Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 132
________________ प्रकीर्णकानिः॥ 1. श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णका ] [11 अत्यो य / न समत्था ताएउ मरणा सिंदावि देवगणा // 582 // सयणस्स य मझगयो रोगाभिहयो किलिस्सइ इहेगो। सयणोऽविय से रोगं न विरिं. चइ नेव नासेइ // 583 // 2 / मज्झम्मि बंधवाणं इक्को मरइ कलुणस्यंताणं / न य णं अन्नेति तयो बंधुजणो नेव दाराई / / 584 // इको करेइ कम्म फलमवि तस्सेको समणुहवइ / इको जायइ मरइ य परलोयं इक्कयो जाई // 585 // पत्तेयं पत्तेयं नियगं कम्मफल-मणुहवंताणं / को कस्स जए सयणो ? को कस्स व परजणो भणियो ? // 586 // को केण समं जायइ को केण समं च परभवं जाई / को वा करेइ किंत्री कस्स व को कं नियत्तेइ ? // 587 // अणुसोयइ अराणजणं अन्नभवंतरगयं तु बालजणो / नवि सोयइ अप्पाणं किलिस्समाणं भवसमुद्दे // 588 // 3 / अन्नं इमं सरीरं अन्नोऽहं बंधवाविमे अन्ने / एवं नाऊण खमं कुसलस्स न तं खमं काउं ? // 581 // 4 / हा ! जह मोहियमइणा सुग्गइमग्गं अजाणमाणेणं / भीमे भवकतारे सुचिरं भमियं भयकरम्मि // 510 // जोणिसय-सहस्सेसु य असई जायं मयं वऽणेगासु / संजोग विषयोगा पत्ता दुक्खाणि य बहूणि // 11 // सग्गेसु य नरगेसु य माणुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं / जायं मयं च बहुसो संसारे संसरतेणं // 512 // निभत्थणावमाणण-वहबंधण-रुंधणा धणविणासो / णेगा य रोगसोगा पत्ता जाईसहस्सेसु // 513 // सो नत्थि इहोगासो लोए वालग्गकोडिमित्तोऽवि / जम्मणमरणाबाहा अणेगसो जत्थ न य पत्ता // 514 // सव्वाणि सव्वलोए रूवी दव्वाणि पत्तपुव्वाणि / देहोवक्खर-परिभोगयाइ दुवखेसु य बहूसु॥ 515 // संबंधि-बंधवत्ते सव्वे जीवा अणेगसो मझ। विविहवह-वेरजणया दासा सामी य मे पासी // 516 // लोगसहावो धी धी जत्थ व माया मया हवइ धूया। पुत्तोऽवि य होइ पिया पियावि पुत्तत्तणमुवेइ // 517 // जत्थ पियपुत्तगस्सवि माया छाया भवतरगयस्स / तुट्ठा खायइ मंसं इत्तो कि कट्ठयरमन्नं 1 // 518 //

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