-मुष्पन्ना कीडा वरकर-पायव-गरुक्खा। तेसि विसालवल्ली विसं व सग्गो य मुक्खो य // 656 // तह परतित्थियकीडा विसयविसंकुर-विमूढदिट्ठीया। जिणसासणकप्पतरु-वरपारुक्खरसा किलिस्संति // 657 / / तम्हा सुवखमहातरु-सासयसिवफलय-सुवखसत्तेणं / मोत्तूण लोगसराणं पंडियमरणेण मरियध्वं // 658 // जिणमय-भावियचित्तो लोगसुईमल-विरेयणं काउं / धम्ममि तयो भाणे सुक्के य मई निवेसेह // 651 // सुणह-जह जिणवयणामय रस भावियहियएण झाणवावारो। करणिज्जो समणेणं जं भाणं जेसु भायव्वं // 660 // इति संले(बारा)हणासुयं // एवं 'मरणविभत्तिमरणविसोहिं च नाम गुणरयणं / मरणसमाही तइयं संलेहणसुयं चउत्थं च // 661 // पंचम भत्तपरिगणा छ8 ग्राउरपञ्चवखाणं च / सत्तम महपञ्चखाणं अट्ठम बाराहणपइराणो // 662 // इमायो अट्ट सुयायो भावा उ गहियंमि लेस प्रत्यायो। मरणविभत्ती रइयं बिय नाम मरणसमाहिं च // 663 // इति सिरिमरणविभत्तीपइराणयं संमत्तं // // इति भी मरणसमापि(विभकि)प्रकीर्णकम् // 10 //

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