Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि : 10 भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [119 सिला-सयणस्था साहंति उ उत्तमट्ठाई॥ 548 // दीवोदहि-रराणेसु य खयरावहियासु पुणरविय तासु / कमलसिरी-महिलादिसु भत्तपरिना कया थीसु // 546 // जह ताव सावयाकुल-गिरिकंदर-विसमकडग दुग्गासु / साहिति उत्तमटुंधिइधणिय-सहायगा धीरा // 550 // किं पुण अणगारसहायगेण अराणुनसंगहबलेणं / परलोए य न सका साहेउं अप्पणो अटुं? // 551 // समुइन्नेसु अ सुविहिय ! उवसग्गमहब्भएसु विविहेसु। हियएण चिंतणिज्जं रयणनिही एस उवसग्गो // 552 // किं जायं जइ मरणं अहं च एगाणियो इहं पाणी / वसियोऽहं तिरियत्ते बहुसोएगागियो रगणे // 553 // वसिऊणवि जणमझे वच्चइ एगागियो इमो जीवो / मुत्तूण सरीरघरं मच्चुमुहा-कड्डियो संतो॥ 554 // जह बीहंति अ जीया विविहाण विहासियाण एगागी / तह संसारगएहिं जीवहिं विहेसिया अन्ने // 555 // साययभयाभिभूयो बहूसु अडवीसु निरभिरामासु / सुरहिहरिण-महिस-सूयरकरवोडिय रुवखछायासु // 556 / / गयगवय-खग्गगंडय-वग्यतरच्छच्छ-भल्लचरिया / भल्लुकि कंक-दीविय-संचरसम्भाव-किराणासु॥ 557 // मत्तगइंदनिवाडिय-मिल्लपुलिंदावकुडियवणासु। वसियोऽहं तिरियत्ते भीसणसंसारचारम्मि // 558 // कत्थ य मुद्धमिगत्ते बहुसो अडवीसु पयइविसमासु / वग्धमुहावडिएणं रसियं अइभीयहियएणं // 551 // कथइ अइदुप्पिक्खो भीसणविगराल-घोरवयणोऽहं / यासि महविय वग्यो रुरुमहिस-वराह- विवश्रो // 560 // कथइ दुधिहिएहिं रक्खसवेयालभूयरूवेहिं / छलियो वहिश्रो य अहं मणुस्सजम्मम्मि निस्सारो // 561 // पयइकुडिलम्मि कत्थइ संसारे पाविऊण भूयत्तं / बहुतो उब्धियमाणो मएवि बीहाविया सत्ता // 562 // विरसं पारसमाणो कत्थइ रराणेसु घाइयो श्रयं / सावयगहणम्मि वणे भाभीरू खुभियचित्तोऽहं // 563 // पत्तं विचित्तविरसं दुवखं संसारसागरगएणं / रसियं च असरणेणं कयंत-दंतंतरगएणं // 564 // तइया कीस न
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